मंगलवार, 28 मार्च 2017

‘भेद रहित समाज का निर्माण होने वाला है’- श्री मोहनराव भागवत

‘भेद रहित समाज का निर्माण होने वाला है’-         श्री मोहनराव भागवत



 
फिर कोई अन्याय करने वाला खड़ा न होना सके— इसका इंतजाम होना चाहिए। यह सब इसलिए करना है ताकि संपूर्ण समाज एक हो सके। आपस में दुर्भावना बढ़ाने वाली भाषा नहीं होनी चाहिए। फिर व्यवस्था में इस दृृष्टि से जो-जो प्रावधान किए जाते हैं, या करने के सुझाव आते हैं, वे प्रावधान लागू हों। इस प्रक्रिया में सबको समाहित करते हुए, किसी की राह देखे बिना, नित्य व्यवहार में इसका प्रकटीकरण शुरू कर दें, तो फिर ये कार्य जल्दी हो जाएगा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के ‘एक मंदिर, एक श्मशान और एक कुआं’ के भेदभाव दूर करने के आह्वान ने सामाजिक समरसता और सौहार्द के लिए एक नई कार्य दिशा दिखाई है। संघ से बाहर के बहुत से लोग भी इस पहल का स्वागत कर रहे हैं। तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस, जिन्होंने इस सुधारवादी विचार को सामाजिक बल प्रदान करने हेतु जो  गति दी थी, उसे आज श्री भागवत आगे ले जा रहे हैं। 

कोयम्बटूर में संपन्न रा.स्व.संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अवसर पर पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर एवं आर्गेनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने उनसे बालासाहब देवरस, समरसता में उनके योगदान और आगे की दिशा में बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :-


 समरसता संघ के स्वभाव में 1925 से ही रही है। आगे चलकर इस आग्रह के पीछे बालासाहब देवरस बड़ी प्रेरणा रहे। उनके योगदान को आप कैसे देखते हैं?

 हिन्दू संगठन समरसता के बिना असंभव ही है और इसलिए संपूर्ण हिन्दू समाज को एक करने के लिए उसकी दृष्टि भेदविहीन होनी, आवश्यक है। इसलिए समरसता की दृष्टि संघ के स्वभाव में ही है। परंतु संघ की शक्ति क्रमश: बढ़ी है। संघ में तो संघ के जन्म से ही यह व्यवहार है, परंतु बालासाहब जब सरसंघचालक बने, उस समय समाज द्वारा संघ से कुछ सुनने और कुछ मात्रा में उस पर विचार करने और प्रयोग करने की स्थिति भी बन रही थी। आज संघ की बात समाज सोचेगा, करेगा इसका परिमाण बहुत बड़ा है, तब उतना बड़ा नहीं था, लेकिन इसका प्रारंभ हो चुका था। संघ का यह समतामूलक, समरसतामूलक दृष्टिकोण समाज के लिए भी आवश्यक है। (यह दृष्टिकोण) समाज में भी जाना चाहिए। इस दृष्टि से सरसंघचालक बनते ही बालासाहब ने विषय रखा कि अब संघ का मुख्य ध्येय सामाजिक समरसता है। इसकी स्पष्टता स्वयंसेवकों में भी हो और समाज में भी हो, इसलिए बालासाहब ने बहुत सोच-समझकर वसंत व्याख्यानमाला का भाषण कुछ महीनों तक तैयारी के बाद दिया। संघ का इसके बारे में विचार, व्यवहार तो पहले से था लेकिन पीछे जो विचार प्रक्रिया थी, वह स्वयंसेवकों को भी स्पष्ट हो गई और समाज में भी एक संदेश गया।

संघ के इस आग्रह का समाज पर कैसा प्रभाव रहा?
 
यह सबको पता है कि संघ हिन्दुत्ववादी है। अब हिन्दू के साथ यह भेदभाव वाली बात चिपकाई जाती है तो फिर संघ का दृष्टिकोण क्या होगा? ऐसा मानने वाले लोग समाज में थे कि निश्चित ही यह जात-पात का समर्थन करने वाला, भेदभाव का समर्थन करने वाला संगठन होगा। तब संघ में इस बारे में, समाज के लिए सार्वजनिक रूप से बहुत चर्चा की गई। इस तरह के प्रश्न भी थे और समाज में उन प्रश्नों का लाभ लेकर संघ की खाल उधेड़ने वाले लोग भी थे। किन्तु जब बालासाहब ने (वसंत व्याख्यामाला, 8 मई, 1974, पूना में) स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह भेदभाव जड़-मूल से खत्म (छङ्मू‘, २३ङ्मू‘ ंल्ल िुं११ी’) हो जाना चाहिए, तो ये सारे प्रश्न एकदम समाप्त हो गए। इससे समाज में अपनी भूमिका रखने के लिए स्वयंसेवकों में एकदम हिम्मत आ गई। व्यवहार तो दिख ही रहा था परंतु इसके पीछे वैचारिक कल्पना कौन सी है, क्या है, इसकी स्पष्टता सामान्य स्वयंसेवकों को नहीं थी। (बालासाहेब का) भाषण है, जिसमें यह सारी बातें हैं कि वैचारिक परिकल्पना क्या है, क्या व्यवहार अपेक्षित है, क्या-क्या होना चाहिए। इससे स्वयंसेवकों के सामने विषय स्पष्ट हो गया। हमारा कहना क्या है, उस बारे में भी उनका आत्मविश्वास बढ़ गया। समाज में शंकाओं पर प्रामाणिक लोगों के लिए विराम लग गया। इस प्रकार एक बहुत बड़ी सुविधा बन गई। सामाजिक समता के संघर्ष में अन्य लोग स्पष्ट भूमिका नहीं ले पाए, लेकिन भेदभाव के शिकार समाज के साथ संघ के स्वयंसेवक स्पष्ट रूप से खड़े रहे, ऐसे अनेक प्रसंग हैं।

  वसंत व्याख्यानमाला में बालासाहब के ऐतिहासिक उद्बोधन के बाद संघ कार्य में कौन-कौन से नए आयाम जुड़े?
 
 समाज के साथ जब कार्य शुरू हुआ तो स्वाभाविक रूप से अनेक बातों में नए आयाम जुड़े। समाज के इस भेदभाव के शिकार वर्ग की समस्याएं क्या हैं? उनका मन क्या है? और जो समाज में एक खाई उत्पन्न हुई है, उसके बारे में, उसे पाटने के उपाय क्या होने चाहिए,  इस बारे में चिंतन शुरू हुआ। उसमें से सामाजिक समरसता मंच जैसी गतिविधि शुरू हुई। विशेषकर जो वर्ग हिन्दू समाज, हिन्दू वगैरह बातों से दूर रहने की मानसिकता में था, उसके साथ संपर्क करना, उसको समझाना-बुझाना, उसको शाखाओं में लाना, इसके प्रयत्न ज्यादा बड़े हो गए। इसके फलस्वरूप ऐसे वर्गों का आत्मसम्मान का जो संघर्ष था, उसमें हिन्दू संगठन करने वालों की धारा का बल भी कहीं-कहीं जुड़ने लगा।

 सामाजिक विभेदों को दूर करने के लिए और उपाय होने चाहिए?
 
एक सदा के लिए चलने वाला उपाय है कि अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, आजीविका के और सामाजिक आचरण में, सभी भेदभावों को नकारते हुए उचित भूमिकाएं लेना। प्रत्यक्ष व्यवहार की बातों के लिए अपनी आदत बदलना। जैसे अनेक भाषाओं में जातिवाचक मुहावरे हैं। भेदभाव का जो युग था, उसमें तथाकथित ऐसी जातियों, जिनको पिछड़ा कहा जाता था, अस्पृश्य कहते थे, ऐसी जातियों को जरा छोटा स्थान देने वाली कहावतें, मुहावरे हैं। हम उनका उपयोग करते हैं, तो उसके पीछे निहित द्वेषभाव चाहे नहीं लाते हैं, परंतु शब्द तो अस्तित्व में है और जो भेदभाव के शिकार हुए हैं, उनके हृदय में घर कर गए हैं। हमको ऐसी आदतें बदलनी पड़ेंगी। मन और विचार सहमत होने के बावजूद शरीर की आदत हो जाती है, वह बदलनी होगी। बोलने की आदत बदलनी पड़ेगी। हमारा व्यवहार पुरानी विषमता को त्यागकर समतायुक्त हुआ कि नहीं -लोग इसकी परीक्षा करेंगे। खासकर वे लोग इसकी परीक्षा करेंगे, जिनको हमको जोड़ना है, जिन अपनों को फिर से अपना बनाना है। सहज व्यवहार में भी अपने आप को परिष्कृत बनाकर प्रयोग करना होगा। उदाहरणार्थ- मान लीजिए, मैं किसी के घर गया। मुझे प्यास नहीं है, पानी आया और मैंने कहा, पानी नहीं पीना है, तो मेरे हृदय में भले ही कुछ न हो, लेकिन वहां शंका खड़ी होती है कि हमारे यहां पानी नहीं पीना चाहते। पूजनीय गुरुजी ने एक बार बहुत अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया। एक स्वयंसेवक ने कहा कि मेरी झोंपड़ी में आएं, चाय पीने के लिए, पास में ही है। वह झोंपड़ी में रहने वाला स्वयंसेवक था। गुरुजी ने कहा, चलो। एक तो ऐसा वर्ग, दूसरा बहुत गरीब। गुरुजी गए तो एक-दो कार्यकर्ता भी साथ थे। आधी झोंपड़ी में यह भी दिख रहा था कि घर की माता चाय बना रही है। बर्तन गंदा जैसा था, छलनी नहीं थी, कपड़े से चाय छानी गई, कपड़ा भी कैसा था, चाय आई तो एक ने कहा, मैं चाय नहीं पीता, दूसरे ने कहा, सुबह से बहुत चाय पी चुका हूं। गुरुजी ने चाय पी ली। बाहर जाने के बाद कार्यकतार्ओं ने पूछा, गुरुजी आपने ऐसी चाय कैसे पी ली? गुरुजी ने कहा, आप लोग उसकी चाय देख रहे थे! मैं तो उसका प्रेम पी रहा था। यही सहजता रखिए। प्रेम-सम्मान समाज की जरूरत है। तो अपने व्यवहार को ऐसा रखना चाहिए जिससे उनकी प्रेम-सम्मान की अपेक्षा की पूर्ति हो। ऐसे व्यवहार की आदत डालनी पड़ेगी। दूसरा, सार्वजनिक जीवन में ऐसे प्रश्न आते हैं। अंतरजातीय विवाह होता है, विरोध भी खड़ा होता है। संघ के स्वयंसेवक उसके समर्थन में खड़े दिखने चाहिए। होना भी चाहिए और सामान्यत: ऐसा है भी। यदि कोई अंतरजातीय विवाहों के संदर्भ में सर्वेक्षण करे तो सबसे ज्यादा स्वयंसेवक ही मिलेंगे। अनौपचारिक चर्चा में कई बार यह अनुभव देखने में आया है। महाराष्ट्र का जो पहला अंतरजातीय विवाह था उससे दो संदेश गए थे। एक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का और दूसरा गुरुजी का। गुरुजी ने संघ के स्वयंसेवकों को ये लिखा था कि जो शारीरिक आकर्षण के चलते नहीं, बल्कि समाज में जो जाति प्रथा है, उसका विरोध दर्ज करने के लिए अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं, मैं उनके इस अंतरजातीय विवाह का समर्थन भी करता हूं और अंतरजातीय विवाह को शुभकामनाएं भी देता हूं।
संघ के स्वयंसेवकों की इस प्रकार की भूमिका सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए। स्वयंसेवक को किसी तात्कालिक भावनाओं में न बहते हुए, अहंकार में, इधर-उधर की चपेट में नहीं आना चाहिए। संघ के स्वयंसेवक समाज की एकात्मता, अखंडता, समरसता को ध्यान में रखकर भूमिका तय करें और उसका निर्भय रूप से निर्वहन करें, इसकी आवश्यकता है।

 समरसता की राह में कठिनाइयां क्या हैं?
 
 सबसे बड़ी जरूरत आदत बदलने की है। दो हजार वर्षों से हम जो कर रहे हैं, उसमें कई बातों में धर्म के नाम पर अधर्म हो रहा है। अपनी पुरानी बातों का मोह यदि छोड़कर नहीं जाता, तो उस मोह को तोड़कर, सत्य के साथ खड़ा होना पड़ेगा। बालासाहब ने सिरे से कह दिया - जड़-मूल से खत्म (छङ्मू‘, २३ङ्मू‘ ंल्ल िुं११ी’)। भेदभाव का विषय सामने ऐसे आता है कि प्राचीन ब्राह्मण व्यवस्था ने मुझ पर अन्याय किया। वे स्वार्थी लोग थे, अहंकारी लोग थे। पहली प्रतिक्रिया में पूर्वजों का बचाव करना स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। वह कह रहा भेदभाव के निषेध की बात, उसके मन में हजारों वर्ष से चिढ़ है। चिढ़ को अनदेखा कीजिए। उसकी समता की बात का समर्थन कीजिए। क्योंकि अगर पूर्वज और परंपरा श्रेष्ठ है तो किसी के कहने से कोई आंच आने वाली नहीं है। अन्याय हो रहा है, तो उसका तो विरोध करना ही पड़ेगा। एक कार्यकर्ता से किसी ने एक बार कार्यक्रम में पूछा कि हिन्दू धर्म में प्रभु श्रीरामचन्द्र को आप बड़ा प्यारा मानते हैं, पर उन्होंने शंबूक वध किया, क्या उसका समर्थन करते हैं? तो हिन्दू के लिए यह बहुत टेढ़ा प्रश्न है। राम का निषेध करना, शंबूक वध का समर्थन करना-ये पेच फंसता है। संघ का जो कार्यकर्ता था उसने कहा कि पहले तो मैं आपका अभिनंदन करता हूं क्योंकि जिन्होंने आपको प्रश्न पूछने के लिए पढ़ा कर भेजा है, तो इस प्रश्न के जरिए उन्होंने भी मान लिया कि राम नाम के कोई हुए भी थे। यह बहुत बड़ी बात है। दूसरी बात है कि राम ने शंबूक वध किया या नहीं किया? क्योंकि अनेक लोग मानते हैं कि यह पूरा प्रकरण ही उत्तरकांड का पक्षिप्त भाग है। लेकिन हम जिस राम की पूजा करते हैं, उस राम ने एक अन्यायी राक्षस का वध किया था। शंबूक वध हमारे लिए राम के आदर का विषय नहीं है और अगर कल ऐसा सिद्ध हुआ कि ऐसा किया था तो हम शंबूक वध के लिए राम का धिक्कार भी करेंगे। ऐसा उसने सीधा उत्तर दिया। एक स्पष्ट भूमिका लेनी चाहिए। इसमें पूर्वजों का अनादर नहीं होता है। सावरकरजी कहते थे कि गलत बातों के लिए पूर्वजों को दोषी मत कहो, लेकिन पूर्वजों की गलत बातों का आदरपूर्वक धिक्कार करो। परंपराओं के बारे में अपनी भूमिका आदरपूर्वक धिक्कार की होनी चाहिए। ऐसा वे कहते थे। ऐसी बातों में कठिनाई आती है, संकोच होता है। ऐसे व्यावहारिक प्रश्नों में यदि स्वार्थ मार खाता हो, तो स्वार्थ छोड़ कर भी, जो उचित है उसका समर्थन करना चाहिए। उसमें कई बार समाज भी विरोध में खड़ा होता है। तो इसको सीखना पड़ता है, इसका आदर करना पड़ता है। अपने मन में आवश्यक साहस बना रहे, इसका प्रयास करना चाहिए। दूसरी बात आती है कि हजारों वर्ष अन्याय के कारण वहां क्रोध है, द्वेष है ये जानते हुए भी अपना प्रेम बनाए रखते हुए धैर्यपूर्वक व्यवहार करना। भड़ास निकलने के बाद वह शांत होगा-इस विश्वास के साथ सोचना पड़ेगा। इसका लाभ लेकर वहां सतत मन कलुषित करने वाले लोग और प्रवृत्तियां रहती हैं। यह षड्यंत्र चल रहा है। इसका ठीक से बंदोबस्त हो जाए। इसलिए अपने स्नेह से वहीं पर इसको समझने वाले लोग खड़े हों। यह बाधा नहीं, व्यवस्था की आवश्यकता है। यह सतत कार्य है।

 आपने कहा कि समरसता सतत चलने वाला काम है। इसमें समाज के विभिन्न घटकों की क्या भूमिका हो सकती है?
  
 एक तो बड़ा अच्छा उदाहरण दीनदयालजी ने रखा है कि गढ्डे में कोई गिरा है और उसको निकालना है तो ऊपर वाले को झुकना होगा। तभी वह हाथ दे सकता है। और नीचे वाले को अपनी ऐड़ियां उठाकर हाथ ऊपर उठाने होंगे। तभी वह उस हाथ को पकड़ सकता है। यह प्रयत्न शुरू हुआ है। ऊपर से झुकने का संकोच हटना चाहिए। ये एक बात है। ऊपर वाले घटक को झुकने का प्रयास रना चाहिए। और नीचे वाला घटक अपनी ऐड़ियां उठा कर हाथ ऊपर कर रहा है, उसमें उसकी जितनी मदद हो सकती हो, वह करनी चाहिए। दूसरा, ठंडे दिमाग से सोचना, बोलना, करना चाहिए। बालासाहब ने उस व्याख्यान में यह बात कही है कि अस्पृश्यता, अन्याय बहुत साफ है। आखिर अपना समाज एक है, यही मान्यता है न। समाज को एक रखना है, न कि अस्पृश्यता के शिकार लोग और अस्पृश्यता चलाने वाले लोग, इस प्रकार के दो वर्गों को हमेशा बनाए रखना है या झगड़ा बनाए रखना है। अगर झगड़ा नहीं बनाए रखना है, सर्वत्र शांति बनाए रखनी है, तो अपने-अपने विषय को भूलने वाले दोनों तरफ के लोगों को गाली-गलौज की भाषा छोड़नी पड़ेगी। इधर के लोगों को समझना पड़ेगा कि यह हजार वर्षों की चिढ़ बोल रही है। बहुत कठोर भाषा सुनने के बाद भी गुस्सा नहीं आने देना, यह इनको करना पड़ेगा। और इधर के लोगों को धीरे-धीरे समाज को गुस्सा आएगा, दूरी बढ़ेगी, ऐसा न करते हुए, यह अंतर कम हो ऐसी भाषा रखनी पड़ेगी। अन्याय का स्पष्ट उल्लेख करते हुए भी हम यह कर सकते हैं। नेतृत्व करने वाले लोगों को भी विवेक होना चाहिए कि यह अन्याय है, इसे समाप्त होना चाहिए, पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। और फिर कोई अन्याय करने वाला खड़ा न होना सके- इसका इंतजाम होना चाहिए। यह सब इसलिए करना है ताकि संपूर्ण समाज एक हो सके। आपस में दुर्भावना बढ़ाने वाली भाषा नहीं होनी चाहिए। फिर व्यवस्था में इस दृष्टि से जो-जो प्रावधान किए जाते हैं, या करने के सुझाव आते हैं, वे प्रावधान लागू हों। इस प्रक्रिया में सबको समाहित करते हुए, किसी की राह देखे बिना, नित्य व्यवहार में इसका प्रकटीकरण शुरू कर दें, तो फिर ये कार्य जल्दी हो जाएगा।

सामाजिक परिवर्तन की इस प्रक्रिया में संघ की भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
 
 संघ की सबसे मूलगामी योजना प्रत्यक्ष व्यवहार के आधार पर सबको जोड़ना है। बाहर की परिस्थिति कुछ भी हो, समाज के सब वर्गों के लोग आपस में मित्र बनें। और जैसे एक वर्ग के लोगों में जो मित्र बनते हैं, फिर उनके परिवार भी मित्र बनते हैं, आना-जाना शुरू होता है, पारिवारिक आत्मीयता का व्यवहार होता है, उसी तरीके से सभी वर्गों के परिवार आपस में मिलते-जुलते रहें। ये जहां-जहां इस प्रकार का व्यवहार होता हो, ‘रोटी व्यवहार-बेटी व्यवहार’ तक में समता लाने का प्रयास होता हो, वहां-वहां अपना हाथ लगे, मदद हो, उसको बल मिले, उसकी विजय हो। यह हमारा कार्य है। अन्यायग्रस्तों का अन्याय जल्द से जल्द दूर हो। अपने व्यवहार के इस उदाहरण का समाज भी अनुकरण करे, इस उद्देश्य से समाज से बातचीत हो। इसलिए सर्वे करो, दुनिया के लोगों को बताओ कि यह ठीक नहीं है। उनको समझाओ। आपका व्यवहार भी लोग देखेंगे। उसके आधार पर समझेंगे तो उपाय होंगे।

 एक कुआं, एक मंदिर, एक श्मशान के आपके आह्वान के बाद आपको समाज के विभिन्न मत संप्रदायों के अग्रणी नेतृत्व से किस प्रकार की प्रतिक्रियाएं मिलीं?
 
 लगभग सारी प्रतिक्रयाएं अनुकूल रही हैं। विचार के तत्व को तो सौ प्रतिशत ने स्वीकार किया, लेकिन जिनको संघ की जानकारी नहीं है, अथवा जिनको विरोध ही करना है, उन्होंने इसके साथ ही जोड़ दिया कि अच्छा, अब जाग गए क्या?  अब तक कहां थे? यह एक प्रकार है। यानी मंदिर, पानी, श्मशान एक हो- इस बात का विरोध नहीं किया, लेकिन मेरे कहने पर शंका का एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया। अथवा यह कहा कि यह केवल बोलने की बातें हैं। विषय का सीधा विरोध कहीं नहीं हुआ। बहुत सारा समाज इससे आनंदित हो गया। संघ के सरसंघचालक ऐसा कहते हैं- इस बात से अन्यायग्रस्त समाज में तो एक आशा का संचार हुआ। इसके पीछे एक वृत्तांत है। मेरे भाषण में यह बात आने के पहले मैं पलामुरू गया था, जो तेलंगाना में है। वहां बहुत बड़ी संख्या ऐसे वर्गों की है, उनमें स्वयंसेवक भी हैं। यहां तथाकथित वाम विचारों के, तथाकथित दलित कहलाने वाले एक नेता मंच पर थे। पहले मेरा भाषण और बाद में उनका भाषण हुआ। मैं तब सरकार्यवाह था। मुझे सामाजिक समरसता का विषय रखना ही था। उसके बाद उन्होंने सार्वजनिक भाषण में कहा कि मैं तो मानता था कि संघ सवर्णों का है। लेकिन यहां तो मैं देख रहा हूं संघ में बहुमत तो हमारा हो गया और वह भी पूर्णकालिक लोगों में। और संघ के ‘जनरल सेक्रेटरी’ का भाषण मैंने सुना है। संघ भी सार्वजनिक तौर पर ऐसा बोलता है, यह मैं पहली बार सुन रहा हूं। उन्होंने प्रश्न भी किया कि वास्तव में संघ की भूमिका है क्या? भाषण होने के बाद हम सब बैठे हुए थे तो मैंने उनको कहा, हमारी यही भूमिका पहले से है, उनको आश्चर्य हुआ। फिर बाद में संवाद भी बढ़ा। कार्यकर्ताओं से और कभी-कभी मेरे साथ भी। इसी तरह की गप-शप में मैंने एक बार कहा कि मंदिर, पानी, श्मशान का विषय समाज में पहले जाना चाहिए, क्योंकि समाज को इस विषय में रोज की अनुभूति होती है। उन्होंने कहा, यह बात आप बोल नहीं सकते। मैंने कहा, मैं बोलने वाला हूं, आप आइए। उस विजयादशमी के उत्सव में वे आए। यह देखने के लिए आए कि मैं यह बोलता हूं या नहीं। इसके बाद उन्होंने अपने लोगों को संबोधित करते हुए बहुत बार यह कहा कि संघ इस प्रकार सोचता है। संघ वालों को दूर मत रखो। इस तरह जो वास्तव में प्रामाणिक नेतृत्व है, जो किसी राजनीति का भाग नहीं है, लेकिन जो पक्का तथाकथित दलित है, उसको यह सुनकर आनंद होगा। संघ के प्रति आशा जगेगी। संघ में विश्वास जगेगा। सारे देश में संदेश जाएगा।

राजनीतिक अनुकूलता इसमें कितनी सहायक होती है?
 
राजनीतिक अनुकूलता इसमें एक ही पहलू में सहायक हो सकती है। जो लोग राजनीति में हैं, वे सोचकर कुछ करें तो सहायक होती है। जहां समता चाहने वाले लोग सत्ता में हैं, वहां अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए संविधान प्रदत्त अधिकारों के साथ जगह-जगह पर जो कानूनी प्रावधान हैं, वे ठीक से लागू हो जाएं। यदि सरकारें इतना ही देख लें कि समय पर उनका धन आवंटित हो रहा है, योग्य व्यक्ति द्वारा कार्य हो रहा है, तो बहुत बड़ा काम हो जाएगा। यानी पचास प्रतिशत से ज्यादा उनकी दुर्व्यवस्था दूर हो सकती है। यह प्रावधान पहले से ही हैं। हम मानते हैं जहां-जहां सरकारों में स्वयंसेवक हैं, वहां उनका ध्यान इस ओर ज्यादा रहे। यह करना उनके हाथ में है, हम इसके लिए आग्रह कर सकते हैं, और कर भी रहे हैं।

समाज समरस हो, एकात्म हो, इसके लिए समाज अपने सामने क्या उदाहरण रख सकता है, उसकी प्रेरणा क्या होगी?
 
 वास्तव में जो प्रेरणा है वह हमारी संस्कृति में है- सत्य, करुणा, शुचिता, तपस्या-धर्म के ये चार पात्र हैं। सत्य क्या है? सत्य हमारी सबसे बड़ी मान्यता है कि सबमें एक ही तत्व है और उसी का आविष्कार सब हैं। कोई छोटा-बड़ा नहीं, कोई अपना-पराया नहीं। सब अपने ही हैं। अब इसका स्वभाविक परिणाम है कि यदि कोई दुर्व्यवस्था हो तो अपनों के लिए करुणा मन में होनी ही चाहिए। धर्म यानी समाज की धारणा इन दो तत्वों से शुरू होती है कि सब मेरे ही अपने हैं, मैं ही सब में हूं, सब मुझमें हैं और इसलिए कोई दुर्व्यवस्था में न रहे, यह देखना मेरा काम है। यह करुणा आत्मीयता से उपजती है। ऐसा व्यक्ति यदि पवित्र है, स्वार्थी नहीं है, विकारों से दूषित नहीं है, लोभ-दंभ, मोह, काम-क्रोध उसमें नहीं है तो वह अपना जीवन लोक कल्याणकारी ही बनाएगा। लोक कल्याणकारी जीवन उसे धर्म की धारणा देगा। इसलिए धर्म यानी समाज की धारणा-इन चार बातों का ध्यान रखना चाहिए। यह हमारी संस्कृति का आदेश है। तथागत ने यही कहा है, भगवद्गीता में यही बात कही गई है। श्रीभगवत्पुराण यही कहता है। शिवपुराण यही कहता है। हमारी जितनी भारतीय विचारधाराएं हैं, उनके दर्शन अलग-अलग हैं। जगत के मूल में जड़ है या चेतन है, इसका चिंतन अलग है। लेकिन प्रत्यक्ष व्यवहार में सभी का आदेश सत्य है। यह केवल लिखित नहीं है। हमारे हजारों संतों ने ऐसा जीवन व्यतीत किया है। यह पुरानी बात नहीं है। आधुनिक संतों ने भी यही कहा है। स्वामी विवेकानंद ने वाराहनगर मठ के काम करने वाले मजदूरों को अपने हाथ से सुग्रास भोजन करवाया। उसका उत्सव मनाया। सबको बताया कि असली नारायण तो यही हैं। पीड़ा कैसी होती है, यह अनुभव करने के लिए गाडगे बाबा किसी बावड़ी पर जाते थे और पानी मांगते थे। किसान कहता था कि अभी मैं आराम कर रहा हूं, पानी पीना हो, तो तुम रस्सी से खींच लो। वह पानी खींचते थे। कई बार उनके पानी पीते समय किसान को याद आती थी कि वह किस जाति के हैं। गाडगे बाबा अपनी जाति जान-बूझकर नहीं बताते थे और मार खाते थे। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने भी ऐसा बहुत बार किया। ऐसे संत आधुनिक समय में भी हमारे यहां हैं। उनका प्रत्यक्ष जीवन है। सब त्याग करके और सब दुख सहन करके भी इस रास्ते पर चलते हैं। यह बहुत बड़ी प्रेरणा है। ये समाज मेरा अपना है। देश मेरा अपना है। यह क्या कम बड़ी प्रेरणा है! मेरे अपने लोग ऐसे ही रहे, तो मेरा नाम किस काम का। क्या रहेगा दुनिया में? मैं भारत से विदेश में जाता हूं, तो भारत में जात-पात का इतना बड़ा भेद है, यह बात मेरी गर्दन झुकाएगी या ऊंची करेगी? समाजभक्ति, देश भक्ति, संस्कृति भक्ति यह बहुत बड़ी बातें हैं।

 भारतीय दर्शन की बात करें, तो विविधता में एकता हिन्दू समाज की शक्ति है, इसमें भेद पैदा करने की होड़ क्यों बढ़ रही है?
 
 भेद पैदा होने का एक कारण तो अपनी आत्मविस्मृति है। मैं आपको अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगूं, तो स्वाभाविक तौर पर, अपनी हित रक्षा के स्वार्थ में मैं आपकी हित रक्षा की अनदेखी करने लगूंगा, कभी-कभी आपके हित का विरोध भी करूंगा। देश पर आक्रमण करने वाला, जो कम से कम उस दिन तो आपका और मेरा दोनों का विरोधी होता है। लेकिन आपस में भेद होने के कारण  मैंने ऐसा नहीं माना, और आपको नीचा दिखाने के लिए मैंने उसको बुला लिया। बाबासाहब आंबेडकर ने भी संविधान सभा की बहस में यही कहा कि किसी ने अपने बल पर भारत को नहीं जीता। हमारे अपने भेदों के कारण वे जीते और गद्दारी के कारण हमने अपना देश उनके हवाले किया। यह हमारे देश के इतिहास का हिस्सा रहा है। इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। यह हमारी आत्मविस्मृति की पराकाष्ठा है। फिर से हम उस ज्ञान का स्मरण करें कि हम एक हैं। इन भेदों को और चौड़ा करने वाली निहित स्वार्थी शक्तियां देश के अंदर और देश के बाहर बहुत हैं। जहां-जहां लोगों को बांट कर लाभ हो सकता है, वहां-वहां लोगों को बांटना और उनके बंटवारे की आग पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकना— ऐसा करने वाले लोग और स्वार्थी शक्तियां रहती हैं। ये लोग उसका लाभ लेते हैं। मैं समझता हूं कि बार-बार ऐसा करने वाले लोगों के बजाए ज्यादा उचित होगा कि हम लोगों का ध्यान इस पर हो कि हमको यह याद रखना है और याद रखके उचित व्यवहार करना है।

आप देश में लगातार प्रवास करते हुए समरसता का विषय रख रहे हैं। आप इसका फलित कैसे देखते हैं?
 
 देखिए, मुझे लगता है कि समरसता पर आग्रह रखें और इन बातों के पीछे अपना व्यवहार सब पहलुओं पर स्थापित करें, वही हम लोग कर रहे हैं। इससे एक दिन यह बात सिरे चढ़ेगी और समाज इसको मानेगा। क्योंकि लोगों को बांटने वाले और उस पर अपना खेल खेलने वाले लोग बहुत थोड़े दिन के हैं। और ऐसे थोड़े लोग हैं जो ये सारी बातें समझकर एकदम आदर्श व्यवहार अपने आप कर रहे हैं। बीच का जो अस्सी प्रतिशत या नब्बे प्रतिशत समाज है, वह हवा के साथ इधर उधर झूलता है किन्तु मूल में मनुष्यता से परिपूर्ण है। इसलिए वह सद्प्रवृत्त है। सद्प्रवृत्ति की राह मिलेगी तो वह उधर जाएगा। सद्प्रवृत्ति की हवा जितनी जल्दी बनाएंगे, उतना जल्दी समाज उसी पर आ जाएगा, जो उचित है, सत्य है और न्यायपूर्ण है। मुझे लगता है कि, जैसा कि बाबासाहब कहते थे भेदरहित, समतायुक्त, शोषणमुक्त राष्ट्र व समाज का सपना लेकर हजार सालों में बहुत उठापटक हुई है। बहुत लोगों ने काम किया है। लेकिन तब से लेकर अब तक चले सारे प्रयासों का सम्मिलित फल आने वाले समय में हमें मिलने वाला है और भेदरहित समाज का निर्माण होने वाला है।

साभार : पाञ्चजन्य http://panchjanya.com//Encyc/2017/3/27/spl-Interview.aspx

मंगलवार, 21 मार्च 2017

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा मे पारित प्रस्ताव एवं प्रतिवेदन तथा केरल में वामपंथियो द्वारा हिंसा के विरोध में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन पर एक रिपोर्ट

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा-2017- में पश्चिम बंगाल में बढ़ती जिहादी गतिविधियाँ पर प्रस्ताव

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा-2017- में  पश्चिम बंगाल में बढ़ती जिहादी गतिविधियाँ  पर प्रस्ताव
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, पश्चिम बंगाल में जिहादी तत्वों के निरन्तर बढ़ रहे हिंसाचार, राज्य सरकार द्वारा मुस्लिम वोट-बैंक की राजनीति के चलते राष्ट्र-विरोधी तत्वों को दिये जा रहे बढ़ावे तथा राज्य में घटती हिन्दू जनसंख्या के प्रति, गहरी चिन्ता व्यक्त करती है। भारत-बांग्लादेश सीमा से मात्र 8 कि.मी. अन्दर स्थित कालियाचक (जिला - मालदा) पुलिस स्टेशन पर राष्ट्रविरोधी जिहादी तत्वों द्वारा आक्रमण कर लूट-पाट करने, आपराधिक रिकार्ड जला देने तथा राज्य में अनेक स्थानों पर सुरक्षा बलों पर हमलों की बढ़ती घटनाएँ , राष्ट्रीय सुरक्षा व कानून व्यवस्था के लिये गंभीर चुनौती बन गई हैं। कट्टरपंथी मौलवियों द्वारा हिंसा को बढ़ावा देने वाले फतवे खुलेआम जारी किए जा रहे हैं। कटवा, कलिग्राम, ईलामबाजार, मेटियाबुरुज (कोलकाता) सहित अनेक स्थानों पर कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दू समाज पर आक्रमण किये जा रहे हैं। कट्टरपंथियों के दबाव में सीमावर्ती क्षेत्रों से हिन्दू समाज बड़ी संख्या में पलायन को विवश हो रहा है। इन्हीं तत्वों द्वारा जाली मुद्रा तथा गोवंश की तस्करी व घुसपैठ को निरन्तर बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्धमान बम विस्फोट की जाँच करते समय एन.आई.ए. द्वारा यह पाया गया कि पूरे राज्य में कई आतंकी समूह (माड्यूल) सक्रिय हैं तथा जिहादी आतंकियों का यह जाल सीमा के दोनों ओर फैला हुआ है।

सुनियोजित तरीके से उपद्रव मचा रहे उन्मादी कट्टरपंथियों को मंत्री पद व अन्य महत्त्वपूर्ण राजनैतिक व शासकीय पद देकर जहाँ प्रोत्साहन दिया जा रहा है, वहीं राज्य सरकार हिन्दू समाज के धार्मिक आयोजनों में बाधाएँ खड़ी कर रही है। पिछले दिनों मोहर्रम के कारण माँ दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन का समय असामान्य रूप से कम कर दिया गया, जिस पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को फटकार लगाई थी।
विगत कुछ वर्षों में बमबारी, हिंसा, आगजनी व महिलाओं से दुराचार आदि की अनेक घटनाएँ हुई हैं। हिन्दू समाज पर हो रहे इन अत्याचारों के सर्वाधिक शिकार अनुसूचित जाति के लोग हैं। जुरानपुर, वैष्णवनगर, खड़गपुर व मल्लारपुर में इन वर्गों के 6 लोगों की हत्या हुई तथा गत दुर्गापूजा के दिनों इसी वर्ग की 17 वर्षीय एक छात्रा पर एसिड बल्ब से हमला किया जो उसकी मृत्यु का कारण बना। धूलागढ़ में 13-14 दिसम्बर 2016 को हिन्दू समाज पर सुनियोजित आक्रमण में आगजनी, लूटपाट व महिलाओं से दुर्व्यवहार की वीभत्स घटनाएँ हुईं। राज्य सरकार द्वारा इन कट्टरपंथी तत्वों को नियन्त्रित करने के स्थान पर इन घटनाओं को पूर्णतया छिपाने का प्रयास किया गया। यह चौंकाने वाला तथ्य है कि जब कुछ निष्पक्ष पत्रकारों ने यह सारा अनाचार प्रकाश में लाने का साहस किया तो उन्हीं के विरुद्ध मुकदमे दर्ज कर दिये गए।

राज्य सरकार एक ओर राष्ट्रभक्ति का संस्कार देने वाले विद्यालयों को बन्द करने की धमकी दे रही है, वहीं दूसरी ओर कुख्यात सिमुलिया मदरसा जैसी हजारों संस्थाओं की ओर से आँख मूँदे हुए है, जिनमें कट्टरपंथी व जिहादी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। कट्टरपंथियों के दबाव में पाठ्यपुस्तकों में मूल बांग्ला शब्दों का विकृतीकरण किया जा रहा है। अनेक स्थानों पर शिक्षण संस्थाओं में परंपरा से चली आ रही सरस्वती पूजा को भी बन्द करने का प्रयास किया जा रहा है। मिलाद-उन-नबी मनाने के नाम पर विद्यालयों का इस्लामीकरण करने आदि के प्रयासों को राज्य सरकार अनदेखा कर रही है। पिछले वर्ष कोलकाता से मात्र 40 कि.मी. दूर 1750 विद्यार्थियों वाले तेहट्ट स्थित उच्च माध्यमिक विद्यालय में विद्यालय-प्रशासन द्वारा मिलाद-उन-नबी मनाने की अनुमति न दिये जाने पर कट्टरपंथियों ने कब्जा करके वहाँ अपना झण्डा फहराया तथा अध्यापिकाओं को कमरे में बन्द कर दिया। परिणामस्वरूप वह विद्यालय एक माह तक बन्द रहा।

भारत विभाजन के समय बंगाल का हिन्दू बहुल क्षेत्र ही पश्चिम बंगाल के रूप में अस्तित्व में आया था। तदुपरान्त पूर्वी पाकिस्तान या वर्तमान बांग्लादेश में निरन्तर अत्याचार व प्रताड़ना के कारण वहाँ के हिन्दू नागरिक भारी संख्या में पश्चिम बंगाल में शरण लेने को बाध्य हुए। यह आश्चर्यजनक है कि बांग्लादेश से विस्थापित होकर बड़ी संख्या में हिन्दुओं के प.बंगाल में आने के उपरान्त भी राज्य की हिन्दू जनसंख्या जो 1951 में 78.45 प्रतिशत थी, वह 2011 की जनगणना के अनुसार घटकर 70.54 प्रतिशत तक आ गई। यह राष्ट्र की एकता व अखण्डता के लिए गंभीर चेतावनी का विषय है।  

    अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा कट्टरपंथी हिंसा तथा राज्य सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति की कड़े शब्दों में निंदा करती है तथा समस्त देशवासियों से यह आवाहन करती है कि जिहादी हिंसा व राज्य सरकार की सांप्रदायिक राजनीति के विरुद्ध जन जागरण करें। देश के जन संचार माध्यमों से भी यह आग्रह है कि इस भीषण परिस्थिति को देश के सामने प्रस्तुत करें। प्रतिनिधि सभा राज्य सरकार का आवाहन करती है कि वोटों की क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठकर वह अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करे। अ.भा.प्र.सभा केन्द्र सरकार से भी यह आग्रह करती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए राज्य के राष्ट्र-विरोधी जिहादी तत्वों के विरुद्ध दृढ़ता से कार्यवाही सुनिश्चित करे।

सोमवार, 20 मार्च 2017

अ.भा. प्रतिनिधि सभा 2017 – सरकार्यवाह जी द्वारा प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन, कार्य स्थिति व विशेष कार्यक्रम

अ.भा. प्रतिनिधि सभा 2017 – सरकार्यवाह जी द्वारा प्रस्तुत वार्षिक प्रतिवेदन, कार्य स्थिति व विशेष कार्यक्रम

पू. सरसंघचालक जी, आदरणीय अखिल भारतीय पदाधिकारी गण, अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य, निमंत्रित एवं विशेष निमंत्रित बंधु, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के समस्त प्रतिनिधि बंधु तथा सामाजिक जीवन में विभिन्न संगठनों के माध्यम से कार्यरत ऐसे निमंत्रित सन्माननीय बहनों तथा भाईयों आप सबका इस अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में स्वागत है.

पूज्य माता अमृतानंदमयी के पावन सान्निध्य से आनंदप्रदायी परिसर में अपनी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रारंभ हो रही है. हम सबके सौभाग्य से पूज्य माताजी का आशिर्वाद भी हमें प्राप्त होने वाला है. ऐसे अत्यंत पवित्र वातावरण में निश्चित ही हम सभी आनंद की अनुभूति करने वाले हैं.

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सुचारु रुप से संपन्न हो, इस दृष्टि से सभी पूज्य स्वामी जी, व्यवस्था में सहयोग कर रहे सभी बंधुओं के प्रति हम कृतज्ञता व्यक्त करते है.

कार्यस्थिति –
2016-17 में संपन्न संघ शिक्षा वर्ग तथा प्राथमिक शिक्षा वर्ग

कुल संघ शिक्षा वर्ग – 93

वर्ष       स्थान   संख्या
प्रथम    10204  17500
द्वितीय  3050    4130
तृतीय   867      973

वर्ष                   स्थान   संख्या
प्रथम (विशेष)    1309    1891
द्वितीय (विशेष) 1127    1527
प्राथमिक शिक्षा वर्ग – 2015-16  2016-17
कुल वर्ग                       961                  1059
शाखा प्रतिनिधित्व        32233              29127
संख्या                          112520             104256

शाखावृत्त – अभी तक प्राप्त वृत्त के अनुसार वर्तमान में देशभर में 36729 स्थानों पर 57185 शाखायें चल रही है. स्थान, साप्ताहिक मिलन तथा संघ मंडली मिलाकर कुल 59216 स्थानों पर कार्य चल रहा है.
वर्ष                   स्थान               शाखा               मिलन              मंडली
2017                36729              57185              14896              7594
2016                36867              56859              13784              8226

हिन्दू जागरण के विशेष कार्यक्रम –
गुजरात, मालवा, मध्यभारत इन प्रांतों में अत्यंत प्रभावी सम्मेलनों का आयोजन हुआ. जिसमें पू. सरसंघचालक जी,  देवगिरी प्रांत में संपन्न महिला ग्राम विकास संगम में ग्राम विकास के अखिल भारतीय प्रमुख डॉ. दिनेश जी उपस्थित रहे.
(1). महिला ग्राम विकास संगम, देवगिरी – ग्राम विकास कार्य में महिलाओं की सहभागिता बढ़े इस दृष्टि से ‘‘महिला ग्राम विकास संगम’’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में 95 ग्रामों से 641 महिलायें और 170 पुरुष उपस्थित रहे. कार्यक्रम में वनवासी कल्याण आश्रम की ठमाताई पवार, नागपुर से ‘निरामय’ संस्था की डॉ. उर्मिलाताई क्षीरसागर, प्राकृतिक कृषि तज्ञ शुभदाताई चांदगुडे, पर्यावरण विशेषज्ञ पेठे आदि बहनों का समयोचित मार्गदर्शन मिला. व्यसनमुक्ति, स्वयं सहायता समूह आदि विषयों पर भी चर्चा सत्र हुए. अखिल भारतीय ग्राम विकास प्रमुख डॉ. दिनेश जी का भी मार्गदर्शन सभी को प्राप्त हुआ.

(2). विराट हिन्दू सम्मेलन, वासदा, गुजरात – प्रांत में जनजाति क्षेत्र में कार्य को गति देने की दृष्टि से 4 स्थानों पर सम्मेलनों का आयोजन किया गया. नवसारी विभाग में ‘‘भारत सेवाश्रम संघ’’ की शतवार्षिकी समापन के निमित्त वलसाड जिले के वासदा गाँव में विराट हिन्दू सम्मेलन का आयोजन किया गया.
विभाग के सभी तहसीलों के कुल 1145 ग्रामों से 70946 महिला-पुरुष इस सम्मेलन में उपस्थित रहे. पूर्व तैयारी के नाते 23 स्थानों पर अभ्यास वर्ग, 4 स्थानों पर सामाजिक सद्भाव बैठकें और प्रांत के अन्य स्थानों से 432 बहनों द्वारा 237 ग्रामों के 23835 परिवारों से संपर्क किया गया. परिणामतः सम्मेलन सफल रहा.

(3). ग्राम संगम – पू. सरसंघचालक जी की उपस्थिति में मालवा प्रांत के उज्जैन शहर में ‘‘ग्राम संगम’’ कार्यक्रम का आयोजन किया था. कार्यक्रम की पूर्व तैयारी हेतु जिन ग्रामों में जैविक कृषि, गौपालन, समरसता, स्वच्छता एवम् व्यसनमुक्ति इन पाँच विषयों में कार्य प्रारंभ हुआ है, ऐसे ग्रामों का चयन करना निश्चित किया. प्रांत में 609 ग्रामों का चयन किया. इन ग्रामों में कार्यशालायें एवम् जनजागरण के कार्यक्रम भी किये गये. प्रत्येक ग्राम से 3 कार्यकर्ता अपेक्षित थे. कार्यक्रम में 427 ग्रामों से 1413 कार्यकर्ता उपस्थित रहे. चयनित सभी पाँच बिन्दुओं पर चर्चा एवम् अनुभव कथन के कार्यक्रम प्रभावी रहे. शिविर के पश्चात् ग्राम विकास के कार्य में अच्छी गति आयी है.

(4). हिन्दू सम्मेलन, बैतूल, मध्यभारत – मध्यभारत का बैतूल जिला जनजाति बहुल है. वहाँ कई प्रकार की चुनौतियाँ हैं. समाज में आत्मविश्वास का वातावरण बने तथा सज्जनशक्ति का दर्शन हो इस दृष्टि से चरणबद्ध योजना बनाकर हिन्दू सम्मेलन का आयोजन बैतूल शहर में किया गया. सम्मेलन के पूर्व जलसंधारण, ग्राम स्वच्छता, समरसता बैठकें, स्वास्थ्य शिविर, गौ पूजन, युवा सम्मेलन इत्यादि कार्यक्रम संपन्न हुए. संपर्क हेतु 70 कार्यकर्ता ग्राम-ग्राम में गये. 1468 ग्रामों तक पहुँचकर 4 लाख बंधुओं से संपर्क किया गया और ग्राम स्तर पर समितियों का गठन किया गया. दिनांक 08 फरवरी को संपन्न यह विराट हिन्दू सम्मेलन में लगभग एक लाख लोग सहभागी हुए. आयोजन अत्यंत प्रभावी रहा. व्यवस्था में नगर की विविध 31 जाति, संस्थाओं का सहयोग उल्लेखनीय है.

राष्ट्रीय परिदृश्य –
राष्ट्रीय तथा सामाजिक जीवन में तात्कालिक एवम् दूरगामी परिणाम करने वाली घटनायें घटती रहती है. ऐसी घटनायें कभी मनोबल बढ़ाने वाली तो कभी राष्ट्रजीवन का सामर्थ्य प्रकट करने वाली होती हैं. लेकिन कुछ घटनायें ऐसी भी होती हैं, जिसका चिंतन व समीक्षा समय पर करने की आवश्यकता रहती है. हिंसा का मार्ग अपनाते हुए हिन्दू समाज को भयग्रस्त करने का प्रयास होता है. राजनीतिक असहिष्णुता व बलप्रयोग करते हुए अन्य विचारधारा के समर्थकों के सम्मुख चुनौती खड़ी की जाति है. कुछ घटनायें निश्चित ही चिंता का कारण बनती हैं.
दशकों से वामपंथी हिंसा का शिकार बना पश्चिम बंगाल सत्ता परिवर्तन के पश्चात् शांति और सुव्यवस्था की अपेक्षा कर रहा था, लेकिन सत्ता परिवर्तन के पश्चात् तो हिन्दू समाज पर होने वाले अत्याचारों की घटनायें बढ़ी हैं जो चिंताजनक है. मालदा की घटना हो या अभी-अभी घटित धूलागढ़ की, ये सारी घटनायें हिन्दू समाज के लिये बहुत ही चिंता का विषय बना है. सत्ताधिशों द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा, प्रशासन का मूक साक्षी बनना पुरानी घटनाओं का स्मरण कराता है. सत्तादल के जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी चिन्हांकित है. इन घटनाओं को सभी स्तरों पर गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. केरल की परिस्थिति भी विचारणीय है. विधानसभा में साम्यवादी दल को प्राप्त विजय के पश्चात् संघ प्रेरित कार्यों के कार्यकर्ताओं पर हमलों की संख्या बढ़ी है. अमानवीय चेहरा खुलकर प्रकट हुआ है. बालक, महिला, वयोवृद्ध, युवक इनके आक्रमणों के शिकार बने हैं. प्राणहानी के साथ खेती, उद्योग, घरों को नष्ट करने की घटनायें यह एक द्वेषमूलक, असहिष्णु मानस को दर्शाता है. लोकतंत्रात्मक मार्ग से सत्ता तक पहुँचने वालों का यह दायित्व बनता है कि जनसामान्यों को सुरक्षा एवं प्रशासन के प्रति विश्वास के लिये आश्वस्त करें.
दोनों राज्यों की सरकारें न्यायपूर्ण व्यवहार तथा शांति और सौहार्द का वातावरण निर्माण करने में पहल करें, यही अपेक्षा है.
सर्जिकल स्ट्राइक –
पाकिस्तान द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों को रोकने के स्थान पर उन्हें बल प्रदान करना, भारत की सीमा के निकट उनके शिविरों को प्रश्रय देना और सेना द्वारा बार-बार गोलाबारी की घटनायें यह एक छद्म आक्रमण ही है. सितंबर मास में पाकिस्तान के खिलाफ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करना पड़ा. भारत की सरकार ने अपनी सामरिक कुशलता का परिचय दिया है. भारत की सेना के जवान साहस और कुशलता के साथ हमला करके आतंकी शिविरों को नष्ट कर सकुशल अपनी सीमा में लौट आये. सेना के इस साहसिक कार्य के लिये हम सभी संबंधित सैनिक तथा अधिकारियों का अभिनंदन करते हैं.
केन्द्र  सरकार ने दृढ़ इच्छाषक्ति का परिचय दिया है. साथ ही पाकिस्तान के विरोध में अंतर्राष्ट्रीय जनमत बनाने में सफल भूमिका निभाई है. परिणामतः इस्लामाबाद में होने वाला सार्क सम्मेलन हो नहीं सका.
विमुद्रीकरण –
आर्थिक क्षेत्र में विमुद्रीकरण का निर्णय भी केन्द्र  सरकार का साहसिक निर्णय है. पश्चात् एक भिन्न भारत का दर्शन हम सबने किया है. जनसामान्यों को अवश्य ही कुछ कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी जो स्वाभाविक ही थी. जनता ने अभूतपूर्व संयम एवम् देशभक्ति का परिचय दिया है. कालाधन, जाली नोट, आतंकवादियों द्वारा धनशक्ति के बल पर निर्माण की जाने वाली समस्याओं के निदान की दिशा में उठाया गया कदम अभिनंदनीय है. केन्द्र सरकार का यह निर्णय कितना समयोचित और परिणामकारक रहा, यह तो भविष्य में सिद्ध होगा.
इस्रो के वैज्ञानिकों का अभिनंदन –
15 फरवरी 2017, यह दिन हम सब भारतवासियों के लिये स्वाभिमान का रहा. इस्रो में कार्यरत महिला एवं पुरुष वैज्ञानिकों ने सामूहिकता से अंतरिक्ष विज्ञान के जगत में एक अभूतपूर्व कार्य संपादन किया है.
विश्व में रशिया के वैज्ञानिकों ने 2014 में एक साथ 37 उपग्रह छोड़कर अपना स्थान बनाया था. अपने वैज्ञानिकों की विशेषता रही कि मात्र 30 मिनट में 104 उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है. यह अभियान सफल होते ही इस्रो के वैज्ञानिकों का विश्वभर से अभिनंदन हुआ है.
डॉ. होमी भाभा, श्री विक्रम साराभाई, श्री सतीश धवन ऐसे महानुभावों ने जो सपना देखा था, उसे साकार होते हुए हम देख रहे हैं. निश्चित ही सुरक्षा, अंतरिक्ष विज्ञान, ऊर्जा इत्यादि विविध प्रकार के शोध क्षेत्र में अपने वैज्ञानिक भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने में सफल होंगे.
इस आयोजन में जिन वैज्ञानिकों की भूमिका रही हम उनका अभिनंदन करते हैं.
समापन
सामाजिक जीवन में नित्य ही सकारात्मक एवम् नकारात्मक घटनाओं का क्रम चलता रहता है. अपने कार्य के द्वारा हम समाज में जागरण एवम् चेतना शक्ति को जागृत करते हुए संगठित होकर परिवर्तन की दिशा में बढ़ रहे हैं. सर्वत्र अत्यंत अनुकूलता का वातावरण और अपने कार्य की स्वीकार्यता बढ़ी है.

राजनीतिक क्षेत्र में दिखाई देने वाली द्वेष भावना राज्यों राज्यों में क्षेत्रभाव का पोषण करने वाली शक्तियाँ भी विद्यमान है. विश्व के अन्यान्य देश भी सामर्थ्य संपन्न भारत के निर्माण में बाधायें खड़ी करने का प्रयास कर रहे है.
इन सारी परिस्थितियों में दृढ़ता के साथ संकल्पबद्ध होकर, हमारी अंतर्गत सामाजिक समस्याओं का निराकरण करते हुए हम सबके समन्वित प्रयास से ही अपना मार्ग प्रशस्त होगा यह विश्वास है.

प.पू. श्री गुरुजी ने जो विश्वास व्यक्त किया है, उसका स्मरण रखें,
‘‘विजय ही विजय है’’

अ.भा. प्रतिनिधि सभा 2017 – पू. सरसंघचालक जी तथा सरकार्यवाह जी का 2016-17 में प्रवास

अ.भा. प्रतिनिधि सभा 2017 – पू. सरसंघचालक जी तथा सरकार्यवाह जी का 2016-17 में प्रवास



पू. सरसंघचालक जी का प्रवास
इस वर्ष की प्रवास योजना में समाज जीवन के कुछ प्रमुख पू. संत, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षिक, व्यापार, उद्योग, कृषि, न्याय एवं कला क्षेत्र तथा प्रशासकीय सेवा में कार्यरत अथवा निवृत्त अधिकारियों से व्यक्तिगत, समूह में अथवा परिवारों में जाकर मिलने की योजना बनी थी.

वृंदावन के रामकृष्ण मठ के पू. स्वामी सुप्रकाशानंद जी, वृंदावन के ही पू. रमेशबाबा जी, पुरी के पू. प्रज्ञानानंद जी, उज्जैन के वाल्मिकी धाम स्थित पू. उमेशनाथ योगी जी तथा अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संप्रदाय के पू. महंत स्वामी जी आदि संतों से आशिर्वाद प्राप्त हुआ.

भाग्यनगर (हैदराबाद) में अपोलो अस्पताल के श्री प्रताप रेड्डी जी, इन्फोटेक के श्री मोहन रेड्डी जी, पद्मश्री टी.वी. नारायणन जी तथा नागार्जुन ग्रुप के श्री राजू जी से मिलना हुआ. पद्मविभूषण श्री रतन जी टाटा से नागपुर संघ कार्यालय में मुलाकात हुई. गुजरात में वासदा स्टेट के महाराजा श्री दिग्विजेन्द्रसिंह जी तथा कर्णावती (अमदाबाद) में अरविंद ग्रुप के श्री संजय लालभाई जी एवं निरमा ग्रुप के श्री करसनभाई पटेल से मुलाकात हुई. उज्जैन में सुप्रसिद्ध ध्रुपद गायक श्री गुंदेचा बंधुओं का गायन सुनने तथा साथी कलाकारों से मिलने का अवसर मिला. संबलपुर के पास खिंडा गांव के दि. 28 फरवरी 1884 में हुतात्मा हुए सुरेन्द्र साई के घर जाकर उनके परिवारजनों से उनके जयंति (दि. 23 जून) के अवसर पर मिलना हुआ. इसके अतिरिक्त विविध 26 समूहशः बैठकों में लगभग 400 समाज के प्रतिष्ठित भाई-बहनों से भी मिलना हुआ.

सभी 11 क्षेत्रों में संगठनात्मक प्रवास में कार्यकर्ताओं की बैठकों के साथ-साथ विशेष कार्यक्रमों की भी अच्छी योजना बनी थी. इन कार्यक्रमों में अरुणाचल में संपन्न ‘‘अरुण चेतना’’ सम्मेलन एवं जम्मू प्रांत का एकत्रीकरण ‘‘शंखनाद’’, तमिलनाडु में तिरुलनवेल्ली जिला एकत्रीकरण, जमशेदपुर में नगर का सांघिक एवं भाग्यनगर में व्यवसायी तरुण सांघिक उल्लेखनीय है. नागपुर महानगर में गणसमता स्पर्धा तथा भीलवाडा में विभाग एकत्रीकरण विशेष उल्लेखनीय हैं.

इनके अलावा नागपुर में सी.ए. व्यवसायियों की बैठक एवं युवा सेवा कार्यकर्ता बैठक, क्रीडाभारती विदर्भ के द्वारा क्रीडा क्षेत्र में पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों का सम्मान एवं विश्वमांगल्य सभा द्वारा आयोजित वीरमाता सम्मान कार्यक्रम, आगरा में प्राध्यापक सम्मेलन तथा कुटुंब प्रबोधन द्वारा नवदंपतियों का सम्मेलन ऐसे भी विविध कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.

सरकार्यवाह जी का प्रवास 
वर्ष 2016-17 के प्रवास में संगठनात्मक बैठकों के अतिरिक्त संपर्क विभाग, धर्मजागरण समन्वय विभाग आदि की योजना से कुछ कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.
1). मुंबई में युवा उद्योजकों के साथ वार्तालाप आयोजित किया था. गत वर्ष से नित्य मासिक मिलन होता आया है. इस कार्यक्रम में 57 युवा उद्योजक उपस्थित थे. संघ समझने के प्रति अच्छी जिज्ञासा रही.
2). नागपुर महानगर में एक भाग में प्रबुद्ध नागरिक एवम चिकित्सक श्रेणी के साथ वार्तालाप के कार्यक्रम हुए. जिसमें क्रमशः 136 प्रबुद्धजन तथा 142 चिकित्सक उपस्थित रहे.
3). मध्यभारत प्रांत में मुरैना में विभाग के खंड स्तर पर समरसता विषय में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं की बैठक हुई, जिसमें 333 ग्रामों से 3623 और 99 नगरीय बस्तियों से 1706 कार्यकर्ता उपस्थित रहे.
4). चेन्नई में प्रबुद्ध गोष्ठी में 102 महानुभाव उपस्थित रहे. विविध कार्यों की जानकारी और रुचिनुसार बैठकें रखी थी. आये हुए बंधुओं ने कार्य का दायित्व लेने के प्रति सकारात्मक संकेत दिये है.
5). मालवा प्रांत में धर्मजागरण समन्वय विभाग द्वारा ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्र में कार्यरत धर्मरक्षा समिति के कार्यकर्ताओं का अभ्यास वर्ग संपन्न हुआ, जिसमें 938 स्थानों से 3593 कार्यकर्ता उपस्थित हुए.
6). इन्दौर महानगर में ‘‘महानगरों का बदलता परिवेश’’ इस विषय पर संघकार्य के संदर्भ में चर्चा-संवाद का कार्यक्रम हुआ, जिसमें 42 प्रबुद्ध जन सहभागी हुए.
साभार ::vskbharat.com

कोयंबटूर (तमिलनाडु) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का शुभारंभ


 कोयंबटूर (तमिलनाडु) में  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का शुभारंभ

कोयंबटूर (तामिलनाडु) 19 मार्च 17.   राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई “अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा” का विधिवत शुभारंभ मा.सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत तथा सरकार्यवाह श्री भय्या जी जोशी ने किया. श्री अमृता विश्व विध्याश्रम, कोयंबटूर (तामिलनाडु) के परिसर मे आयोजित तीन दिवसीय प्रतिनिधि सभा बैठक के दौरान देश व समाज से जुड़े अहम विषयों पर चर्चा होगी, साथ ही प्रांत अनुसार संघ कार्य का अवलोकन भी किया जाएगा और आगामी कार्य योजना पर चर्चा होगी.

अनुसांगिक संगठनों से प्रमुख रूप में विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, स्वदेशी जागरण मंच, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व विभाग, संस्कार भारती, भारत विकास परिषद, भाजपा के प्रमुख पदाधिकारी सहित अन्य संगठन  इस बैठक मे भाग ले रहे हैं.

संघ शाखा की संख्या में वृद्धि –
प्रतिनिधि सभा 2017 के उद्घाटन के अवसर पर संघ के सह सरकार्यवाह वी. भागैय्या ने प्रेस को संबोधित करते हुए देशभर में संघकार्य स्थिति का विवरण दिया. उन्होंने कहा कि पिछले दस वर्षों में संघ का कार्य अबाध गति से बढ़ रहा है. संघ कार्य की बढ़ोतरी के साथ साथ संघ कार्य का दृढ़ीकरण (consolidation) भी हो रहा है.

पूरे देश में पिछले वर्ष संघ के प्राथमिक शिक्षा वर्ग में एक लाख युवाओं ने भाग लिया.  इसी प्रकार 17500 शिक्षार्थियों ने देशभर में विभिन स्थानों पर आयोजित 20 दिनों तक चलने वाले प्रशिक्षण वर्ग में भाग लिया. क्षेत्रसहः आयोजित द्वितिय् वर्ष के शिक्षा वर्ग में 4130 शिक्षार्थी सम्मिलित हुए. नागपुर में आयोजित तृतीय वर्ष के शिक्षा वर्ग में 973 शिक्षार्थियों को प्रशिक्षण प्राप्त हुआ. 

देशभर में 57233 स्थानों पर संघ की नियमित शाखाएं, 14896 साप्ताहिक मिलन और 8226 मासिक मिलन चल रहे है. 

स्वयं सेवकों द्वारा 19121 सेवा बस्तियों में सेवा कार्य किये जा रहे है.
इस राष्ट्रीय सभा में पारित होने वाले प्रस्तावों के बारे में उन्होंने बताया कि बंगाल में हिन्दुओं की स्थिति बड़ी भयानक है. वहाँ हिंसा ,लूट, हत्याएं और मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा हो रही है. हिन्दुओं और हिन्दुओं के त्योहारों पर लगातार हो रहे हमलों (हाल ही बंगाल के धूलागढ़ और कालियाचक में हुई हिंसा हुई है )  के दौरान सरकारी मशीनरी और पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है. जन हित और राष्ट्रीय सुरक्षा की वहाँ पर स्वस्थ स्थिति नहीं है.  उन्होंने कहा कि समाज जागरण और सरकार को अपील  के उद्देश्य से पश्चिम बंगाल की स्थिति और वहाँ के हिन्दुओं की पीड़ा के बारे में एक प्रस्ताव पारित किया जायेगा.

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक ने अपने सात दिन के पौत्र का देह दान किया

आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक ने अपने सात दिन के पौत्र का 
देह दान किया
नई दिल्ली. शिशु आंचल गुप्ता (पुत्र श्री सूरज गुप्ता और श्रीमती आंचल गुप्ता) का जन्म 1 मार्च 2017 को पटपड़गंज स्थित मैक्स अस्पताल में हुआ था. उसके जन्म से परिवार में खुशियां छा गईं. बहरहाल, शिशु अल्पायु था. जन्म के कुछ घंटे बाद ही उसके माता-पिता को सूचना दी गई कि उसकी आर्टरीज़ उलझी हुई हैं और शिशु को हल्का दिल का  दौरा पड़ा है.

परिवार शिशु को एम्स ले गया. जन्म के सातवें दिन ही आंचल की वहां ओपन हार्ट सर्जरी की गई जो छह घंटे चली. एम्स के डॉक्टरों ने जी-तोड़ मेहनत की, लेकिन शिशु को नहीं बचा सके. ऑपरेशन के तत्काल बाद 7 मार्च, 2017 को आंचल की मृत्यु हो गई.

आंचल के दादा अरविन्द जी और पिता सूरज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता हैं. अरविन्द जी ने कहा, “मेरे दिमाग में आया कि मेरा पोता नहीं रहा, लेकिन अपनी मृत्यु के बाद चिकित्सा विज्ञान के मकसद में अगर यह काम आ सके तो इस धरती पर उसका कुछ घंटों के लिए आना सफल हो जाएगा.’’ अरविन्द जी से शिशु आंचल की मृत देह एम्स को दान करने का प्रस्ताव रखा. सूरज और उनकी पत्नी भी राज़ी हो गए, लेकिन परिवार के कुछ अन्य सदस्यों ने विरोध किया. अरविन्द जी और सूरज शिशु की देह दान पर अडिग रहे, विरोधों की परवाह नहीं की और चिकित्सा शिक्षा के लिए एम्स से मृत देह को उपहार स्वरूप स्वीकार करने का अनुरोध किया.
दधीचि देह दान समिति ने तुरंत देह दान की व्यवस्था की. शिशु आंचल की मृत देह रात को साढ़े ग्याहर बजे एम्स के एनाटमी विभाग को दान कर दी गई.

एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. बलराम ऐरन ने कहा, “यह उपहार बेशकीमती है क्योंकि यह नन्हीं देह हमारे विद्यार्थियों को मानव देह के कुछ जटिल मुद्दों को पढ़ा सकेगी. खास तौर पर इसलिए कि सात दिन का यह शिशु दिल की खास बीमारी से पीडित था.”

दिल्ली विधान सभा के स्पीकर राम निवास जी ने कहा, “अरविन्द के परिवार ने ऐसे कठिन समय में अत्यधिक साहस और धैर्य दिखाया है. दिल्ली की जनता इस चरम बलिदान के लिए हमेशा शुक्रगुज़ार रहेगी. यह दान बड़ी संख्या में लोगों को प्रेरित करेगा और स्वस्थ एवं सबल भारत के उद्देश्य को बढ़ावा देगा.’’



मंगलवार, 7 मार्च 2017

राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान चाइनीज वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प अभियान

 राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान 
चाइनीज वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प अभियान

दिनांक 6 मार्च 2017 जोधपुर।  राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान को लेकर स्वदेशी जागरण मंच जोधपुर महानगर द्वारा सोमवार को कार्यकर्ताओं की बैठक मंच के प्रदेश संयोजक धमेन्द्र दुबे ने ली। बैठक में उन्होंने बताया कि चीन किस प्रकार भारत का अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर विरोध कर रहा है। चाइनीज वस्तुओं के प्रकोप से हमारे देश की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है। इन सबका एक मात्र उपाय अधिकाधिक स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग में लाकर दूर कर सकते है।

मंच के विभाग संयोजक अनि वर्मा ने बताया कि इस अभियान में पुरे प्रदेश में 10 लाख लोगों के हस्ताक्षर करवाकर चाइनीज वस्तुओं के बहिष्कार का संकल्प कराया जा रहा है। इस कड़ी में होली के अवसर पर मंच के महानगर सहसंयोजक जितेन्द्र मेहरा के संयोजन में 9, 10 व 11 मार्च को सांय 4 बजे से 7 बजे तक शहर के अनेको स्थानों पर राष्ट्रीय स्वदेशी सुरक्षा अभियान के हस्ताक्षर करवाये जायेगे और लोगो को स्वदेशी रंगो से होली खेलने को जागरूक किया जायेगा। अनिल माहेश्वरी ने भी बैठक को सम्बोधित किया.

मंच के महानगर मीडिया प्रमुख मनोहर सिंह चारण ने बताया कि इस बैठक में राजेन्द्र मेहरा, विक्रम सिंह भाटी, हरिश सोनी, सत्येन्द्र प्रजापति, प्रमोद व्यास, मिथिलेश झा उपस्थित थे।



शनिवार, 4 मार्च 2017

राष्ट्रपति जी, केंद्र सरकार से विनती है कि केरल के नर संहरियों के विषय पर जल्द ही उचित निर्णय करें- शांतिप्रसाद जी


राष्ट्रपति जी, केंद्र सरकार से विनती है कि केरल के नर संहरियों के विषय पर जल्द ही उचित निर्णय करें- शांतिप्रसाद जी





3  मार्च 17 ।  फलोदी में जनाक्रोश सभा में 3000 से अधिक संख्या में जनता उमड़ी। मुख्यवक्ता शांतिप्रसाद जी ने कहा कि हमारी संस्कृति चींटी को भोजन, सांप जैसे विषैले जिव को दूध पिलाने की रही है। हमने दुनियां के सताए लोगो को शरण दी है। हम अपनी संस्कृति का पालन करते हुए ही कोई हिंसक प्रतिक्रिया नही करते हैं। लेकिन केरल के मार्क्सवादी गुंडे इसे हमारी कमजोरी नहीं समझें। हम उस परसुराम के वंशज हैं जिन्होंने 29 बार धरती से आतताइयों का संहार किया था। हम उस राम के उपासक हैं जिन्होंने धरती को निशिचर हिन् करने का संकल्प लिया और किया था। हम उस कृष्ण के भक्त हैं जिन्होंने अंतिम समय तक कौरवों से समझौते का प्रस्ताव रखा लेकिन नही मानने पर जो परिणाम हुआ हम सब जानते है। हमारी राष्ट्रपति जी, केंद्र सरकार से विनती है कि केरल के नर संहरियों के विषय पर जल्द ही उचित निर्णय करें।

इससे पूर्व वक्ताओं ने भी अपनी बात रखी। श्री नारायणसिंह ने कम्युनिष्ट विचार को खोखला विचार बताया और इस सभा की आवश्यकता को बताया। विपुल जी ने कहा कि कम्युनिष्ट विचार विदेशी विचार है जो आज सब जगह से खत्म हो रहा है। ज्योति जाणी ने कहा संघ शाखा राष्ट्रभक्ति सिखाती है मैं अपने नोनिहालों को शाखा भेजना चाहती हूँ और सभी माताओं से इसका आवाहन करती हूँ। मीना जोशी ने ज्ञापन पढ़कर सुनाया। मंच सचालक मनमोहन ने केरल के हालातों पर तथ्य रखते हुए चुनिंदा घटनाओं का ब्यौरा दिया। 
 
संयोजक कन्हयालाल ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस बीच माननीय राष्ट्रपति जी के नाम ज्ञापन ADM को दिया गया।
इस अवसर पर सन्त बालकृष्ण, तुलसाराम, उत्तमगिरी, धनराज, आदि भी उपस्थित थे।

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

उज्जैन के कुंदन चंद्रावत को दायित्व मुक्त किया गया


उज्जैन के कुंदन चंद्रावत को दायित्व मुक्त किया गया.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त संघचालक डॉ. प्रकाश शास्त्री ने आज घोषणा की कि उज्जैन में जनाधिकार समिति के धरने में विवादित बयान देने के कारण संघ के बारे में भ्रम निर्माण हुआ है इसलिए भाषण देने वाले श्री कुंदन जी चंद्रावत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दायित्व से मुक्त किया जाता है. यद्यपि कुंदन जी चंद्रावत ने अपने कथन पर खेद व्यक्त कर कथन को वापिस भी ले लिया है.

उन्होंने एक बार पुनः सभी से अपील की कि एक व्यक्ति के बयान को संघ का अधिकृत विचार न माने.




संघ लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने में विश्वास करता है – जे. नंद कुमार जी

संघ लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने में विश्वास करता है – जे. नंद कुमार जी

भोपाल (विसंकें). केरल में मार्क्सवादियों द्वारा लगातार हो रही हत्या के विरोध में पूरे देश में 01 से 03 मार्च के बीच विभिन्न मंचों, संगठनों द्वारा धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया जा रहा है, इसी क्रम में 01 मार्च को उज्जैन में जन अधिकार समिति द्वारा आक्रोश सभा एवं धरने का आयोजन किया गया था. इसमें एक वक्ता डॉ. कुंदन चंद्रावत द्वारा केरल के मुख्यमंत्री के सम्बन्ध में विवादित बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संज्ञान में आया है. इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मत है कि इन प्रदर्शनों में कई प्रकार के संगठनों/संस्थाओं के कार्यकर्ता वक्ता के रूप में आते हैं, इसीलिए उनके द्वारा दिया गया बयान “संघ का अधिकृत वक्तव्य” नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के समय से ही व्यक्ति निर्माण एवं समाज सेवा के कार्य में संलग्न है और कभी भी हिंसा में विश्वास नहीं रखा. संघ लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने में विश्वास करता है, इसीलिए संघ डॉ. कुंदन के भावावेश में दिए गए बयान की घोर भर्त्सना करता है.
जे. नंदकुमार
अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

गुरुवार, 2 मार्च 2017

समाचार पत्रो से केरल में हो रहे अत्याचार के विरोध में धरना प्रदर्शन के समाचार आपके लिए

जोधपुर प्रान्त के कई जिला मुख्यालय पर राष्ट्रीय जनाधिकारमंच की और से केरल में राष्ट्रवादी विचारो के कार्यकर्ताओं  की निर्मम हत्याओं  के विरोध में राष्ट्रव्यापी धरना और विरोध प्रदर्शन किया गया।

समाचार पत्रो से केरल में हो रहे अत्याचार के विरोध में धरना प्रदर्शन के समाचार आपके लिए 


साभार: भास्कर

साभार: भास्कर  

साभार: भास्कर  


साभार: भास्कर

साभार: भास्कर

साभार: राजस्थान पत्रिका 

साभार: राजस्थान पत्रिका   

साभार: राजस्थान पत्रिका 

साभार: राजस्थान पत्रिका 

साभार: राजस्थान पत्रिका 


केरल जैसी देवभूमि को रक्त रंजित करने वाली कम्यूनिस्ट सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए - गंगाविशनजी

केरल जैसी देवभूमि को रक्त रंजित करने वाली कम्यूनिस्ट सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए - गंगाविशनजी
 
 राष्ट्रीय जनाधिकार मंच द्वारा केरल में राष्ट्रवादी विचार संगठनों के कार्यकर्ताओं पर हुए नृशंस अत्याचार व लगातार हो रही हत्याओं के विरोध में जिला स्तर पर आक्रोश सभा
 
 
आक्रोश सभा का एक द्रश्य  

महामण्डलेश्वर महेश्वरानंन्द आक्रोश सभा को सम्बोधित  करते हुए 
पाली 1 मार्च। राष्ट्रीय जनाधिकार मंच द्वारा केरल में राष्ट्रवादी विचार संगठनों के कार्यकर्ताओं पर हुए नृशंस अत्याचार व लगातार हो रही हत्याओं के विरोध में जिला स्तर पर आक्रोश सभा का आयोजन कर पाली जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय के बाहर विभिन्न संगठनों द्वारा धरना दिया गया। इस आक्रोश सभा में बोलते हुए महामण्डलेश्वर महेश्वरानंन्द के कहा की भारतीय संस्कृति के कतरे कतरे में अहिंसा भरी हुई है, भारत ने किसी पर आक्रमण नही किया है, ऐसी महान भारतीय संस्कृति में हिंसा का होना बहुत ही चिंता का विषय है। यह लड़ाई विधर्मियो की लड़ाई है और ये विधर्मि राजनीति का सहरा लेकर जो अत्याचार कर रहे है, उनके नापाक मंसुबों का जबाब हम सेवा कार्यों के द्वारा देकर हमारी संस्कृति का परचम एक बार फ़िर लहरायेंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्तीय सह बौद्धिक प्रमुख गंगाविशनजी  आक्रोश सभा में बोलते हुए
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्तीय सह बौद्धिक प्रमुख गंगाविशनजी ने आक्रोश सभा में बोलते हुए कहा की एक राष्ट्रीयवादी संगठन द्वारा धरना देना हमारी आदत नही बल्कि मजबूरी है। हमारी संस्कृति विषदंत निकालकर गर्दन मरोड़ने की क्षमता रखते हुए भी सिर्फ सहनशिलता को इसलिये धारण किया है कि हम हिंसा में विश्वास नही करते। उन्होनें कम्यूनिस्ट विचार धारा को आड़े हाथों लेते हुए कहा की धर्म को अफ़ीम कहने वाले, विवाह संस्था का विरोध करने वाले व राष्ट्रवाद व परिवारवाद को नही मानने वाले साम्यवादियों ने ईर्ष्या, द्वेष व घृणा के जो बीज बोये थे, वे उन्हीं के गले की हड्डी बन चुके है और वे विश्व के  मानचित्र से विलिन होते जा रहे है। केरल जैसी देवभूमि को रक्त रंजित करने वाली कम्यूनिस्ट सरकार को तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए।

अग्रवाल महिला मंडल की अँजना सर्राफ ने महिला शक्ति को जाग्रत रहने का आह्वान करते हुए संस्कारों के माध्यम से समाज को जागरूक रखने की अपील की। उषा अखावत ने कहा कि पिछले 90 वर्षों से सेवा प्रकल्पो के माध्यम से सेवा कार्य से जुड़े स्वयंसेवको पर अत्याचार कर मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं का विरोध कर मातृशक्ती को भी अपनी सहभागिता निभानी चाहिए।

राष्ट्रीय जनाधिकार मंच के संयोजक विनय बम्ब ने कहा की यह संघर्ष दो विचारधाराओं का संघर्ष है। इसमें एक विचारधारा देश को बाँटने वाली तथा दूसरी विचारधारा सामाजिक समरसता से जोड़ने वाली है। हमें देश को जोड़ने वाली विचार धारा का समर्थन कर भारत माता को परम वैभव पर पहुँचना है।

इस आक्रोश सभा में भारतीय सिंधुसभा, भारतीय शिक्षण मंडल, अखिल भारतीय विधार्थी परिषद, श्री संत सभा, विधाभारती, जैन युवा संगठन व अग्रवाल समाज सहित सभी समाज के संगठनों ने भाग लिया। इसके पश्चात् केरल में बलिदान हुए राष्ट्रीयवादी विचार संगठनों के कार्यकर्ताओं की आत्मा की शांति के लिए शांति पाठ का आयोजन कर राष्ट्रपति के नाम ज़िलाधीश को ज्ञापन दिया।

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित