सोमवार, 29 अप्रैल 2013

चीन को चुनौती देने वाले बिहार के इस शख्स ने दुनिया में गाड़ा भारत का झंडा

चीन को चुनौती देने वाले बिहार के इस शख्स ने दुनिया में गाड़ा भारत का झंडा

बिहार के किसान सुमंत कुमार दुनियाभर में जाना पहचाना नाम बन चुके हैं। एबीसी, बीबीसी और द गार्जियन समेत दुनिया के तमाम बड़े मीडिया हाऊस उनकी कामयाबी की कहानी कह रहे हैं। बिहार के नालंदा के दरवेशपुरा गांव के सुमंत कुमार ने दुनिया में सबसे ज्यादा धान उगाने का रिकार्ड बनाया है।
 
चीन को चुनौती देने वाले बिहार के इस शख्स ने दुनिया में गाड़ा भारत का झंडाइससे पहले यह रिकॉर्ड चीन के वैज्ञानिक और 'फादर ऑफ राइस' के नाम से प्रसिद्ध युआन लोंगपिंग के नाम था। युआन ने एक हैक्टेयर में 19.4 टन धान उगाया था। लेकिन सुमंत कुमार ने इस रिकॉर्ड को तोड़ते हुए एक हैक्टेयर में 22.4 टन धान का उत्पादन कर दुनिया को चकित कर दिया। 
 
सुमंत कुमार ने न सिर्फ चीन के वैज्ञानिक का रिकॉर्ड तोड़ा बल्कि वर्ल्ड बैंक के फंड से चल रहे फिलिपींस के इंटरनेशनल राइस रिसर्च और अमेरिका और यूरोप की बड़ी-बड़ी बीज कंपनियों के फार्मों के रिकॉर्ड भी ध्वस्त कर दिए। 
 
यही कारण है कि बिहार के नालंदा जिले के छोटे से गांव दरवेशपुरा में उनसे मिलने के लिए दुनियाभर से लोग आ रहे हैं। लेकिन सुमंत कुमार की कामयाबी युआन लोंगपिंग को नहीं पची और उन्होंने उनके दावे पर ही सवाल उठे दिए। 
 
इसके बाद अब सुमंत कुमार ने अपने खेत में धान के बजाए गेंहू की फसल का रिकॉर्ड बनाने की तैयारी की है। सुमंत कुमार ने इंटर तक की पढ़ाई करने के बाद टेक्सटाइल सुपरवाइजर की नौकरी की और फिर दोबारा किसानी की ओर लौटे। 
 
सुमंत कुमार ने धान उगाने का पुराना तरीका छोड़कर नया तरीका अपनाया। उन्होंने सिस्टम ऑफ राइस इंटेनसिफिकेशन या श्री विधि का प्रयोग किया। इस विधि में पौध के रोपन, बीज की तैयारी, पौध की उम्र और सिंचाई का तरीका पारंपरिक तरीके से अलग होता है। इस विधि को 80 के दशक में विकसित किया गया था और इससे गेंहू और अन्य फसलों में भी अपनाया जा सकता है।
 
पारंपरिक तरीके में धान के कई पौधे एक साथ रोपें जाते हैं जबकि नए तरीके में एक-एक पौधे को अलग-अलग रोपा जाता है।

सुमंत कुमार के लिए नई विधि अपनाना लाटरी की तरह था। उनका यह तरीका कामयाब रहा। जब गांव के लोगों ने फसल तौली तो बाहर की दुनिया को यकीन नहीं हुआ। इसके बाद बिहार सरकार के एक कृषि विज्ञानी ने स्वयं सुमंत कुमार की फसल तौलकर रिकॉर्ड की पुष्टि की।
 
सुमंत कुमार अब खुद में एक कृषि स्कूल बन गए हैं। उनके इर्द-गिर्द हमेशा किसान रहते हैं और उनसे खेती के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं। जब हमने सुमंत कुमार से फोन पर बात की तो वह बार-बार गांव आकर फसल देखने पर जोर देते रहे। 
 
दरवेशपुरा गांव में सिर्फ सुमंत कुमार के खेत में ही रिकॉर्ड तोड़ फसल नहीं हुई थी बल्कि कई अन्य किसानों ने भी 17 टन प्रति हैक्टेयर तक की फसल अपने खेतों से काटी थी। 
 
सुमंत और दरवेशपुरा के अन्य किसान जैविक खादों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि वह गोबर से खाद बनाने के लिए पड़ोस से गोबर तक घरीद लाते हैं।
स्त्रोत:  http://www.bhaskar.com/article/BIH-PAT-bihar-farmer-sumant-kumar-record-in-wheat-yield-4249688-PHO.html?seq=1

भारत की सीमा में घुसपैठ, चीन के दुःसाहस को कठोर जवाब जरूरी- उमेष दत्त

भारत की सीमा में घुसपैठ, चीन के दुःसाहस को कठोर जवाब जरूरी- उमेष दत्त

29 अप्रेल 2013 को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन



भारत की सीमा पर चीनी सेना द्वारा लगातार सीमा क्षेत्र का उल्लंघन व 19 कि.मी. अंदर भारतीय सीमा पर चीनी सेना द्वारा चैकी निर्माण भारत की संप्रभुता पर हमला है। चीन की इस विस्तारवादी नीति की अभाविप कड़े शब्दो मे निंदा करती है साथ ही विद्यार्थी परिषद देश की केंद्र सरकार के ढुलमूल रवैये की भी कठोर शब्दो मे घोर निंदा करती है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्री उमेष दत्त ने कहा कि केंद्र सरकार देश की सीमाओं कि रक्षा करने के बजाए केवल भ्रष्टाचार मे आकंठ डूबी अपनी सत्ता को बचाने मे लगी हुई है। साथ ही वर्तमान केंद्र सरकार सामरिक रूप से मजबूत भारतीय सेना का मनोबल गिराने का काम कर रही है। केन्द्र सरकार के इस रवैये का विद्यार्थी परिषद विरोध करती है। चीन पचास वर्ष पूर्व (1962) से भी अधिक खतरनाक विस्तारवादी नीति अपना रहा है, इसलिये पुरानी भूल को न दोहराते हुए हमें वर्तमान घुसपैठ को गंभीरता से लेना जरूरी है।
 अभाविप भारत के प्रधानमंत्री से मांग करती है कि- चीन के इस दुस्साहसिक कदम का तुरंत संज्ञान लेते हुए कूटनीतिक व सामरिक तथा व्यापारिक आदि स्तर पर कठोर प्रतिक्रिया दे एवं ईंट का जवाब पत्थर से देते हुए भारतीय सीमा क्षेत्र चीनीयों से खाली करवाए। श्री उमेष दत्त ने कहा कि अभाविप चीनी घुसपैठ व इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की ढुलमूल नीति के विरोध मे 29 अप्रैल को देशभर मे विरोध प्रदर्शन करने का आवाह्न करती है।

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

संघ गतिविधियों से अवगत हुए म.प्र. के राज्यपाल


संघ गतिविधियों से अवगत हुए म.प्र. के राज्यपाल

संघ गतिविधियों से अवगत हुए म.प्र. के राज्यपाल
माननीय राज्यपाल के साथ अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार, प्रांत के सम्पर्क प्रमुख के. एल. चतर एवं प्रज्ञा प्रवाह के दीपक शर्मा

भोपाल, अप्रैल 25 : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विशेष सम्पर्क योजना के अंतर्गत संघ की गतिविधियों से अवगत कराने के लिए आज एक प्रतिनिधि मंडल ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव से राजभवन में मुलाकात की। इस प्रतिनिधि मंडल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार, प्रांत के सम्पर्क प्रमुख के. एल. चतर एवं प्रज्ञा प्रवाह के दीपक शर्मा शामिल थे।

जे. नंदकुमार ने संघ की गतिविधियों के बारे में राज्यपाल महोदय को अवगत कराया, उन्होंने हाल ही में जयपुर में सम्पन्न हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में पारित प्रस्तावों की जानकारी दी एवं उनसे आग्रह किया कि बांग्लादेश एवं पाकिस्तान में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों पर भारत सरकार का ध्यान आकर्षित कराएं और भारत सरकार से आग्रह करें कि वे पाकिस्तान से भारत में आए हिन्दू शरणार्थियों की उचित व्यवस्था करें।

संघ के द्वारा देशभर में चल रहे 1.76 लाख से अधिक सेवा प्रकल्पों के बारे में भी राज्यपाल महोदय को जानकारी दी गई, साथ ही मध्यप्रदेश में स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती के अंतर्गत किये गए सामूहिक सूर्यनमस्कार के कार्यक्रमों एवं गृह सम्पर्क अभियान की जानकारी भी राज्यपाल को दी गई ।

राज्यपाल महोदय ने भी अपनी कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द शिलास्मारक और विवेकानन्द केन्द्र की यात्रा का अनुभव बताया, और कहा कि समाज को जोड़ने के जो प्रयास स्वामी विवेकानन्दजी ने किये थे आज पुनः उसे आगे ले जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संघ सहित सभी संगठनों को इस हेतु प्रयास करने चाहिए।

दीपक शर्मा ने राज्यपाल महोदय से आग्रह किया कि वे कभी भी आपनी सुविधानुसार समय निकालकर भोपाल स्थित नवजात शिशु सेवा केंद्र ‘मातृ छाया’ ” एवं वृद्धाश्रम सेवा केंद्र ‘आनंदधाम’ ” का अवलोकन करने पधारें, जिससे संघ के सेवा कार्यों में लगे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा।

के. एल. चतर ने राज्यपाल महोदय के प्रति आभार व्यक्त किया और निवेदन किया कि भविष्य में उनकी सदभावना समाज निर्माण के कार्यों को मिलाती रहें।

रविवार, 21 अप्रैल 2013

महिलाओंका मूल कर्तृत्त्ववान रूप उभरने में समाज का योगदान आवश्यक : भागवत


महिलाओंका मूल कर्तृत्त्ववान रूप उभरने में समाज का योगदान आवश्यक : भागवत

स्रोत: News Bharati Hindi      तारीख: 4/21/2013 10:33:05 AM
bhagwat_Pune
पुणे, अप्रैल 21 : अपने समाज में नैतिकता एवं संस्कारोंका जतन करने में महिलाओंकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी समय ब्रह्मवादिनी एवं समाजके निर्णयप्रक्रिया में आगे रहनेवाली महिलाएँ आज अनेको समस्याओं के बली चढ रही है। उन्हें इन समस्याओंसे मुक्त करके उनका मूल कर्तृत्त्ववान रूप उभरने में समाज का योगदान आवश्यक बन गया है, ऐसा प्रतिपादन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवतने शनिवार को यहाँ किया।
भारतीय स्त्री : एक मीमांसा इस पुस्तक के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे डा. भागवत ने अपने आगे कहा की, पिछले कुछ शतकों में भारतवर्ष पर हुए आक्रमणों के कारण यहां की स्थिती महिलाओं के लिए विपरीत हो गई। इसी कालखंड में स्त्री जीवन में विपरीत परिणाम हुए जिसके कारण अनेकों समस्याएँ उभर आई। उन समस्याओं के निराकरण के लिए समाज को अब प्रयास करने होंगे। सुधा रिसबुड लिखित इस पुस्तक का प्रकाशन स्नेहल प्रकाशन ने किया है। इस विमोचन समारोह की अध्यक्षता डेक्कन कालेज अभिमत विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डा. गो. बं. देगलूरकर ने की।
डा. भागवत ने कहा की, आज भी ग्रामीण तथा वनवासी क्षेत्रों में घर-गृहस्ती के निर्णय महिलाएँही करती है, किन्तु घर के बाहर का पूरा जीवन पुरुष वर्चस्ववादी संस्कृतीसे भरा हुआ है। यह चित्र बदले जाने की आवश्यकता है। ज्ञान-विज्ञान, उद्योग, तत्त्वज्ञान एवं अनुसंधान के क्षेत्र में महिलाओं का मूल रूप प्रकट होने की आवश्यकता है। और यह करते हुए हम उन्हें आगे आने के लिए बढावा दे रहे हैं ऐसी भावना नहीं होनी चाहिए। हमारी भूमिका सहयोग की होनी चाहिए। महिलों के प्रकटीकरण में पुरुषों का चिंतन, सहयोग एवं घर के सारे सदस्यों का सहभाग हो, यह सबसे आदर्श स्थिती होगी।
संघ और महिला इस विषय पर भाष्य करते हुए डा. भागवत ने कहा, संघ के आरंभकाल में संघ संस्थापक डा. हेडगेवार का परिचय वंदनीय मावशी केळकर से हुआ। उन्होंने डाक्टरजी से प्रश्न पूछा की, समाज का ५० प्रतिशत हिस्सा जो महिलाएँ है वे संघ के कार्य का भाग क्यों नही है? इस प्रश्न पर डा. हेडगेवार ने कहा की, संघ के कार्यकर्ता सुचारू रूपसे सामाजिक कार्य कर पाते है क्यों की किसी की माँ, किसी की बहन उनका नीजी जीवन सवाँरने में लगी होती है। पर, संगठन का रूप निश्चित होने के कारण महिलाओं के इसमें प्रवेश नही है। किन्तु यदि कोई महिलाओं का संगठन करने के लिए आगे आए, तो हम उन्हें पूरा सहयोग देंगे। डाक्टरजी के इस उत्तर के बाद वं. मावशी केळकरजी ने राष्ट्रसेविका समिती की स्थापना की और आज उनका भी बडा काम है।
डा. देगलूरकर ने अध्यक्षीय भाषण में कहा की, हम आज महिलाओं का जो रूप देख रहे है वह मूल स्वरूप नाही है। महाराष्ट्र में पुणे जिले से सटि भागों में भी सातवाहनों के समय में नागलिका राणी का राज था। उनके नाम से मुद्राएँ बनाई गई थी। नाणे घाट नामसे पहचाने जाने वाले क्षेत्र में ये मुद्राएँ बनाई जाती थी। इसवी कालगणनाके शुरू के चारसों सालो में सारा समाज महिलाओं के नेतृत्तवमें जुडा हुआ था और उन्होंने भी सुचारू रूपसे समजा की धारणा की थी। महाकवी कालिदास की कीर्ति हमें पता है। किन्तु उत्तरी भारत का यह युवक महाराष्ट्रमें कैसे आया इस विषय में जानकारी लेने पर ध्यान में आता है की, सम्राट चंद्रगुप्त की कन्या कुमारदेवी मराठवाडा एवं मध्यप्रदेश की रानी थी। वह अत्यंत कर्तृत्त्ववान थी और उसने अपने बच्चों की पढाई के लिए उत्तर भारत से कालिदास को आमंत्रित किया था। एक हजार साल पूर्व तक हमारे समाज में महिलाओं का जो स्थान हुआ करता था वो हमनें क्यों गवाँ दिया इसका हमें गंभीरता से विचार करना होगा। आज हम महिलाओं के संदर्भ में सोचते है वह भी केवल न्यूज अँगल से सोचते है। यह स्थिती भी हमें बदलनी होगी। ब्रह्मवादिनी बनके धर्मचर्चा करने की क्षमता रखनेवाली महिलाएँ आज दुःस्थितीमें क्यों है इसके कारणों की हमें खोज करनी होगी और वह कारण दूर करने होंगे।
पुस्तक की लेखिका सुधा रिसबूड ने कहा की, परिवार सँवारनेवाले स्त्री को आज असहाय और दुखियारी बताजा जा रहा है। संस्कारों को संजोए रखने वाली इस स्त्री को प्रगत शिक्षा से दूर रखा जा रहा है। उसकी यह स्थिती में बदलाव लाने के लिए संगठित प्रयासोंकी आवश्यकता है।

संघ जो कहता है वह करता है : नंदा

संघ जो कहता है वह करता है : नंदा

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

पड़ोसी देशों से भारत की सुरक्षा को खतरा: भागवत

नाशिक। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि पड़ोसी देशों के गैर दोस्ताना रवैये के कारण ही देश की सुरक्षा को खतरा पैदा हो रहा हैं।
Neighbouring nations pose security threat to India: Bhagwat
बिना किसी देश का नाम लिए हुए उन्होंने कहा कि मानवता के कल्याण के लिए भारत का विकास और तरक्की जरूरी है। हालांकि इससे वैश्विक समस्याओं का समाधान नहीं नकला जा सकता क्योंकि देश पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर गैरदोस्ताना पड़ोसियों से घिरा है, जो उसके लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। उन्होंने यह बात गुरुवार को आरएसएस की नाशिक यूनिट द्वारा रामनवमी के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि तीन युद्ध के बाद भी पड़ोसी देश का गैर मित्रवत व्यवहार बरकरार है। देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं है क्योंकि भारत में जाली मुद्रा, हथियार और आतंकियों की घुसपैठ वहीं से हो रही है। भागवत ने सवाल उठाया कि एक तरफ हम आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं वहीं आम लोग महंगाई से प्रभावित हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और देश सूखे से जूझ रहा है। इन हालातों में विकास कहां हो रहा है? उन्होंने कहा कि इसके लिए मतदाता भी बराबर से जिम्मेदार है। जाति, क्षेत्र, भाषा और पानी को लेकर झगड़ा हो रहा है और प्रतिदिन बलात्कार के मामले सामने आ रहे हैं। हम इन मुद्दों पर चर्चा करते हैं, लेकिन इसका समाधान निकालने का प्रयास नहीं करते।
उन्होंने कहा कि आरएसएस का आधार मजबूत है। हम किसी का विरोध नहीं करते हैं और कोई हमारा दुश्मन नहीं है, लेकिन हमें समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। मगर आरएसएस के काम और वैश्रि्वक लोकप्रियता को देखते हुए किसी में भी हमें खत्म करने की शक्ति नहीं है।
स्त्रोत:vishawa samvad kendra, raipur

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

‘‘कण कण में भगवान का स्वरूप एवं आत्मा में परमात्मा देखने वाले भारत में मनुष्यभेद दुर्भाग्यपूर्ण है - गंगाविशन

‘‘कण कण में भगवान का स्वरूप एवं आत्मा में परमात्मा देखने वाले भारत में मनुष्यभेद दुर्भाग्यपूर्ण है। वर्तमान समय में समाज को बांटने वाला तत्व जाति नहीं अपितु जातिवाद है।’’ उक्त विचार देश में फैली अस्पर्शता एवं जातिवाद पर प्रहार करते हुए ‘‘प्रज्ञा प्रवाह’’ संगठन के राजस्थान क्षैत्र सह संयोजक श्री गंगाविशन ने व्यक्त किये। श्री गंगाविशन शनिवार को डा. भीमराव अंबेडकर जयंति की पूर्व संध्या पर मारवाड़ विचार मंच द्वारा ‘‘सामाजिक परिवर्तन एवं समसरता’’ विषय पर आयोजित प्रबुद्धजन विचार संगोष्ठि को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर डा. अंबेडकर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए मुख्यवक्ता श्री गंगाविशन ने विभिन्न बाबासाहब के जीवन का सांगोपान अध्ययन करने वाले इतिहासकारों द्वारा लिखी पुस्तकों का उल्लेख करते हुए अपने उदबोधन में कहा कि देश में फैली स्वच्छंदता वादी वामपंथी सोच से प्रेरित इतिहासकारों द्वारा षडयंत्रपूर्वक की गई गलत व्याख्या के कारण बाबासाहब एक वर्ग विशेष तक सीमित हो गये है जबकी बाबासाहब की सोच एवं उनके कार्य सर्वस्पर्शी थे। अस्पर्शता के साथ ही हिंसा एवं अलगाववाद के विरोधी बाबासाहब ने हिंदुधर्म में तत्समय फैली अस्पर्शता विमुख होकर धर्मान्तरण किया लेकिन इस्लाम एवं ईसाई धर्म में फैले अलगाव हिंसक क्रांती एवं कट्टरता से दूर बंधुता, क्षमता एवं ममता को मानने वाले बौद्ध धर्म ग्रहण किया इसके बावजूद पत्नी रमा बाई का अंतिम संस्कार संपूर्ण हिंदु रीति रिवाज से किया।

श्री गंगाविशन ने बाबा साहब के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंधो पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संघ में अस्पर्शता का विषय नहीं उठता क्यों की संघ में व्यक्ति जातिगत पहचान से नहीं अपितु अपने स्वयंसेवकत्व से जाना जाता है। साथ ही बाबा साहब के जीवन को एक शिक्षाविद् के रूप में पढाये जाने से देश के युवा वर्ग को नई दिशा मिल सकती है।

समरोह के अध्यक्ष महंत किशन गिरी महाराज ने अस्पर्शता के कारण हो रहे धर्मान्तरण को गलत बताते हुए हिंदुधर्म में फैली कुरीतियों को मिटाने का आह्मन किया।

इस अवसर पर चिंतक सोहन लाल भाटी, शिक्षाविद् प्रो. देवाराम, बांगड विद्यालय के प्राचार्य नरेन्द्र कुमार राजा, वंदेमातरम विद्यालय के संचालक राजेन्द्र सिंह ने भी विचार व्यक्त किये।
संचालन मारवाड़ विचार मंच के मेघराज बंब एवं निखिल व्यास ने किया।

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

परम पूज्यनीय सरसंघचालक मोहनरावजी भागवत का परमहंस आश्रम, इंदौर में व्याख्यान

  परम पूज्यनीय सरसंघचालक मोहनरावजी भागवत का परमहंस आश्रम, इंदौर  में व्याख्यान
राजस्थान पत्रिका के ११ अप्रैल के अंक में "बेशर्म शीर्ष "  नामक आलेख में लेखक श्री गुलाब कोठारी ने परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत के इंदौर में दिए उध्बोधन को गलत रूप से उद्वत किया है.  परम पूजनीय सरसंघचालक जी के इंदौर में दिए उध्बोधन को आपके अध्ययन हेतु  दिया जा रहा है जिससे स्पष्ट हो जायेगा की  परम पूजनीय सरसंघचालक जी के वक्तव्य का संदर्भ क्या था और लेखक क्या लिख रहे है.

परम श्रद्धेय आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी परमानंद जी महाराज, श्रद्धेय स्वामी ओमानन्दजी महाराज, सामने वाले मंच पर बैठे सभी परम श्रद्धेय मान्यवर उपस्थित नागरिक सज्जन, माता बहनों।
सर्वे भवंतो सुखिन, सर्वे संतु निरायमया।
 ये केवल हमारी प्रार्थना नहीं है यह मानव मात्र की सनातन इच्छा है। मनुष्य यही चाहता है सामान्य मनुष्य भी यही चाहता है।  किसी की बुराई किसी की खराबी सोचने का मनुष्य का स्वभाव नहीं है। तो अगर किसी को पूछा जाए कि दुनिया के बारे में तुम्हारी इच्छा क्या है तो वह कहेगा कि सबका भला हो। किसी प्रकार का अमर्ष किसी के मन में ना रहे। किसी को कोई दुख का भागी न होना पड़े लेकिन ये हो कैसे? इच्छा तो है। इच्छा करने से नहीं होता है। होने की पद्धति क्या है? उसी श्लोक में है सर्वे भद्राणी पश्यंतु, सब एक दूसरे को अच्छी नजर अच्छी दृष्टि से देखें। और सबसे कठिन काम यही है। क्योंकि आखिर मनुष्य को स्वार्थ है। निस्वार्थी मनुष्य को भी अपनी देह की रक्षा का तो स्वार्थ है ही।.. और उस स्वार्थ को लेकर जो व्यापार शुरू हो जाते हैं वो रुकते नहीं चलते रहते हैं। और फिर भाई भाई भी बैरी हो जाते हैं , ये कहानियां चलती रहती हैं। आजकल दुनिया में दुख बढ़े हैं ऐसा बहुत लोग कहते हैं। ऐसा भी कहने वाले बहुत लोग हैं कि दुख बढ़े नहीं पहले से थे। अभी उजागर हो रहे हैं। संचार माध्यम बढ़े हैं जानकारी बहुत जल्दी मिलती है, बहुत ज्यादा मिलती है । सब सही नहीं मिलती लेकिन बहुत सही  मिलती होगी भी पता नहीं। पहले जानकारी भी नहीं मिलती होगी अभी जानकारी मिलती है इसलिए लगता है कि दुख बढ़े हैं।  लेकिन दुख बढ़े है या दुख उजागर हुए हैं, दुख और हैं ये दो शब्द हैं।  उसका निवारण कैसे हो ये चिंता सबको रहती है लेकिन उसके लिए प्रयास करने वाले थोड़े रहते हैं लगता सबको है लेंकिन ये लगता है कि दूसरों का दुख दूर होने के लिए मुझे कष्ट ना करना पड़े.. मुझे दुख ना झेलना पड़े। तो सामान्य मनुष्य ऐसा होता है कि अपना स्वार्थ मार नहीं खाता हो तो फिर वो लोक सेवा करने में लजाता नहीं ऐसे नर राक्षस बहुत कम रहते हैं कि जो अपना जीवन भी बिगाड़े और दूसरों का जीवन भी। सामान्य लोग यहीं सोचते हैं कि अपना घर ठीक रहे और दुनिया भी ठीक रहे। लेकिन दुनिया या तुम्हारा घर इसमे क्या ठीक रहे? ऐसा पूछेंगे तो सामान्य जन मन से अगर सही उत्तर देगा तो कहेगा कि मेरा घर ठीक रहे। इसलिए अपने घर की परवाह न करते हुए दुनिया का दुख दूर करने के लिए प्रयास करने वाले महापुरुषों की बच्चों को हम कहानियां तो जरुर बताते हैं लेकिन बच्चों को वैसा होने नहीं देते।
शिवाजी महाराज की कहानी, विवेकानंद की कहानी। सब कहानियां बताते हैं लेकिन अगर कोई शिवाजी महाराज बनने निकले अपने घर का बच्चा या विवेकानंद होने के लिए चले तो हम उसे रोकते हैं। हम कहते हैं पहले पढ़ाई  ठीक करो बाद में सब। परिवार का दायित्व है ना । तुमहे  इतना बड़ा इंजीनियर बनाया दस लाख रुपया खर्चा हो गया कहां से आएगा। तब हम हिसाब वगैरह बताने लगते हैं। .. हमारे मन में ये नहीं रहता कि वह ऐसा न बने लेकिन वो अपने स्वार्थ की कीमत पर ऐसा न बने.. और दुख का मूल इसी में है। अभी दुनिया में जो सिखाया जाता है  जो जीवन दृष्टि सिखाई जाती है वो ऐसी ही सिखाई जाती है।  सामान्यत: उसके मूल में विचार यही है। भारत में भी सिखाया जाता है दुनिया में भी सिखाया जाता है। २५०-३०० साल पहले भारत में भी यह नहीं सिखाया जाता था २५०-३०० साल पहले दुनिया में भी यह नहीं सिखाया जाता था। ये तीन साल पहले मनुष्य अपने विचारों के अहंकार में विचार करता गया करता गया। जो मैं कहता हूं वहीं सत्य है ऐसा मानता गया। अंहकार इतना बढ़ गया उसका कि उसने कहा कि अगर परमेश्वर भी है तो उसे मेरे पेस्ट्रिब में उपस्थित होने पड़ेगा तभी मानूंगा। ऐसी जब स्थिति आई तो फिर ये विचार निकला कि दुनिया क्या है.. भगवान वगैरह कुछ है नहीं ..आत्मा परमात्मा बेकार की बात है सब कुछ जड़ का खेल है। एक हिक्स बोसन है वो कणों को वस्तुमान प्रधान करता है दो कण आपस में टकराते हैं कुछ मिल जाते हैं कुछ बिछड़  जाते हैं उसमें से ऊर्जा भी उत्पन्न होती है उसमें से पदार्थ भी बनते हैं। सब कुछ ऐसा ही है। और इसका नियम.. नियम कुछ नहीं है इसका कुछ संबंध ही नहीं है. . . एक कण का दूसरे कण से कोई संबंध नहीं है इसलिए सृष्टि में किसी का किसी से संबंध नहीं है। लाखों वर्षों से चली है ये दुनिया तो कहते हैं कि वह संबंध की बात नहीं है स्वार्थ की बात है। ये एक सौदा है. . . थ्योरी ऑफ कांट्रेक्ट ..थ्योरी ऑफ सोशल कान्ट्रेक्ट. . .  पत्नी से पति का ये सौदा तय हुआ है इसको आप लोग विवाह संस्कार कहते  है ..कहते होंगे लेकिन वो एक सौदा है।  कि तुम मेरा घर संभालो मुझे सुख दो मैं तुम्हारे पेट पालन की व्यवस्था ठीक करुंगा और तुमको सुरक्षित रखूंगा।  और इसलिए वो इस पर चलता है जब तक पत्नी ऐसी है तब तक पति कान्ट्रेक्ट पूर्ति के लिए उसको रखता है यदि कान्ट्रेक्ट पूर्ण नहीं कर सकती उसको छोड़ दो। किसी कारण पति कान्ट्रेक्ट पूर्ण नहीं कर सकता तो उसको छोड़ दो । दूसरा.. दूसरा कान्ट्रेक्ट खोज लो .. ऐसे ही चलता है। सब बातों में सौदा है। अपने विनाश के भय के कारण दूसरों की रक्षा करना.. पर्यावरण को शुद्ध रखो नही तो क्या होगा? मनुष्य का विनाश हो जाएगा। मनुष्य का विनाश नहीं होता है तो फिर पर्यावरण.. .. तो करो कुछ भी। इसलिए एक तरफ वृक्षारोपण कार्यक्रम का रहना और दूसरी तरफ फैक्ट्री का मैला नदी में छोडऩा दोनो एक साथ चलता है। .. दोनों एक साथ चलता है। यहां का पर्यावरणवादी कल कहीं जाकर बैठ गया तो वहां वह विकासवादी हो जाता है और वहां विकासवादी नीचे उतरा तो पर्यावरणवादी हो जाता है। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ आंदोलन करते हैं। ये जो चमत्कार दिखते हैं स्रष्टि  में उसका कारण क्या है कि उसकी दृष्टि स्वार्थ की है। सर्वे भद्राणी पश्यंतु क्यों .. ..  क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ ना तो बहुत संहार होगा .. ..  डर के मारे।अब डर ज्यादा चलता नहीं। इतना बड़ा सर्व समर्थ कम्यूनिस्ट रशिया था . .. कितने साल तक उसका डर चला? उसके अपने देश में उसका ७० साल तक चला उसके बाद लोगों ने डरना छोड़ दिया। मरी हुयी  मुर्गी आग पर क्यों डाली जाती है? मरी हुई मुर्गी को डरने का कोई कारण नहीं.. .. मार खा-खाकर जब लोगों का जीवन मृतवत हो जाता है तो वो डरना छोड़ देते हैं। और इसलिए वो जो भय-पूर्वक जो वैभव का दृश्य उत्पन्न किया जाता है वो टिकता नहीं है. .. . और जिसने कभी अन्न का स्वाद नहीं लिया उसको खाने को नहीं मिला तो उसको ज्यादा दुख नहीं होता है। जो पंच पकवानों का भोजन करने का आदि है उसको अगर भूखा एक बार भी रहना पड़ा तो उसको बहुत खलता है। मनुष्य का सुख का स्वाद मिला है इसलिए उसे दुख सहन नहीं  होता। जिनको पहले की स्वतंत्रता की आदत है या पहले के वैभव की आदत है उनको बाद की ये निराशा और  खलती है। ऐसा चलता है।
तीन सौ साल के पहले सारी दुनिया पर जिन विचारों का प्रभाव था उनका मूल भारत में है। .. उनका मूल भारत में है। और भारत के विचार क्या कहते हैं इस मामले में? वो कहते हैं ऐसा नहीं भाई ये दुनिया संबंधों पर आधारित है। अलग नहीं है दिखता अलग है सब .. .. लेकिन सब एक है बल्कि यूं कहो कि एक ही अनेक रूपों में प्रकट हुआ है इसलिए सब एक-दूसरे से जुड़ा है। विश्व में कहीं पर घटित होने वाली छोटी-सी अर्थहीन घटना भी सारे विश्व के व्यापार पर कुछ न कुछ परिणाम करती है। अच्छी बातें हो गई अच्छे परिणाम होंगे, नही हुई तो नहीं होंगे। तुम्हारा विनाश नहीं होगा किसी विनाश हो रहा है वो तुम्हारा ही विनाश है। क्योंकि तुम उसी से जुड़े हो.. .. तुम उसी के अंग हो। मनुष्यों तुम सृष्टि के बाहर नहीं हो तुम सृष्टि के अंग हो। तुमको ये जो विकार वासना का घेरा पड़ा है और तुम जो एक भ्रम में पड़े हो उसके कारण तुमको ध्यान में नहीं आता लेकिन थोड़े जाग जाओ, अनुभव करो। ये अनुभव तुम कर लोगे तो दुख तुमको स्पर्श नहीं करेगा। .. .. और इसलिए सुख के लिए मनुष्य का सारा जीवन है पूरी सृष्टि सुख के लिए भागती है। कभी न समाप्त होने वाला, कभी जिसको आदमी उब नहीं सकता ऐसा शाश्वत चिरंतन सुख प्राप्त करना है को वो करना पड़ेगा इसलिए तुम्हारा जीवन लक्ष्य है सर्वे भद्राणी पश्यंतु ये तुम्हारा अनुभव होना चाहिए कि तुम सबको अपना मानकर देखो। और इसके ग्रंथ बाद में आए लोगों ने जीकर देखा और बताया । ..........
काशी की गंगा रामेश्वरम को ले जाते हुए एकनाथ महाराज को दोपहर की तपती धूप की आग में तड़पता एक गधा मिला .. .. वो मरने वाला था .. लोग जमा हो गए थे .. अरे पानी पिलाओं .. पानी है नहीं महाराज अकाल है इसलिए तो ये तड़प रहा है हम भी प्यासे हैं क्या करें? दया आती है लेकिन देने के लिए पानी नहीं..  कहां से लाए? एकनाथ महाराज ने जो गंगा लाई थी वो गंगा उसके मुंह में उड़ेल दी। लोगों ने कहा .. ..अरे ये गंगा तो रामेश्वरम .. तो वे बोले इसके अंदर कौन है? ये तो सिखाया न हमने घट-घट में राम हैं इसके अंदर भी वही रामेश्वर हैं मैं रामेश्वर पर ही ये गंगा डाल रहा हूं। सबमें एक.. .. .. सबमे स्वंय को देखो अनुभव करो. . .जो एकता का सूत्र है इससे जुड़ो। इसलिए योग का पहला .. .. पतंजलि योग का दूसरा सूत्र योगानुशासनम प्रारंभ होता है ऐसा कहने के बाद योगस्य चित्त वृत्ति विरोध:। ये सब विकार क्रिया प्रतिक्रिया के जाल में अपना चित्त फंसा है वैसी ही विचार करने की आदत बनी है उससे बाहर निकलो पहले। इसको अनुभव करना ये वास्तविक शिक्षा है। शिक्षा क्या है? और शिक्षा किसलिए है?     जैसी दृष्टि बनती है वैसी ही शिक्षा बनती है। अगर दृष्टि यहय है कि सबकुछ अलग है.. .. अलग है तो सबको फिर क्या चाहिए सुख और सब अलग है। इसका मतलब है कि स्पर्धा है कॉम्पिटिशन है। क्योंकि मुझे मिलने से .. .. आप अलग हैं तो आपको अलग से चाहिए। और चाहिए वह बाहर है और बाहर का फिर पुरता नहीं है। आग में घी डालो तो आग भडक़ती है। न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्, धर्मे त्यजेज्जीवितस्यापि हेतो:। नित्यो धर्म: सुखदु:खे त्वनित्ये जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्य:।। तो उसको पाना है तो पाना ही है . .. . अपने ही लिए पाना है ज्यादा से ज्यादा पाना है। बने तो सबकुछ पाना है। सबकुछ पाना है इसलिए दूसरों को ना मिले। दूसरों को इतना ही मिवले जिससे वे जीवित रहकर मेरी सेवा कर सकें। मैं सर्वप्रभु बनंू।  दुनिया में अस्तित्व के लिए संघर्ष है स्र्टगल फॉर एक्जिस्टेंस है। उसमे जीतना है तो बलशाली बनना पड़ेगा सरवाइवल ऑफ दि फिटेस्ट .. .. .. अगर यदि ऐसी दृष्टि है तो हम दूसरों क्या सिखाएंगे? जैसे तैसे कमाओ जैसे-तैसे पाओ.. .. तुम्हारे कमाने में तुम्हारे पाने में किसी के गले पर किसी के पेट पर तुम्हारा पैर पड़ता है चिंता मत करो दौड़ों.. .. दौड़ते रहो । उसमें दुख है उसमें  कष्टता है।  उसका हम अनुभव करते हैं, लेकिन यदि दृष्टि यह है कि वह भी मैं ही हूं  .. .. तो फिर मां कैसे कहती है ? .. घर कोई मीठा पदार्थ बनता है बच्चों को बहुत अच्छा लगता है . .. .. अब खत्म होने को आया तो बच्चों को भान आता है अरे एक ही रसगुल्ला बांकी है तो बड़ा बच्चा कहता है कि अरे माताजी आपका ही भोजन बाकी है आपके लिए कुछ नहीं है तो मां कहती है नहीं तुम खा लो। तुमने खाया तो मेरा पेट भर गया। अब तुमने खाया तो मेरा पेट भर गया ये कहने के लिए अपनी जड़ भौतिकीय दृष्टि से साबित हो जाती है . . ये  तर्क के विरुद्ध है मेरा पेट अलग है भाई .. .. मैने खाया तो मेरा पेट भरा तुम्हारा कैसे भरा? लेकिन भरता है ये अनुभूति है। जिसको हम अपना मानते हैं उसके सुख से अपना सुख बढ़ता है ये अमुभूति है। इसको बढ़ाओ आप जिसको अपना मानते हैं वो अपने को सुख देते हैं। जिसको हम अपना नहीं मानते वो दुखदायी हो सकता है। तुम ऐसा करो तुम सबको अपना मानो तो तुम्हारे लिए कुछ दुखदायी होगा ही नहीं। अपनत्व का दायरा बढ़ाओ लेकिन बढ़ाओ यानी कैसे भाई? इसको अनुभव करना पड़ता है और अनुभव करने के लिए जो एक है उससे जुडऩा पड़ता है। जुडऩे को कहते हैं योग।
 अपने चित्तवृत्ति के विरोधों के द्वारा अभ्यासपूर्वक धीरे-धीरे उससे समझना, जुडऩा .. ..  जुडक़र उसके साथ ही रहने का अभ्यास करना और उसके साथ ही रहना। ऐसा व्यक्ति जो जुडऩे का अभ्यास करता है थोड़ा बहुत जुड़ता है उसको ध्यान में आता है कि सब मेरा ही है सब मैं ही हूं तो फिर कौनसा कर्म कैसे करना? इसमें वो कुशल बन जाता है इसलिए गीता में कहा गया है कि योग कर्मसु कौशलम। वो अपना जीवन भी सुखमय बनाता है लोगों का जीवन भी सुखमय बनाता है। अपने विकास से सारी दुनिया का विकास करता है सारी दुनिया के विकास में अपना विकास देखता है। दुनिया में कोई संघर्ष नहीं रहता दुनिया में कोई तृष्णा नहीं रही । दुनिया के दुख का परिहार हो जाता है। अपने यहां भारत में से जितनी सारी विचारधाराएं निकली हैं उन्होंने सबने यही बताया है शब्द अलग हैं। एकता के सूत्र को क्या मानना उसका वर्णन अलग-अलग है लेकिन बात यही बताई गई है। इसलिए अध्यात्मिक जो तत्व ज्ञान है उसका निवेदन हर एक का अलग-अलग लगता है लेकिन इस बारे में जीवन कैसा जीना इसके बारे में सबका उपदेश लगभग समान है . .. बिलकुल समान है। वो मनुष्य का सुखी जीवन है ऐसा जीवन हमारे देश के नेतृत्व में सारी दुनिया मे साकार किया था।
३००० वर्ष तक ऐसी ही दुनिया चली। बाद में फिर मनुष्य का मन संकुचित हो गया क्या हो गया या सृष्टि का चक्र व क्रम ऐसे ही चलता है उसका भी ये नियम है दिन के बाद रात व रात के बाद दिन ऐसा ही चलता है ऐसा मानो लेकिन हुआ ये कि लोग कट्टर बन गए और ये सारी विचार प्रणाली थी वो धुंधली पड़ गई और एक के बाद एक लोग दुखी होते गए। भारत में हर चार साल बाद दुनिया के प्राचीन परंपरा के लोग इकट्ठा आते हैं। इतिहास ये जो न्यात इतिहास है उसके पहले के .. .. और वो लोग यह कहते हैं कि हमारी जो मान्यता हैं उस परंपरा से चलती आई है  जिनको लेकर हम आज जीने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन जी नहीं पा रहे हैं हम पर अत्याचार है हम पर दबाव है। उन परंपराओं और विचारों को आज भी जब हम देखते हैं तो हमको लगता है कि आज भी एक देश है  जिसमे ंआज भी उन मूल्यों के आधार पर चलने वाला जीवन हम देख सकते हैं और वो देश हिंदुस्तान है। ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान ही हमारा रैन बसेरा है अभी अतिहास की रात्री चल रही है तो हम विश्राम के लिए कहां जाए , आश्रय के लिए कहां जाए तो हम हिंदुस्तान के पास जाए क्योंकि यह अपना है। दुनियाभर में एक समय था सब लोग ऐसा सोचते थे इसको सोचना बंद कर दिया तो सब प्रकार की समस्याएं मेरे जीवन में खड़ी हुई मेरे परिवार के जीवन में खड़ी हुई मेरे देश के जीवन में खड़ी हो गई मेरी दुनिया के जीवन में खड़ी हो गई। उनसे मुक्ति पाना है तो दूसरा उपाय नहीं शुरू यहीं से करना पड़ेगा। शिक्षा बच्चों को देनी है तो इस दृष्टि के साथ देनी पड़ेगी। नहीं तो शिक्षा का प्रयोजन क्या है? आहार निद्रा भय मैथुन च.. पशु के जैसा .. पशु संबंधों को समझता है .. एक मर्यादित मात्रा में समझता है। इसलिए  वो पशु का मानव नहीं बनता कभी भी  या पशु का कोई जड़ या राक्षस ऐसा भी नहीं बनता उसका उन्नयन भी नहीं होता आद्यपाद भी नहीं होता, जैसे भगवान ने जन्म दिया वैसे वो जीता है। एक दो अपवाद छोड़ दिए तो आत्महत्या करने वाले पशु नहीं मिलते। पशु आत्महत्या कभी करते नहीं क्योंकि उनके जीवन में निराशा नहीं है। उनको भूख लगती है तो उनको खाना चाहिए सामने हैं तो खा लेंगे, दूसरे की थाली में है तो दबोच लेंगे, पेट भर गया सामने खाना पड़ा है देखेंगे भी नहीं। दूसरा आकर ले जाएगा उससे झगड़ा नहीं करेंगे.. .. मेरा पेट भर गया है। फिर से भूख लगेगी तो खोजेंगे। बैल घास खाता है कभी आपने सुना कि बैल कल के लिए गट्ठर बांधकर ले गया? ऐसा नहीं होता, ये मानव करता है। ये बुद्धि है, गर्त मे ले जाने वाली बुद्धि हिमालय के शिखर पर खड़ा करने वाली बुद्धि, दोनों मानव के पास है। बुद्धि एक ही है  दृष्टि अलग-अलग हो गई। नर का पशु भी बन सकता है नर का नारायण भी बन सकता है। शिक्षा क्या देनी है? नारायण बनने की शिक्षा देनी है। जीवन का विकास हो तो शिक्षा है ना? दो-तीन बातें इधर-उधर की कर सके, कला कौशल दिखा सके ये तो सर्कस के पशु भी ट्रेनिंग के बाद करते हैं, इसमें कौन सी बड़ी बात है?
 रामकृष्ण परमहंस की कहानी आपने सुनी होगी कि उनके पास एरक सज्जन आए, पूछा उन्होंने कि सुना है कि आप बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति हैं और बहुत दिनों से साधना में रहे हैं। क्या मिला आपको साधना से कौनसी शक्ति है आपके पास? उन्होंने कहा मैं तो बताउंगा ही लेकिन आप भी साधना करने वाले हैं आपको क्या मिला? जानते हैं आप १२ साल साधना करके पानी पर चलने की विद्या मैने कमाई। देखो सामने दत्रिणेश्वर गंगा है तो चले गए गंगा पर चलकर, पानी पर चलकर उधर गए और उधर से चलकर वापस आ गए। बोले देखों ये सिद्धि मैने प्राप्त की, तुमने क्या किया? तो रामकृष्ण परमहंस हंसने लगे। तो वे बोले हसते क्यों हो? महाराज गंगा पर जो इधर से उस पार जाना है ना वो हम नौका वाले को दो पैसे देकर कर लेंगे। आपने १२ साल इसमें गुजारे। चार चमत्कार करना, चार पैसे कमाना चार सत्ता के पद पाना ये तो कोई भी कर लेगा। राकेट में बैठकर चंद्रमा पर केवल आदमी ही जाता है क्या, लाइका नाम की कुत्ती भी जाती है। रशिया भेजता है उसको, जाती है वो। ये भी ठीक है भौतिक विकास का आयाम है उसकी अनदेखी नहीं होनी चाहिए। आखिर मनुष्य को भी पेट भरना है मनुष्य को भी आगे जाना है लेकिन वो अंतिम नहीं है इसके परे जाना है। इसको सीखो, इसको भी सीखो क्योंकि ये भी साधन है मृत्यु पर विजय पाने का। लेकिन आगे भी  सीखो और अमृत प्राप्त करो। अपनी परंपरा का यही आदेश है किसी सिरे पर मत जाओ.. .. एक्सट्रीमिज्म मना है, मध्यम मार्ग धर्म है। अविद्याम मृत्यु तीर्तत्व विद्याम अमृतत्व , दोनों प्राप्त करो। जड़वादी कहते हैं कि यहां रुक जाओ इसके आगे कुछ नहीं है, क्योंकि हमको दिखता है। अरे तुमको दिखता नहीं ऐसी बहुत बातें हैं लेकिन हैं। तुम मानों ना मानो वो हैं। ये कोई नई बात नहीं, अहंकार होता है। शिक्षा के जरिए ही ये अंहकार कम होगा। जीवन को देखने की दृष्टि बदले, स्वयं के लिए जीने की खुदगर्जी मिटे, अपने देश में तो कितनी आवश्यकता है। अपने देश में अगर सब में संवेदना उत्पन्न हो जाए सब में कि ये सब मेरे हैं। बड़े छोटे, दूर के पासे के सब मेरे हैं, इनके सुख में मेरा सुख है, मेरे सुख के लिए ये नहीं है। इनके सुख की व्यवस्था करने के लिए मैं हूं। ये अगर भाव आ जाए, जैसा पहले कभी था और तब जो प्रवासी दुनिया से भारत में आए उन्होनें लिख रखा कि यहां दरवाजे का केवल कुंडा लगाकर सालो साल यात्रा पर निकल जाते हैं घर की रस्सी का टुकड़ा भी कहीं जाता नहीं। जामुन बैर बेचते हैं जैसे रास्ते पर ढ़ेर बनाकर रखते हैं वैसे चद्दर पर रखकर हीरे मोती बेचे जाते हैं और एक हीरा, एख मोती चोरी नहीं जाता। ऐसे यहां के लोग हैं, यहां भिखारी नहीं, चोर नहीं।  ये लिखकर रखा है ये कोई कल्पना की उड़ान नहीं है। ये आत्म अभिमान नहीं है ये यात्रियों ने लिखकर कर रखा है। ऐसा जब था तो हमारा देश ऐसा था आज ऐसा क्यों हैं? आज ऐसा इसलिए है कि आज हमने उस दृष्टि को छोड़ दिया। दृष्टि को छोड़दिया तो वृत्ति बदल गई, वृत्ति बदल गई तो संस्कार बदल गए, संस्कार बदल गए तो फिर बाकी सारी बातें काम नहीं करती। मनुष्य जो स्वयं देखता है स्वयं निर्णय करता है उसका परिणाम होता है। वैसे तो मनुष्य स्वतंत्र है ही। कौन दबा सकता है ? कोई नहीं दबा सकता, जैसा चाहता है वैसा करता है। चाहता ठीक हो तो ठीक है नहीं तो एक ही बात के बारे में अलग विचार करने वाले लोग रहते हैं। शराब बंदी की सभा में गए, देहात में, शराबियों का ही गांव था, वहां बहुत जोर से बताया कि शराब पीना खराब है और अधिक  जोर से उनके ध्यान में आए इसके लिए एक प्रयोग किया। एर गिलास में कीड़े डाल दिए और फिर शराब डाल दी कीड़े तड़प-तड़पकर मर गए। देेखा क्या होता है शराब पीने से? एक शराबी उठकर खड़ा हो गए और कहने लगा कि हम शराब पीएंगे तो हमारे पेट के कीड़े भी ऐसे ही तड़प-तड़पकर मर जाएंगे। तो आप सिखाओ कुछ भी, क्या सीखना है ये तो तय आदमी को करना है। कोई ये सिखाने वाला कॉलेज या स्कूल नहीं है कि चोरी करो, भ्रष्टाचार करो, बलात्कार करो, है क्या कोई? नहीं है, फिर क्यों ये बढ़ता है? सभी स्कूल कॉलेज यही सिखाते हैं कि सदा सत्य बोलो, कानू पर चलो, ये करना खराब है ये करना अच्छा है, सब सिखाते हैं पर मनुष्य वही सीखता है जो उसको सीखना है, मनुष्य वही देखता है जो उसको देखना है। मनुष्य क्या देखे क्या सीखे इसकी उसकी वृत्ति सत्प्रवृत्ति बनाने वाली बात, संस्कारो की, वो इस योग से निकलती है। क्योंकि योग भान देता है कि हम सब एक है जुड़े हैं, युक्त हैं। और इसलिए सारी दुनिया का हित ये मेरा कत्र्तव्य है, सारी दुनिया का दुख मेरी समस्या है। हां मेरा दायरा कम अधिक है। आज इस योग विश्वविद्यालय का लोकार्पण कहा है लोकार्पण यानी क्या ? आप लोग जो समझेंगे वो है लेकिन मैं अर्थ क्या करता हूं उसका, ये योग की विद्या विश्व में फैले इसलिए ये पवित्र कार्य अपने भी हाथ में आया है.. .. अपने भी हाथ में आया है। इस कार्य के लिए जो मदद कर सकते हैं वो करनी चाहिए और उसमें एक बात सब कर सकते हैं वो करनी ही चाहिए। वो ये है कि हम भी अपना आचरण योगयुक्त बनावें। अभी आपको आसन पता नही होंगे ठीक है बाद मे सिखिएगा लेकिन ये तो शुरू ही कर सकते हो ना आप । मेरा जितना चलता है अधिकार, मेरा जितना कत्र्तव्य का दायरा है, मेरे कत्र्तव्य के दायरे में जो-जो कुछ है, उन सबको मैं सुखी रखूंगा, एक छोटा पौधा जो मेरे आंगन में है उसको पानी नियमित मिलेगा, कुत्ता हमारे आंगन में सोता है उसको रोटी रोज मिलेगी, मेरे अहाते में झोपड़ी है उसके बच्चों को विद्यालय में जाने के लिए पर्याप्त अर्थ सहाय नहीं हैं, मैं करुंगा, मैं जुटाउंगा। आपकी संवेदना का और उसके सामथ्र्य का, आपके अधिकार का दायरा जहां तक है, वहां आप सब से जुड़ जाओं, ये मेरे अपने हैं, ये मेरा परिवार है, ये मेरे आत्मीय हैं। ये करना हम शुरू कर देंगे और साथ-साथ अपने इस इंदौर शहर में यह योग विश्वविद्यालय है उसको बढ़ाना है उसके लिए भी जो करना है वो करेंगे। उससे .ये विश्वविद्यालय तो बढ़ेगा ही उसके साथ-साथ आप कल्पना करें कि इंदौर शहर से प्रारंभ होकर सारे देश में वातावरण कैसे बनेगा? योग का उद्देश्य भगवान की इच्छा से संपूर्ण जड़ चेतन सृष्टि में व्यक्ति, समूह, प्रकृति में अर्थ काम के व्यापारों के साथ मोक्ष लेकर जीवन में, ये परिवर्तन लाने का उद्देश्य है। ये भगवान की इच्छा है। वो तो सब पर प्रेम करता है, क्योंकि उसके सब अपने हैं, उसी से निकले हैं और इसलिए वो चाहता है कि सब सुखी रहें। लेकिन उसने एक स्वतंत्रता उसने ले रखी है वो हमने ही ली है, हमने ली है इसलिए हम अलग हुए नहीं तो हम जुड़े रहते। हमने कहा हमारा खेल हमको खेलना है भाई। तो ठीक है तुम खेलो एक मर्यादा में तुम को पूरी स्वतंतत्रता है। मैं दुनिया गेता हूं उसको चलाओ, उसको तुम बिगाड़ो कुछ भी करो। मैं इतना आश्वासन देता हूं कि बिगाड़ोगे तो मैं आकर सब ठीक करुंगा।  यदा यदा ही धर्मस्य गलानी भवति भारत:, अभ्युथानम अधर्मस्य, तदात्मानम सृजानमहं। लेकिन वो बनाना-बिगाडऩा या बनाए रखना ये तुम्हारा काम है तुम करो। तुम करो तुम भोगो। तुम्हारा कर्म है तुम भोगो। प्रेम से बुलाओगे, आर्तता से बुलाओगे मैं दौडूंगा, उद्धार करुंगा तुम्हारा। लेकिन वो पुकार भी तुम्हारी होनी चाहिए। और ये पुकार वैसी होती है, ये पुकार जैसे शब्दों से बाहर निकलती है वैसे संवेदना से बाहर निकलती है, कृति से निकलती है। वो कृति हम प्रारंभ कर दें। इस विश्वविद्यालय को लेकर भी, और अपने संवेदना व अधिकार क्षेत्र को लेकर भी। तो यहां से प्रारंभ होकर पूरे भारत में, प्रत्येक भारतवासी योगयुक्त बनकर नई सुखी, सुंदर दुनिया रचने के लिए सारी दुनिया का पथ प्रदर्शक भारत खड़ा करेगा। योगेश्वर कृष्ण, योग चक्रवर्ती तथागत बुद्ध इनको अवतार इसलिए कहते हैं इसके आधार पर उन्होंने बिगड़ रहा था उसको ठीक बना दिया। आगे हजारों साल तक अच्छा रहेगा। वो आकर अच्छा करके जाते हैं हम लोग फिर बिगाड़ते हैं। अब अच्छा करने की जरुरत है लेकिन अभी तो भगवान ने बताया कि देखो भाई अनेक युग में आता हूं, एक-एक युग में एक-एक शक्ति होती है। कलियुग में संघ की शक्ति है यानी समूह की शक्ति है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं कह रहा हूं। संघ भी एक अलग संगठन है। सारे समाज को संगठित करना। भारत को फिर से दुनिया का पथ प्रदर्शक बनकर खड़ा रहना पड़ेगा, क्योंकि सनातन धर्म का उत्थान हो यह भगवान की इच्छा है, ऐसा योगी अरविंद ने कह रखा है उत्तर पारा के भाषण में। उनकी वाणी सत्य करने का दायित्व हमारा है। आज ये जो लोकार्पण हुआ है, तो ये हमारा दायित्व बढ़ाने वाला लोकार्पण है। हमको प्रॉपर्टी नहीं मिली है, हमको एस्टेट्स नहीं मिली है, हमको क्रेडिट नहीं मिला है , हमको एक रिस्पांसबिलिटी मिली है। जिसको हमको पूर्ण करना है। और वो बाहर इस विश्वविद्यालय को मदद करने जैसा है वैसा अपने जीवन में अपने जीवन में अपने संवेदना और प्रभाव क्षेत्र के अघिकार के दायरे में हम योगयुक्त आचरण करेंगे यह भी है। दोनों दायित्व ठीक से निभाने की बुद्धि व शक्ति मेरे सहित हम सबको प्रभु प्रदान करे इस प्रार्थना और मंगलकामना के साथ मेरे चार शब्द धन्यवाद देता हूं।


 

Margaret Thatcher at the HSS function in UK

Margaret Thatcher at the HSS function in UK

Source: VSK      Date: 4/12/2013 2:23:39 PM
- Shankar Tatwawadi
Margaret ThatcherShrimati Margaret Thatcher, the First and the only Lady Prime Minister of UK (1979 to 1990) passed away in Ritz Hospital, London on Monday, 8th April 2013. Her last rites will be performed at St Paul's Cathedral in London on 17th April at which Queen Elizabeth will be present. The function will be held with State Honor. Very few persons have been thus honored. They include Princess Diana, Queen Mother and the legendary hero Sir Winston Churchill.
Mrs Thatcher was the longest serving Prime Minister of UK for a little short of three terms.She came from the Conservative Party and evoked mixed reactions for some of her policies and actions while she was the Prime Minister. The total crushing of the Trade Unions and the war with Argentina on the issue of control of Falkland Islands were some of her landmark decisions during her regime. She has been both praised and criticised for these actions. She is known as the Iron Lady of UK.
The Hindus and particularly those in UK have a special reason to remember Shrimati Thatcher because of her presence at the Sangh Function in UK in the year 1990 while she was the Prime Minister.
The occasion was the Makar Sankranti Utsav of the Finchley Shakha of Hindu Swayamsevak Sangh in UK. Finchley is the northern part of greater London with a sizeable Indian population and was also the constituency of Margaret Thatcher. Hindu Swayamsevak Sangh (HSS) has a good network of Shakhas in London and Finchley Shakha was regularly meeting in a local school. Shri Ghanshyam Master was the karyavah of the shakha which has a regular attendance of about 20 to 25 swayamsevaks including youngsters and the youth. Shri Ghanshyam Master was a friend of the political representative of Shrimati Thatcher of that area. Ghanshyam ji had told his friend about the Sangh Shakha and its activities and had requested him to bring Shrimati Thatcher to see the shakha. The friend and through him Shrimati Thatcher knew about the Hindu Swayamsevak Sangh as a non political cultural group imparting discipline and character building training. Because of her extremely busy schedule of political and administrative engagements, for quite some time she did not get the opportune time to visit the shakha.
In the year 1989, Hindu Swayamsevak Sangh of UK had planned a very big gathering of the UK Hindus at a place called Milton Keynes, which is located about 70 miles north of London. The gathering was held on 26th and 27th August with almost 100,000 (one lakh) Hindus assembling for two days. About 30 religious leaders representing all the major Hindu religious sampradayas were present at this occasion which was inaguarated by Swami Chinmayanand of the Chinmaya Mission. Swami Satyamitranand ji Giri was the conveyor of this event. The speakers included Muni Susheelkumar, Doctor Swami of the Swaminarayan Sampraday, Shri Morari Bapu, Shri Rameshbhai Ojha, Sardar Samsher Singh. Swami Bhavyanand, Shri Chitrabhanu ji , Shri Maheshanand Giri ji and a host of others. Man Sudarshan ji, the then Sah sar karyavah also addressed the gathering. It was also the centenary year of Poojaneeya Dr Hedgewar.
The event was initiated with the chaupais and Geeta Chanting by Lata Mangeshkar and in the evening Shri Sudheer Phadke, Shri Anoop Jalota and other famous artists entertained the audience.
This was so far the biggest gathering of Hindus outside Bharat and the whole programme was a talk of UK during that time because of the discipline and the satwik nature of the programme. The mayor of Milton Keynes was the chief guest at the event and he had publicly spoken very highly about the function. It is a guess that the good comments about this Hindu gathering might have reached the Government and the Prime Minister because a few Members of the Parliament had also participated in the event.
We have reason to believe that this probably prompted the Prime Minister to visit the Sangh Shakha in her constituency.
It was decided that she would attend the Makar Sankranti Utsav of the Finchley Shakha. It was 19th January 1990.With a short notice of only a few days the arrangements were made. Sanghchalak Man Satyanarayan ji, and Karyavah Shri Dhirubhai Desai along with a few other karyakartas were on the dias. About 50 swayamsevaks and sevikas were present in full Sangh uniform consisting of black trousers, black shoes and sox and a white top.
There was not much of a protocol with the arrival of the prime minister because it was a semi private and non official function. At around six o'clock she arrived and was given a Swagat Pranam. She was escorted at the dias by the adhikaries. Bhagwa flag was hoisted. All did pranam (in UK they have pranam like a simple namaskar) and so the prime minister. The Sangh Prarthana was sung with lead and follow style. The prime Minister also stood in the attention position along with the other swayamsevaks during the whole prarthana time.
The Sanghchalak them welcomed the prime minister and presented her with a bouquet and then requested her to garland the picture (the bust) of Dr Hedgewar and she quickly adhered to the request. Could anyone have thought that a day would be there when the prime minister of UK would garland the bust of Doctor ji who was sentenced in India a few decades back because he was not loyal to the Empire?
A small demonstration of Vyayam Yoga by the swayamsevaks and Yogchap by a group of Sevikas was then presented.
After a chorus by all the sangh swayamsevaks Man Sanghchalak spoke about the importance of the Makar Sankranti among the Hindus and requested the prime minister to give her blessings to the swayamsevaks.
Shrimati Thatcher then spoke for about ten minutes. In the beginning she mentioned as to how lucky we all are who can enjoy this change of season.
She then spoke about the Hindu contribution to the world. She first mentioned about the concept of Zero (counting on her fingers, one to nine and then saying "naught" i.e. zero). She also spoke highly about the Hindu Family system and said that "we christians also have similar family bondage". She congratulated the young swayamsevaks and the sevikas for the good physical demonstration. She made an interesing jovial reference to Yogchap (the wooden musical item). A set of Sangh books was then presented to her along with a piece of Yogchap to practice. She was offered TILGUD and she obliged without any hesitation.
Then there was the lowering of the flag after the conventional Dhwaj Pranam and VIKIR, i.e. the dispersal.
The prime Minister then took a round in the hall meeting informally with the swayamsevaks and also the others present in the hall. She was very casual, informal and in a pleasant mood. The young 6-7 years old grand daughter of Man Bhaskar rao Gadre was among the audience standing along with her mother. The prime minister after approaching her, kneeled down and fondled her lovingly. The function thus came to an end. The adhikaries escorted the dignitaries up to the gate of the school.
It was thus a historical moment for the Hindu Swayamsevak Sangh, UK that a person no less than a stature of the Prime Minister of UK was present at one of the national festivals of the Sangh and gave her blessings to the Hindu youths.
The whole function lasted for about an hour. Fortunately a video of the whole event has been taken and is available at the sangh archives. An audio of the speech of Shrimati Thatcher is also preserved at the archives.
Finchley shakha is regularly held even now and is known as Pratap Shakha. It has however been shifted now to another nearby location.
source: www.vskbharat.com

RSS Strongly reacts as Rajasthan govt asks affidavit from sportsmen stating no link with RSS!

Jaipur/New Delhi April 12, 2012: A sports ceremony organised by Rajasthan's Congress government was turned in to huge controversy when government's Sports Department demanded an affidavit from every awardees stating that they are not involved in RSS !

More than 300 sports persons were given out cash award in Jaipur's SMS Stadium this afternoon for excelling at the state level championships. But a controversy broke out over an affidavit that every awardees was asked to file, stating that they are not involved in RSS and activities of Jamat-e-Islame. Sports persons were taken by surprise when this clause was pointed out to them but Rajasthan Sports Council says they have only followed government guidelines even as BJP accused Gehlot govt of bringing politics into sports.
More than 300 sports persons who have done well at state level championship, Rs 2.26 crore doled out, Rs 1 Lakh to first position holders, Rs 50,000 to second and Rs 20,000 to third position holders! But a row has erupted over the cash prizes. As a formality for claiming the award, every sports person had to give an affidavit to the effect that they will not participate in activities of RSS and Jamat-e-Islame!
RSS Reacted strongly:
Reacting to VSK-Karnataka on the above incident, RSS Akhil Bharatiya Prachar Pramukh Dr Manmohan Vaidya said, "We strongly condemn this vindictive attitude of the Rajasthan Government and the Congress. Unless the said Organisations are banned, Rajasthan government's decision to take up such affidavit from sportspersons is totally unconstitutional, vindictive and politically motivated".
'Congress should not bring its politics and personal vendetta in the field of sports', said Dr ManmohanVaidya.

जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व जमात-ए-इस्लामी संगठन की गतिविघियां भले ही गैरकानूनी ना हों, लेकिन इनमें शामिल होने पर प्रदेश के अव्वल खिलाडियों को भी सरकार से पुरस्कार नहीं मिलेगा। क्रीड़ा परिषद की ओर से शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में पुरस्कृत खिलाडियों को इन संगठनों की गतिविघियों में शामिल नहीं होने का शपथ पत्र लिए जाने की खबर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व भाजयुमो कार्यकर्ताओं को लगी तो उन्होंने सवाई मानसिंह स्टेडियम में करीब ढाई घंटे जोरदार हंगामा किया। प्रदर्शनकारियों ने कुर्सियां फेंकी और तोड़फोड़ करने लगे जिससे समारोह में पुलिस बुलानी पड़ी।
इसलिए विरोध
खिलाडियों को प्रोत्साहन राशि देने के लिए सरकार एक शपथ पत्र लेती है। इसमें आवेदनकर्ता को बताना होता है कि उसका आरएसएस, जमात-ए-इस्लामी से कोई सम्बन्ध नहीं है। विद्यार्थी परिषद और भाजयुमो के कार्यकर्ता इस नियम का ही विरोध कर रहे थे। क्रीड़ा भारती राजस्थान समेत कुछ अन्य संगठनों ने भी विज्ञप्ति जारी कर इस पर विरोध जताया।
1986 से है नियम
क्रीड़ा परिषद के सूत्रों का कहना है कि हमने खेल विभाग के आदेशों की पालना की है और यह शर्त 1986 से लागू है। गौरतलब है कि इस दौरान दो बार भाजपा भी सत्ता में रही है। हालांकि भाजपा सरकार में खेल मंत्री रहे युनूस खान का कहना है कि मेरे कार्यकाल में आरएसएस और जमात ए इस्लामी का नियम वापस ले लिया था।
स्त्रोत:  राजस्थान पत्रिका


साभार: दैनिक भास्कर 


राज्य सरकार  के नियमो का आदेश 




राजस्थान पत्रिका 


शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

‘Bharat ko Jano, Bharat ko Mano, Bharat ke Bano and Bharat ko Banao’ - Dr Manmohan Vaidya

Vishwa Samvad Kendra, Bharat
- Dr Manmohan Vaidya
WHILE travelling all over the country, I come across many youth who are unhappy and dejected with the national environment. They are concerned about the unhealthy developments in all spheres of life and seek immediate and drastic change. Their concerns are genuine and whenever possible they display their anger on the streets on several issues. Soon they realise that instead of becoming agents of change, their protests itself have become a new problem. Majority of them do not know how and where to proceed for change.
There are many reasons for this dilemma. Most important is that they also do not have any immediate role model whom they can imitate. Another reason for confusion is that the change is sought in many directions for the sake of it. There is no clear direction about what the ‘change’ should be and what should be the means to achieve desired change.

Know the character of this country
One who wishes to bring a change should first ascertain whether he/she knows the character of this country. There should be a sense of belongingness about all sections of people in society. We should have pride in our uniqueness while respecting unique quality of others. Swami Vivekananda had emphatically called spirituality as the soul of India. This spirituality has to be understood in the right perspective. It does not mean complete renunciation from materialistic progress. Both, spiritual and material progress are equally important in our culture. Nevertheless, materialistic growth has to be guided by Dharma.
If everyone decides to share what he has in surplus for the society...
Dharma is not religion, but a collection of rules to be followed by all to sustain and to progress together. That is why we never envisaged materialist-consumerism (bhog) driven society, but a society based on promotion of tyaga (sacrifice). Everybody has something in excess, time, money, ability to work, to think or any other resources. If everyone decides to share what he has in surplus for the society, the change will automatically take place. This is possible with understanding and living our philosophy of ‘Sarve Bhavantu Sukhinah’ (May all beings be happy).

Individuals have to change their mindset
Once we understand this nature of our nation, it is necessary for those who are leading for change should first have the desired qualities and observe self-discipline in their life. It is said that the only thing that one can change is ‘self’. Many people blame the system for corrupt practices in society. We should remember that individuals make and implement the system. To change the system individuals have to change their mindset and at the same time, such individuals need to create pressure within the system. 
For instance, we should pledge to be always punctual. Following the rule of law is another prerequisite. Can we pledge not to drive without a valid licence and always follow traffic rules? Can we also take a decision that we shall throw the garbage only in dustbin and not anywhere in the street, park or house? In every field, we have to take a vow. If I am a student, I should vow not to indulge in any unfair practice during exams. If I am a teacher, I should teach only after preparing for the class thoroughly. If I am an industrialist my products, be it a tiny pencil sharpener or a  big automatic machine, should be perfect. If I am a trader the goods that I sell should be perfect in quality and weight. These standards and ethics have to be followed in every walk of life. The system may be faulty and we should raise necessary voices against it, but following unfair and illegal practices is no remedy. There has to be a sense of individual and collective social responsibility. So if you want a change, be part of it.
Real 'dharmikata'
I remember an incident in Baroda (Gujarat), where Sri Ram Katha by Shri Morari Bapu was going on. Lakhs of people coming from nearby places used to assemble to listen to the Katha. There were many auto-rickshaw drivers who ferried people free of cost from bus stand to the venue. This gave an impression to me that the auto-rickshaw drivers are very dharmik. After three months, I saw another scene in the same city. During the strike of city buses, a large group of auto-rickshaw drivers charged the passengers for more than triple. That showed that they were not dharmik in real sense. It happened because of lack of collective responsibility.

The basic samskaras are missing in our education
Once we prepare ourselves for change, then we should set our priorities right. Top priority in the agenda for change should be the education system—both the content and purpose. The modern system produces only marks-seeking and moneymaking machines. That is why only accumulating maximum money has been the ultimate objective of life. The people, found involved in the recently exposed scams involving millions of crore of rupees, were neither uneducated nor they were poor. Still they indulged in malpractices to accumulate wealth. 

It shows that the basic samskaras are missing in our education. Swami Vivekananda said that true education is manifestation of perfection in man, which is already there in him. Education should make the life sarthak (meaningful) and not just safal (successful). Sarthak means returning more to the society than what we have received from it. On the basis of this surplus wealth accumulated every person in the society becomes rich.

I know a doctor, who after completing education from Mumbai, went to a village in Latur, Maharashtra. When his friends came to know about this decision and questioned him by indicating that he was spoiling his career, his reply was that the people from my area do not have even the bus fare to reach Mumbai for treatment. As he was determined to serve the people who needed him the most, he could lead a meaningful life.

The objective of economic progress should be self-reliance
Another important point for change is economy. The objective of economic progress should be self-reliance. Many a times, malls and IT parks are considered as the sign of progress. Information and communication revolution has increased our GDP but the growth is not evenly percolated to the rural masses. Without understanding our needs of self-reliance, allowing multinational corporations to take control of our resources is suicidal.

Blind imitation is not 'the’ solution
Westernisation, in the name of globalisation, is just exploiting the smaller countries and creating divides within nations. We always had trade and cultural relations with many countries of the world, but those relations should be on our terms. Blind imitation of the Western model of development is not a solution for economic underdevelopment. Economic development is interwoven with the environmental concerns. In Indian tradition, ‘live with nature’ is intrinsic mantra of development. For instance, planting ‘tulsi’ at the corridors of our households did not come from any environmental movement. By following small practices from our tradition we can make sustainable use of environmental resources (like water, fossil energy etc.) should become part of our life.

Political and state interference in every sphere of life is neither desirable nor required
Today, political system and political power seems to be dominating all spheres of life. It also needs change. Ravindranath Tagore had stressed the need to have samajnayaks (social leaders) and not rajnayaks (political leaders). Vinoba Bhave also said that more dependence on state power makes the society lazy and poor. It is definitely not part of our ethos. Traditionally state power was responsible for protection from outer invasion, maintenance of law and order and create a conducive atmosphere for everybody to perform ones duties to make good for the society. Political and state interference in every sphere of life is neither desirable nor required. It makes individuals and society dependent on outside forces, instead of becoming self-reliant. 

Our national identity should be supreme
Diversity is natural and to perceive unity in diversity has been our strength. It should not become a weakness. Some politicians for their vested interests are inflicting divisive feelings for vote bank politics, but it is our responsibility not to be misled. These petty individual and group interests can give us temporary benefits but in the end, they divide us based on local identities. Our national identity should be supreme, where all other identities melt down. Then only our national life will thrive in a collective sense.

If the problems are of Indian society then solutions also should be Indian
Planning is another important sector, which needs immediate attention. Most of the economic and infrastructural developments that are taking place today are urban centric. Farmers and villages are continuously neglected. Cultivating food and farming is the real wealth of India.  Therefore, agriculture should get top priority. Our planning should be such that apart from facilitating agriculture, energy, education, water, health and opportunities for employment should be available to all in the villages. There are many sectors supporting agriculture where we can contribute. Food processing, water conservation, solar energy is there to name a few. We cannot define the agenda for change by working only in urban parts of India. The rural India is the place where true India lives. If the problems are of Indian society then solutions also should be Indian. By bringing villages in the mainstream process of development we can make the real change.

Technology with a human face and a holistic approach to development
Technology has become an important factor. Technology with a human face and a holistic approach to development is welcome. We should use it in a positive sense for bringing change in every sector without becoming over dependent on it. All the sectors mentioned above are interconnected. The way and approach of life that provides solutions for these sectors is Ekatma Drishti (Integral Approach) provided by the Indian culture. We just have to look at our history and traditions positively.
It is beyond doubt that the youth have ability to make change possible. Before taking any step forward, they should know the real character of Bharat. For desired change, be part of the change by following the simple steps of Bharat ko Mano (Have Pride about Bharat), Bharat ko Jano (Know Bharat), Bharat ke Bano (Live Bharat) and Bharat ko Banao (Build Bharat)

The writer is Akhil Bharatiya Prachar Pramukh of RSS.

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

मौत मंजूर पर पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे हिंदू परिवार

मौत मंजूर पर पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे हिंदू परिवार


संजय टुटेजा
एसएनबी



मौत मंजूर पर वतन वापस नहीं जाएंगे
नई दिल्ली : कुंभ नहाने आए ये पाकिस्तानी हिंदू बिजवासन स्थित अंबेडकर कालोनी में ठहरे हैं.
पाकिस्तान उनकी जन्मभूमि है लेकिन पाकिस्तान का नाम लेते ही उनके चेहरे पर दहशत छा जाती है और आंखों में खौफ दिखाई देने लगता है.
अपना देश उनके लिए अपमान व जलालत का ऐसा कुआं है जिसमें हर दिन डूबना होता है. कुम्भ मेले में स्नान करने के लिए एक माह का वीजा लेकर भारत आए 480 हिन्दू पाकिस्तानी अब किसी भी हालत में वापस लौटना नहीं चाहते. उन्हें मौत तो मंजूर है लेकिन वतन वापसी नहीं. उनके एक माह की वीजा अवधि 9 अप्रैल को समाप्त हो रही है, ऐसे में देश की राजधानी में उनकी मौजूदगी अब शासन प्रशासन के लिए भी एक संवैधानिक संकट बनती दिखाई दे रही है.
कुंभ नहाने आए ये पाकिस्तानी दिल्ली में ठहरे हुए हैं
पाकिस्तान में लगातार जुल्म व ज्यादती का शिकार हुए इन लोगों ने जहां सरकार से भारत की नागरिकता देने की मांग की है वहीं कुछ हिन्दू संगठन भी अब इनकी पैरवी में आगे आ रहे हैं. पाकिस्तान के सिंध प्रांत स्थित हैदराबाद तथा आस पास के अन्य गांवों में रहने वाले लगभग 200 हिन्दू  परिवार 9 मार्च को राजस्थान की सीमा से मुनाबाद होते हुए एक माह का भारतीय टूरिस्ट वीजा लेकर भारत आये थे.

इन परिवारों में पुरुष, महिलाएं व बच्चे मिलाकर कुल 480 लोग हैं जिन्होंने वीजा तो कुम्भ मेले में स्नान के लिए लिया था लेकिन कुम्भ में जाने के बजाय यह सभी परिवार जोधपुर होते हुए राजधानी दिल्ली आ गये. दिल्ली में ये बिजवासन स्थित अंबेडकर कालोनी निवासी नाहर सिंह के 28 कमरों के एक मकान में ठहरे हुए हैं जहां गांव के लोग व कुछ सामाजिक संगठन इनके खान पान का इंतजाम कर इनकी मदद कर रहे हैं. इन परिवारों में पुरुषों की संख्या कम है जबकि महिलाओं व बच्चों की संख्या अधिक है.

महिला सदस्यों का सम्मान बचाने के चलते अब ये पाकिस्तान लौटना नहीं चाहते. ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने आज  जब इन परिवारों से मुलाकात की तो इनकी जबान पर जहां पाकिस्तान में मिले जुल्म व दरिंदगी के किस्से थे वहीं आंखों में दहशत व खौफ था. उनका कहना था कि देश विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान में उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार हो रहा है और आये दिन न केवल उन पर जुल्म, ज्यादती व हमले होते हैं बल्कि उनकी आंखों के सामने ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत लूट ली जाती है. उन्होंने बताया कि बेटियों की इज्जत बचाने के लिए वह 10 से 12 वर्ष की उम्र में ही उनकी शादियां कर देते हैं.


इन लोगों ने बताया कि वह पिछले कई वर्षों से भारत आने की योजना बना रहे थे, लेकिन उन्हें वीजा नहीं मिल रहा था. इस वर्ष कुम्भ का मेला होने के कारण उन्हें पता चला कि मेले में स्नान के लिए पाकिस्तानी हिन्दुओं को वीजा दिया जाता है, कुम्भ के लिए ही उन्होंने वीजा लिया था. इन पाकिस्तानी हिन्दुओं का नेतृत्व कर रहे पाकिस्तान के हैदराबाद निवासी धर्मवीर बागड़ी ने दक्षिण पश्चिम जिले के उपायुक्त तथा केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर भारतीय नागरिकता देने की मांग की है.
सभी परिवारों को गोद लेने को तैयार नाहर सिंह
उनका कहना है कि पाकिस्तान लौट कर एक बार फिर वह जुल्म व ज्यादती की खाई में गिरना नहीं चाहते, इसलिए उन्हें भारत में शरण दी जानी चाहिए. धर्मवीर के अनुसार उनके साथ आये सभी परिवारों ने अपने स्वाभिमान व अस्मत को बचाने के लिए पाकिस्तान में स्थित अपनी सम्पत्ति व घर आदि का त्याग कर दिया है, भारत में ये परिवार अब केवल शरण चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मानवता के नाते उन्हें यहां शरण दी जानी चाहिए.

अब कुछ हिन्दू संगठन भी उनकी मदद के लिए आगे आये हैं. विश्व हिन्दू परिषद ने पाकिस्तान से आये इन सभी परिवारों को भारतीय नागरिकता देने की मांग की है. परिषद के प्रवक्ता विनोद बंसल का कहना है कि जब विभाजन के बाद भारत आये हिन्दू परिवारों को यहां की नागरिकता मिल सकती है तो फिर इन परिवारों को क्यों नहीं मिल सकती. उन्होंने कहा कि सरकार को इन परिवारों की मदद के लिए सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए.   

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

निकटवर्ती देशों में हिन्दुओं के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठायेगा संघ


मथुरा। भारत के निकटवर्ती देशों में हिन्दुओं के साथ घोर अन्याय के मामलों को अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयं संयुक्त राष्ट्र संघ तक ले जाएगा। 

विश्व में हिन्दुओं की स्थिति पर विचार करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विश्व प्रतिनिधि सभा के तत्वावधान में विभिन्न आनुषांगिक संगठनों से जुड़े 40 देशों के प्रतिनिधि वृंदावन में आयोजित चिंतन शिविर में भाग ले रहे हैं।  संघ के अंतर्राष्ट्रीय सह संयोजक रवि कुमार ने संवाददाताओं को बताया कि प्रथम दिन बुधवार को शिविर के दो सत्रों में विश्व के अन्य देशों में हिन्दुओं की राजनीतिक व सामाजिक स्थिति पर चर्चा की गई। इसमें प्रतिनिधियों ने फिजी, पाकिस्तान, बांग्लादेश व श्रीलंका में हिन्दुओं के साथ हो रहे अत्याचारों व उत्पीड़न पर गहरी चिंता व्यक्त की। 

उन्होंने कहा कि एक ओर जहां विश्व के अनेक देशों में हिन्दू संस्कृति को अपनाया जा रहा है वहीं भारत के निकटवर्ती देश हिन्दुओं के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं और हमारी सरकार हाथ पर हाथ धरे है इसलिए अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयं इन मामलों को संयुक्त राष्ट्र संघ तक ले जाएगा ।

1200 साल पहले के हिंदुत्व के प्रभाव पर मंथन


1200 साल पहले के हिंदुत्व के प्रभाव पर मंथन

Mathura | Last updated on: April 5, 2013 5:30 AM IST

वृंदावन। पांच साल बाद मिले हैं सो अमेरिका से लेकर श्रीलंका तक के अनुभव साझा करने में चेहरे पर वहां का सार भाव उतर आता है। वृंदावन के केशवधाम में हिंदू स्वयंसेवक संघ के चिंतन शिविर के दूसरे दिन पहले दिन की बात ही आगे बढ़ी। 1200 साल पहले हिंदुत्व का प्रभाव अद्भुत था। इसलिए दृढ़ इच्छा शक्ति से वही दृश्य दोहराया जा सकता है। अपने-अपने कार्यक्षेत्र वाले मुल्कों में आ रही दिक्ततों और उससे पार पाने के अनुभव दूसरे दिन विभिन्न देशों से आए प्रतिनिधियों ने साझा किए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने बड़े ध्यान से सबके विचारों को सुना।
सूत्रों ने बताया कि हिंदू संस्कृति को ओर दुनिया के बढ़ते झुकाव के बीच इस पर सकारात्मक कार्य करते हुए कैसे आगे बढ़ाया जाए इस पर विचार विमर्श हुआ। सन 712 ई. के पूर्व हिंदू संस्कृति अत्यंत प्रभावी थी। इसे मूलमंत्र मानकर दुनिया भर में हिंदू संस्कृति के विस्तार की बात भी की गई। चिंतन इस बात पर भी हुआ कि किन देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ के प्रतिनिधियों का कार्य करने में क्या-क्या दिक्कतें आईं। साथ ही प्रतिनिधियों ने यह भी बताया कि कैसे उन्होंने बाधाएं पार करके संस्कृति का प्रसार किया। प्रतिनिधियों ने काफी वक्त तक अपने अपने अनुभव बांटे। इस दौरान संघ के सह सरकार्यवाह सुरेशजी सोनी, होसबले दत्तात्रेय, कन्ननजी, केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य मदनदासजी उपस्थित रहे। शिविर में हिंदुओं की दुनिया के विभिन्न देशों में स्थिति पर चर्चा हुई। विश्व भर में हिंदुओं को संगठित करने को लेकर भी चर्चा की गई।
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आज निकलेगा चिंतन का निष्कर्ष
वृंदावन। हिंदू स्वयंसेवक संघ के चिंतन शिविर में लगातार दो दिनों तक मलेशिया, लंका, जर्मनी, कनाडा आदि देशों से आए प्रतिनिधियों ने अपने-अपने अनुभव सुनाए। अब आज इस चिंतन शिविर का निष्कर्ष निकलेगा। आज संघ के सर कार्यवाह मोहन भागवत अपने विचार रख सकते हैं।
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40 प्रतिनिधियों की रही उपस्थिति
चिंतन शिविर के दूसरे दिन 40 प्रतिनिधियों की उपस्थिति रही। केशवधाम में पहुंचे कई प्रमुख प्रतिनिधि जो आरएसएस के पदाधिकारी थे वह दोपहर बाद फरह के गण शिक्षक अभ्यास वर्ग में शामिल होने के लिए चले गए। इधर विदेशी प्रतिनिधियों और संघ के शीर्ष नेतृत्व का चिंतन होता रहा।
स्त्रोत: http://www.amarujala.com/news/states/uttar-pradesh/mathura/Mathura-57182-2/

सबको पता है, क्या गुजर रही पाक-बांग्लादेश में हिंदुओं पर

सबको पता है, क्या गुजर रही पाक-बांग्लादेश में हिंदुओं पर 10270550

'हिंदू आतंकवाद' के नाम पर बेनकाब हुई भारत सरकार, सामने आया झूठ



'हिंदू आतंकवाद' के नाम पर बेनकाब हुई भारत सरकार, सामने आया झूठ



लखनऊ. केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे बीजेपी और आरएसएस पर भले ही आतंक का ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप लगाते हैं लेकिन भारत सरकार के पास इसे साबित करने के लिए कोई सुबूत नहीं है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार यह भी बताने में विफल रही कि देश में अल्‍पसंख्‍यकों पर अत्याचार की कुल कितनी वारदातें हुई हैं। ये सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना में सामने आया है। आरटीआई कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा को दी गई जानकारी में केंद्र सरकार यह भी बताने में विफल रही कि देश में घुसपैठ की कुल कितनी घटनाएं हुईं और विद्रोह कहां-कहां हुआ।

जनवरी में जयपुर में केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर देश में हिन्दू आतंकवाद फैलाने के लिए आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाने का आरोप मढ़ा था। शिंदे के इस बयान की आरएसएस और बीजेपी ने कड़ी आलोचना की थी और सोनिया गांधी तथा कांग्रेस से माफी मांगने को कहा। बाद में गृह मंत्री ने अपने बयान पर खेद जताते हुए साफ करने की कोशिश की थी कि उनके बयान का गलत अर्थ निकाला गया।

वैसे उस समय केंद्रीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद भी गृह मंत्री के बयान के पक्ष में बोलते दिखे थे। उन्होंने कहा था कि शिंदे ने जो भी कहा, वह तथ्‍यों के आधार पर कहा। ऐसे तत्व हैं जो घृणित गतिविधियों में लिप्त हैं। हालांकि खुर्शीद ने यह भी कहा कि धर्म को आतंकवाद से नहीं जोड़ा जाना चाहिए

आरटीआई कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने इस साल 28 जनवरी को गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा आतंक के ट्रेनिंग कैम्‍प से जुड़े 7 सवालों के जवाब हासिल करने की कोशिश में प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई दाखिल की थी। उन्‍होंने पूछा था कि बयान में गृह मंत्री ने जिन रिकॉर्ड्स के आधार पर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर आतंक के ट्रेनिंग कैम्‍प चलाने और हिंदू आतंकवाद बढ़ाने की बात कही है, उनकी सर्टिफाइड कॉपी जो भारत सरकार के पास है, वह दी जाए। 

भाजपा और आरएसएस द्वारा हिंदू आतंकवाद बढ़ाने के लिए जो ट्रेनिंग कैम्‍प चलाए जा रहे हैं, वे भारत और विश्‍व में कहां-कहां हैं, इसके रिकॉर्ड उपलब्‍ध कराए जाएं। भारत सरकार द्वारा आतंकवाद को धर्म, जाति के आधार पर बांटने संबंधी अगर कोई शासनादेश जारी किया गया है, तो उसकी भी जानकारी दें। 
अल्‍पसंख्‍यकों के साथ देश में कितना अत्‍याचार हुआ है और भारत सरकार उससे निपटने के लिए क्‍या कर रही है, इसकी पूरी जानकारी मामलों के साथ उपलब्‍ध कराई जाए। 

भारत में घुसपैठ और विद्रोह के कितने मामले आए हैं और भारत सरकार ने उनसे निपटने के लिए क्‍या किया इसकी मामलों के हिसाब से पूरी जानकारी। समझौता एक्‍सप्रेस में ब्‍लास्‍ट, मक्‍का मस्जिद और मालेगांव ब्‍लास्‍ट की जांच रिपोर्ट उपलब्‍ध कराई जाए। उर्वशी शर्मा के इन सवालों के जवाब में गृह मंत्रालय ने जवाब भेजा है कि गृह मंत्री ने अपने बयान के बारे में 20 फरवरी को स्‍पष्‍टीकरण दे दिया है कि उन्‍होने जनवरी में जो जयपुर में जो बोला था उसका गलत अर्थ निकाला गया। 

ऐसा समझा गया कि जैसे मैंने आतंकवाद एक धर्म से जोड़ दिया और एक राजनीतिक संगठन को आतंक के शिविर चलाने का दोषी करार दिया। गृह मंत्री ने कहा कि उनकी किसी धर्म से आतंकवाद को जोड़ने की मंशा नहीं थी। यही नहीं मेरे बयान को आतंकवाद से राजनीतिक संगठन को जोड़ने का भी कोई आधार नहीं था। अगर मेरे बयान से किसी को ठेस पहुंची है तो मुझे खेद है। मेरी मंशा ऐसी नहीं थी। 

इसके अलावा गृह मंत्रालय ने अल्‍पसंख्‍यकों के ऊपर अत्‍याचार होने के मामलों और देश में घुसपैठ व विद्रोह की घटनाओं से जुड़े सवाल के जवाब में कहा कि ऐसी जानकारी उनके पास उपलब्‍ध नहीं है। वहीं मालेगांव ब्‍लास्‍ट, मक्‍का मस्जिद और समझौता एक्‍सप्रेस में ब्‍लास्‍ट की जो जांच रिपोर्ट मांगी गई है, उसकी आरटीआई के तहत नहीं आती। 

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित