शुक्रवार, 29 मई 2015

संघ और सरकार- विरोधाभास का सवाल नहीं

संघ और सरकार- विरोधाभास का सवाल नहीं 

खुद को देश का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला अंग्रेजी अखबार बताने वाले एक दैनिक के मुम्बई संस्करण में एक जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार के सात महीने के कार्यकाल का लेखा-जोखा छापा था। अब उसके करीब साढ़े चार महीने बाद 16 मई 2015 को इस अखबार ने सरकार के एक साल पूरे होने पर एक और रपट प्रकाशित की। पहली रपट की तरह ही इस सर्वेक्षण रपट में खामियां और पूर्वाग्रह भरे पड़े हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि दोनों सर्वेक्षणों ने एक ऐसा परिणाम सामने रखा है जो किसी के दिमाग में दूर-दूर तक नहीं था। सर्वेक्षण का पूरा खाका यह साबित करने के लिए था कि 'रा.स्व.संघ का भारत के विकास पर उल्टा असर पड़ा है', जबकि सर्वेक्षण का निष्कर्ष अंतत: भारत के विकास पर रा.स्व.संघ का सकारात्मक असर दिखाता है।


सर्वेक्षण की पूर्वाग्रह से भरी प्रश्नावली के उदाहरण से बात आरंभ करते हैं। सर्वेक्षण का एक मौलिक सूत्र होता है, निष्कर्ष तक पहुंचाने वाले सवालों से बचना। ऐसे सवाल जवाब देने वाले को कहीं न कहीं एक खास जवाब की तरफ मोड़ देते हैं। ऐसे सवाल उसी तरह के जवाब सुझाते हैं जो सर्वेक्षणकर्ता चाहता है। इससे उसका पूर्वाग्रह जाहिर होता है।


अखबार ने इसी तरह का सवाल पूछा,'आपको लगता है संघ परिवार की सक्रियता विकास के एजेंडे को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है?' अब इसमें से अगर आप 'आपको लगता है' हटा दें तो जवाब, जैसा अखबार चाहता था, एक तरह से यही सामने आता है कि, 'संघ परिवार की सक्रियता विकास के एजेंडे को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है।' अब इस सवाल के निष्कर्षों पर नजर डालते हैं। 

(देखें, बॉक्स-1)
इसके नतीजों से यह बात साफ जाहिर होती है कि-
1. संघ की सक्रियता विकास में सहायक रही है। 'सक्रियता विकास को बाधित कर रही है', यह जवाब देने वालों में 20 प्रतिशत की कमी है और 'सक्रियता विकास को बाधित नहीं कर रही है', यह जवाब देने वालों में 10 प्रतिशत बढ़ोत्तरी दिखती है। और यह सब मात्र साढ़े चार महीनों में हुआ है।
 

उपरोक्त दोनों निष्कर्षों को बॉक्स-2 में दिये जवाब पुष्ट करते हैं। दोनों सर्वेक्षणों का पहला सवाल था-'आप मोदी सरकार से क्या चाहते हैं?' आंकड़े संकेत करते हैं कि मीडिया में हिन्दुत्व को लेकर लागातार दुष्प्रचार किये जाने के बावजूद;
1. ज्यादा से ज्यादा लोग (40 प्रतिशत) मानते हैं कि 'हिन्दुत्व का उन्नयन' और 'विकास' आपस में पूरक हैं और एक की अनुपस्थिति में दूसरा अर्थहीन है।
2. साढ़े चार महीनों के अंतराल में इसको लेकर किसी के मन में भी कोई पसोपेश नहीं है,जैसा कि 'नहीं पता/कह नहीं सकते' वाला जवाब देने वालों की संख्या से साबित होता है, जो बॉक्स-1 के निष्कर्षों को सत्यापित करता है।
 

ये संख्या इस मिथक को तार-तार करती है कि हिन्दुत्व के मुद्दे शासन और विकास के विरोधाभासी हैं। सुखद बात यह है कि ये निष्कर्ष सभी आयु वर्गों में सच पाये गए हैं और 40 प्रतिशत युवा (18-29 साल) मानते हैं कि 'हिन्दुत्व का उन्नयन' उतना ही महत्वपूर्ण है जितना 'विकास' (बॉक्स-3)। साढ़े चार महीनों में यह संख्या 100 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी है।
 

यह सर्वेक्षण आठ शहरों में किया गया था। इसके निष्कर्ष तब और अधिक उत्साहजनक हो जाते हैं जब शहरों के स्तर पर प्राप्त आंकड़ों पर नजर डाली जाती है। तीन शहरों में मिले निष्कर्षों पर नजर डालें (बॉक्स-4), जो दक्षिण भारत में स्थित हैं जहां भाजपा की ज्यादा उपस्थिति नहीं है।
द्रविड़ दलों के प्रभुत्व वाले चेन्नई में 36 प्रतिशत लोग 'विकास' के साथ 'हिन्दुत्व' चाहते हैं। यह साढ़े चार महीनों में 360 प्रतिशत का जबरदस्त उछाल दिखाता है।
 

आईटी शहर बंगलूरु में 64 प्रतिशत लोग 'विकास' के साथ 'हिन्दुत्व' चाहते हैं। एक बार फिर, साढ़े चार महीनों में 0 से 230 प्रतिशत का उछाल दिखता है।
ओवैसी भाइयों के शहर हैदराबाद में हिन्दुत्व के साथ विकास चाहने वालों की संख्या में इसी अंतराल में 100 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़त दिखती है।
 

याद रहे इन शहरों में ईसाई मिशनरियों की बड़ी संख्या है। इनसे एनजीओ का सवाल जुड़ा हुआ है। 55 प्रतिशत लोगों ने कहा कि 'मोदी सरकार ने उनके (एनजीओ) संदर्भ में सही निर्णय लिया है' और केवल 13 प्रतिशत ने कहा कि यह 'बेमतलब का बैर निकालना है।'
 

जब शहरों के अनुसार निम्नलिखित चार सवालों से प्राप्त डाटा की तुलना की गयी तो एक दिलचस्प तस्वीर उभर कर आयी। (देखें, बॉक्स-5) ये सवाल थे-
 'विकास तथा आर्थिक उन्नति' और 'हिन्दुत्व' दोनों चाहिए।
संघ परिवार की सक्रियता ने विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं किया है।
मोदी सरकार ने सक्रियता को प्रोत्साहित किया है।
मोदी सरकार ने एनजीओ के संदर्भ में सही निर्णय लिया है।
 

केवल 27 प्रतिशत लोगों ने माना है कि 'प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत सरकार ने सक्रियता को प्रोत्साहित किया है', क्योंकि उन्होंने घर वापसी को लेकर मीडिया और विपक्ष द्वारा खेले गए खेल की असलियत जान ली है। उदाहरण के लिए विपक्ष की एक भी पार्टी कन्वर्जन विरोधी विधेयक को पारित कराने के लिए आगे नहीं आयी, यह तथ्य लोगों से छिपा नहीं रहा।
स्पष्ट है कि, भारत भर के लोगाों का मानना है कि रा.स्व.संघ विकास में योगदान कर रहा है और उन्होंने सरकार के आर्थिक उन्नति और विकास के साथ हिन्दुत्व को आगे बढ़ाने को समर्थन दिया है। साथ ही उन एनजीओ के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की बात कही है जो इन दोनों आयामों के उभार को बाधित करते हैं।
 

22 प्रतिशत लोग अब भी 'पता नहीं/कह नहीं सकते' की स्थिति में हैं। संघ की तरफ से एक स्पष्ट संदेश और संघ की वास्तविक समझ न केवल 22 प्रतिशत लोगों की संघ के प्रति सकारात्मक दृष्किोण बनाने में मददगार हुई बल्कि यह भाजपा के लिए 'शासन' और 'अभी तक पहुंच से दूर इलाकों में उपस्थिति दर्ज कराने' में भी सहायक होगी।
 

आखिर में एक और पूर्वाग्रह की चर्चा करते हैं। 1 जनवरी, 2015 की सर्वेक्षण रपट का शीर्षक था 'मोदी सरकार में विश्वास बढ़ा, लेकिन संघ की सक्रियता चिंताजनक', जो 16 मई 2015 के सर्वेक्षण के बाद 'मोदी सरकार में विश्वास बढ़ा, और संघ का विकास में योगदान' हो जाना चाहिए था। लेकिन दुर्भाग्य से यह हुआ, 'पहले साल का इम्तिहान-मोदी सरकार को फर्स्ट डिवीजन, न कि डिस्टिंगशन'। शीर्षक का महत्व होता है क्योंकि मई 2015 की सर्वेक्षण रपट जनवरी 2015 की रपट का उल्लेख करती है। दुर्भाग्य से पूर्वाग्रहयुक्त शीर्षक के साथ ही, विश्लेषण से भी नकारात्मकता ही निकली है और सकारात्मक प्रयासों को नकारात्मक दर्शाया गया है। जवाब की तरफ इशारा करने वाला एक सवाल 'आपको लगता है संघ परिवार की सक्रियता विकास की एजेंडे को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है', जो सर्वे की जनवरी 2015 की रपट में पहले पन्ने पर दिया गया था उसे मई 2015 की रपट में अन्दर के पृष्ठों में सिमटा दिया गया और उसकी जगह एक दूसरा, जवाब की तरफ इशारा करने वाला सवाल दे दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नकारात्मक सवालों तक ने अखबार की रा.स्व.संघ की नकारात्मक छवि बनाने में मदद नहीं की। लेकिन वह दिन दूर नहीं जब पूर्वाग्रहग्रस्त मीडिया को राष्ट्र निर्माण में संघ का सकारात्मक योगदान स्वीकारना पड़ेगा। अभी तक मीडिया केवल भाजपा के संदर्भ में ही संघ को देखता आया है। समय आ गया है जब मीडिया को अपना दृष्टिकोण बढ़ाते हुए संघ को राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में देखना पड़ेगा।

 -संदीप सिंह
लेखक www.swastik.net.in के संस्थापक हैं 







व्यक्ति और राष्ट्रहित में मूल्यपरक शिक्षा




सब लोग पढऩा-लिखना सीख लें, अंगूठे की जगह हस्ताक्षर करना सीख लें, केवल इतना भर शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए क्या? मनुष्य अपने हित-अहित के संबंध  में जागरूक हो जाए, उसे इतना शिक्षित करने मात्र से काम चलेगा क्या?  अच्छे-भले मनुष्य को पैसा कमाने की मशीन बना देना, शिक्षा है क्या? आखिर  शिक्षा क्या है और उसका उद्देश्य क्या होना चाहिए?
 - लोकेन्द्र सिंह

शिक्षा के अभाव से कितनी समस्याएं और विसंगतियां उत्पन्न होती हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। विशेषकर मूल्यहीन शिक्षा व्यवस्था के कारण तो कई प्रकार की नई समस्याएं जन्म ले लेती हैं। अपनी बौद्धिक और तर्क क्षमता से दुनिया पर विजय प्राप्त करने वाले युवा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द तो यहां तक कहते हैं- 'यदि शिक्षा से सम्पन्न राष्ट्र होता तो आज हम पराभूत मन:स्थिति में न आए होते।' इस देश का सबसे अधिक नुकसान शिक्षा के अभाव के कारण ही हुआ है। भारत के संदर्भ में शिक्षा का अभाव ही एकमात्र चुनौती नहीं है बल्कि उचित शिक्षा का अभाव ज्यादा गंभीर मसला है। इस बात से किसी को इनकार नहीं है कि एक समर्थ राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कहना ज्यादा उचित होगा कि राष्ट्र निर्माण में शिक्षा पहली और अनिवार्य आवश्यकता है। लेकिन, यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत को कैसी शिक्षा की आवश्यकता है?
सब लोग पढऩा-लिखना सीख लें, अंगूठे की जगह हस्ताक्षर करना सीख लें, केवल इतना भर शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए क्या? मनुष्य अपने हित-अहित के संबंध में जागरूक हो जाए, उसे इतना शिक्षित करने मात्र से काम चलेगा क्या? अच्छे-भले मनुष्य को पैसा कमाने की मशीन बना देना, शिक्षा है क्या? अच्छी नौकरी पाने के योग्य हो जाना, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाना, किताबें पढऩा-लिखना सीख लेना ही शिक्षा और शिक्षा का उद्देश्य नहीं है, तो भला क्या है? आखिर शिक्षा क्या है और उसका उद्देश्य क्या होना चाहिए? हमें इस प्रश्न का उत्तर युवा हृदय सम्राट स्वामी विवेकानन्द के चिन्तन में खोजना चाहिए। स्वामीजी बार-बार कहते थे-'अपनी अंतरआत्मा को प्रकट करने के लिए तैयार करना ही शिक्षा है।'अंतरआत्मा के प्रति समर्पण से ही विश्व बंधुत्व का भाव जाग्रत होता है।

इससे अपनी माटी के प्रति, समाज के प्रति और परिवेश के प्रति समर्पण का भाव भी जाग्रत होता है। यदि आज का विद्यार्थी यह सब सीख गया तो बाकी सब तो सीख ही जाएगा।


शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए, इस संबंध में स्वामी जी कहते हैं कि हमारे राष्ट्र का जो उद्देश्य हो वही हमारी शिक्षा का भी उद्देश्य होना चाहिए। हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जो प्रत्येक विद्यार्थी को राष्ट्रीय दायित्व का बोध कराए। महज रुपये कमाने की कला नहीं बल्कि जीवन जीने की कला सिखाए। विद्यार्थी स्कूल-कॉलेज में जीवन
मूल्य भी सीखे। सही मायने में तभी वह शिक्षित होगा। लेकिन, बड़ी विद्रूप स्थिति है कि वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में'भारतीयता' की झलक कहीं भी देखने को नहीं मिलती है। विद्यार्थियों को न भारतीय इतिहास से अवगत कराया जा रहा है, न परंपराओं से और न ही उसे राष्ट्रीय दायित्व के बोध से अवगत कराया जा रहा है। आज का विद्यार्थी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर डॉक्टर, इंजीनियर, नौकरशाह और शिक्षक तो बन रहा है लेकिन जिम्मेदार नागरिक नहीं बन पा रहा है। उसकी सोच में भारतीयता कहीं नहीं झलकती है। राष्ट्र की सेवा का चिंतन भी नहीं है। शिक्षित होकर वह समाज में अपनी भूमिका भी नहीं पहचान पा रहा है। उसका शिक्षित होना सिर्फ उसके व्यक्तिगत लाभ तक ही सीमित रह गया है। समाज को आगे बढ़ाने में उसकी शिक्षा का कोई योगदान नजर आता नहीं। क्योंकि, जो शिक्षा उसने प्राप्त की है, उससे वह न तो समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां सीखा है और न ही उसे राष्ट्रीय दायित्व को बोध हुआ है। सही मायने में तो उसे शिक्षा का अर्थ भी ठीक प्रकार से स्पष्ट नहीं हो सका है। विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में विद्यार्थी को सिखाया ही नहीं जा रहा है कि मनुष्य के जीवन मूल्य क्या हैं?
 
राष्ट्र के प्रति उसकी क्या जिम्मेदारियां हैं? शिक्षा प्राप्त कर वह कुछ बने जरूर लेकिन उस भूमिका में रहते हुए देश के प्रति, समाज के प्रति और अपने परिवेश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को कैसे निभाए?वर्तमान परिदृश्य को देखकर आज हर कोई,माता-पिता, शिक्षक, समाजसेवी, राष्ट्रसेवी और विद्यार्थी भी शिक्षा व्यवस्था में मौलिक परिवर्तन की बात कर रहे हैं। सब मूल्यपरक शिक्षा कीआवश्यकता महसूस कर रहे हैं। यह बात और अधिक गंभीर हो जाती है, जब शिक्षामंत्रालय नई शिक्षा नीति तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। नैतिक शिक्षा के समावेश की बात जोर-शोर से उठाई जा रही है। खासकर उसे विद्यालयीन स्तर पर अनिवार्य करने की मांग उठाई जा रही है। देश के कई शिक्षाविद्पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को शामिल करने की दिशा में मंथन कर रहे हैं।
केन्द्र में ऐसे राजनीतिक दल की सशक्त सरकार है, जिसे सांस्कृतिक मूल्यों का हामी माना जाता है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि शिक्षा नीति में आमूलचूल परिवर्तन होगा। हालांकि, सरकार के इस कदम के विरोध में कुछ सुगबुगाहट शुरू हो गई है। देश में ऐसे भी कुछ दल, संगठन और संस्थाएं हैं, जिनकी आस्था नैतिक मूल्यों में नहीं हैं। वे नहीं चाहते कि हमारी शिक्षा नीति भारतीय संस्कृति के अनुरूप बने। विद्यार्थी संस्कारित हो, इस बात की भी चिंता उन्हें नहीं हैं। जैसे ही सरकार इस दिशा में कुछ ठोस प्रयास करेगी तो ये दल, संगठन और संस्थाएं झंडा उठाकर खड़े हो जाएंगे और जोर-जोर से चिल्लाएंगे कि शिक्षा का भगवाकरण किया जा रहा है।शिक्षा का 'कचराकरण'किया जा रहा था, तब ये संभवतः आनंदित हो रहे थे। कुछ तो सुनियोजित ढंग से शिक्षा के वामपंथीकरणमें लगे भी रहे हैं, इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। अब शिक्षा में भारतीय विचारों का समावेश किया जाना है तो उन्हें कष्ट होना स्वाभाविक है।
लेकिन, भारत के बेहतर भविष्य के लिए यह जरूरी है कि शिक्षा संस्थानों से अपनी पढ़ाई पूरी कर निकलनेवाला विद्यार्थी अपने राष्ट्र से परिचित हो, अपनी परंपराओं से परिचित हो, सामाजिक संस्कारों का बोध उसे हो। समाज में दिख रहीं तमाम तरह की सस्याओं का बहुत बड़ा कारण कहीं न कहीं नैतिक मूल्यों की गिरावट है। नैतिक मूल्यों की गिरावट का सबसे बड़ा कारण मूल्य आधारित शिक्षा का अभाव है। समाज के पतन को रोकने के लिए मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता है।

ऐसे में 'शिक्षा का भगवाकरण' का जुमला उछालने वालों की बेतुकी बातों पर कान न धरते हुए सरकार को अपना काम राष्ट्र के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। बौद्धिक जगत, मीडियाकर्मियों, शिक्षाविदों को नई शिक्षा नीति का समर्थन करना चाहिए। अखबारों-पत्रिकाओं में आलेख लिखकर, सेमिनार आयोजित कर, संविमर्श के माध्यम से मूल्यपरक शिक्षा के समर्थन में सकारात्मक वातावरण तैयार करना चाहिए। यदि सरकार नैतिक मूल्यों के समावेश से बचती है तो बौद्धिक नेतृत्व को सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि अब मूल्यहीन और दिग्भ्रमित शिक्षा नीति नहीं चाहिए।
शिक्षा में नैतिक मूल्यों के समावेश की इच्छा मात्र राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करनेवाली नई सरकार की
नहीं है बल्कि शिक्षा के संबंध में स्वामी विवेकानन्द के विचार हों, महात्मा गांधी की दृष्टि हो या फिर कोठारी और राधाकृष्ण आयोग की रिपोर्ट में दिए गए दिशा-निर्देश, सबका यही मत है कि शिक्षा में नैतिक मूल्यों की गिरावट ठीक नहीं, शिक्षा में नैतिक मूल्यों का समावेश जरूरी है। मूल्य आधारित शिक्षा व्यवस्था प्रत्येक राष्ट्र के लिए आवश्यक है। सभी प्रकार की शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य यही होना चाहिए कि अच्छे व्यक्ति का निर्माण हो, जो समाज-राष्ट्र के प्रति सम्मान रखकर पूरा जीवन व्यतीत करे। राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर अपनी भूमिका का निर्वहन करनेवाला व्यक्ति हो। लेकिन, इसे विडबंना ही कहेंगे कि सांस्कृतिक राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था से ही नैतिक
मूल्य बाहर हो गए हैं। भारत को विश्व का नेतृत्व करना है तो मूल्यपरक शिक्षा उसके लिए अनिवार्य है। बिना मूल्य के शिक्षा, शिक्षा नहीं बल्कि महज सूचनाओं और जानकारियों का पुलिंदा है।
-
लेखक युवा साहित्यकार हैं तथा लोकेन्द्र सिंह माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में पदस्थ हैं।


साभार: न्यूज़ भारती

गुरुवार, 28 मई 2015

स्वतंत्रता संग्राम और संघ

स्वतंत्रता संग्राम और संघ

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संघ संस्‍थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जन्‍मजात देशभक्‍त और प्रथम श्रेणी के क्रांतिकारी थे. वे युगांतर और अनुशीलन समिति जैसे प्रमुख विप्‍लवी संगठनों में डॉ. पाण्‍डुरंग खानखोजे, अरविन्‍द जी, वारीन्‍द्र घोष, त्रैलौक्‍यनाथ चक्रवर्ती आदि के सहयोगी रहे. रासबिहारी बोस और शचीन्‍द्र सान्‍याल द्वारा प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय 1915 में सम्‍पूर्ण भारत की सैनिक छावनियों में क्रान्ति की योजना में वे मध्‍यभारत के प्रमुख थे. उस समय स्‍वतंत्रता आंदोलन का मंच कांग्रेस थी. उसमें भी प्रमुख भूमिका निभाई. 1921 और 1930 के सत्‍याग्रहों में भाग लेकर कारावास का दण्‍ड पाया.

1925 में विजयादशमी पर संघ स्‍थापना करते समय डॉ.  हेडगेवार जी का उद्देश्‍य राष्‍ट्रीय स्‍वाधीनता ही था. संघ के स्‍वयंसेवकों को जो प्रतिज्ञा दिलाई जाती थी, उसमें राष्ट्र की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए तन-मन-धन और प्रामाणिकता से प्रयत्नपूर्वक आजन्मरत रहने का संकल्प होता था. संघ स्‍थापना के तुरन्‍त बाद से ही स्‍वयंसेवक स्‍वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाने लगे थे.

क्रान्तिकारी स्‍वयंसेवक
संघ का वातावरण देशभक्तिपूर्ण था. 1926-27 में जब संघ नागपुर और आसपास तक ही पहुंचा था, उसी काल में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी राजगुरू नागपुर की भोंसले वेदशाला में पढ़ते समय स्‍वयंसेवक बने. इसी समय भगत सिंह ने भी नागपुर में डॉक्‍टर जी से भेंट की थी. दिसम्‍बर 1928 में ये क्रान्तिकारी पुलिस उपकप्‍तान सांडर्स का वध करके लाला लाजपत राय की हत्‍या का बदला लेकर लाहौर से सुरक्षित आ गए थे. डॉ. हेडगेवार जी ने राजगुरू को उमरेड में भैय्या जी दाणी (जो बाद में संघ के अ.भा. सरकार्यवाह रहे) के फार्म हाउस में छिपने की व्यवस्था की थी. 1928 में साइमन कमीशन के भारत आने पर पूरे देश में उसका बहिष्‍कार हुआ. नागपुर में हड़ताल और प्रदर्शन करने में संघ के स्‍वयंसेवक अग्रिम पंक्ति में थे.

महापुरूषों का समर्थन
1928 में विजयादशमी उत्‍सव पर भारत की असेम्‍बली के प्रथम अध्‍यक्ष और सरदार पटेल के बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल जी उपस्थित थे. अगले वर्ष 1929 में महामना मदनमोहन मालवीय जी ने उत्‍सव में उपस्थित हो संघ को अपना आशीर्वाद दिया. स्‍वतंत्रता संग्राम की अनेक प्रमुख विभूतियां संघ के साथ स्‍नेह संबंध रखती थीं.

शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस
31 दिसम्‍बर, 1929 को लाहौर में कांग्रेस ने प्रथम बार पूर्ण स्वाधीनता को लक्ष्‍य घोषित किया और 16 जनवरी, 1930 को देशभर में स्‍वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निश्‍चय किया गया.

डॉ. हेडगेवार ने दस वर्ष पूर्व 1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्‍वतंत्रता संबंधी प्रस्‍ताव रखा था, पर तब वह पारित नहीं हो सका था. 1930 में कांग्रेस द्वारा यह लक्ष्‍य स्‍वीकार करने पर आनन्दित हुए डॉ. हेडगेवार जी ने संघ की सभी शाखाओं को परिपत्र भेजकर रविवार 26 जनवरी, 1930 को सायं 6 बजे राष्‍ट्रध्‍वज वन्‍दन करने और स्‍वतंत्रता की कल्‍पना और आवश्‍यकता विषय पर व्‍याख्‍यान की सूचना करवाई. इस आदेश के अनुसार संघ की सब शाखाओं पर स्‍वतंत्रता दिवस मनाया गया.

सत्‍याग्रह
6 अप्रैल, 1930 को दांडी में समुद्र तट पर गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा और लगभग 8 वर्ष बाद कांग्रेस ने दूसरा जनान्‍दोलन प्रारम्‍भ किया. संघ का कार्य अभी मध्‍यभारत प्रान्‍त में ही प्रभावी हो पाया था. यहां नमक कानून के स्‍थान पर जंगल कानून तोड़कर सत्‍याग्रह करने का निश्‍चय हुआ. डॉ. हेडगेवार जी संघ के सरसंघचालक का दायित्‍व डॉ. परांजपे को सौंप स्‍वयं अनेक स्‍वयंसेवकों के साथ सत्‍याग्रह करने गए.

जुलाई 1930 में सत्‍याग्रह हेतु यवतमाल जाते समय पुसद नामक स्‍थान पर आयोजित जनसभा में डॉ. हेडगेवार जी के सम्‍बोधन में स्‍वतंत्रता संग्राम में संघ का दृष्टिकोण स्‍पष्‍ट होता है. उन्‍होंने कहा था – स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजों के बूट की पॉलिश करने से लेकर उनके बूट को पैर से निकालकर उससे उनके ही सिर को लहुलुहान करने तक के सब मार्ग मेरे स्‍वतंत्रता प्राप्ति के साधन हो सकते हैं. मैं तो इतना ही जानता हूं कि देश को स्‍वतंत्र कराना है.

डॉ. हेडगेवार जी के साथ गए सत्‍याग्रही जत्‍थे में अप्पा जी जोशी (बाद में सरकार्यवाह), दादाराव परमार्थ (बाद में मद्रास में प्रथम प्रांत प्रचारक) आदि 12 स्वयंसेवक शामिल थे.

उनको 9 मास का सश्रम कारावास दिया गया. उसके बाद अ.भा. शारीरिक शिक्षण प्रमुख (सर सेनापति) मार्तण्ड जोग जी, नागपुर के जिला संघचालक अप्पा जी ह्ळदे आदि अनेक कार्यकर्ताओं और शाखाओं के स्वयंसेवकों के जत्थों ने भी सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्वयंसेवकों की टोली बनाई, जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे. 8 अगस्‍त को गढ़वाल दिवस पर धारा 144 तोड़कर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से अनेक स्‍वयंसेवक घायल हुए.

विजयादशमी 1931 को डाक्‍टर जी जेल में थे, उनकी अनुपस्थिति में गांव-गांव में संघ की शाखाओं पर एक संदेश पढ़ा गया, जिसमें कहा गया था – देश की परतंत्रता नष्‍ट होकर जब तक सारा समाज बलशाली और आत्‍मनिर्भर नहीं होता, तब तक रे मना ! तुझे निजी सुख की अभिलाषा का अधिकार नहीं.

जनवरी 1932 में विप्‍लवी दल द्वारा सरकारी खजाना लूटने के लिए हुए बालाघाट काण्‍ड में वीरबाघा जतिन (क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ) अपने साथियों सहित शहीद हुए और बाला जी हुद्दार आदि कई क्रान्तिकारी बन्दी बनाए गए. हुद्दार जी उस समय संघ के अ.भा. सरकार्यवाह थे.

संघ पर प्रतिबन्‍ध
संघ के विषय में गुप्तचर विभाग की रपट के आधार पर मध्‍यभारत सरकार (जिसके क्षेत्र में नागपुर भी था) ने 15 दिसंबर 1932 को सरकारी कर्मचारियों के संघ में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया.

डॉ. हेडगेवार जी के देहान्‍त के बाद 5 अगस्‍त 1940 को सरकार ने भारत सुरक्षा कानून की धारा 56 व 58 के अन्‍तर्गत संघ की सैनिक वेशभूषा और प्रशिक्षण पर पूरे देश में प्रतिबंध लगा दिया.

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन
संघ के स्‍वयंसेवकों ने स्‍वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई. विदर्भ के अष्‍टीचिमूर क्षेत्र में समानान्‍तर सरकार स्‍थापित कर दी. अमानुषिक अत्‍याचारों का सामना किया. उस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक स्‍वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान किया. नागपुर के निकट रामटेक के तत्‍कालीन नगर कार्यवाह रमाकान्‍त केशव देशपांडे उपाख्‍य बाळा साहब देशपाण्‍डे जी को आन्‍दोलन में भाग लेने पर मृत्‍युदण्‍ड सुनाया गया. आम माफी के समय मुक्‍त होकर उन्होंने वनवासी कल्‍याण आश्रम की स्‍थापना की.

देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे. मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झण्डा फहराते स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें अनेक स्वयंसेवक घायल हुए.

आंदोलनकारियों की सहायता और शरण देने का कार्य भी बहुत महत्‍व का था. केवल अंग्रेज सरकार के गुप्‍तचर ही नहीं, कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी के आदेशानुसार देशभक्‍तों को पकड़वा रहे थे. ऐसे में जयप्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली दिल्‍ली के संघचालक लाला हंसराजगुप्‍त के यहां आश्रय प्राप्त करते थे. प्रसिद्ध समाजवादी अच्‍युत पटवर्धन और साने गुरूजी ने पूना के संघचालक भाऊ साहब देशमुख जी के घर पर केन्‍द्र बनाया था.

पत्री सरकार गठित करने वाले प्रसिद्ध क्रान्तिकारी नाना पाटिल को औंध (जिला सतारा) में संघचालक पं. सातवलेकर जी ने आश्रय दिया.

स्‍वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघ की योजना
ब्रिटिश सरकार के गुप्‍तचर विभाग ने 1943 के अन्‍त में संघ के विषय में जो रपट प्रस्‍तुत की, वह राष्‍ट्रीय अभिलेखागार की फाइलों में सुरक्षित है, जिसमें सिद्ध किया है कि संघ योजना पूर्वक स्‍वतंत्रता प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है.
स्त्रोत: vskbharat.com

तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग - पथ संचलन सम्पन्न

तृतीय वर्ष संघ शिक्षा  वर्ग - पथ संचलन सम्पन्न

नागपुर। तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के प्रतिभागीयों  द्वारा नागपुर के प्रमुख मार्गो से पथ संचलन निकाला गया।  उल्लेखनीय है कि देश भर से ८७६ चयनित स्वयंसेवकों का २५ दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग ११ मई से प्रारम्भ हुआ था, वर्ग का समापन  ४ जून सायं को  होगा।

पथ संचलन का अवलोकन  परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन भागवत, सह सरकार्यवाह सुरेश सोनीअखिल  भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्यअखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख मंगेश भेंडे अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमारअखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख अजीत महापात्रा, वर्ग पालक अधिकारी अरुण कुमार (अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख), वर्ग सर्वाधिकारी  गोविंद सिंह टांक, वर्ग कार्यवाह यशवंत भाई चौधरी ने किया.  

साभार:दैनिक भास्कर


परम पूजनीय सरसंघचालक एवं अन्य पथसंचलन का अवलोकन करते हुए
पथ संचलन का इक दृश्य

बढे चलो बढ़े चलो

पथ संचलन - घोष 








शनिवार, 23 मई 2015

संस्कारित बालिका ही सुसंस्कृत राष्ट्र का निर्माण करती हैं , सेविकाओं ने सुसंस्कृत राष्ट्र निर्माण का संकल्प दोहराया

संस्कारित बालिका ही सुसंस्कृराष्ट्र का निर्माण कती हैं 

 सेविकाओं ने सुसंस्कृत राष्ट्र निर्माण का संकल्प दोहराया 

पाली २२ मई।  सरस्वती शिशु मंदिर में शुक्रवार को जोधपुर प्रांत के राष्ट्रीय सेविका  समिति का चल रहा सात  दिवसीय प्रारंभिक व् प्रवेश समिति शिक्षा वर्ग का समापन समारोहपूर्वक महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनिता भदेल के मुख्य आतिथ्य एवं डॉ. संजू गर्ग की अध्यक्षता में हुआ। समापन समारोह की शुरुआत सेविका समिति की सेविकाओं ने वंदेमातरम गीत से की। कार्यक्रम में सेवा समिति के शिविर में 10 जिलों से आई 198 सेविकाओं ने सूर्यनमस्कार, आत्मसुरक्षा के गुर, दंड योग, मनोयोग, धर्म योग, दीप योग अभ्यास किया। कार्यक्रम में सेविकाओं ने एक स्वर में हम बेटी हिंदुस्तान की गीत की प्रस्तुति देकर सभी को मोहित किया।





 कार्यक्रम में मंत्री भदेल ने सेविकाओं को संबोधित करते हुए कहा कि इस प्रकार के वर्ग  से बालिकाएं संस्कारित होती हैं। संस्कारित बालिका ही सुसंस्कृराष्ट्र का निर्माण कर सकती है। उन्होंने कहा कि विदेशी संस्कृति के कारण भारतीय संस्कृति का हास हुआ है। राष्ट्रीय  सेविका समिति की और से ऐसे वर्ग का उद्देश्य बालिकाओ को संस्कारवान तथा अनुशासन  सिखाने के लिए किये जाते है , यह इनके जीवन में काफी उपयोगी सिद्ध होगा।  भदेल ने सेविकाओं से शिविर में सीखे गुणों को जीवन में उतारने का आग्रह किया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  डॉ. संजू गर्ग ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्र भावना होना जरूरी है। राष्ट्र भावना से ही व्यक्ति राष्ट्र हित के बारे में सोच सकता है। भारतीय संस्कृति को अपनाना जरूरी है। वर्तमान में शिक्षा के साथ संस्कारवान होना भी आवश्यक है. डॉ गर्ग ने स्वस्थ्य  जीवन के लिए नियमित व्यायाम करने की आवश्यकत पर बल दिया.

 कार्यक्रम में मुख्य वक्ता क्षेत्रीय कार्यवाहिका प्रमिला शर्मा ने राष्ट्रीय सेविका समिति के मूल उद्देश्य की जानकारी दी। कार्यक्रम के अंत में सेविकाओं ने वंदेमातरम गान की प्रस्तुति देकर कार्यक्रम का समापन किया। 

इस अवसर  पर विधायक ज्ञानचंद पारख, मदन राठौड़, प्रधान श्रवण बंजारा, महंत सुरजनदास महाराज, कमल गोयल, सभापति महेंद्र बोहरा, विनय बम्ब, परमेश्वर जोशी, वर्ग कार्यवाह कृष्णा द्विवेदी , सर्वाधिकारी रीना वैष्णव,  विमला रांकावत, मीना सिंधी, रष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

सेविकाओं ने शहर में निकाली शोभायात्रा, राष्ट्र प्रेम का दिया संदेश 

शोभायात्रा का दृश्य








 
इससे पूर्व गुरुवार को राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय से शोभायात्रा  निकाली गई।शोभायात्रा का शुभारम्भ पूर्ण गणवेशधारी 250 सेविकाओं ने सेविका समिति की प्रार्थना की प्रस्तुति देकर की।शोभायात्रा विद्यालय से प्रारंभ होकर नेहरू पार्क, सर्राफा बाजार, सूरजपोल होते हुए नगर परिषद कार्यालय पहुंचकर संपन्न हुई।
शोभायात्रा का जगह-जगह समाजसेवी संगठनों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। समिति की सहप्रांत कार्यवाहिका डॉ. सुमन रावलोत ने बताया कि शोभायात्रा में सेविकाओं की सात वाहिनी बनाई गई थी। साथ ही एक रथ पर भारत माता की झांकी भी सजाई गई।शोभायात्रा के दौरान सेविकाएं भारत माता की जय, एवं राष्ट्र भक्ति से जुड़े नारे लगाती हुई चल रही थी।


शोभायात्रा के समापन कार्यक्रम में समिति क्षेत्रीय कार्यवाहिका प्रमिला शर्मा ने समिति कार्यों का परिचय देते हुए कहा कि संस्कारित बालिकाएं ही भविष्य में समाज राष्ट्र का आधार होगी। प्रांत की सह कार्यवाहिका डॉ. रावलोत ने सेविकाओं को अपनी शक्ति पहचान कर आगे बढ़ने का आह्वान किया। अंत में प्रांत सह कार्यवाहिका विमला रांकावत ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस मौके समिति के पदाधिकारी भी उपस्थित थे। 

गुरुवार, 21 मई 2015

भूकंप पीड़ितों की मदद के लिये 1600 से अधिक स्वयंसेवक कार्य में जुटे हैं

भूकंप पीड़ितों की मदद के लिये 1600 से अधिक स्वयंसेवक कार्य में जुटे हैं





राहत  कार्य का एक चित्र
दिल्ली. राष्ट्रीय सेवा भारती के अध्यक्ष सूर्य प्रकाश टोंक, सेवा इंटरनेशनल के संयोजक श्याम परांडे जी ने राष्ट्रीय सेवा भारती दिल्ली के कार्यालय में आयोजित संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा कि 25 अप्रैल 2015 को विनाशकारी भूकंप ने हमारे पड़ोसी देश में लगभग 15 हजार लोगों की जान ले ली, हजारों घरों को धराशायी कर दिया और जान व माल को भारी नुकसान पहुंचाया. दो करोड़ की जनसंख्या वाले देश को इतना बढ़ा आघात वस्तुत: घोर पीड़ादायक है.

उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल के हजारों साल से परस्पर सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक संबंध हैं. भारत के लिये अपने पड़ोसी देश की कठिन क्षणों में तत्काल मदद के लिये आगे आना स्वाभाविक ही था. इस नाज़ुक मौके पर भारत के सभी राज्यों के लोग उठ खड़े हुये और उन्होंने राष्ट्रीय सेवा भारती को सौंपने के लिये बड़े पैमाने पर सहायता सामग्री एकत्र कर ली. नेपाल में राहत कार्यों का नेतृत्व हिंदू स्वयंसेवक संघ और 6 अन्य संगठनों ने किया. उन्होंने आपदा आने के बाद तीन घंटे के भीतर बचाव व राहत कार्य प्रारम्भ कर दिये. हिंदू स्वयंसेवक संघ और अन्य संगठनों के 1600 से अधिक स्वयंसेवक नेपाल के सभी आपदाग्रस्त जिलों में राहत गतिविधियों में जुट गये.  हिंदू स्वयंसेवक संघ नेपाल के साथ काम करने वाले अन्य संगठनों में जनकल्याण प्रतिष्ठान नेपाल, पशुपति शिक्षा समिति, प्राज्ञिक विद्यार्थी परिषद नेपाल, विश्व हिंदू परिषद नेपाल, जनजाति कल्य़ाण परिषद नेपाल और सेवा इंटरनेशनल नेपाल सम्मिलित हैं.

पड़ोसी देश के लिये अपनेपन की अभिव्यक्ति टेलिफोन कॉलों के निरंतर सिलसिले और सभी प्रकार की राहत सामग्री प्रदान करने की इच्छा से हुई. भूकंप से प्रभावित आबादी को तत्काल भोजन और अस्थायी आश्रय-स्थलों की आवश्यकता थी. भूकंप आने के बाद तीन दिन के भीतर राष्ट्रीय सेवा भारती अपेक्षित सामग्री लेकर रवाना हो गई. भारत से नेपाल भेजी गयी कुछ राहत सामग्री के विवरण का उल्लेख करना सुसंगत होगा.
पड़ोसी देश के लिये अपनेपन की अभिव्यक्ति टेलिफोन कॉलों के निरंतर सिलसिले और सभी प्रकार की राहत सामग्री प्रदान करने की इच्छा से हुई. भूकंप से प्रभावित आबादी को तत्काल भोजन और अस्थायी आश्रय-स्थलों की आवश्यकता थी. भूकंप आने के बाद तीन दिन के भीतर राष्ट्रीय सेवा भारती अपेक्षित सामग्री लेकर रवाना हो गई. भारत से नेपाल भेजी गयी कुछ राहत सामग्री के विवरण का उल्लेख करना सुसंगत होगा.
तिरपाल                  55133 (संख्या में)
चावल                    40,000 किग्रा
कैप्शन जोड़ें
चिड़वा                    1500 बोरे
गेहूं का आटा          1300 बोरे
कंबल                    83790 (संख्या  में)
खाद्य पैकेट्स         70764
चीनी                    13017 किग्रा
नमक                   1877 किग्रा
गुड़                      500 बोरे
तंबू                      2800 (संख्या में)
दुग्ध पाउडर        8035 किग्रा
औषधियां          5 लाख रुपये मूल्य की
आज की तारीख तक वायु, रेल और सड़क मार्ग से नेपाल भेजी जाने वाली राहत सामग्री का कुल वजन 200 मीट्रिक टन से अधिक है. जबकि 30 टन सामग्री अभी भेजी जानी है.

राष्ट्रीय सेवा भारती नेपाल में बड़े पैमाने पर राहत गतिविधियों में सहयोग करने के लिये दानदाताओं और अंशदाताओं को अपने अंशदानों, सामग्री और धन को राष्ट्रीय सेवा भारती के माध्यम से भेजने के लिये और उस पर विश्वास व्यक्त करने के लिये धन्यवाद देती है. राष्ट्रीय सेवा भारती को सहयोग देने वाले प्रमुख संगठनों में रोटरी इंटरनेशनल, बुलियन मर्चेन्ट एसोसिएशन, ब्रह्माकुमारीज, शास्त्र यूनिवर्सिटी, भारत विकास परिषद, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, गोकुल व्रज फाउंडेशन, आशीर्वाद ट्रस्ट, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिंदू परिषद और दिल्ली की रेजिडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशनें शामिल हैं. बहुत से स्वयंसेवकों ने नेपाल में सेवा करने की इच्छा व्यक्त की है. उन्हें हम जब आवश्यकता होगी, तब सूचित करेंगे. हम नेपाल में निस्स्वार्थ भाव से सेवा करने वाले हिंदू स्वयंसेवक संघ और अन्य संगठनों के स्वयंसेवकों की भी सराहना करते हैं.

उन्होंने बताया कि भूकंप से नेपाल के कम से कम 12 जिलों और भारत के कुछ हिस्सों में व्यापक तबाही हुयी. भूकंप के कारण 15 हजार (संभावना) से अधिक लोगों की मौत हो गयी. यह भी माना जा रहा है कि घायलों की संख्या 25 हजार से अधिक है. नेपाल के पर्वतीय जिलों में हजारों घर विनष्ट हो गये. काठमांडू समेत नेपाल के विभिन्न भागों में अनेक मंदिर, मठ और पुरातात्विक महत्व की धरोहर- इमारतें धराशायी हो गयीं. इनमें पाटन कृष्ण मंदिर, पाटन दरबार स्क्वायर, बसंतपुर हनुमान ढोकादरबार स्क्वायर, भक्तापुर दरबार स्क्वायर और तलेजू मंदिर शामिल हैं. ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण नौ मंजिला भीमसेन धरहरा टॉवर संभवत: सर्वाधिक गंभीर क्षति है.

सर्वाधिक प्रभावित काठमांडू, भक्तापुर, ललितपुर, धाडिंग, खब्रेपालनचौक, नूवाकोट, रसुवा, दोलखा, गोरखा, रामेछाप, सिंधुपालचौक और लामजुंग जैसे 12 जिलों में राहत सामग्री लगातार वितरित की जाती रही. कुछ जिलों में 90 प्रतिशत मकान भूकंप से नष्ट हो गये हैं. स्वयंसेवकों ने आपदा से घिरे लोगों को राहत सामग्री उपलब्ध कराने के लिये कुछ जिलों के सुदूरवर्ती ग्रामों में पहुंचने का प्रयास किया जो 10000+ फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं. उनकी वर्षा/हवा/धूप से परिवारों और दाल-चावल जैसी खाद्य सामग्री की सुरक्षा के लिये तिरपाल उपलब्ध कराने की मांग को पूरा किया जा रहा है.

हिंदू स्वयंसेवक संघ के नेतृत्व में कार्यरत संगठनों ने बचाव एवं राहत कार्यों के लिये अब तक अपने 1600 से अधिक स्वयंसेवकों को सफलतापूर्वक तैनात किया और वे नेपाल के आपदाग्रस्त 12 जिलों के 350 से अधिक ग्रामों में पहुंच चुके हैं. नेपाल पहुंचकर पांच दिन रहकर राहत कार्यों में सम्मिलित होने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी, और सुनिल आंबेकर के मार्गदर्शन ने सभी स्वयंसेवकों का मनोबल बढ़ाया. भूकंप से प्रभावित लोगों की सेवा के लिये की जाने वाली गतिविधियों को उचित दिशा मिली.
हिंदू स्वयंसेवक संघ ने नाजुक मौके पर बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय सेवा भारती के माध्यम से राहत सामग्री भेजने के लिये भारत के लोगों की सराहना की. काठमांडू में स्थित भारतीय दूतावास की भूमिका की भी सराहना की, जिसने भूकंपग्रस्त क्षेत्रों में 24 घंटे उपयुक्त सेवायें उपलब्ध कराने के लिये कोई कसर शेष नहीं छोड़ी.

आरोग्य भारती के चिकित्सक दल, नेशनल मेडिकोज ऑर्गेनाइजेशन सहित अन्य का भी धन्यवाद किया, जिन्होंने राहत कार्यों में दवाओं एवं मेडिकल किट के साथ शामिल होकर अनेक जीवन बचाये.
साभार: vskbharat.com

शनिवार, 16 मई 2015

अमेरिका : सात वर्षों में दुगनी हुई हिंदुओं की जनसंख्या'





वॉशिंग्टन, मई 14 : अमेरिका की कुल जनसंख्या में बदलते समीकरण पर अध्ययन करते हुए प्रसिद्ध 'प्यु अनुसंधान केंद्र' ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि अमेरिका में हिंदुओं की जनसंख्या 20 लाख के पार हो गई है। यहाँ उल्लेखनीय है कि हिंदुओं की जनसंख्या में वर्ष 2007 से अब तक लगभग दस लाख यानि करीब 85.8% का इजाफा हुआ है। इसके पीछे एक मुख्य कारण है अमेरिका में भारतीय विशेषज्ञ एवं कामगारों की मांग लगातार बढ़ना।




अमेरिका की कुल जनसंख्या में हिंदुओं का अनुपात 2007 के 0.4% से बढ़कर पिछले साल 0.7% तक पहुँच गया है। मंगलवार को प्रकाशित हुए इस अध्ययन रिपोर्ट का नाम है "अमेरिका'ज़ चेंजिंग रिलीजियस लैंडस्केप"।

हालांकि, इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अमेरिका अब भी किसी भी देश के मुक़ाबले सबसे अधिक इसाइयों का घर है लेकिन 2007 में जहां अमेरिका में इसाइयों की जनसंख्या 78.4% थी वहीं अब उनकी तादाद घटकर 2014 में सिर्फ 70.6% रह चुकी है।

अमेरिका में मुसलमानों की जनसंख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। वहाँ 2007 में मुसलमानों का अनुपात 0.4% था परंतु अब वहाँ उनका अनुपात बढ़कर 0.9% हो गया है।

इस अध्ययन में और एक तथ्य जो गौर करने लायक है वाहयाह कि अमेरिका में सबसे पढे लिखे और शिक्षित आप्रवासियों में हिंदुओं और यहूदियों की तादाद सबसे अधिक है। वर्ष 2050 के आते आते अमेरिका के जनसंख्या में हिंदुओं का अनुपात 1.2% तक हो जाएगा जिसके बाद वहाँ पर हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों की कुल जनसंख्या बढ़कर 4ओ लाख से अधिक हो जाएगी।

सर्वे के दौरान 36% हिंदुओं ने बताया कि उनके परिवार की सालाना आय 1 लाख डॉलर से अधिक है। जबकि इतनी ही कमाई अमेरिका में बाकी 19 % परिवारों की ही है।

पढ़ाई के मामले में भी अमेरिकी हिन्दू बाकी लोगों से आगे हैं । जहाँ आम तौर पर अमेरिका में औसतन 27% वयस्कों के पास स्नातक (बैचलर) की डिग्री है जबकि 77% हिंदुओं के पास स्नातक (बैचलर) की डिग्री है। 48% हिन्दू वयस्क स्नातकोत्तर हैं।

साभार: न्यूज़ भारती

गुरुवार, 14 मई 2015

लुप्त हो चुकी प्राचीनतम सरस्वती नदी की जलधारा बह निकली'

यमुनानगर के मुगलवाली गांव के पास खुदाई में मिला जल प्रवाह
डा. गणेश दत्त (हरियाणा)
प्राचीनतम और हजारों साल पहले लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी अपने उद्गम स्थल से फिर जलधारा के रूप में उस समय बह निकली, कई दिनों से नदी के उद्गम स्थल आदिबद्री क्षेत्र में गांव मुगलवाली के पास चल रही खुदाई में गत दिवस अचानक जलधारा फूट पडी।


खुदाई का शुभारंभ हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष कंवरपाल ने 21 अप्रैल कोशुरू किया था। जल प्रवाह  निकलने का समाचार मिलते ही जिला उपायुक्त डा.एस.एस. फुलिया सहित जिला प्रशासन के अन्य अधिकारी भी मौके पर पहुंचे।

यहां उपायुक्त की उपस्थिति में एक अन्य स्थान पर खुदाई की गई। वहां भी 8-9 फुट पर पानी निकला, सरस्वती नदी जिसे अब तक सैटलाइट के माध्यम से ही देखा जा रहा था और हजारों साल पहले धरा से लुप्त हो चुकी माना जाता रहा। लेकिन इसकी उपस्थिति की पुष्टि पुराणों में स्पष्ट बताई गई कि सरस्वती नदी का वजूद है।




लेकिन उस समय यह सपना साकार हो गया जब यह जलधारा अचानक बह निकली। अब यह
शोध का विषय भी बन गया है कि क्या सरस्वती नदी की जलधारा स्वयं भी कुछ ऊपर
उठ रही है? क्योंकि कुछ जगह थोडी खुदाई में ही सरस्वती का जल बहने लगता है।

यमुनानगर के आदिबद्री क्षेत्र सरस्वती का उद्ग्म स्थल माना जाता है। वहां से पांच किलोमीटर दूर रूलाहेडी से इस नदी की खुदाई शुरू की गई थी। माना जा रहा था कि यहां एक बडा जलाशय बनाया जाएगा और पहाडों पर होने वाली बरसात और सोम नदी के पानी को यहां इक्टठा कर सरस्वती नदी को एक बडी नदी के रूप में प्रवाहित किया जाएगा। लेकिन आज इस पावन धरती पर करिश्मा ही देखने को मिला।

जब रूलाहेडी और मुगलवाली के बीच जब खुदाई हो रही थी, तो नरेगा के तहत जो मजदूर लगे थे जब सात फुट गहरा खोदा जाने के बाद एक फावडा जमीन पर मारा तो  नीचे से सरस्वती के पावन जल की धाराएं फूट पडी। इस बात को देख मजदूर हैरान हो गए और उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को भी मौके पर बुला लिया।


लेकिन जब अधिकारियों ने यह करिश्मा देखा तो उनसे रहा नही गया और उन्होंने स्वयं यहां नतमस्तक होकर  सरस्वती की खुदाई में अपना योगदान देते हुए खुदाई की। जिसमें उपायुक्त डा.एस एस फुलिया व अन्य  प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल रहे। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो ज्यों-ज्यों खुदाई हुई त्यों त्यों जल की धाराएं जमीन से फूटनी शुरू हो गई। इस कार्य में समाज के हर वर्ग ने बिना किसी भेदभाव के सहयोग किया है और महज 15 दिनों में ही यह खुदाई अढाई से तीन किलोमीटर तक पहुंच गई थी और खुदाई कार्य निरंतर जारी है।

जल प्रवाह से पहले इक्का दुक्का जगह पानी की कुछ बूंदे जरूर टपकी थी। लेकिन जब सरस्वती धरातल पर फुट पडी तो जिला प्रशासन गदगद होता नजर आया। जानकारी के अनुसार यमुनानगर के 42 गांवों में इसका सर्वें किया गया है। इसके बाद सरस्वती की धारा कुरुक्षेत्र जिला से होते हुए कई स्थानों से गुजरती हुई आगे निकलती है।


8 फुट पर सरस्वती धारा और 85 फुट इलाके का भू-जल स्तर बता दें कि इस इलाके में भू-जल स्तर काफी नीचे है। लेकिन यह एक करिश्मा ही है कि जहां पर सरस्वती नदी है उसके आस पास कई पानी के टयूबवैल भी लगे हुए हैं और उनमें उनमें भूमिगत जलस्तर 85 फुट से नींचे है। लेकिन सरस्वती खुदाई स्थल पर महज 7 फुट पर ही पानी मिला, जिससे सरस्वती विराजमान होने की पुष्टि हुई। इलाके के लोगों में उत्साह के साथ एक विश्वास पैदा हो गया कि यहां सरस्वती के बारे में सुनते थे अब उन्हें सरस्वती के साक्षात दर्शन भी हो गए हैं।



सरस्वती शोध संस्थान भगीरथ की भूमिका में, भाजपा सरकार ने दिखाई तत्परता

सरस्वती  नदी शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलाल जैन ने सरस्वती नदी के महत्व को समझा और इसे धरा पर लाने का संकल्प लिया। यह काम अपने हाथ में लिया था।

उन्होंने 1999 के दौरान जब केन्द्र में एन डी ए की सरकार थी और जगमोहन पर्यटन मंत्री थे तो करोडों रुपया  खर्च करके देश के कई भागों में सरस्वती की खोज में खुदाई का काम हुआ था। लेकिन यूपीए की सरकार ने इस नेक कार्य को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। जिससे एक सार्थक कार्य ही नहीं रुक गया बल्कि करोड़ों रुपए खर्च हुए भी बेकार हो गए। अब केन्द्र व प्रदेश में सरकार बदली तो काम फिर शुरू हुआ और उसके सार्थक परिणाम निकले हैं। इस संबंध में दर्शन लाल जैन ने कहा कि यह पहला कदम है। अभी काफी काम होना है। उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी संजीवनी बनेगी, पानी की कमी पूरी होगी, बरसात के दिनों में बाड़ का प्रकोप कहर नहीं भरपा पाएगा। इससे इलाका ही खुशहाल नहीं होगा

देश भी समृद्ध बनेगा। उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कार्यशैली की सराहना की।


राजस्व रिकॉर्ड में मौजूद है नदी
सरस्वती नदी कोलेकर किए गए सर्वें में कई आश्चर्यजनक तथ्य भी सामने आए हैं। जिला उपायुक्त डा.एसएस फुलिया ने बताया कि सरस्वती नहीं को धरातल पर लाने के चलते जब राजस्व रिकार्ड खंगाला गया तो रिकाॅर्ड में सरस्वती नदी के बहने का स्थान मौजूद मिला। सर्वें में राजस्व विभाग, पंचायती विभाग, सिंचाई विभाग की मदद
ली गई। इसके अलावा सेटेलाइट व अन्य तकनीकी सुविधाओं से भी जमीन को खंगाला गया। इस दौरान रिकाॅर्ड में पाया गया कि जिले के कईं गांवों में आज भी रास्ता छोड़ा गया है। जहां से पुराने समय में सरस्वती नदी निकलती थी।

उन्होंने बताया कि सरस्वती नदी को धरातल मिलने से जिले का सौंदर्यकरण बढ़ेगा वहीं पर्यटन की दृष्टि से भी जिले का नाम होगा। जिला पंचायत अधिकारी ने बताया कि सरस्वती नदी का सर्वें उद्म स्थल से जिला यमुनानगर के कुरुक्षेत्र के साथ लगते अंतिम गांव तक किया गया है।


जमीन के नीचे बहता है जल : इसरो
 इसरो के मुताबिक मां सरस्वती की जलधारा अब भी जमीन के नीचे बहती है, जिसका नक्शा सैटेलाईट
के माध्यम से गूगल पर देखा जा सकात है। इसी के आधार पर अब हरियाणा ने देहरादून की एक लैब से संपर्क कर सरस्वती के जल को जमीन के ऊपर लाने के लिए प्रयास शुरु कर दिए हैं।

साभार: न्यूज़ भारती

अंग्रेजों ने भारत के गौरवपूर्ण इतिहास को मिथक बना दिया – जगदीश उपासने जी

अंग्रेजों ने भारत के गौरवपूर्ण इतिहास को मिथक बना दिया – जगदीश उपासने

narad jayanti शिमला (1)
शिमला (विसंकें). इंडिया टुडे के पूर्व संपादक जगदीश उपासने जी ने कहा कि अंग्रेजों ने गौरवपूर्ण भारतीय इतिहास को मिथकीय बना दिया. आज पूरा विश्व भारत के पवित्र शास्त्रों की खोज में लगा है, पाणिनी के सूत्र से आईबीएम सॉफ्टवेयर कंपनी ने अपनी कंपनी के प्रमुख सॉफ्टवेयर को विकसित किया है. उपासने जी ने भारतीय इतिहास में नारद जी के प्रमुख प्रसंगों के बारे में जानकारी प्रदान की. कहा कि नारद जी दुनिया के महान संचारकों में से एक थे और उनके द्वारा सूचना के आदान प्रदान का केवल मात्र उद्देश्य लोक कल्याण ही होता था. आज पत्रकारिता जगत के लिए एक भारतीय आदर्श पुरूष की आवश्यकता है, इस क्षेत्र के लिये नारद जी से प्रेरणादायी मार्गदर्शक व आदर्श कोई अन्य नहीं हो सकता.

विश्व संवाद केद्र शिमला द्वारा विश्व के सर्वश्रेष्ठ संचारक एवं आदि पत्रकार देवर्षि नारद जयंती के उपलक्ष्य पर ”पत्रकार सम्मान समारोह“ आयोजित किया गया. शिमला के होटल होलीडे होम में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सेवानिवृत ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर (युद्ध सेवा मेडल) थे, जबकि इंडिया टुडे के पूर्व संपादक जगदीश उपासने जी ने मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे.
narad jayanti शिमला (2)

विश्व संवाद केंद्र प्रमुख दलेल ठाकुर ने बताया कि पत्रकार की समाज में एक मार्गदर्शक की भूमिका होती है. पत्रकार एक प्रहरी की भूमिका निभाने के साथ-साथ चेतना जगाने और संस्कृति संरक्षण में अहम भूमिका निभाता है. देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार व पहले संवाददाता है क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया. इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरोधा हैं.

हमीरपुर जिला से दैनिक भास्कर के पत्रकार विक्रम ढटवालिया, मंडी जिला के वरिष्ठ पत्रकार व छाया पत्रकार बीरबल शर्मा, कांगडा जिला के धर्मशाला से दिव्य हिमाचल के युवा पत्रकार पवन कुमार, महिला पत्रकार के रूप में शिमला जिला से अमर उजाला में वरिष्ठ उप संपादक पूजा अवस्थी तथा इलैक्ट्रोनिक मीडिया से अंकज भारद्वाज को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम के अंत में प्रांत प्रचार प्रमुख शिव कुमार जी ने सभी मुख्य अतिथियों का धन्यवाद किया.

लघु उद्योग भारती , जोधपुर द्वारा एक दिवसीय महिला उधमिता विकास कार्यक्रम सम्पन्न


लघु उद्योग भारती , जोधपुर द्वारा एक दिवसीय महिला उधमिता विकास कार्यक्रम सम्पन्न






 
 



बुधवार, 13 मई 2015

ये पाकिस्तान परस्त भारत विरोधी आजाद क्यों हैं?'






वो कौन होते हैं तय करनेवाले कि कश्मीर पंडित कहां बसें, श्री अमरनाथ यात्रा कितने दिनों का हो? क्या कभी किसी ने ये तय किया है कि वो नमाज कितनी देर पढ़ें। या भारत ने कभी किसी हज यात्री को मजबूर किया है कि वो कितने दिनों में जाए। हज की योजनानुसार वो जाते हैं और उसी अनुसार सरकार सुविधायें देतीं हैं। जाहिर है, ये सांप्रदायिक सौहार्द्र के खलनायक हैं।
- अवधेश कुमार
इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी तत्व फिर से अस्थिरता,
हिंसा और अव्यवस्था की स्थिति पैदा करने की साजिश कर रहे हैं। ऑल पार्टी  हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक धड़े के नेता सैयद अली शाह गिलानी की
15 अप्रैल को दिल्ली से कश्मीर वापसी के दिन से लेकर आप नजर उठा लीजिए, घटनायें इसको प्रमाणित कर देंगी। वास्तव में अभी उन्होंने त्राल की अपनी रैली में पवित्र अमरनाथ यात्रा को 15 दिन से 1 महीने तक सीमित करने का जो भाषण दिया है वह इसी की कड़ी है। इस भाषण में वहां के एक समुदाय को वास्तव में इस यात्रा  के विरुद्ध भड़काने की कोशिश की गई है। 2008 में श्री अमरनाथ यात्रा को ही निशाना बनाकर अलगाववादियों और आतंकवादियों ने वहां अशांति एवं हिंसा कायम करने में सफलता पाई थी। निश्चय ही वे फिर से
वही स्थिति पैदा करना चाहते हों। जम्मू
-कश्मीरके उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने पहले और मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बाद में यह साफ कर दिया है कि यात्रा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के
अनुसार ही चलेगा। सुरक्षा से लेकर यात्रियों के ठहरने
, उनके खाने-पीने सबकी व्यवस्था उसी अनुसार की जा रही है। यानी 2 जुलाई से आरंभ होकर यह करीब दो महीने तक चलेगी। तो इससे हमें कुछ समय के लिए संतोष हो सकता हैं। पर ये अलगावादी जैसा माहौल बना रहे हैं उसमें ये अपनी साजिश को सफल करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। 
1 मई को त्राल की जामिया मस्जिद में नमाज ए जुमा अदा करने के बाद गिलानी ने जो भाषण दिया उसमें अमरनाथ यात्रा को सीमित करने की बात केवल उसका एक अंश था। हालांकि इसमें भी उनका यह गुरुर झलक रहा था कि यहां वो जैसा चाहेंगे वही होना चाहिए। तीर्थयात्रियों को उनके रहमोकरम पर अपनी इष्टदेव की यात्रा करनी चाहिए। लेकिन उसमें गिलानी ने भारत के खिलाफ पूरा विष वमन किया। यह भी कहा कि भारत का जिस तरह बंटवारा हुआ जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल हो जाना चाहिए था। हम पाकिस्तान में शामिल होने की लड़ाई लड़ रहे हैं और लड़ते रहेंगे। उनकी सभा में कुछ लोगों ने पाकिस्तानी  झंडे लहराए। पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए। भारत के विरोध में नारे लगाए गए। खूब सांप्रदायिक नारे भी लगे। गिलानी ने तो यहां तक कह दिया कि जिनने बंदूक उठाई हैं वे मजबूर होकर। इस तरह उनने आतंकवाद का भी समर्थन कर
दिया। वे ऐसा भाषण देनेवाले अकेले नहीं थे। 
आपको याद हो कि 18 अप्रैल को एक साथ गिलानी और उनसे थोड़ा उदारवादी माने जानेवाले मौलवी
मीरवायज उमर फारुख तथा यासिन मलिक...एक साथ आग उगल रहे थे। दरअसल
, मसरत आलम को पाकिस्तान के पक्ष में नारा लगाने तथा झंडा फहराने के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद इनने जो बंद का आह्वान किया था वह शांतिपूर्ण तो था नहीं। उसमें शामिल युवकों ने जगह-जगह तोड़फोड़ की, पत्थरवाजी की, पुलिस पोस्ट तक को आग लगाई। उसमें नियंत्रण करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी तथा नरबल में एक नौंवी का छात्र मारा गया। तो ये लोग उसक विरोध कर रहे थे और उसके घर शोक संवेदना व्यक्त करने जा रहे थे। मीरवायज ने शेर-ए-खास के नौहत्ता क्षेत्र में जुमे की नमाज के बाद विरोध मार्च का आयोजन किया। दूसरी ओर यासिन मलिक ने भी मार्च किया जिसमें स्वामी अग्निवेश शमिल थे। इस दिन जो स्थिति पैदा हुई उसमें त्राल क्षेत्र में दो युवक मारे गए। हालांकि इन नेताओं ने भारत के खिलाफ पूरा जहर उगला। लंबे समय बाद ये नेता एक साथ दिखे।

यह भारत की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक प्रगति थी लेकिन हो गई। वहां मीरवायज ने आजादी के पक्ष में भाषण दिया
, यासिन मलिक ने भी यही कहा कि हम भारत के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ते रहेंगे। पूरा भारत विरोध वातावरण बनाने की कोशिश थी।
ऐसे कार्यक्रमों से उत्तेजना और तनाव तो बढ़ता ही है। ये क्षेत्र 2010 में पत्थर आतंक के लिए प्रसिद्ध थे जिसका जन्मदाता मसर्रत आलम था। तो उसकी गिरफ्तारी के बाद उसके द्वारा ईजाद पत्थरवाजी हुई उसमें सुरक्षा बलों को कार्रवाई करनी पड़ी। तो अब ये उसे तूल देकर फिर से किसी तरह जम्मू-कश्मीर को ऐसी स्थिति में लाना चाहते हैं जिससे दुनिया ये कहे कि वहां वाकई भारत से अलग होने की लड़ाई, जिसके साथ लोग हैं और भारत केवल सैन्य बल की बदौलत कश्मीर को नियंत्रित रख रहा है। ऐसा लगता है कि इसके पीछे पाकिस्तान की साजिश है। मसर्रत के रिहा होने के बाद 50 से ज्यादा फोन लश्कर-ए-तैयबा की ओर से उसे आए। हाफिज सईद ने उससे बात की। 

दूसरे जमात उद दावा के नेताओं ने बात किया था। गिलानी का कश्मीर लौटने का स्वागत वह दूसरे तरीके से भी कर सकता था। मेरी जान पाकिस्तान, गिलानी साहब की क्या पहचान पाकिस्तान पाकिस्तान, हाफिज सईद की क्या पहचान पाकिस्तान पाकिस्तान...इस प्रकार का नारा लगाने और पाकिस्तान का झंडा फहराना यूं ही नहीं हो सकता। निश्चित रूप से इसके पीछे सीमा पार की सुनियोजित रणनीति थी। 


पाकिस्तान अभी आतंकवादी हिंसा
, मजहबी टकराव और राजनीतिक अनिश्चितता के उस दौर से गुजर रहा है जहां वहां के नेताओं के लिए कश्मीर एक मुद्दा हो सकता है अपनी राजनीति साधने के लिए।
इसलिए वे इनका उपयोग कर रहे होंगे। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ से हर संभव तीन उपायों से कश्मीर की ओर मोड़ने की कोशिश की और तीनों बार उसे मुंह की खानी पड़ी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कह दिया कि यह दो देशों का मसला है जिसमें वह हस्तक्षेप नहीं करेगा। तो उसके पास रास्ता किसी तरह कश्मीर को हिंसा और अशांति में झांकने तथा वहां अलगाववादी लड़ाई को तेज करने का है। 
हुर्रियत के नेता पाकिस्तान के पिट्ठू हैं। पाकिस्तान भी इन्हें तभी तक पूछता है जब तक कि वहां ये कुछ उसके अनुसार करते रहे। चाहे वे पाकिस्तान में कश्मीर को मिलाने की मांग करें या फिर आजादी की। ऐसा नहीं करेंगे तो इनको मिलने वाली मदद रुक जाएगी। चुनाव के बाद भाजपा पीडीपी की सरकार ने पाकिस्तान की चिंता और बढ़ा दी है। उसका सरकारी कश्मीर ढांचा और गैर सरकारी ढांचा दोनों सक्रिय हैं। उनके पास बजट और गैर बजट की राशि भी है। इसलिए वे इनके माध्यम से
अपना खेल रहे हैं। खासकर कश्मीरी पंडितों को स्मार्ट सिटी में बसाने के केन्द्र के संकल्प ने उनको परेशान कर दिया है। ये वापस बुलाने का विरोध नहीं करते
, पर व्यवहार में इनका अलग बसाने का विरोध वास्तव में वापसी का विरोध ही है। यह विरोध करते-करते गिलानी श्री अमरनाथ यात्रा तक पहुंय गए। क्यों? यही सांप्रदायिक मानसिकता है जिसे वे तेज आग के रूप में फैलाना चाह रहे हैं।
लेकिन प्रश्न हे कि वो कौन होते हैं तय करनेवाले कि कश्मीर पंडित कहां बसें, श्री अमरनाथ यात्रा कितने दिनों का हो? क्या कभी किसी ने ये तय किया है कि वो नमाज कितनी देर पढ़ें। या भारत ने कभी किसी हज यात्री को मजबूर किया है कि वो कितने दिनों में जाए। हज की योजनानुसार वो जाते हैं और उसी अनुसार सरकार सुविधायें देतीं हैं। जाहिर है, ये सांप्रदायिक सौहार्द्र के खलनायक हैं। ये शांति और लोकतंत्र के दुश्मन हैं। ये देश की एकता अखंडता के दुश्मन हैं। ये देश को तोड़ना चाहते है, इसलिए देशद्रोही हैं। परोक्ष रूप से आतंकवाद का समर्थन भी कर रहे हैं। तो इनके साथ अब व्यवहार वैसा ही करना चाहिए जैसा देश के गद्दारों के साथ किया जाता है। देश में यदि आप किसी से पूछिए उसकी प्रतिक्रिया गुस्से से भरी होगी। लेकिन एक बात पर एकमत है कि चाहे जितनी अशांति हो अब इन सबको उनके मुकाम पर पहुंचा देना चाहिए। यानी पहले कड़े कानूनों में मुकदमा करके जेल में डालो, इनको सजा दिलवाओ, जो इनके समर्थन में आएं उनके साथ सुरक्षा बल कार्रवाई करें। यदि देश की एकता को बचाने के लिए कुछ लोगों की बलि चढ़ती है इसमें हिचक नहीं होनी चाहिए। 

आखिर भारत को बचाने के लिए कितने लोगों ने अपनी बलि चढ़ाई। कश्मीर को बचाने के लिए ही कितने शहीद हो गए तो जो इसके विरोधी हैं उनकी बलि चढ़ जाए तो उसमें समस्या क्या है। जो भी हो देश न तो एक इंच जमीन किसी को देने के हक में है और न ऐसी भारत विरोधी गतिविधियां चलानेवालों को आजाद देखने के पक्ष में।   


स्रोत: न्यूज़ भारती हिंदी     

मंगलवार, 12 मई 2015

साक्षात्कार,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले के संग - 'नेपाल फिर खुशहाल हो, हम पूरा सहयोग करें'


नेपाल में आए भूकम्प के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले राहत कार्यों का मार्गदर्शन करने नेपाल गए थे। उन्होंने पीडि़तों के दु:ख-दर्द को साझा किया, उनकी आवश्यकताओं की जानकारी ली और हिन्दू स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे राहत कार्यों मेंहाथ बंटाया। नेपाल से दिल्ली लौटने पर अरुण कुमार सिंह ने उनसे बात की, प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश- 

-कहा जा रहा है कि भूकंपग्रस्त नेपाल को फिर से खड़ा होने में काफी समय लगेगा। कैसा-कितना नुकसान वहां हुआ है?

नेपाल में 80 वर्ष पहले भी ऐसा ही भूकंप आया था। नेपाल में बराबर इस तरह के भूकंप आते रहते हैं। कभी यह महसूस होता है और कभी नहीं भी होता है। यहां तक कि एक कमरे में रह रहे दो व्यक्तियों में से एक को भूकंप का एहसास हो सकता है और दूसरे को नहीं। भूकंप के बारे में पूर्वानुमान लगाना कठिन है, कुछ लोग अफवाह फैला सकते हैं। इस बार भी यही हुआ। नेपाल के छह जिले भूकंप से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। जानमाल का भारी नुकसान हुआ है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 10-15 हजार के बीच लोग मारे गए हैं। बड़ी संख्या में जानवर भी हताहत हुए हैं। यदि रात में भूकंप आया होता तो पता नहीं और कितना नुकसान होता। विपत्ति भारी है किन्तु फिर भी इसे भगवान की कृपा ही कहेंगे कि भूकंप दिन में आया और काफी लोगों की जान बच गई।

-भूकंप के दूसरे दिन ही सोशल मीडिया में एक समाचार चला कि पीडि़तों की मदद के लिए राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के 20 हजार स्वयंसेवक नेपाल गए। क्या यह सही था?

नहीं,वह गलत समाचार था। इसका खंडन अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख और स्वयं मैंने भी किया है। बात यह हुई थी कि किसी प्रांत के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा था कि आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 20 हजार स्वयंसेवक नेपाल जाकर राहत कार्य कर सकते हैं, लेकिन किसी ने सोशल मीडिया में इसको गलत ढंग से लिया और प्रचारित कर दिया कि संघ के 20 हजार स्वयंसेवक भूकंप पीडि़तों की मदद के लिए नेपाल गए। नेपाल में जो स्थिति है उसमें वहां से लोग भारत आ रहे हैं। ऐसे में हजारों लोगों को भारत से नेपाल भेजना मुश्किल था और यह व्यावहारिक भी नहीं था। सारे रास्ते खराब हो गए हैं। गाडि़यां वहां जा नहीं सकती हैं। लोग पैदल जाएंगे तो कितने दिन में पहुंचेंगे। इसलिए सोशल मीडिया में ऐसी बात होनी ही नहीं चाहिए थी।

- नेपाल के संदर्भ में भूकंप पीडि़तों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किस तरह का काम कर रहा है?

नेपाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोई राहत कार्य तो नहीं कर रहा है, पर भारत सरकार को वहां की अनेक कठिनाइयों से अवगत करा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत में काम करता है और नेपाल में संघ की प्रेरणा से हिन्दू स्वयंसेवक संघ काम करता है। भूकंप आने के कुछ ही घंटे बाद हिन्दू स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता राहत और बचाव कार्य में जुट गए थे। उनके साथ प्राज्ञिक विद्यार्थी परिषद (नेपाल), विश्व हिन्दू परिषद (नेपाल), एकल विद्यालय फाउण्डेशन, जनजाति कल्याण आश्रम, राष्ट्रीय श्रमिक संघ जैसे संगठनों के कार्यकर्ता भी कार्य कर रहे हैं। वे सभी नेपाल के कार्यकर्ता हैं और नेपाल के ही नागरिक हैं। जब तक मैं वहां था तब तक हिन्दू स्वयंसेवक संघ और अन्य संगठनों के एक हजार से भी अधिक कार्यकर्ता राहत और बचाव कार्य में लगे थे।

अब तो उनकी संख्या बढ़ गई होगी। उन कार्यकर्ताओं ने काठमांडू और अन्य जगहों पर भी पानी की बोतलें और खाने की चीजें उपलब्ध कराईं। इसके साथ ही कार्यकर्ताओं ने पीडि़तों के परिवार वालों को मिलाने में सहयोग किया। कार्यकर्ताओं ने 'हेल्पलाईन' शुरू कर भारत और नेपाल के लोगों के बीच बातचीत कराने में मदद की। जैसे- किसी के परिजन नेपाल में हैं, उनका क्या हाल है, कहां हैं, इन सबकी जानकारी देने में हमारे कार्यकर्ताओं ने बड़ी भूमिका निभाई। यही नहीं मृत लोगों का अंतिम संस्कार कराया, घायलों को अस्पताल पहुंचाया आदि। बाहर के जो लोग वहां मारे गए उनके शवों को उनके घर तक पहुंचाने में भी कार्यकर्ताओं ने कड़ी मेहनत की। जैसे- गुवाहाटी की सात महिलाएं एक होटल में में भूकंप का शिकार हो गई थीं। उनके शवों को गुवाहाटी पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं ने काम किया। इन कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त भारत के अनेक संगठन भी राहत कार्य कर रहे हैं, जैसे- पतंजलि योगपीठ, आर्ट ऑफ लिविंग आदि।

-आखिर वह क्या है, जो संघ के स्वयंसेवकों को किसी आपदा के समय राहत कार्य करने की प्रेरणा देता है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यह परंपरा रही है कि किसी भी आपदा या घटना के समय उसके स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्य में जुट जाते हैं। यही हमारी संस्कृति है। यह इस बात को भी प्रमाणित करता है कि संघ के प्रति स्वयंसेवकों में कितना विश्वास है।

-एक ओर कुछ संगठन भूकंप पीडि़तों की मदद कर रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ देश और कुछ संगठन 'बीफ मसाला' और बाइबिल की प्रतियां  भेज रहे हैं। इसको आप किस नजरिए से देखते हैं?

कुछ लोगों को संकट में भी स्वार्थ साधने की आदत होती है। कन्नड़ में एक कहावत है। इसका सारांश है- 'आपकी दाढ़ी में आग लगी है, उससे मैं जरा बीड़ी जला लेता हूं।' कुछ ऐसे ही तत्वों ने नेपाल के दु:खी नागरिकों के साथ गलत व्यवहार किया है। भारत में भी कई बार इस तरह के मामले देखने को मिले हैं। मैं नेपाल सरकार
से आग्रह करता हूं कि वह इन मामलों की जांच कराए। यह भी जांच होनी चाहिए कि नेपाल में मौजूद किन तत्वों की शह पर 'बीफ मसाला' और बाइबिल की प्रतियां नेपाल पहुंचीं। साथ ही नेपाल के नागरिकों से निवेदन है कि वे इन मामलों में सजग और सतर्क रहें। ऐसे तत्वों को सजगता से ही दूर किया जा सकता है।

-भारत में संघ की प्रेरणा से चलने वाले अनेक संगठनों ने लोगों से अपील की है कि  वे नेपाल के भूकंप पीडि़तों की मदद के लिए आगे आएं। अब तक किस तरह की मदद  भारत से नेपाल पहुंची है?

नेपाल सरकार के मुख्य सचिव ने हमसे कहा कि तत्काल 5 लाख तिरपाल चाहिए। इसके बाद सरकार और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर 25 हजार तिरपाल भेजे हैं। सामग्री को नेपाल पहुंचाना एक मुश्किल काम है। सड़कें खराब हो गई हैं, ऊपर से ट्रक वाले मनमाना पैसा मांग रहे हैं।

वे परिस्थिति का लाभ उठाना चाहते हैं। विमान की भी एक सीमा होती है। फिर भी कार्यकर्ता लगे हैं। जितनी मदद पहुंच जाए उतना ही अच्छा रहेगा। वहां मलबे के नीचे दबे शवों से बदबू उठ रही है। इसके लिए ब्लीचिंग पाउडर की जरूरत है।

हमने भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को बताया तो उसने 2 ट्रक ब्लीचिंग पाउडर भेजा है। घायलों को ऑक्सीजन सिलेण्डर की जरूरत है, लेकिन नेपाल में इतने सिलेण्डर नहीं हैं और वहां इतने सिलेण्डर तैयार किए भी नहीं जा सकते हैं। इसलिए हमने इसकी जानकारी भारत सरकार को दी है। भारत के नागरिक भी हमें हर तरह की मदद देने को तैयार हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि मदद सामग्री नेपाल कैसे पहुंचाई जाए?

इसलिए हम पीडि़तों के लिए जितना काम करना चाहते हैं उतना कर नहीं पा रहे हैं।

-क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने नेपाल के भूकंप पीडि़तों के पुनर्वास की कोई योजना बनाई है?

हमने विचार तो किया है। इस तरह की आपदा का सामना तीन स्तर पर किया जाता है। पहला- बचाव, दूसरा- राहत और तीसरा- पुनर्वास। इन मुद्दों को लेकर मैंने पिछले दिनों प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और विदेश मंत्री से भेंट की है और उन सबसे चर्चा की है कि किस तरह भारत् ा सरकार और अन्य स्वयंसेवी संगठन भूकंप पीडि़तों के पुनर्वास में मदद कर सकते हैं। नेपाल के भूकंप पीडि़तों की मदद के पीछे हमारा न तो कोई राजनीतिक एजेण्डा है, न ही धार्मिक। हमारा एक ही एजेण्डा है-मानवता की सेवा करना। नेपाल के प्रधानमंत्री और मुख्य सचिव से भी हमारी बात हुई है। वे भी चाहते हैं कि भारत पुनर्वास में मदद करे।

दुनिया के अनेक देश भी पुनर्वास कार्य में हाथ बंटाना चाहते हैं। इसलिए पहले नेपाल सरकार एक रूपरेखा तैयार करे कि किस प्रकार नेपाल के स्वयंसेवी संगठनों, विदेशी स्वयंसेवी संगठनों और विदेशी सरकारों की सहायता से पुनर्वास का काम पूरा किया जाए। यह नेपाल सरकार से हमारी अपील है। हम तो वहां के अनाथ बच्चों, उनकी शिक्षा, किसानों आदि के लिए कार्य करना चाहते हैं। हम त्रिस्तरीय कार्य करना चाहते हैं। अनाथ बच्चों के लिए छात्रावास खोलना चाहते हैं, जो मकान गिर गए हैं उनको बनवाना चाहते हैं और जो मंदिर ढह गए हैं उनका पुनर्निर्माण करना चाहते हैं। भारत सरकार भी मदद करने के लिए तैयार है। दुनिया चाहती है कि नेपाल एक बार फिर से खड़ा हो।

-नेपाल में भारत सरकार ने जो राहत कार्य किया है उसकी बड़ी तारीफ हो रही है। इससे पहले युद्धग्रस्त यमन से भी भारत सरकार ने हजारों भारतीयों को निकाला था,  जिनमें अनेक विदेशी भी थे। नेपाल में भारत सरकार के कार्य को आप किस रूप  में देखते हैं?

राहत के मामलों में भारत सरकार के कार्य सराहनीय रहे हैं। दुनिया के सामने भारत की छवि बन रही है कि वह दूर-दराज के क्षेत्रों में भी राहत कार्य करने में सक्षम है। भारत के लोगों को भी लगने लगा है कि दुनिया में कहीं भी कुछ हो वहां जाकर हम राहत कार्य कर सकते हैं। इसके लिए खुद प्रधानमंत्री प्रयत्नशील रहते हैं। आज आपदा प्रबंधन के मामले में भारत सरकार एक ताकत के रूप में उभरी है, यह हमारे लिए गर्व का विषय है।

-भारतीय सेना ने जिस तरह नेपाल में राहत कार्य किया उसको लेकर कुछ तत्वों ने यह  दुष्प्रचारित करने की कोशिश की कि भारत नेपाल में दखल दे रहा है। इस संबंध  में आपका क्या कहना है?

यह कोई नई बात नहीं है। भारत को लेकर नेपाल में ऐसे दुष्प्रचार काफी समय से हो रहे हैं। नेपाल के सार्वजनिक जीवन में, राजनीतिक क्षेत्र में, नौकरशाही में, मीडिया में भारत विरोधी तत्वों को पोषित करने का लगातार प्रयास होता रहा है। चीन और भारत, दो बड़े देशों के बीच नेपाल 'बफर स्टेट' है। नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्रता पर कोई आंच न आने देते हुए भारत उसके साथ खड़ा रहे। अब तक भारत की नीति तो यही रही है। यही नीति आगे भी रहनी चाहिए। भारत और नेपाल के संबंध तो रामायण और महाभारत काल से हैं। भारत और नेपाल के सम्बंध गंगा के साथ, मिट्टी के साथ, बुद्ध के साथ, हिमालय के साथ और पशुपतिनाथ के साथ हैं। हम मानते हैं कि
नेपाल और भारत एक ही परिवार के दो भाई हैं। इसलिए हमें नेपाल में कूटनीति और ईमानदारी के साथ भारत विरोधी माहौल को समाप्त करने की जरूरत है। हालांकि जब से भारत में सत्ता बदली है तब से नेपाल में भी बदलाव आया है। उनमें भारत को लेकर एक सकारात्मक भाव पैदा हुआ है। यह भी सत्य है कि संकट की घड़ी
में नेपाल के लोग भारत की ओर ही आते हैं, चीन नहीं जाते हैं, क्योंकि उन्हें भारत अपना लगता है। इसलिए भारत को भी यह ध्यान रखना होगा कि नेपाल के लोग सुखी रहें, समृद्ध हों। भारत को नेपाल के संबंध में सदैव सहयोगात्मक रवैया रखना होगा।­

साभार: पाञ्चजन्य

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित