बुधवार, 29 अप्रैल 2009

"पिंजरे" में रहेगी थार एक्सप्रेस

जोधपुर। भारत व पाकिस्तान के बीच दोस्ती की पटरी पर दौड रही थार एक्सप्रेस अब शहर के उपनगरीय भगत की कोठी स्टेशन पर रवानगी और वापसी के दौरान लोहे के पिंजरे में खडी रहेगी। मुम्बई बम धमाकों के बाद इसकी सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा में नए इंतजाम के लिए गृह मंत्रालय ने कुछ समय पहले रेल मंत्रालय को सजग किया था। रेलवे ने थार के लिए पिंजरा बनाने की कवायद शुरू कर दी है।समझौता एक्सप्रेस जैसी व्यवस्थामुम्बई हमले के बाद गृह मंत्रालय के अफसरों ने भगत की कोठी व मुनाबाव की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की थी। रेलवे सुरक्षा बल, जोधपुर मण्डल के सुरक्षा आयुक्त ने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर समझौता एक्सप्रेस के लिए बनाए गए पिंजरे को देखा था। इन्हेंने ऎसा ही पिंजरा भगत की कोठी स्टेशन पर बनाने के सुझाव मण्डल रेल प्रबंधक को दिया था। पिंजरे का तखमीनामण्डल का इंजीनियरिंग विभाग पिंजरे के लिए तखमीना बना रहा है, जिसके बाद कार्यादेश जारी होंगे। वर्तमान में यहां लोहे का एंगल लगाकर सुरक्षा घेरा बनाया हुआ है, जो अभेद्य नहीं है। यात्रियों की जांच व टे्रन रवानगी के दौरान कोई भी व्यक्ति या वस्तु प्लेटफार्म पर लाई जा सकती है और वहां से निकाली भी जा सकती है। नई व्यवस्था में प्लेटफार्म के एक हिस्से में पिंजरा बनाया जाएगा। थार एक्सप्रेस आगमन और प्रस्थान के समय इसी पिंजरे में खडी रहा करेगी। यात्री केवल प्रवेशद्वार से ही प्लेटफार्म में प्रवेश पा सकेंगे। पिंजरा बनने से स्टेशन पर दूसरी गाडियां का संचालन प्रभावित नहीं होगा। एक्स-रे मशीन की भी कवायदभगत की कोठी में लगेज की जांच के लिए एक्स-रे मशीन नहीं है। यह जांच मुनाबाव में ही होती है। बताया जाता है कि जयपुर स्थित उत्तर-पश्चिम रेलवे मुख्यालय में इसके लिए अब कवायद शुरू हुई है। - प्रवीण धींगरा
स्त्रोत : http://www.patrika.com/news.aspx?id=164753

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

रक्षा में लापरवाही

यदि यही हाल बदस्तूर जारी रहा तो हम युद्ध में पाकिस्तान का भी मुकाबला नहीं कर पाएंगे कुप्रबंधन और घोटालों के कारण कई महत्वपूर्ण सौदे नहीं हो पाए जिससे हमारी रक्षा क्षमता दांव पर लग गई। दलाली और भ्रष्टाचार के संदेह में कई फर्म काली सूची में दर्ज हो गई तथा सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण का काम पिछड़ गया। दलाली के संदेह में या उसकी पुष्टि होने के बाद हथियारों के कई सौदे रद्द किए जा चुके हैंअत्यावश्यक रक्षा उपकरण और हथियारों की खरीद में देरी से हमारी रक्षा तैयारियों पर बुरा असर पड़ रहा है। अगली सरकार को इस अत्यावश्यक मामले को पहली प्राथमिकता देनी होगी। इस बारे में राजग और संप्रग दोनों की ही सरकारों का रिकार्ड खराब रहा है। आधुनिक उपकरणों की कमी के करण हमारी युद्ध क्षमता पर गंभीर असर पड़ा है। यदि हमारे दुश्मनों में से कोई युद्ध छेड़ दे तो हमें बहुत महंगा पड़ सकता है। कुप्रबंधन और घोटालों के कारण कई महत्वपूर्ण सौदे नहीं हो पाए जिससे हमारी रक्षा क्षमता दांव पर लग गई। दलाली और भ्रष्टाचार के संदेह में कई फर्म काली सूची में दर्ज हो गई तथा सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण का काम पिछड़ गया। दलाली के संदेह में या उसकी पुष्टि होने के बाद हथियारों के कई सौदे रद्द किए जा चुके हैं। इनमें उल्लेखनीय हैं- 197 हल्के हेलीकाप्टरों की खरीद का एक अरब डालर का यूरोकाप्टर सौदा, दक्षिण अफ्रीकी डेनेले एंटी मेटीरियल राइफल डील और गोलाबारू द तोपखाना संयंत्र सौदा। इन फैसलों के कारण पुराने उपकरणों की जगह होवित्जर तोप की बेहद जरू री खरीद में देरी हुई। विभिन्न आकलनों के अनुसार अगले दशक में भारतीय सेना को तीन हजार से अधिक 155 मिलीमीटर वाली तोपों की जरू रत होगी। यदि इनकी खरीद का सौदा जल्द नहीं हुआ तो तोपों की बेहद किल्लत हो जाएगी, जिनकी किसी भी युद्ध में अहम भूमिका रहती है।वायुसेना को कम से कम 22 हेलीकाप्टरों की अविलंब जरू रत है, लेकिन इनके मोल-तोल पर बातचीत ठप पड़ी है। इसी तरह थल सेना को हल्के बहुउपयोगी हेलीकाप्टरों की जरू रत है, लेकिन वैल हेलीकाप्टर कंपनी से सौदा तय नहीं हो पाया है, जिसका कारण जटिल प्रक्रिया और हमारे नियमों में 50 प्रतिशत मुआवजे (आफ सैट) का प्रावधान है। बताया जाता है कि अब सरकार की तीनों सेनाओं के लिए हेलीकॉप्टर खरीदने का एकमुश्त सौदा करने की मंशा है। स्पष्ट है कि इससे सौदा और टलेगा। यूरोकॉप्टर सौदा रद्द हुए दो वर्ष तो बीत ही चुके हैं और हम तनिक भी आगे नहीं बढ़ रहे हैं। आधुनिक हेलीकाप्टर बेड़े की कमी बहुत बड़ी कमजोरी है। ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में सैनिकों व रसद की आवाजाही में इनकी अहम भूमिका रहती है। पुराने हेलीकॉप्टर जरू रतों को पूरा नहीं कर पाएंगे और युद्ध भड़क जाए तो हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। वर्तमान चीता और चेतक हेलीकॉप्टरों की जगह वर्ष 2011 तक नए हेलीकॉप्टर को ले लेनी है। हम इनका सौदा नहीं कर सैनिकों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। चीता और चेतक हेलीकॉप्टर पुराने पड़ चुके हैं और ऊंचे पहाड़ी इलाकों में ये ढुलाई में पूर्ण सक्षम नहीं रहेंगे।नए हल्के लड़ाकू विमान 2002 तक ही खरीद लेने का लक्ष्य था। इन्हें अगले दो वर्ष में वर्तमान मिग-21 विमानों की जगह लेनी थी। खरीद में विलंब से हमारी रक्षा तैयारियों पर पुरा असर पड़ रहा है। विमान वाहक जहाजों की खरीद नहीं हो पाने के कारण नौसेना की रक्षा तैयारियां बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। मुख्य रू प से रू स के साथ गोर्शकोव विमान वाहक जहाज सौदा अटकने के कारण यह देर हो रही है। कुछ सूत्रों के अनुसार पुराने रू सी विमान वाहक जहाजों के आधुनिकीकरण की लागत पर विवाद के कारण सौदे में देरी हो रही है और लागत भी बढ़ती जा रही है। इस सौदे से जुड़ी एक अन्य समस्या यह है कि रू स के साथ एटमी पनडुब्बी सौदा अधरझूल में पड़ा है। इससे गहरे समुद्र में हमारी युद्ध क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। कई विशेषज्ञों को पुराने विमान वाहक जहाजों पर इतना भारी भरकम खर्च नागवार लग रहा है। इनकी निगाह कोचीन में प्रस्तावित विमान वाहक जहाज कारखाने पर है, जो तय कार्यक्रम के अनुसार 2014 से विमान वाहक जहाज उपलब्ध करा सकेगा।यह कथा है बड़े हथियार सौदों में विलंब की, लेकिन सैनिक को तो आधुनिक युद्ध लड़ने के लिए समुचित हथियारों की जरू रत है। इस ओर हमें घ्यान देना होगा। हमें रात के अंधेरे में युद्ध के लिए प्रौद्योगिकी प्राप्त करनी है। घुसपैठ का मुकाबला करने के लिए आवागमन के बेहतर साधनों की जरू रत है। भावी युद्धों में अपारंपरिक हल्के उपकरण अधिक उपयोगी होंगे, बेहतर संचार प्रणाली की जरू रत होगी और बेहतर आवजाही के लिए हल्के हेलीकॉप्टरों की जरू रत पड़ेगी। हमें दोनों ही तरह के युद्ध के लिए सन्नद्ध रहना होगा। लेकिन सरकारें इस पहलू की निरंतर अनदेखी करती रही हैं।अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि इसी कारण पाकिस्तान और भारत की सेनाओं में श्रेष्ठता का अंतर घट गया है। लगातार कई सरकारों द्वारा इस ओर समुचित घ्यान नहीं देने के कारण ऎसी खतरनाक स्थिति पैदा हुई है। यदि यही हाल बदस्तूर जारी रहा तो हम न पाकिस्तान का युद्ध में मुकाबला कर पाएंगे और न समय आने पर चीन का, हालांकि मीडिया और देश के नेता भारत के महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होने का हल्ला तो खूब मचाते हैं।आधुनिक हथियारों की कमी के कारण यदि किसी युद्ध में प्रतिकूल नतीजे रहे तो वह अनर्थकारी सिद्ध होंगे। इतनी विशाल सेना रखने का हमारा मकसद ही विफल हो जाएगा। दूसरी ओर हमारे दुश्मन और आक्रामक नीतियां अपनाने लगेंगे।हमारे पास पाकिस्तान की तुलना में बहुत अधिक परमाणु हथियार हैं, लेकिन हम स्वयं घोषित कर चुके हैं कि इनका पहले उपयोग हम नहीं करेंगे। यह किसी आक्रमण के विरूद्ध नुकसानदायक रहेगा। इसकी भरपाई हमें ज्यादा परमाणु हथियार तैयार कर और अधिक आधुनिक हथियार खरीद कर करनी होगी।
अफसर करीम [लेखक भारतीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के सदस्य रहे हैं]
स्त्रोत : http://www.patrika.com/article.aspx?id=10140

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

मेरा देश मेरा वोट - सजग भारत सुरक्षित भारत




पृथ्वी दिवस पर विशेष - अब नहीं संभले तो फिर कब संभलेंगे

ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता खतरा प्रदूषण की मार मौसम का बदलता मिजाज घटते जंगल पेयजल का बढ़ता संकट और विलुप्त होती प्रजातियों जैसी तमाम समस्याओं के बारे में विद्वानों का कहना है कि अब नहीं संभले तो संभालने को कुछ बाकी नहीं बचेगा। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने ग्लोबल वार्मिंग जैसे ज्वलंत और जटिल मुद्दे पर कहा यह समस्या विकसित देशों ने खड़ी की है। ये देश अपने विकास के लिए विश्व को पर्यावरण संबंधी झंझावात में धकेल रहे हैं। अमेरिका जैसे विकसित देश हर साल करीब 20 टन कार्बन का उत्सर्जन करते हैं जो भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों के लिए बहुत अधिक है।उन्होंने कहा कि पर्यावरण असंतुलन के कारण ही मौसम परिवर्तन हो रहा है। गर्मी बारिश और ठंड के असंतुलन का सीधा असर खेती पर पड़ रहा है। गर्मियों में जंगल में लगने वाली आग पर अंकुश लगाने के लिए प्रणाली विकसित किए जाने की सख्त जरूरत है।तीसरी दुनिया के देशों को कटघरे में खड़ा करते हुए सुनीता ने कहा तीसरी दुनिया के देशों का सबसे बड़ा दोष यह है कि वे विकसित देशों पर पृथ्वी पर बढ़ रहे असंतुलन से बचाने के लिए समुचित दबाव बनाने में विफल रहे है। टेरी से जुड़ी अन्नपूर्णा ने कहा पृथ्वी दिवस पर्यावरण दिवस और एड्स दिवस के प्रति लोगों में गंभीरता बढ़ती जा रही है लेकिन कोशिश करनी चाहिए यह सब मात्र उत्सव बनकर न रह जाये बल्कि सही दिशा में सकारात्मक कदम बढ़ाये जाये।उन्होंने कहा विकसित देशों की नकल करके हम आधारभूत ढांचे विकसित कर रहे हैं। लेकिन खामी यह है कि तीसरी दुनिया के देश संभलकर चलने की बजाय गलतियों की पुनरावृत्ति कर रहे हैं।उन्होंने कहा महानगरों में पनपती माल्स संस्कृति देश को किस ओर ले जा रही है। अच्छे बुरे के बारे में सोचने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। जरूरत है अच्छे बुरे को सामने लाने की ताकि आम आदमी पर्यावरण संबंधी खतरों को समझ सके।पर्यावरणविद् सुजाय बनर्जी ने कहा जंगल स्वच्छ हवा पेयजल कृषि भूमि बढ़ती जनसंख्या और विकास सभी कहीं न कहीं आपस में जुड़े हुए हैं। इस सभी के बीच संतुलन बनाये रखने की जरूरत है।उन्होंने कहा रेगिस्तानी और परती जमीन पर भी वृक्ष लगाये जा सकते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियों को हम एक खूबसूरत वसुंधरा विरासत में सौंप सके। यह काम कठिन अवश्य है लेकिन नामुमकिन नहीं है।

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

मरू विचार गोष्टी में बोलते हुए श्री हरिहरानंद जी







मरू विचार मंच की गोष्टी संपन्न

जोधपुर १७ अप्रैल । मरू विचार मंच, जोधपुर के तत्वाधान में "पंथिक आधार पर विभेद की नीति राष्ट्रीय अखंडता के लिए घातक है " विषय पर एक गोष्टी का आयोजन प्रबुद्ध जनों हेतु किया गया। गोष्ठी के मुख्य वक्ता हिंदू जागरण मंच के अखिल भारतीय संयोजक माननीय हरी हरानन्द जी थे। माननीय हरी हरानन्द जी ने गोष्टी में बोलते हुए कहा कि अंग्रेजो ने तुष्टिकरण की नीति अपनाकर ही 62 वर्ष पूर्व अखंड भारत का विभाजन किया था , आज भी नेता सत्ता के लिए यह नीति अपनाए हुए हे ।
मरू विचार मंच की गोष्ठी में बोलते हुए श्री हरिहरानंद जी ने कहा की राजनैतिक दल व् नेता किसी भी कीमत पर सत्ता पाने की दौड़ में राष्ट्रीय सुरक्षा व अखंडता की अनदेखी करते हुए समाज को बाँटने में लगे हुए है ।

श्री हरिहरानंद जी ने आगाह करते हुए कहा की इससे समाज के पंथिक आधार पर विखंडन का खतरा पैदा हो जाएगा . किसी एक वर्ग को पंथिक आधार प्रथ्मिक्ताये देना संविधान के विरुध हे . अत इस पर रोक लगनी चाहिए .

गोष्टी की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यवाह खूब चंद खत्री ने की । गोष्ठी में नगर के गणमान्य प्रबुद्ध नागारिकगानो एवं विभिन्न संग्तानो के प्रमुख यथा - संपर्क विभाग ke श्री अनिल गोयल , प्रचार विभाग के प्रान्त प्रमुख गंगाविशन , सत्यनारायण लाहोटी , रास्ट्रीय शिक्षक संघ के किशन गोपाल जोशी , शंकर मंघनानी , क्रिशन गोपाल वैष्णव , उपेन्द्र सिंह , हेमंत घोष , मांगू सिंह उपस्थित थे । गोष्ठी का सञ्चालन कमल पुंगलिया ने किया ।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

भारतीय संविधान के सूत्रधार बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर की 118वीं जयंती पर हार्दिक श्रधा सुमन



डॉ. भीमराव आम्बेडकर
जन्म : 14 अप्रैल, 1893मृत्यु : 6 दिसम्बर, 1956हम हैं दरियाहमें अपना हुनर मालूम है,जिस तरफ निकल जाएँगे,वहीं रास्ता बना लेंगे।
WD
WDयही उक्ति डॉ. भीमराव आम्बेडकर के जीवन संघर्ष का प्रतीक है। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में उत्सर्ग कर दिया। खासकर भारत के 80 फीसदी दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आम्बेडकर का जीवन संकल्प था।चौदह अप्रैल 1891 को महू में सूबेदार रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में डॉ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म हुआ। उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, प्रचंड संग्रामी स्वभाव का मणिकांचन मेल था। संयोगवश भीमराव सातारा गाँव के एक ब्राह्मण शिक्षक को बेहद पसंद आया। वे अत्याचार और लाँछन की तेज धूप में टुकड़ा भर बादल की तरह भीम के लिए माँ के आँचल की छाँव बन गए। बाबा साहब ने कहा- वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा। समाजवाद के बिना दलित-मेहनती इंसानों की आर्थिक मुक्ति संभव नहीं।डॉ. आम्बेडकर की रणभेरी गूँज उठी, 'समाज को श्रेणीविहीन और वर्णविहीन करना होगा क्योंकि श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया। जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है वे दलित समझे जाते थे।'बाबा साहेब ने संघर्ष का बिगुल बजाकर आह्वान किया, 'छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है।' उन्होंने ने कहा है, 'हिन्दुत्व की गौरव वृद्धि में वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, राम जैसे क्षत्रिय, हर्ष की तरह वैश्य और तुकाराम जैसे शूद्र लोगों ने अपनी साधना का प्रतिफल जोड़ा है। उनका हिन्दुत्व दीवारों में घिरा हुआ नहीं है, बल्कि ग्रहिष्णु, सहिष्णु व चलिष्णु है।'बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने भीमराव आम्बेडकर को मेधावी छात्र के नाते छात्रवृत्ति देकर 1913 में विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेज दिया। अमेरिका में कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का गहन अध्ययन बाबा साहेब ने किया। वहाँ पर भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नईदुनिया के दर्शन किए। डॉ. आम्बेडकर ने अमेरिका में एक सेमिनार में 'भारतीय जाति विभाजन' पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जिसमें उनके व्यक्तित्व की सर्वत्र प्रशंसा हुई।डॉ. आम्बेडकर के अलावा भारतीय संविधान की रचना हेतु कोई अन्य विशेषज्ञ भारत में नहीं था। अतः सर्वसम्मति से डॉ. आम्बेडकर को संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुना गया। 26 नवंबर 1949 को डॉ. आम्बेडकर द्वारा रचित (315 अनुच्छेद का) संविधान पारित किया गया।डॉ. आम्बेडकर का लक्ष्य था- 'सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार की प्रतिष्ठा करना।' डॉ. आम्बेडकर ने गहन-गंभीर आवाज में सावधान किया था, '26 जनवरी 1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी। जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगी। वर्ना जो असमानता के शिकार होंगे, वे इस राजनीतिक गणतंत्र के ढाँचे को उड़ा देंगे।'बाबा साहेब डॉ. आम्बेडकर एक मनीषी, योद्धा, नायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी अद्वितीय प्रतिभा अनुकरणीय है।

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

हिन्दुत्व भारतीय विचारधारा नहीं:प्रणव

सिलचर(असम)। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि हिन्दुत्व भारतीयों की विचारधारा नहीं है और वे सांस्कृतिक एवं धार्मिक विविधता में विश्वास करते हैं।मुखर्जी ने कल रात यहां प्रमुख बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए कहा हिन्दुत्व भारतीयों की विचारधारा नहीं है। अधिकतर लोग सांस्कृतिक एवं धार्मिक विविधता में भरोसा करते हैं। बैठक का आयोजन पार्टी उम्मीदवार संतोष मोहन देव के पक्ष में प्रचार के लिए जिला कांग्रेस कमेटी की ओर से किया गया था। उन्होंने कहा सिर्फ राम मंदिर का निर्माण कोई चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता और लोगों को सभी राजनीतिक पार्टियों के संबंध में उनकी नीतियों के आधार पर फैसला करना चाहिए न कि किसी एक मुद्दे के आधार पर।मुखर्जी ने कहा कि बांग्लादेश की सीमा के पास कुछ लोगों ने शरण ले रखी है और वे उग्रवादी गतिविधियों में लिप्त हैं। मैंने बांग्लादेश सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाया है और उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि जल्दी ही कार्रवाई की जाएगी।
टिपण्णी : हिंदुस्तान के इतिहास की जानकारी कैसे हमारे तथाकथित नेता भूल जाते है , इसका जीता जागता उदहारण श्री प्रणव मुखर्जी का उपरोक्त कथन हे। हिंदू , हिन्दुत्व से ही हिन्दुस्थान (भारत) की पहचान विश्व भर में हे इसमे किसी प्रकार का संदेह नही है न ही होना चाहिये । सपने में भी यह नही सोचा जा सकता हे की हम हमारी एतिहासिक विरासत को भूल जाए। हिंदू तथा हिन्दुत्व के बारे में श्री प्रणव मुखर्जी के इस वक्तव्य का मायने क्या हे ? जरा सोचे ? समय आ गया है साथियों ऐसे कृत्यों से मुकाबला करने का।

खालसा पंथ स्थापना की याद में मनाई जाती है बैसाखी

दशम सिख गुरु गोबिन्दसिंह के बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना करने की याद में मनाया जाने वाला बैसाखी पर्व दरअसल एक लोक त्यौहार है जिसमें फसल कटने का उल्लास व्यापक स्तर पर होता है।
पंजाब और हरियाणा सहित कई क्षेत्रों में बैसाखी मनाने के आध्यात्मिक सहित तमाम कारण हैं। सिख धर्म के विशेषज्ञों के अनुसार पंथ के प्रथम गुरू बाबा नानक देव ने वैशाख माह की आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से काफी प्रशंसा की है। जाडा खत्म होने और गर्मी की शुरूआत के साथ ही लोगों का मन उल्लास से भर जाता है।
राजधानी के ऐतिहासिक शीशगंजगुरुद्वारे के वरिष्ठ ज्ञानी हेम सिंह के अनुसार लोकजीवनमें बैसाखी नई फसल आने का त्यौहार है। नई फसल आने के साथ ही ग्रामीण जीवन में सृमद्धिआ जाती है और लोग जाडों के बाद गर्मियों का मौसम शुरू होने की खुशी में इस त्यौहार को पूरे उल्लास के साथ मनाते हैं। उन्होंने कहा कि बैसाखी के दिन ही दशम गुरु गोबिन्दसिंह ने आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699में खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन उन्होंने खालसा पंथ पर जान न्यौछावर करने के लिए अपने अनुयायियों को आगे आने को कहा था। लेकिन जब गुरु के लिए सिर देने की बात आई तो केवल पांच शिष्य ही सामने आए।
ज्ञानी हेम सिंह के अनुसार इन्हीं पांचों शिष्यों को पंजप्यारा कहा जाता है। गुरु गोबिन्दसिंह ने इन पंजप्यारों को अमृत छका कर अपना शिष्य बनाया था और खालसा पंथ की स्थापना की थी।
ज्ञानी हेम सिंह ने कहा कि खालसा पंथ की स्थापना के दिन गुरु गोबिन्दसिंह ने पहले अपने शिष्यों को अमृत छकाया और फिर स्वयं उनके हाथों से अमृत छका। इसी लिए कहा गया है.. प्रगट्योमर्द अगमणवरियामअकेला, वाह वाह गुरु गोबिन्दआपैगुरु आपैचेला।
उन्होंने कहा कि चूंकि खालसा की स्थापना के दिन गुरु गोबिन्दसिंह ने अपने शिष्यों को अमृत छकाया था, लिहाजा बैसाखी के दिन कुछ लोग उसी घटना की याद में अमृत छकते हैं। वैसे खालसा पंथ में साल के अन्य दिनों भी अमृत छका जाता है कि लेकिन इस मामले में बैसाखी का दिन सबसे विशिष्ट होता है।
गुरुद्वारा रकाबगंज में प्रचारक शिवतेजसिंह ने बताया कि सिख धर्म में बैसाखी का आध्यात्मिक महत्व है। जीवन में हमेशा नेकी और बदी की लडाई चलती रहती है। बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्दसिंह ने अपने शिष्यों को बुराई से दूर करते हुए नेकी की राह पर चलने की शिक्षा दी थी।
उन्होंने कहा कि खालसा पंथ में शामिल होने का आध्यात्मिक अर्थ ही नेकी की राह पर चलते हुए एक नए जीवन की शुरुआत करना है। सिंह ने बताया कि बैसाखी पर्व पर आनंदपुर गुरुद्वारे में विशिष्ट आयोजन किया जाता है। देश के अन्य गुरुद्वारों में इस दिन अखंड पाठ का आयोजन होता है। कडाह प्रसाद वितरित किया जाता है और अमृत छकाया जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दू पचांगके अनुसार गुरु गोबिन्दसिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन चूंकि मकर संक्रांति भी थी, लिहाजा यह बैसाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। उन्होंने कहा कि सूर्य मेष राशि में प्राय: 13या 14अपै्रल को प्रवेश करता है, इसी लिए बैसाखी भी इसी दिन मनाई जाती है।
बैसाखी का भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी विशिष्ट स्थान है। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के समीप 13अपै्रल 1919में हजारों लोग जलियांवालाबाग में एकत्र हुए थे। लोगों की भीड अंगे्रजी शासन के रालेटएक्ट के विरोध में एकत्र हुई थी।
जलियांवालाबाग में जनरल डायर ने निहत्थी भीड पर गोलियां बरसाई जिसमें करीब 1000लोग मारे गए और 2000से अधिक घायल हुए। अंगे्रजी सरकार के इस नृशंस कृत्य का पूरे देश में कडी निंदा की गई और इसने देश के स्वाधीनता आंदोलन को एक नई गति प्रदान कर दी।
जलियांवालाबाग की घटना ने बैसाखी पर्व को एक राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया। आज भी लोग जहां इस पर्व को पारंपरिक श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं वहीं वे जलियावालाबाग कांड में शहीद हुए लोगों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना भी नहीं भूलते।

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

थार रूकेगी, बस शुरू होगी-प्रतिपक्ष के नेता जसवंतसिंह - क्या चाहते है आख़िर जसवंत सिंह ?

बाडमेर।राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता जसवंतसिंह ने कहा कि केन्द्र में राजग की सरकार बनने पर भारत-पाक के बीच चलने वाली थार एक्सप्रेस का बाडमेर में ठहराव सुनिश्चित करवाया जाएगा। बाडमेर में ही वीजा कार्यालय खोला जाएगा। गडरारोड व पाक के मीरपुर खास के बीच बस सेवा तथा जोधपुर व कराची के बीच हवाई सेवा शुरू की जाएगी। सिंह मंगलवार को सीमावर्ती गांव गागरिया, रामसर व गडरारोड में चुनावी सभाओं को सम्बोघित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गडरारोड व मीरपुर खास के बीच पहले बस चला करती थी, उसे फिर से शुरू किया जाएगा। जोधपुर व कराची के बीच हवाई सेवा शुरू होने से अजमेर की दरगाह शरीफ में जियारत के लिए आने वालों को सहूलियत होगी। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या पंद्रह के पश्चिम में आने पर लगा प्रतिबंध हटाया जाएगा ताकि बिछुडे परिवारों का मिलन सुगम हो सके। उन्होंने कहा कि जिले में आपसी सौहार्द मिसाल है। यहां वोट से कहीं बडा रिश्ता जज्बात का है। वे यहां के ऋणी हैं और ऋण चुकाने का प्रयास कर रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री कैलाश मेघवाल ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी और जसवंतसिंह की जोडी इस देश को सही दिशा में ले जाएगी। भारतीय जनता पार्टी में लालकृष्ण आडवाणी के बाद जसवंतसिंह का नम्बर आता है। सभाओं को भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मौलवी ताज मोहम्मद, तेजदान देथा, मौलवी अब्दुल करीम, बाडमेर नगरपालिका अध्यक्ष बलराम प्रजापत, अशरफ अली व कई मौलानाओं ने सम्बोघित किया। इस दौरान भाजपा के प्रदेशमंत्री किशन सोनगरा, आदूराम मेघवाल, प्रेमाराम मेघवाल, नूर अल्लाह बुखारी, मौलवी हयात, सफी मोहम्मद तामलियार, रोशनखां, नजर अली सहित कई लोग उपस्थित थे।
राष्ट्रीय सुरक्षा, अस्मिता हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए । भाजपा के नेता जसवंत सिंह का अपने पुत्र के समर्थन में चुनाव प्रचार में थार एक्सप्रेस के बाड़मेर में ठहराव के बारे में कहना ग़लत हे। राजस्थान पत्रिका के बाड़मेर से प्रकाशित अंक में छपा एक अन्य समाचार "थार न कर दे बेजार ......" को पढने के बाद यह स्पष्ट हो जाता हे की थार एक्सप्रेस का ठहराव किसी भी दृष्टि से उचित नही हे। भारत की सुरक्षा सरहद की सुरक्षा से ही संभव है । सरहद की सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए न की अपनी प्राथमिकतायें ।पाक के नापाक इरादों से हम सभी वाकिफ है फिर क्यों बाड़मेर में थार एक्सप्रेस को रोकने की इच्छा रखते हे? समझ से परे हे। सुरक्षा कारणों तथा संशाधनों के अभावो के चलते थार एक्सप्रेस का बाड़मेर में ठहराव किसी भी द्रष्टि से उचित नही होगा ।
- विश्व संवाद केन्द्र , जोधपुर

"थार" न कर दे बेजार...

बाडमेर।भारत और पाकिस्तान के बीच मुनाबाव-खोखरापार रेलमार्ग पर चल रही थार एक्सप्रेस के बाडमेर में ठहराव के प्रस्ताव ने सुरक्षा व गुप्तचर एजेंसियों को चिंता एवं आशंकाओं की गहरी खाई में धकेल दिया है। रेलवे स्टेशन से लेकर बाह्य सुरक्षा व्यवस्था में चारों ओर पोल ही पोल होने के कारण थार का यहां ठहराव सुरक्षा एजेंसियों को खतरे से खाली नहीं लग रहा है।रेलवे स्टेशन बाडमेर पर सुरक्षा के लिए रेलवे के जीआरपी व आरपीएफ के थाने हैं। पर्याप्त भवन का अभाव और दोनों थानों में पदरिक्तता व संसाधनों का टोटा लम्बे समय से है। स्टेशन पर सरहद पार करने की फिराक में आने वाले बांग्लादेशी भी इन एजेंसियों के हत्थे यदा-कदा चढते हैं तो पाक से आने वाले प्रशिक्षित दहशतगर्द तो इनके लिए भूसे में सुई ढंूढने के समान ही होगा।रेलवे स्टेशन के बाहर राजस्थान पुलिस, सीआईडी (बीआई) समेत अन्य सुरक्षा व गुप्तचर एजेसिंयों की भी यही स्थिति है।सीआईडी (बीआई) लम्बे समय से पदरिक्तता, कामकाज के बढते बोझ एवं संसाधनों की कमी से जूझ रही है। कमोबेश यही स्थिति राज्य पुलिस की भी है। डण्डे के बल पर इतनी बडी जिम्मेदारी सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा देगी, इसमें कोई दो राय नहीं है। हाईटेक क्राइम, साइबर क्राइम से निपटने में प्रशिक्षण, संसाधन व अनुभव की कमी को पुलिस के उच्चाघिकारी कई बार जाहिर कर चुके हैं, लेकिन कवायद के नाम पर धेला भी नहीं सरका है।यह भी है महत्वपूर्ण बाडमेर रेलवे स्टेशन के नजदीक सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वायुसेना व थलसेना के स्टेशन हैं। बीएसएफ के सेक्टर मुख्यालय समेत आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं विभिन्न सरकारी व निजी कंपनियों के बडे कार्यालय हैं। स्टेशन से चंद किलोमीटर के फासले पर भादरेस में अरबों रूपयों की लागत से निर्माणाधीन पॉवर प्लांट्स, गिरल में कार्यरत पॉवर प्लांट्स एवं नागाणा में तेल के भण्डार स्थित हैं। इसी स्टेशन से कुछ दूरी पर विश्व की सबसे लम्बे हीटेड तेल-गैस पाइप लाइन प्रस्तावित है। इसके लिए कार्य शुरू हो चुका है।नियम का क्या होगा !नेशनल हाइवे 15 के पश्चिम दिशा में विदेशी नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध है। इस दायरे में बाडमेर का रेलवे स्टेशन भी आता है। अब सवाल यह है कि यदि नियम में संशोधन अथवा बदलाव नहीं किया तो "थार" ठहराव के दौरान स्टेशन पर उतरने वाले पाक नागरिक उल्लंघन के दोषी होंगे। यदि नियम में संशोधन कर विदेशी नागरिकों को छूट दी गई तो फिर विदेशी नागरिक सरहद तक बेरोकटोक आ जा सकेंगे।
सोर्स : http://www.patrika.com/news.aspx?id=150537

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

श्री प्रभु चावला का इंडिया टुडे में प्रकाशित आलेख

इंडिया टुडे में माननीय मोहन जी भागवत के बारे मैं प्रकाशित आलेख प्रष्ट संख्या १८ पर उपलब्ध है
लिंक को क्लिक कर प्रष्ट संख्या १८ पर जाए ।
http://emagazine।digitaltoday.in/IndiaTodayHindi/08042009/Home.aspx

हिंदुत्व ही राष्ट्र की पहचान है: भागवत

nai दिल्ली [जासं]। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ [आरएसएस] के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति हिंदू है। हिंदू किसी सम्प्रदाय, मजहब और पंथ का नाम नहीं है। हिंदू हिन्दुस्तान की पहचान है। हिंदू राष्ट्र की सर्वागीण उन्नति से भारत शक्तिशाली होगा। उसमें दुनिया का कल्याण होगा, दुनिया सुंदर बनेगी और भारत की संस्कृति ऊपर उठेगी। हिंदुत्व से राष्ट्र की पहचान है। हिंदू संस्कृति में सारे विश्व में शांति स्थापित करने की क्षमता है। विश्व विश्वबंधुत्व की ओर इसी आधार पर बढ़ रहा है। अपनी इस पहचान के आधार पर भारत दुनिया को रास्ता दिखा सकता है।
भागवत ने कहा कि संघ कार्य का विस्तार देश के कोने-कोने में तीव्र गति से हो रहा है। सरसंघचालक ने पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम द्वारा कहे गए शब्दों को दोहराया कि आज का युगधर्म शक्ति की अराधना है। सही संस्कारों पर आधारित लोक शक्ति से ही भारत और विश्व का कल्याण होगा। संघ के स्वयंसेवक इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि 83 वर्ष के इतिहास में 60 वर्ष तक संघ का विरोध होता रहा। लेकिन स्वयंसेवकों ने उस विरोध का मुंहतोड़ जवाब दिया। असल में कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थो की पूर्ति के लिए इसका विरोध करते हैं। कुछ लोग तो जन्म ही सिर्फ विरोध के लिए लिए हैं।
उन्होंने कहा कि भारी विरोध के बावजूद आरएसएस आगे बढ़ रहा है। इसकी विजय निश्चित है। अब तो राष्ट्र की विजय के लिए संघर्ष करना है। भागवत ने कहा कि देश तरक्की तब करता है जब समाज का हर व्यक्ति देश की भलाई में जुटता है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में केवल हिंदू ही रहते हैं, इसे सभी को मानना होगा। साथ ही अपने आचरण से सभी में हिंदुत्व जगाना होगा।
ज्ञातव्य हो कि मोहन भागवत के सरसंघचालक बनने के बाद दिल्ली में उनका सम्मान समारोह आयोजित किया गया था। इस मौके पर संघ के निवर्तमान सरसंघचालक केसी सुदर्शन, सरकार्यवाहक सुरेश जोशी, क्षेत्रीय संघचालक बजरंग लाल गुप्ता, प्रांत संघचालक रमेश प्रकाश, सुरेश सोनी, रामेश्वर, सीताराम व्यास, राम माधव, मधुभाई कुलकर्णी, प्रवीण भाई तोगड़िया, चिरंजीव सिंह, मदन लाल खुराना, विजय गोयल आदि मौजूद थे।

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित