शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

केरल के थलावड़ी शाखा के मुख्य शिक्षक आनंदकृष्णन को मिला राष्ट्रपति जीवन रक्षा पदक।

आनंदकृष्णन


केरल के थलावड़ी शाखा के मुख्य शिक्षक आनंदकृष्णन को मिला राष्ट्रपति जीवन रक्षा पदक।  
 हार्दिक बधाई ! 
sourcet:: https://twitter.com/savarkar5200/status/824846672534462465

चाहे वर्षा हो या अग्नि प्रलय संघ कार्य चलता रहेगा – जे. नंद कुमार

चाहे वर्षा हो या अग्नि प्रलय संघ कार्य चलता रहेगा – जे. नंद कुमार

 पूर्ण गणवेशधारी 1205 स्वयंसेवकों ने भारी वर्षा के बीच सुव्यवस्थित व अनुशासित ढंग से पथ संचलन पूर्ण किया. 

निरन्तर चलते जाना है ध्येय पथ पर .....
 
राष्ट्र पथ पर न रोक पायेगा बढ़ते कदम हमारे
नई दिल्ली, 26 जनवरी (इंविसंके). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली प्रान्त द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर पथ संचलन निकाला गया. पूर्ण गणवेशधारी 1205 स्वयंसेवकों ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार भारी वर्षा के बीच, सुव्यवस्थित व अनुशासित ढंग से पथ संचलन पूर्ण किया. मंदिर मार्ग स्थित एन.पी. बॉयज स्कूल से आरम्भ आरम्भ हुआ संचलन पेशवा रोड, गोल मार्किट, भाई वीर सिंह मार्ग, बंगला साहिब गुरुद्वारा, बाबा खड़ग सिंह मार्ग, राजीव चौक सर्कल होते हुए राजीव चौक पर वर्षा के बीच संपन्न हुआ. 

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे.नन्द कुमार ने स्वयंसेवकों को संबोधित किया. उन्होंने बताया कि समाज के अन्दर संगठित भाव, अनुशासन, आत्मविश्वास जगाने के लिए, राष्ट्र के प्रति, देश के प्रति काम करने की प्रेरणा जगाने के लिए इस तरह का संचलन, एकत्रीकरण ऐसे कार्यक्रम चलते रहते हैं। गणतन्त्र दिवस पर और स्वतन्त्रता दिवस में भी जगह-जगह पर इस तरह के कार्यक्रम करते हैं। इसके द्वारा दो प्रकार के उद्देश्य संघ के सामने हैं एक तो देश के अन्दर, समाज के अन्दर आत्मविश्वास जगाना चाहिए, अनुशासन का भाव जगाना चाहिए, राष्ट्र के लिए काम करने का भाव जगाना। इसके साथ-साथ संघ स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण का, उनके एजुकेशन और ट्रेनिंग का भाव भी है। संघ स्वयंसेवकों के अन्दर देश के प्रति काम करने का अवसर और शक्ति मिले इसके लिए इस तरह से अलग-अलग कार्यक्रम संघ करता है।

उन्होंने स्वयंसेवकों को गणतंत्र दिवस की बधाई देते हुए कहा कि 68वें गणतन्त्र दिवस में इतने सुन्दर, अनुशासित ढंग से एक गुणात्मक पथ संचलन इतनी अच्छी तरह सफल सम्पन्न हुआ इसके लिए हम सभी बधाई के पात्र हैं। स्वयंसेवकों को बधाई देने की आवश्यकता नहीं है लेकिन आपने जो अनुशासन यहां कर के दिखाया, निश्चित रूप से आप सभी बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि चाहे बारिश हो, तूफान हो या अग्नि प्रलय हो, संघ ऐसा एक आर्गनाइजेशन, संगठन है, कुछ भी बाधा आए मगर हमारा यह मार्च-पथ संचलन, संघ का अभियान, यह आगे बढ़ेगा। संघ कभी रुकने वाला नहीं है, इस देश को परमवैभव के उच्च सिंहासन पर ले जाने के लिए यह हमेशा आगे बढ़ेगा। इसी संकल्प शक्ति, समर्पण, त्याग के कारण गत् 92 सालों से संघ आगे बढ़ता गया। बहुत सारी बाधाएं, प्रतिकूलताएं आईं, इमरजेंसी आई, ब्रिटिश सरकार ने भी संघ को रोकने की कोशिश की फिर भी संघ अधिकाधिक शक्ति पाकर आगे बढ़ा। आजादी मिलने के तुरन्त बाद यहां जो इतना भीषण नरसंहार हुआ, मुल्क का बंटवारा हुआ, उस समय भी भारत के हिन्दू समाज की रक्षा के लिए स्वयं आहूति, प्राण न्यौच्छावर करके संघ ने इस समाज, इस देश की रक्षा की और आगे बढ़ा।

नन्द कुमार जी ने बताया कि आजादी मिलने के बाद गांधी हत्या के झूठे आरोप संघ पर लगा के, संघ को कुचलने के लिए कुछ लोगों ने कोशिश की, फिर भी संघ आगे बढ़ा। संघ का इतिहास ही ऐसा है चाहे बारिश हो अग्नि प्रलय हो, संघ आगे बढ़ा, रुका नहीं। क्योंकि संघ की शाखाओं से पाने वाला संस्कार वही है जो  श्रीराम जी ने धर्म की विजय के लिए अधर्मी रावण को नष्ट करके समाज को दिए थे. राम जी के सामने भी बहुत सारी बाधाएं थीं, साथी बहुत ज्यादा नहीं थे, लेकिन उस प्रतिकूलता में भी राक्षस कुलों को विशेष उन्मूलन करके उन्होंने धर्म की विजय करवाई। राम जी के साथ केवल कपि लोग, वानर सेना थी, लेकिन राम ने अकेले इस कपि सेना का सहारा लेकर अधर्म के राक्षस कुल को पूरी तरह नष्ट कर दिया। 
 
उन्होंने बताया की महान, समर्पित, त्यागी व्यक्तियों को केवल सात्विक क्रिया सिद्धि चाहिए। क्रिया सिद्धि है सम्पति नहीं है, कोई उपक्रम नहीं है तो भी विजय हमेशा उस प्रकार की शक्ति की है.  संघ ये महान कृत्य करके दिखाता रहता है। संघ के पास बहुत सारी सम्पत्ति नहीं है, संघ के पास बहुत सारे सहायक लोग नहीं हैं, फिर भी हम तो शाखा से पाए हुए संस्कार-संस्कृति के बलबूते पर, उस क्रिया सिद्धि के बलबूते पर आगे बढ़ रहे हैं।

बुधवार, 25 जनवरी 2017

केरल में हो रही हिंसा पर मानवाधिकार आयोग, एससी-एसटी आयोग, न्यायालय अब तक चुप क्यों है – दत्तात्रेय होसबाले जी भगवान की धरती कही जाने वाली केरल की धरती को कम्युनिस्ट गुंडों ने कसाईखाना बना रखा है ,केंद्र सरकार से मांग करता हूं कि केरल सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाये.- जे. नंदकुमार जी, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख

केरल में हो रही हिंसा पर मानवाधिकार आयोग, एससी-एसटी आयोग, न्यायालय अब तक चुप क्यों है – दत्तात्रेय होसबाले जी



नई दिल्ली (इंविसंके). केरल में राज्य सरकार के वरदहस्त के नीचे माकपा के नरसंहारी कार्यकर्ताओं द्वारा संघ एवं बीजेपी के खिलाफ हो रही खूनी हिंसा के विरोध में जनाधिकार समिति द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर  धरना दिया गया. प्रदर्शन के बाद जनाधिकार समिति के प्रतिनिधि मंडल ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर जी को ज्ञापन सौंपा, जिसमें केंद्र सरकार से मांग की गयी कि केरल सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने जंतर-मंतर पर केंद्र सरकार से मांग की कि केरल की राज्य सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए. ये मांग हिन्दुस्तान की जनता भी प्रत्येक माध्यम से केंद्र सरकार से करे कि केरल सरकार को बर्खास्त किया जाए. क्योंकि केरल की राज्य सरकार के संरक्षण में सीपीएम के नरसंहारी कार्यकर्ता आए दिन निर्मम तरीके से इंसानियत का गला घोंट रहे हैं. 

जंतर-मंतर पर विशाल प्रदर्शन केरल में राज्य सरकार की सरपरस्ती में माकपा के नरसंहारी कार्यकर्ताओं द्वारा संघ एवं बीजेपी के खिलाफ हो रही खूनी हिंसा के विरोध में आयोजित किया गया था. सह सरकार्यवाह जी ने संघ व बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ केरल में हो रही राजनीतक हिंसा पर चेतावनी दी कि अगर केरल सरकार अभी भी उचित कार्यवाही नहीं करती है तो इसका परिणाम भुगतने के लिए उसे तैयार रहना चाहिए. वामपंथियों का आधार कठोर नफरत है. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि वो माताओं-बहनों और मासूम बच्चों तक को नहीं छोड़ते हैं. लेकिन, अब ऐसा नहीं चलेगा.

उन्होंने मानवाधिकार आयोग, सुप्रीम कोर्ट, एससी-एसटी आयोग से पूछा कि केरल में मारे जा रहे अधिकतर  नागरिक दलित है तो वो स्वतः संज्ञान क्यों नहीं ले रहे हैं? वामपंथियों द्वारा की जा रही कितनी हत्याओं के बाद इनकी आखें खुलेगी? केरल के लोगों के मानवाधिकारों की हत्या अब नहीं होने देंगे. आज का यह विरोध-प्रदर्शन संघ और स्वयंसेवकों का नहीं है, ये देश के बुद्धिजीवियों की हुंकार है, केरल की नरसंहारी वामपंथी सरकार और मुख्यमंत्री पी. विजयन के खिलाफ.

अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार जी ने कहा कि आज भगवान की धरती कही जाने वाली केरल की धरती को कम्युनिस्ट गुंडों ने कसाईखाना बना रखा है. पिछले कुछ वर्षों में केरल के अंदर 270 संघ और बीजेपी के कार्यकर्ताओं की मार्क्सवादी आतंकवादियों ने निर्मम हत्या की है. मार्क्सवादी नरसंहारियों ने महिलाओं और बच्चों तक को भी नहीं छोड़ा है. केरल के मुख्यमंत्री तीन दिन के लिए दिल्ली आए हुए थे. हम आज उन्हें केरल में हुई हिंसा के खिलाफ ज्ञापन देने वाले थे. लेकिन, केरल के मुख्यमंत्री कल ही दिल्ली से भाग गए. पी. विजयन संवाद नहीं करना चाहते हैं. विजयन हत्यारे हैं, क्योंकि लगभग 50 साल पहले 1968 में उन्होंने रामकृष्णन नामक स्वयंसेवक की हत्या की थी. जो प्रदेश में पहली हत्या थी. आरोप लगाया कि केरल सरकार लोकतंत्र और मानवता विरोधी सरकार है. इसलिए केंद्र सरकार से मांग करता हूं कि केरल सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाये. मैं आप सभी को बता दूं कि पिछले साल जनवरी से लेकर आजतक 28 दिसंबर 2016, 19 दिसंबर 2016, 12 अक्टूबर 2016, 7 अक्टूबर 2016, 3 सितम्बर 2016, 11 जुलाई 2016, 22 मई 2016, फरवरी 2016 में हत्याएं हुई हैं.

बीजेपी के अखिल भारतीय सचिव अनिल जैन जी ने कहा कि अगर ऐसे ही वामपंथियों द्वारा लगातार हिंसा जारी रही तो अब जवाब पत्थर से दिया जाएगा. हमारी सहनशीलता को मार्क्सवादी कमजोरी न समझें. बीजेपी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि संतोष की हत्या जिस प्रकार से उनके द्वारा की गई है वो मैं बता भी नहीं सकता. वो मारने के बाद शरीर को क्षत-विक्षत कर देते हैं. वो शायद भूल गए हैं कि भगवान विष्णु ने दुराचारियों के संहार के लिए चक्र को धारण किया था.

बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि वामपंथी दलितों, महिलाओं के हक की बात करते हैं. क्या यही उनके द्वारा दिया जा रहा हक है? अब तो अवार्ड वापसी गैंग की दलितों की हो रही इन निर्मम हत्याओं पर संवेदनाएं फूट ही नहीं रही है? आप सबको जानकार हैरानी होगी कि केरल राज्य में दलितों द्वारा 2016 में वामपंथियों की हिंसा के खिलाफ 400 एफआईआर दर्ज कराई गई हैं केरल की जनता आतंक के साए में जिन्दगी जीने को मजबूर है, क्योंकि राज्य की सरकार एक आतंकवादी विचारधारा समर्थित सरकार है.

राष्ट्रीय उलेमा फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना मुर्तजा ने कहा कि केरल की नरसंहारी सरकार को केंद्र सरकार जितनी जल्दी हो सके बर्खास्त करे और राष्ट्रपति शासन लगाए. केरल में राज्य सरकार की सरपरस्ती में माकपा के नरसंहारी कार्यकर्ताओं द्वारा संघ एवं बीजेपी के खिलाफ हो रही खूनी हिंसा के विरोध में जनाधिकार समिति द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर विशाल प्रदर्शन के दौरान दिल्ली प्रान्त के संघचालक कुलभूषण आहूजा जी, विहिप के राष्ट्रीय मंत्री सुरेन्द्र जैन जी, विद्यार्थी परिषद् के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्रीनिवास जी, सुप्रसिद्ध नृत्यांगना सोनल मानसिंह जी, कवि गजेन्द्र सोलंकी जी, स्क्रिप्ट राइटर अद्वैत काला जी, टीवी व फिल्म कलाकार मुकेश खन्ना जी, रिटायर्ड आईएसएस अधिकारी एसपी राय जी, ध्रुव कटोच जी ने भी संबोधित किया.





 साभार: vskbharat.com

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

-3 डिग्री तापमान में संघ का प्रशिक्षण ले रहे हैं स्वयंसेवक

-3 डिग्री तापमान में संघ का प्रशिक्षण ले रहे हैं स्वयंसेवक

शिमला. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कार्यकर्ता निर्माण के लिए वर्गों का विशेष महत्व है. ऐसे वर्गों से ही देश और समाज के लिए देशभक्त, अनुशासित, चरित्रवान और निःस्वार्थ भाव से काम करने वाले कार्यकर्ता तैयार होते हैं. वह समाज के प्रति संवेदनशील बनते हैं, जो संकट के समय सबसे पहले लोगों की मदद के लिए पहुँचते हैं. संघ स्थापना के बाद से ही ऐसे वर्गों की पद्धति संघ में है. ऐसे वर्ग या तो मई-जून के महीने में लगते हैं, जब तापमान 45 डिग्री से अधिक रहता है या फिर हिमाचल प्रदेश, जम्मू-काश्मीर जैसे क्षेत्रों में सर्दियों में जब तापमान शून्य से नीचे चला जाता है.

ऐसा ही एक 20 दिवसीय वर्ग हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में 8 जनवरी से चल रहा है. यह प्रथम वर्ष का शिक्षण वर्ग है, जिसमें 16 से 40 वर्ष की आयु के स्वयंसेवक भाग ले रहे हैं. इस वर्ग में 205 स्वयंसेवक हिमाचल के 150 स्थानों से आये हैं. इन्हें शारीरिक, बौद्धिक कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षण देने के लिए 20 से अधिक शिक्षक तथा व्यवस्था करने के लिए 40 से अधिक प्रबन्धक है. शिक्षण लेने वालों में विद्यार्थी, अध्यापक, अधिवक्ता, कृषक तथा व्यवसायी शामिल हैं.


यह प्रशिक्षण वर्ग अनेक कारणों से विशेष है. पहली बात शिमला में इस तरह का पहला ही कैम्प लगा है. दूसरा जिस दिन यह वर्ग प्रारम्भ हुआ, उससे एक दिन पूर्व हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रों में भारी हिमपात हुआ. जिससे अनेक मार्ग अवरुद्ध हो गए. शिमला शहर में भी 2 से 3 फीट तक बर्फ गिरने के कारण आवागमन बाधित हुआ.

कैम्प स्थान पर भी लगभग डेढ़ फीट तक बर्फ थी. सभी के मन में एक ही प्रश्न था कि स्वयंसेवक शिमला तक कैसे पहुंचेंगे. लेकिन जो स्वयंसेवक हररोज साधना करता है और गीत गाता है, ‘आंधी क्या तूफ़ान मिले, चाहे जितने व्यवधान मिले, बढ़ना ही अपना काम है’ वह इन सब बाधाओं को पार करता हुआ आगे बढ़ता है. और स्वयंसेवक सभी बाधाओं को पार करते हुए शिमला पहुंचे. अनेक स्वयंसेवक 15 से 20 किलोमीटर (6-7 घंटे) तक अपना सामान कंधे पर उठाकर पैदल पहुंचे और अनेक को 100 किलोमीटर का सफर अधिक तय करना पड़ा. इस समय शिमला का तापमान -3 डिग्री तक पहुँच गया है. जिससे जनजीवन थम सा गया है. पानी की पाइपें जम गई हैं जिससे पानी की सप्लाई भी प्रभावित हुई है. 3 दिनों तक शहर में बिजली की सप्लाई भी बंद रही. मुसीबत तब और बढ़ गई, जब 16 जनवरी को फिर बर्फवारी हो गई. लेकिन इस हाड कंपा देने वाली ठण्ड में भी स्वयंसेवक प्रातः 4.45 बजे से रात्रि 10.15 तक सभी कार्यक्रमों में उत्साह से भाग ले रहे हैं. संघ 90 वर्षों से इन्ही विरोधों व अवरोधों को पार करता हुआ आगे बढ़ा है और बढ़ रहा है.

हमें विश्व की सारी समस्याओं का समाधान करने वाले वैभवशाली एवं समर्थ भारत का निर्माण करना है – डॉ. मोहन भागवत जी

14 जनवरी मकर संक्रांति के अवसर पर परेड ग्राउंड कोलकत्ता महानगर के स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण में सरसंघचालक जी का उद्बोधन
कोलकत्ता (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि मकर संक्रमण का यह पर्व अपने समाज में बहुत प्राचीन काल से चलता आया पर्व है. भारत का समाज उत्सव प्रिय है. गंगासागर में हम लोग जो मकर संक्रमण के दिन स्नान करते हैं, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ किया था. गंगासागर में कपिल मुनि बहुत वर्षों से तपस्या में लीन थे. किसी राजा ने अश्वमेध का वह घोड़ा चुरा लिया और उसे लाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. कपिल मुनि का राजनीति से कोई सम्बंध नहीं था. लेकिन राजा सागर के पु़त्रों ने कपिल मुनि का अपमान किया. कपिल मुनि की समाधी टूट गयी और उनकी क्रोधाग्नि से राजा सागर के सौ पुत्र भस्म हो गये. इस प्रकार का मिथ्या आरोप लगाने से नुकसान तो राजा सागर के पुत्रों का ही हुआ न. तपस्वियों की तपस्या को भंग करने का कार्य राजा लोग करते रहते हैं. परंतु तपस्वी उन सभी बाधाओं को दूर करके अपनी तपस्या जारी रखते हैं.
अब राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा को धरती पर लाना आवश्यक था. राजा भगीरथ की कहानी राजा सागर के कई पीढ़ी पश्चात की कहानी है. पीढ़ी दर पीढ़ी मां गंगा को धरती पर लाने का प्रयास चलता रहा, जैसे महाराज अंशुमान, भगीरथ इत्यादि. राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर आने के लिये राजी हो गई. परंतु मां गंगा का वेग बहुत प्रबल था. तब सवाल पैदा हो गया कि मां गंगा को धारण कौन करेगा, तो फिर तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न किया. गंगा शिवजी की जटाओं में खो गई, उन्हें मां गंगा को धरती पर लाने के लिये पुनः तपस्या करनी पड़ी. हमारे समाज में कोई महान कार्य करने के लिये कोई व्यक्ति जब बहुत प्रयत्न करता है, तब हम कहते हैं कि इन्होंने भागीरथ प्रयत्न किया. इस प्रकार से वह गंगा सागर है, यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले एक महान एवं पवित्र कार्य का प्रमाण है. हम भी संघ के स्वयंसेवक एक महान एवं पवित्र कार्य में जुटे हुए हैं. समूचे विश्व के बिगड़े हुए संतुलन को ठीक करने वाला, विश्व की सारी समस्याओं को ठीक करने वाला एक वैभवशाली एवं समर्थ भारत का निर्माण करना है और उसके लिए हमें हिन्दू समाज को संगठित करना है.

यदि इसी तरह हम कार्य करते रहे, तो बाधाएं अपने आप दूर हो जाएंगीं. मकर संक्रमण के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. दिन तिल-तिल करके बड़ा होने लगता है, तथा प्रकाश अधिक मिलता है. प्रकाश के कारण मनुष्य को कार्य करने की ऊर्जा अधिक मिलती है. प्रकाश देने वाले सूर्य के पथ में बाधाएं नहीं हैं क्या, सूर्य के रथ में सात घोड़े हैं, लगाम के लिए सात सांप मौजूद हैं, सात प्रकार की इच्छाओं को अपने वश में करके रथ चलाना पड़ता है. सर्य कभी डूबता नहीं, पृथ्वी के चारों ओर धूमता है.
कार्य की साधना कार्यकर्त्ताओं पर निर्भर करती है. रास्ता कांटों से युक्त है, साधन है या नहीं, यह सोचने से कार्य नहीं होगा, निरंतर कार्य करते रहना पड़ेगा. संघ संस्थापक डॉक्टर जी के पास क्या साधन था! कुछ भी नहीं था, उस समय कार्यकर्त्ता नहीं थे, सरकार का साथ नहीं था, उल्टे अंग्रेजों का विरोध था. संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करुंगा, ऐसा प्रबल उद्देश्य उनके मन में रहने के कारण पंद्रह वर्ष की कालावधि में संपूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व देख कर गए. भारत वर्ष में हिन्दुओं की स्थिति क्या है, इस देश में हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं करता, हिन्दुओं को कोई पूछता नहीं, हिन्दुओं के कष्ट की कोई चर्चा नहीं होती. शक्ति की पूजा सभी लोग करते हैं, शक्तिशाली को सभी लोग नमस्ते करते हैं. स्वामी विवेकानंद की शिक्षा है – शक्ति की साधना ही जीवन है और दुर्बलता ही मौत. शक्ति की साधना में समाज की शक्ति को जगाना है.
गुरु गोविन्द सिंह जी का 350वां जन्मवर्ष पूरे देश में मनाया जा रहा है. गुरु गोविन्द सिंह जी ने देश के विभिन्न हिस्सों से अलग-अलग जाति के पांच ऐसे लोगों को चुना, जो अपने देश और धर्म के लिए जान तक देने के लिए तैयार थे, उन पंच प्यारों को सिख धर्म की दीक्षा दी. भौगोलिक सीमा, जातिभेद की सीमा तोड़कर सामाजिक समरसता का जागरण किया. स्वामी रामानुजाचार्य से भीमराव आम्बेडकर तक समाज को संगठित करने वाले थे. स्वामी प्रणवानंद जी ने कहा था – महाशक्ति का जागरण महामिलन और महासमन्वय से करना होगा.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारा संघ कार्य किसी के विरोध में नहीं है, किसी की प्रतिक्रिया में नहीं है. हिन्दू समाज का संगठित होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. हमारा समाज संगठित रहे, सक्षम तथा शक्तिशाली रहे यह स्वाभाविक है. एक पत्रकार सम्मेलन में श्री गुरुजी से पूछा था कि ‘‘मेरे गांव में एक भी मुसलमान या इसाई नहीं है, तो मेरे गांव में संघ कार्य की क्या आवश्यकता है!’’ श्री गुरुजी ने उत्तर दिया – ‘‘यदि सारी दुनिया में एक भी मुसलमान या एक भी इसाई नहीं होता और हमारे हिन्दू समाज की हालत ऐसी ही रहती तो भी हम संघ कार्य करते’’.

भारतवर्ष हिन्दुओं का देश है – यह सत्य है. भारत में हिन्दू यहीं पलेगा-बढ़ेगा, यह भी सत्य है. भारत में हिन्दुओं को संगठित और शक्तिशाली बनाना है, यह भी सत्य है. ऐसे सत्य के अधिष्ठान पर संघ का कार्य स्थित है, अपना कार्य सत्य एवं शुद्ध है. बादलों के कारण सूर्योदय नहीं हुआ, क्या कभी किसी ने सुना है. किसी ने सुना है क्या बांध और पर्वतों के कारण नदी रुक गई. अंग्रेज सरकार हमारा विरोध करती रही, फिर भी हम संघ कार्य को आगे बढ़ाते रहे. कांग्रेस सरकार ने तीन बार प्रतिबंध लगाया, किन्तु हर बार संघ ज्यादा शक्तिशाली होकर आगे बढ़ा. जब हमारे पास साधन नहीं थे, तब हमने परवाह नहीं की. आज हमारे पास साधन हैं, तब भी हम सुखासीन नहीं हुए. ‘‘परम वैभवं नेतुमेतत स्वराष्ट्रम्, समर्था भवत्वा शिषाते भृशम’’. इस मंत्र का हम रोज जाप करते हैं. हमें संघ का कार्य करना है, करेंगे तो होगा, नहीं करेंगे तो नहीं होगा. बाधाएं आती हैं तो आने दो. हम उसकी क्यों परवाह करें. मकर संक्रांति के दिन गुड़ और तिल का लड्डू बनाते हैं तथा बांटते हैं. तिल स्नेह का प्रतीक है और गुड़ मिठास का. परस्पर मिठास बांटते हुए, सभी के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना है. संघ कार्य को आगे बढ़ाने के लिये परस्पर मित्रता बनानी है.
साभार:: vskbharat.com

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

राष्ट्रीय विचारों की मजबूती के लिए राष्ट्रीय साहित्य का डिजिटाईजेशन आवश्यक : जे. नंद कुमार


राष्ट्रीय विचारों की मजबूती के लिए राष्ट्रीय साहित्य का डिजिटाईजेशन आवश्यक : जे. नंद कुमार

नई दिल्ली, 12 जनवरी (इंविसंके). इन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र तथा नेशनल बुक ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में विश्व पुस्तक मेले में आज राष्ट्रीय साहित्य एवं डिजिटल मीडिया विषय पर विचार गोष्टी आयोजित की गयी. इस अवसर पर सुरुचि प्रकाशन द्वारा 'कल्पवृक्ष' नाम से पुस्तक का विमोचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे. नन्द कुमार द्वारा किया गया. श्री नन्द कुमार ने इस विषय पर कहा कि राष्ट्र क्या है, राष्ट्रीय क्या है, यह चर्चा बहुत सालों से भारत में चल रही है. देश में कुछ लोगों के विचार में राष्ट्र जैसी कोई चीज नहीं है, ऐसे विचार रखने वाले इंटैलैक्चुअल, तथाकथित लेखकों की लिखी हुई पुस्तकें भी हमें मिलती हैं.
उन्होंने बताया कि भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, हिमालय से समुद्र तक का भाग एक राष्ट्र है. इस राष्ट्र की कल्पना वेदकाल से ही यहां मौजूद है. यह कोई नया या बनावटी विचार नहीं है. यह राष्ट्र राजनीतिक अथवा मिलिट्री के आधार के बिना भी एक ही है. कश्मीर ये लेकर कन्याकुमारी तक एक विचार, एक आदर्श से यह एक राष्ट्र है. राष्ट्रीय साहित्य के संदर्भ में इस विचार को समाज के अन्दर पहुंचाने के लिए पहले जो साहित्य निर्माण होता रहता था, उस साहित्य के प्रचार के बारे में हमें सोचना होगा. उस तरह के साहित्य से मिले विचार से ही पूर्व में यह राष्ट्र शक्तिशाली बना था. इसको ध्यान में रखते हुए ही प्राचीन काल में ही यहां रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों का तमिल, तेलगु, मलयालम आदि विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ और इन ग्रंथों के विचार एवं  आदर्श जन-जन के हृदय तक पहुंचे.
श्री नंद कुमार ने चिता जताई कि भारत में उभरे तथाकथित नवराष्ट्रवादी, वामपंथी सोच वाले कहते हैं कि संस्कृत आर्यों की भाषा है और वह यहां बाहर से आए थे. यह उनका अराष्ट्रीय दृष्टिकोण है. भारत में साहित्य अनेक भाषाओं में लिखा गया है, लेकिन उसमें विचार एक ही है. पूरे भारत को जोड़कर रखने वाला साहित्य, भारत को एक दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाले साहित्य को ज्यादा प्रचार गत कुछ सालों से नहीं मिल रहा है. इसके लिए भारत में ब्रिटिश काल से ही सक्रिय कछ तथाकथित शैक्षणिक संस्थाएं दोषी हैं. आजादी के बाद यहां उनसे निकले इंटेलैक्चुअल सक्रिय हो गए. ऐसे लोगों ने एक विस्मृति हमारे ऊपर थोप दी है. इनके कारण से राष्ट्रीय साहित्य का प्रचार कम हो गया. उसकी जगह पर नवराष्ट्रवाद या बहुराष्ट्रवाद अथवा अराष्ट्रवाद को मानने वाले लोगों के साहित्य का ज्यादा प्रचार हुआ. उनके विचार में राष्ट्र नहीं है इसलिए राष्ट्र के टुकड़ करने के लिए यह लोग आगे निकलते हैं. भारत के टुकड़े होंगे,ऐसे नारे लगाने वाले लोगों की संख्या इसी अराष्ट्रीय साहित्य से निकले विचार के कारण बढ़ रही है.
उन्होंने बताया कि आज के डिजिटल युग में माना जा रहा है कि पुस्तक पड़ना कम हो गया है, लेकिन ऐसा नहीं है. आज भी प्रकाशन संस्थाओं की संख्या बढ़ रही है, इससे पता चलता है कि लोग पुस्तकें खरीद कर पढ़ रहे हैं. पुस्तक मेले में बड़ी संख्या में युवाओं द्वारा पुस्तकें खरीदना इसका प्रमाण है. आजकल पुस्तकों के क्षेत्र में बढ़ रहा डिजिटाइजेशन अच्छी बात है. राष्ट्रीय साहित्य की भी बड़ी संख्या में डिजिटाइजेशन और पुस्तक मेलों की जरूरत है. ईबुक्स का वितरण अपेक्षानुरूप नहीं हो रहा है, इसे भी बढ़ाने की जरूरत है. भारत कथा वाचन का बहुत बड़ा स्थान है, इस तरह की पुस्तकें, संस्कृति-राष्ट्र से सम्बन्धित, इस राष्ट्र को प्रेरणा देने वाली पुस्तकों की निर्मिति हार्डकॉपी के साथ-साथ सॉफ्ट कॉपी के रूप में भी पूर्ति बढ़ाने की आवश्यकता है. आज मोबाइल में लोग पुस्तके पढ़ते हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा इस तरह की पुस्तकें आने की जरूरत है. पुस्तकों के विषय के साथ-साथ भाषा की शुद्धता के बारे में भी सोचने की आवश्यकता है.
श्री नंद कुमार आह्वान किया कि साहित्य के द्वारा राष्ट्रीय विचार के प्रचार दोनो प्रकार के क्षेत्र पर हम सबको काम करने की जरूरत है. यह केवल कुछ पब्लिशिंग हाउसेज का काम नहीं है, व्यक्ति भी अपने तरफ से कर सकते हैं. व्यक्ति स्वयं पुस्तक का लेखक, प्रकाशत तथा वितरण भी बन सकता है. इसके लिए आज हम सोशल मीडिया का सपोर्ट ले सकते हैं.
आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने बताया कि डिजिटल मीडिया विचारों के प्रचार के लिए आज एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में उभरा है. भारत के विषय में जो भी चर्चा चली है, जिसमें चाहे जम्मू-कश्मीर, गोहत्या पर प्रतिबन्ध, भारत की सांस्कृतिक विरासत का विषय हो. इन सारे विषयों पर हमें यह दिखता है, कि एक काउंटर व्यू डिजिटल मीडिया में अचानक प्रमाणिक तथ्यों, संदर्भ सहित आता है और इलैक्ट्रानिक मीडिया के साथ-साथ प्रिंट मीडिया को भी उसका सहारा लेना पड़ता है. उदाहरण के लिए औरंगजेब रोड़ के नाम परिर्वतन का विषय आया. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर उस मार्ग का नाम क्यों न हो, स्वाभावतः 70-80 के दशक की तरह इस विषय को ले जाने की कोशिशें होने लगीं कि क्या सेकुलर है और क्या कम्युनल. वो दौर होता तो औरंगजेब कितना सेकुलर था, कितना अच्छा प्रशासक था, कितना श्रेष्ठ था यह बताने का बहुत प्रयास होता. ऐसी स्थिति में शायद कुछ निर्णय भी नहीं होता. लेकिन डिजिटल मीडिया का प्लेटफार्म था जिसने यह विषय पकड़ा, उस पर चर्चाएं कीं, उस पर साहित्य से संदर्भ भी निकाले, नया साहित्य भी डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रस्तुत हुआ और चर्चा इस दिशा में गई कि बिना कुछ समय गंवाए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर उस रास्ते का नामांतरण हुआ. डिजिटल मीडिया के महत्व को देखते हुए इसके गलत इस्तेमाल भी किया जा रहा है, जिससे पूरा विश्व चिंतित है. इसके लिए डिजिटल स्पेस पर वैधानिक नियंत्रण कैसे रखें इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. साइबर आक्रमण के माध्यम से देश के विरुद्ध हो रहे दुष्प्रचार से बचाव के लिए हमें अपनी व्यवस्थाएं दुरस्त करने की जरूरत है.
श्री केतकर ने बताया की समाज को हम सही तरीके से इसका प्रयोग करने के लिए तैयार करते हैं तो आने वाले समय में प्रिंट मीडिया भी डिजिटल मीडिया के साथ राष्ट्रीय विचारों का प्रभावी वाहक बनने के लिए बाध्य हो जाएगा और धीरे-धीरे इलैक्ट्रानिक मीडिया को भी वह राह पकड़नी होगी, ऐसी स्थिति के लिए हम डिजिटल मीडिया का सकारात्मक प्रयोग करें, प्रयोगशीलता से लोगों को ट्रेंड करें, उनकी मानसिकता बनाएं, सोच बनाएं, स्किल्स बढ़ाएं. इस सोच के साथ हम आगे बढ़ते हैं तो मुझे लगता है कि ऐसी संगोष्ठी का सही मायने में उपयोग होगा और डिजिटल मीडिया एक सेमी इंटरटेनमेंट माध्यम न रहते हुए प्रभावी, वैचारिक, चिंतन और मंथन का साधन बन पाएगा.
सुप्रसिद्ध हिन्दी ब्लागर श्री नलिन चौहान ने इस विषय पर कहा कि आज प्रिंट मीडिया डिजिटल मीडिया को फाॅलो कर रहा है. यूनिकोड के आने से अब हम अपने विचार डिजिटल मीडिया द्वारा सुगमता से सबको बता सकते हैं. हाल ही में फेसबुक ने जो नया फीचर इंस्टेंट लाइव शुरु किया है, इसके माध्यम से हम अपने विचार इलैक्ट्रानिक मीडिया की तरह को तत्काल जन-जन तक पहुंचा सकते हैं. डिजिटल मीडिया की जब हम बात करते हैं तो हमको कुछ लोग ऐसे तैयार करने होंगे जो भाषा और उसके व्याकरण पर मूल रूप से काम करें. क्योंकि उदाहरण के लिए जैसे सेकुलर शब्द की अवधारणा जो चर्च और स्टेट से निकली थी. हमारे यहां भारतीय संदर्भ उसका बहुत भिन्न हो गया. इस अवसर पर मंच संचलन इन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण आनंद ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन सुरुचि प्रकाशन के प्रबंधक गौतम सपरा द्वारा प्रस्तुत किया गया.

सोमवार, 9 जनवरी 2017

समाज का सुख संघर्ष में नहीं है अपितु सामंजस्य में है - डॉ. कृष्ण गोपाल

समाज का सुख संघर्ष में नहीं है अपितु सामंजस्य में है - डॉ. कृष्ण गोपाल
सामाजिक समरसता और हिन्दुत्वएवं दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन व एकात्म मानववादखंड 7 व 8नाम से तीन पुस्तकों का लोकापर्ण करते हुए डॉ. कृष्ण गोपाल जी एवं पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर
  


8 जनवरी, नई दिल्ली, (इंविसंके). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने आज सामाजिक समरसता और हिन्दुत्वएवं दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन व एकात्म मानववादखंड 7 व 8नाम से तीन पुस्तकों का लोकापर्ण किया। नई दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इन पुस्तकों के विमोचन के अवसर पर नेशनल बुक ट्रस्ट के सहयोग से एक परिचर्चा भी आयोजित की गई. जिसमें डॉ. कृष्ण गोपाल ने संघ के तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस के सामाजिक समरसता के संदर्भ में दिए गये विचारों को सबके समक्ष रखा। 

उन्होंने कहा कि भारत ऋषि परम्परा का देश है.  वेद लिखने वाले ऋषियों में सभी जातियों के विद्वान थे, जिनमें महिलाएं व शूद्र वर्ण के भी अनेक ऋषि थे, जिसमें सूर्या, सावित्री, घोषा, अंबाला वहीँ पुरुषों में ऋषि महिदास इत्यादि थे जो शूद्र थे. ऋषि परंपरा एक स्थान था, ऋषि पद प्राप्त करने के लिए जन्म का कोई बंधन नहीं था, जाति भी कर्म आधारित होती थीं। कालांतर में वो व्यवस्था छीन-भिन्न हो गयी. मध्यकाल में भारत पर अनेक बाहरी आक्रमण हुए, जिनमें हारने के कारण से हिन्दुओं में अनेक कुरीतियां भी घर कर गईं.  पिछले 13-14 सौ वर्षों में हिन्दू समाज में अपने ही बंधुओं के बीच अस्पृश्यता, ऊंच-नीच भावना की कुरीतियां घर कर गईं. शायद,  उस समय की स्थिति में इसकी आवश्यकता रही होगी। लेकिन, स्वतन्त्र भारत के अन्दर समाज में इस जाति भेद की कोई आवश्यकता नहीं है, जो समाज को अपने ही बंधुओं से अलग करती हो। परन्तु देश में आज भी जाति का भेद बहुत गहरा है. जाति बदल नहीं सकती क्यों की यह एक परम्परा चल पड़ी है जो चल रही है. इस उंच-नीच, भेद-भाव को सामाजिक समरसता से है ही समाप्त किया जा सकता है.
 
डॉ. कृष्ण गोपाल ने भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी के बारे में बताया कि उन्होंने श्रमिकों और उद्यमियों के बीच सामंजस्य कायम करने के लिए पहल की तथा श्रमिकों को वामपंथियों के टकराव व संघर्ष वाले रास्ते से हटाकर सामंजस्य और उन्नति के पथ पर अग्रसर किया। उनका मूल सिद्धांत संघर्ष नहीं सामंजस्य स्थापित हो. उन्होंने बताया की आज मार्क्सवाद पूरे विश्व से समाप्त हो चुका है. समाज का सुख संघर्ष में नहीं है अपितु सामंजस्य में है. प्रेम से ही सुख मिलेगा. यह देश बुद्ध, महावीर, विवेकानंद, गाँधी, विनोबा भावे का है. यह देश करुणा का है. सामंजस्य, समन्यवय, शान्ति का और धर्म का है.

इस अवसर पर पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर, दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव अतुल जैन, सुरुचि प्रकाशन के गौतम जी, भारतीय मजदूर संघ के उपाध्यक्ष श्री बी सुरेन्द्रन मंचासीन थे, कार्यक्रम का संचालन अनिल दुबे द्वारा किया गया.

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित