विशाखपटनम्, नवंबर ११ – विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा कुरुक्षेत्र से शुरू होकर भारत के विभिन्न राज्यों का भ्रमण करते हुए पिछले चार दिनों से उडीसा में घूमते हुए आज आंध्रप्रदेश में पहुंची । गो ग्राम यात्रा सुबह उडीसा के ब्रहमपुर से होकर आंध्राप्रदेश के सोनेपेटा, नरसण्णपेटा, विजयनगरं होते हुए विशाखपटनम पहुंची ।
गो ग्राम यात्रा के विशाखपटनम पहुंचने पर षहरीय क्षेत्र में भारी संख्या में दो पहिया वाहनों के काफिलों ने यात्रा का जोरदार स्वागत किया । साथ ही पारंपरिक वाद्य यंत्रों का वादन भी इस यात्रा के स्वागत में स्थानीय लोगों ने किया । शहर में लगभग एक घंटे तक गो ग्राम यात्रा का भ्रमण कराया गया जिसमें भारी संख्या में लोग ढोल नगाडें के साथ नाचते हुए चल रहे थे ।
गो ग्राम यात्रा के लिए विशाखपटनम में समुद्री किनारे आर क बीच पर आर के बीच पर आयोजित कार्यक्रम में शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद महाराज, यात्रा के केंद्रीय अधिकारी व अन्य वरिष्ठ संतों के साथ भारी संख्या में गो भक्त उपस्थित थे । गो ग्राम के लिए आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित गो भक्तों ने संतों का आशीर्वचन सुनने के बाद गोसंरक्षण हेतु संकल्प लिया । कार्यक्रम स्थल पर ही गोपूजन व आरती भी की गई ।
गो ग्राम यात्रा के लिए आयोजित कार्यक्रम में जनसभा को संबोधित करते हुए शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि जहाँ तक संभव हो अपना शरीर बचाने के लिए गाय का दूध और उससे निर्मित घी का प्रयोग करें । उन्होंने कहा कि गोबर व गोवंश का यदि नहीं बचाया गया तो हो सकता है कि आगे आने वाले समय में हिंदुस्तान के लोग कलेंडर में ही गाय के चित्र को देखकर उसकी पूजा करें ।
शंकराचार्य ने कहा कि शहरी क्षेत्र के लोग यदि घरों में गाय नहीं पाल सकते तो वें गोशालाओं में आर्थिक मदद देकर गो संरक्षण व गो पालन में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं । उन्होंने कहा कि यदि विश्व व्यापी समस्याओं से भारत को बचाना है तो गाँव की ओर लौटकर गोपालन करना होगा ।
इससे पहले गो ग्राम यात्रा के लिए विजयनगरम में आयोजित कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हु गो ग्राम यात्रा के प्रमुख के.ई.एन. राघवन ने कहा कि गाय कभी अनार्थिक नहीं हो सकती बूढी गाय से भी हम प्रतिमाह उसके गोबर व गोमूत्र से आमदनी प्राप्त कर सकते हैं ।
केवल गाय को दूध देने वाला पशु भार समझने वाले गो पालक गाय की उपयोगिता से अनभीज्ञ है । गो ग्राम यात्रा मानव जाति में व्याप्त इसी धारणा को बदलने का प्रयास है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति गो महत्व को समझकर उसे पारिवारिक सदस्य मानकर अपना जीवन खुषहाल कर सकें ।
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