मंगलवार, 29 नवंबर 2016

गौरवशाली इतिहास को सहेज कर नयी पीढी को बताना यह राष्ट्रीय कर्तव्य - परम पूजनीय सरसंघचालक

समाज को अपना सत्व पहचानने का आग्रह  - मोहनराव जी भागवत 
गौरवशाली इतिहास को सहेज कर नयी पीढी को बताना यह राष्ट्रीय कर्तव्य - परम पूजनीय सरसंघचालक
‘राष्ट्रीय तीर्थ-प्रताप गौरव केंद्र, उदयपुर’ का लोकार्पण



 
उदयपुर : 28 नवम्बर महाराणा प्रताप के जीवन को समर्पित मेवाड एवं भारत के गौरवशाली इतिहास को जीवन्त करने वाले ‘राष्ट्रीय तीर्थ-प्रताप गौरव केंद्र, उदयपुर’ का लोकार्पण आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संध के परम पूजनीय सरसंघचालक माननीय मोहनराव जी भागवत एवं राजस्थान की मुख्यमंत्री माननीया वसुंधराराजे जी के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ । कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में  केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री भारत सरकार श्री महेश गिरि जी  एवं राजस्थान सरकार के गृहमन्त्री एवं स्थानीय विधायक श्री गुलाबचन्द जी कटारिया  भी मंच पर उपस्थित थे।

कार्यक्रम के प्रारम्भ मे प्रताप गौरव केन्द्र न्यास के सदस्य श्री ओमप्रकाश जी ने अब तक हुए निर्माण की जानकारी देते हुए बताया की अब तक लगभग 40 करोड़ की लागत से हुए निर्माण कार्यों के क्रम में 57 फिट ऊंचाई की महाराणा प्रताप की प्रतिमा, लाईट एण्ड साउण्ड के साथ अखण्ड भारत के दर्शन, मेवाड के इतिहास की घटनाओं को लाईव मेकेनिकल मॉडल दीर्घाओं के माध्यम से दर्शाना, दो फिल्म थियेटर, भारत माता मन्दिर एवं ध्यान कक्ष के निर्माण की जानकारी देते हुए शेष बचे 60 फीसदी कार्यां में तन-मन-धन से सहयोगी होने का आग्रह किया।  

मुख्यमंत्री ने प्रताप गौरव केन्द्र के विकास एवं विस्तार के कार्यों में राज्य सरकार की ओर से हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया और कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकार मिलकर इस दिशा में बेहतर योगदान देंगे। आने वाला समय में यह एक ऐसा राष्ट्रीय तीर्थ बन जाएगा और लेकसिटी की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान में ऐतिहासिक तीर्थ होने का एक और गौरव जुड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि मन्दिरों, लोक देवताओं आदि आस्था स्थलों, इतिहास और परम्पराओं की जानकारी न हो तो समाज अधूरा रह जाता है। मुख्यमंत्री ने महाराणा प्रताप के बारे में वर्ल्ड क्लास राष्ट्रीय तीर्थ निर्माण को अचंभा बताते हुए इसके निर्माण में जुड़े सभी लोगों को बधाई दी और कहा कि शांति के साथ इतना भव्य काम करने वाली पूरी टीम की मेहनत अकल्पनीय है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक ऐसा काम हुआ है कि जिससे आने वाली पीढ़ियां याद करेंगी। उन्होंने कहा कि प्रताप सभी के लिए हैं और जरूरत है कि हम सभी प्रताप के जीवन और गाथाओं से प्रेरणा पाएं और उन्हें आचरण में लाएं। 

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केन्द्रिय पर्यटन एवं सस्कृति मन्त्री श्री महेश गिरि ने 120 करोड़ रुपये की लागत से हेरिटेज सर्किट निर्माण की घोषणा मंच से की।

कार्यक्रम में परम पूजनीय सरसंघचालक माननीय मोहनराव जी भागवत ने स्वामी विवेकानन्द के बताये दृष्टांत से अपना उद्बोधन प्रारम्भ करते हुए समाज को अपना सत्व पहचानने का आग्रह किया। उन्होने कहा किसी भी देश को आगे बढने के लिए अपना अतीत जानना आवश्यक है, गौरवशाली अतीत ही नयी पीढी को आगे बढने की प्रेरणा देता है। किसी भी समाज के लिए अपने गौरवशाली इतिहास को सहेज कर नयी पीढी को बताना यह राष्ट्रीय कर्तव्य है।  प्रताप गौरव केन्द्र का निर्माण  इस उद्देश्य पूर्ति का अंश मात्र है । 

इस प्रकार के प्रयासों को से ही देश का स्वाभिमान जाग्रत होकर समाज की उन्नति सम्भव है । सत्व के बल पर ही श्री राम एवं लक्ष्मण ने त्रिलोकजयी रावण को परास्त कर दिया महाराणा प्रताप का जीवन भी सत्व के बल पर संघर्ष की प्रेरणा देने वाला जीवन है, महाराणा प्रताप ने अकबर को न केवल युद्ध में परास्त किया अपितु शान्तिकाल में 12 वर्षों तक चावण्ड़ को राजधानी बनाकर सुशासन स्थापित कर स्वराज्य एवं सुराज्य भी चलाया। उनके शासनकाल पर शोध कर सीख लेने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम को श्री गुलाबचन्द जी कटारिया ने भी सम्बोधित किया, संचालन गोरव केन्द्र के महामन्त्री श्री मदनमोहन टाक ने एवं आभार प्रकटीकरण केन्द्र के अध्यक्ष डॉ के.एस. गुप्ता ने किया, काव्यगीत श्री रवि बोहरा ने गाया। 
उदयपुररू 28 नवम्बरध्महाराणा प्रताप के जीवन को समर्पित मेवाड एवं भारत के गौरवशाली इतिहास को जीवन्त करने वाले ष्राष्ट्रीय तीर्थ.प्रताप गौरव केंद्रए उदयपुरष् का लोकार्पण आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संध के परम पूजनीय सरसंघचालक माननीय मोहनराव जी भागवत एवं राजस्थान की मुख्यमंत्री माननीया वसुंधराराजे जी के कर.कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ । कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में  केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री भारत सरकार श्री महेश गिरि जी  एवं राजस्थान सरकार के गृहमन्त्री एवं स्थानीय विधायक श्री गुलाबचन्द जी कटारिया  भी मंच पर उपस्थित थे।

कार्यक्रम के प्रारम्भ मे प्रताप गौरव केन्द्र न्यास के सदस्य श्री ओमप्रकाश जी ने अब तक हुए निर्माण की जानकारी देते हुए बताया की अब तक लगभग 40 करोड़ की लागत से हुए निर्माण कार्यों के क्रम में 57 फिट ऊंचाई की महाराणा प्रताप की प्रतिमाए लाईट एण्ड साउण्ड के साथ अखण्ड भारत के दर्शनए मेवाड के इतिहास की घटनाओं को लाईव मेकेनिकल मॉडल दीर्घाओं के माध्यम से दर्शानाए दो फिल्म थियेटरए भारत माता मन्दिर एवं ध्यान कक्ष के निर्माण की जानकारी देते हुए शेष बचे 60 फीसदी कार्यां में तन.मन.धन से सहयोगी होने का आग्रह किया। 

मुख्यमंत्री ने प्रताप गौरव केन्द्र के विकास एवं विस्तार के कार्यों में राज्य सरकार की ओर से हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया और कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकार मिलकर इस दिशा में बेहतर योगदान देंगे। आने वाला समय में यह एक ऐसा राष्ट्रीय तीर्थ बन जाएगा और लेकसिटी की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान में ऐतिहासिक तीर्थ होने का एक और गौरव जुड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि मन्दिरोंए लोक देवताओं आदि आस्था स्थलोंए इतिहास और परम्पराओं की जानकारी न हो तो समाज अधूरा रह जाता है। मुख्यमंत्री ने महाराणा प्रताप के बारे में वर्ल्ड क्लास राष्ट्रीय तीर्थ निर्माण को अचंभा बताते हुए इसके निर्माण में जुड़े सभी लोगों को बधाई दी और कहा कि शांति के साथ इतना भव्य काम करने वाली पूरी टीम की मेहनत अकल्पनीय है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक ऐसा काम हुआ है कि जिससे आने वाली पीढि़यां याद करेंगी। उन्होंने कहा कि प्रताप सभी के लिए हैं और जरूरत है कि हम सभी प्रताप के जीवन और गाथाओं से प्रेरणा पाएं और उन्हें आचरण में लाएं। 

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केन्द्रिय पर्यटन एवं सस्कृति मन्त्री श्री महेश गिरि ने 120 करोड़ रुपये की लागत से हेरिटेज सर्किट निर्माण की घोषणा मंच से की।

कार्यक्रम को श्री गुलाबचन्द जी कटारिया ने भी सम्बोधित कियाए संचालन गोरव केन्द्र के महामन्त्री श्री मदनमोहन टाक ने एवं आभार प्रकटीकरण केन्द्र के अध्यक्ष डॉ केण्एसण् गुप्ता ने कियाए काव्यगीत श्री रवि बोहरा ने गाया।

शनिवार, 19 नवंबर 2016

हम सबके सामने एक भव्य लक्ष्य है भारत को विश्व गुरू बनाना - डॉ. भागवत

 हम सबके सामने एक भव्य लक्ष्य है भारत को विश्व गुरू बनाना - डॉ. भागवत
विश्व का उत्थान है भारत का लक्ष्य
अनुकूलता में नहीं हो किसी प्रकार की असावधानी 

पानीपत। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माननीय डॉ. मोहन भावगत जी ने कहा कि अनुकूलता में सावधानी ज्यादा आवश्यक है। जब मनुष्य कठिन परिस्थितियों में होता है तो वह सावधान रहता है लेकिन जब परिस्थितियां अनुकूल होती हैं तो वह असावधान हो जाता है और यह असावधानी ही उसके पतन का कारण बनती है। डॉ. भागवत जी ने स्वयंसेवकों को आगाह करते हुए कहा कि आज समाज में माहौल स्वयंसेवकों के लिए अनुकूल है। इसलिए स्वयंसेवकों को इस अनुकूल माहौल में सावधान रहने की जरूरत है। डॉ. भागवत जी शुक्रवार प्रात: आर्य स्कूल के मैदान में पानीपत जिले के स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ कुरुक्षेत्र विभाग के संघचालक डॉ. गोपाल कृष्ण एवं पानीपत जिले के संघचालक अनूप कुमार मंच पर उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ ध्वजारोहण व संघ की प्रार्थना के साथ हुआ। लगभग साढ़े चार सौ स्वयंसेवकों ने योगासन, सूर्यनमस्कार, व्यायाम योग का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम के दौरान जिलेभर से 1400 से अधिक स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में उपस्थित रहे।
डॉ. भागवत ने महात्मा बुद्ध द्वारा किए गए धर्म के वर्णन का जिक्र करते हुए कहा कि धर्म आरंभ से लेकर अंत तक परम आनंद देता है और ऐसे शाश्वत धर्म की खोज भारत में हुई है। उन्होंने कहा कि पूरी सृष्टि अपना कुटम्ब है और भारत वसुधैव कुटुम्बकम् की नीति पर चलते हुए पूरी सृष्टि को अपना परिवार मानता है। विश्व का उत्थान ही भारत का लक्ष्य है।  डॉ. भागवत जी ने कहा कि कभी हम शिखर पर थे तो कभी हम गुलाम भी रहे। यह उतार-चढ़ाव तो हमने झेले हैं। किसी भी विदेशी ने हमें अपनी ताकत से नहीं बल्कि हमारी आपसी फूट के कारण गुलाम बनाया है। इसलिए हमें प्रत्येक व्यक्ति को संस्कारित करना पड़ेगा।
स्वतंत्रता संग्राम के समय के नेताओं ने अपने जीवन में धर्म आधारित शैली को ही अपनाया था। राष्ट्र एक इकाई के रूप में कार्य करे यह उनके व्यवहार में दिखाई दे, शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रहित में करें, इस हेतु हम सबको समाज हित में परिवर्तन करना होगा। डॉ. हेडगवार जन्मजात से राष्ट्रभक्त थे और क्रांतिकारियों से उनके काफी अच्छे संबंध थे। क्रांतिकारियों से चर्चा के दौरान डॉ. हेडगवार जी के सामने यह बात आई कि भारत को एकता के सूत्र में पिरोने और स्वतंत्र रखने के लिए देश के लिए जीने-मरने वाले समाज का निर्माण करना होगा। इसलिए लिए परम पूजनीय डॉ. हेडगेवार जी ने भी संगठन को एकता का यह स्वरूप देने के लिए कई प्रयोग किए। अंतत: नित्य शाखा संघ की शक्ति का आधार बनी, जिसका परिणाम है कि स्वयंसेवकों द्वारा समाज के सहयोग से बिना किसी सरकारी मदद के देशभर में एक लाख 60 हजार से अधिक समाज सेवा के कार्य चल रहे हैं। स्वयंसेवक जिस भी काम को हाथ में लेते हैं उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। आज स्वयंसेवकों पर समाज का विश्वास बढ़ा है लेकिन यह काम आसानी से नहीं हुआ। पहले समाज में इसका विरोध हुआ और फिर समाज ने इस पर विश्वास किया। विविधता में एकता देखने वाला राष्ट्र पूरे विश्व में हिंदू समाज ही है। हम सृष्टि का अंग बनकर कार्य करने वाले लोग हैं। हमारी पूजा पद्धति कोई भी हो किंतु प्यार और संयम सब के प्रति आत्मीयता, यही हमारे धर्म का रूप है। हमारे साहित्य में भी इसी का वर्णन है और सब स्वयंसेवक साधक बनकर इसी की साधना करते हैं। यही हमारी राष्ट्रीयता है। इसीलिए सारा विश्व हमें हिंदू कहता है। हमारा संविधान भी हमें इमोशनल इंटीग्रेशन शब्द वर्णित करके संवैधानिक निर्देश देता है। हमारे देश में जो स्वयं को हिंदू नहीं मानते, वे भी हिंदू पूर्वजों के ही वंशज हैं। इसलिए भारत माता उनकी भी माता है। उन पर भी भारतीय संस्कृति का प्रभाव है। हम उस संस्कृति की साधना करते हैं, इसीलिए हम राष्ट्रीय हैं। हम अपनी इच्छा से करते हैं, इसलिए हम स्वयंसेवक हैं। मेरा राष्ट्र है, मेरा समाज है, इस आत्मीय भाव से स्वप्रेरणा से संगठित होते हैं। यह जो समाज में समस्याएं दिखाई दे रही हैं वे समाज के प्रति कृत्रिम प्रेम के कारण खड़ी हुई हंै। स्वयंसेवक शाखा से संस्कार ग्रहण करता है और 24 घंटे की समीक्षा करता है। डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि आज अनुकूलता के समय में हमें संगठन को राष्ट्रव्यापी बनाना है जो भारत को ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को सुख शांति की राह दिखाएगा। संघ के विचार से ही स्वयंसेवक बनते हैं। सतत साधना करना उनके जीवन में परम उद्देश्य है और उसी को वे अपने जीवन में कृति रूप से प्रदर्शन करते हैं। उन्होंने नेपोलियन का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे कार्य में जरा सी भी ढिलाई नहीं रहनी चाहिए। कुछ समय की देरी से पहुंचने के कारण ही नेपोलियन को वाटरलू की लड़ाई हारनी पड़ी और सारा जीवन निर्वासित व्यतीत करना पड़ा। इसलिए स्वयंसेवकों को समय और अनुशासन का सर्वथा पालन करना चाहिए। संघ की शाखाओं में शारीरिक कार्यक्रम साधना का केंद्र हैं। इससे समाज को योग्य बनाए रखना और समाज का विश्वास बनाए रखना, अपने अंदर अनुभूति पैदा कर सबके समक्ष रखना तथा राष्ट्र को परम वैभव संपन्न बनाना हमारा अंतिम लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें अधिक से अधिक उत्कटता के साथ खड़ा होना चाहिए। 


बुजुर्ग स्वयंसेवकों में भी दिखा जोश
आर्य गल्र्स स्कूल के ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम के दौरान स्वयंसेवकों द्वारा संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन ाागवत के समुख शारीरिक व योग क्रियाओं का प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में युवा स्वयंसेवकों के साथ-साथ बुजुर्ग स्वयंसेवकों भी शामिल हुए। शारीरिक व योग क्रियाओं के प्रदर्शन में बुजुर्ग स्वयंसेवकों ने भी युवा स्वयंसेवकों के साथ पूरे जोश के साथ अपनी प्रस्तुति दी।

स्वयंसेवकों ने संभाली कार्यक्रम की पूरी कमान
कार्यक्रम में किसी प्रकार की कोई दिक्कत सामने नहीं आए तथा कार्यक्रम सुचारू रूप से चले इसके लिए स्वयंसेवकों ने पूरी तैयारी की थी। कार्यक्रम में सुरक्षा, यातायात व्यवस्था, जलपान, आगंतुकों को बैठाने, साफ-सफाई इत्यादि की पूरी व्यवस्था स्वयंसेवकों द्वारा की गई थी।

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

आटोग्राफ देना नहीं है संघ की परंपरा : डॉ भागवत

आटोग्राफ देना नहीं है संघ की परंपरा : डॉ भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी शुक्रवार को अपने पानीपत प्रवास के दूसरे दिन एस डी विद्या मंदिर स्कूल में दोपहर को स्वंयसेवकों के साथ भोजन करने के पश्चात जैसे ही भोजन कक्ष से निकलने लगे तो एक बाल स्वयंसेवक उनके पास आकर एक नोटबुक पर आटोग्राफ मांगने लगा। इस पर भागवत जी ने बाल स्वयंसेवक को समझाते हुए कहा कि आटोग्राफ देने की संघ की परंपरा नहीं है। डॉ. भागवत ने कहा के वे संघ के मुख्य स्वयंसेवक हैं और यदि वे स्वयं ही संघ की परंपरा को तोड़ेंगे तो वो दूसरे स्वयंसेवकों को क्या सिखाएंगे। यदि उन्होंने ऐसा किया तो इससे संघ में एक नई परम्परा चल पड़ेगी जो संघ के नियमों के अनुसार सही नहीं है। डॉ. भागवत जी ने बाल स्वयंसेवक को प्यार से समझातेे हुए कहा कि यदि आप की इच्छा आटोग्राफ लेने की है तो इसके लिए आप मुझे एक पत्र लिखें आप के पत्र के जवाब में मैं जो पत्र लिखूंगा उस पत्र में मैं अपने जवाब के साथ अपने हस्ताक्षर भी करूँगा। ऐसा करने से आप की इच्छा भी पूरी हो जाएगी और संघ की परंपरा भी नहीं टूटेगी। डॉ. भागवत जी के जवाब से बाल स्वयंसेवक तो संतुष्ट हो ही गया साथ साथ इस घटना से डॉ. भागवत जी दूसरे स्वयंसेवकों के लिए भी प्रेरणा दे गए।

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

कुटुंब प्रबोधन, ग्राम विकास, सामाजिक समरसता से ही परिवर्तन की गति बढ़ेगी – डॉ. मोहन भागवत जी

चिंतनशीलता मनुष्य को समृद्ध बनाती है-डॉ. मोहन भागवत 
सरसंघचालक का कुटुंब प्रबोधन और सामाजिक समरसता पर जोर
तीन दिवसीय प्रवास पर पानीपत पहुंचे पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत 

पानीपत। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परम पूजनीय डॉ. मोहनराव भागवत जी बृहस्पतिवार को अपने तीन दिवसीय प्रवास पर पानीपत पहुंचे। प्रवास के पहले दिन डॉ. मोहनराव भागवत जी ने दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के जिला तथा विभाग प्रचारकों, सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, ग्राम विकास और गौ संरक्षण के कार्य में लगे हुए प्रचारक, प्रांत, क्षेत्र तथा क्षेत्र में रहने वाले अखिल भारतीय दायित्व के प्रचारकों की बैठक में भाग लिया। बैठक में उन्होंने कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, गौसंरक्षण और ग्राम विकास पर जोर दिया। 
सरसंघचालक जी ने कहा कि कार्यक्षेत्र में आने वाले अनुभवों का हमारे जीवन में सकारात्मक परिणाम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता को चिंतन, स्वाध्याय और संवाद करते रहना चाहिए। चिंतनशीलता मनुष्य को समृद्ध बनाती है। इससे व्यक्तिगत विकास तो होता ही है, समाज जीवन को भी इसका लाभ मिलता है। इसमें एक बात यह भी ध्यान रखनी चाहिए कि चिंतनशीलता के साथ विवेक भी अवश्य होना चाहिए। 
उन्होंने कहा कि समाज में कुटुंब प्रबोधन, ग्राम विकास, गौसंरक्षण, सामाजिक समरसता जैसी गतिविधियों की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इनसे ही समाज परिवर्तन की गति बढ़ेगी। जो समाज का विचार करते हैं, उन सबको साथ लेकर चलना, सबको जोडक़र चलना, यह हमारी कार्यप्रणाली का भाग बने। 
हर स्तर पर हो टीम वर्क 
उन्होंने कार्यकर्ताओं को कहा कि कार्य की सफलता के लिए टीम वर्क तथा सर्व सम्मति से कार्य करना चाहिए। हर स्तर पर टीम वर्क खड़ा होना चाहिए, इसी से समाज के लिए कार्य करने वाले प्रतिबद्ध लोग तैयार होंगे। 
इस बैठक में सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी जी, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख श्री जे. नंदकुमार जी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य श्री अशोक बेरी जी तथा श्री महावीर जी भी उपस्थित रहे। 


रविवार, 13 नवंबर 2016

उत्कट आत्मीयता है संघ कार्य का आधार – डॉ. मोहन भागवत जी

उत्कट आत्मीयता है संघ कार्य का आधार – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने रविवार को केशव स्मारक समिति के नए भवन (केशव कुंज, संघ कार्यालय) के निर्माण का भूमि पूजन व शिलान्यास किया. कार्यक्रम में उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि जब अपना कार्य शुरु हुआ, तब हम साधनहीन अवस्था में थे और आज भी साधनहीन अवस्था में काम करने की हमारी शक्ति भी है और तैयारी भी है, क्योंकि अपने कार्य का यह स्वभाव है. डॉ. साहब जिन कागजों पर पत्र लिखते थे, उसके शीर्षक में एक मुद्रित पंक्ति रहती थी. कार्य की सिद्धि तो कार्यकर्ताओं के सत्व के भरोसे होती है, उपकरणों का महत्व नहीं रहता. कार्य हमने शुरु किया, तब हमने विचार ही नहीं किया कि हमारे पास साधन क्या हैं और कौन से साधन हमको चाहिए. अपने देश, राष्ट्र, समाज उसका दुःख, उसकी दुरावस्था हमारी प्रेरणा रही और जैसे अपने किसी अत्यंत आप्त को संकट में देख कर आदमी बिना विचार किए दौड़ पड़ता है, वैसे हम दौड़े. और वही उत्कट आत्मीयता आज भी हमें दौड़ा रही है. हमको किसी साधन की आवश्यकता नहीं है. इसलिए अपना भवन बनेगा, यह कहा गया है कि उसमें मुख्यतः संघ कार्यालय रहेगा. लेकिन संघ ने अपने नाम पर कोई प्रॉपर्टी नहीं है. तरह-तरह के सेवा कार्य करने वाले न्यासों के भवन जगह-जगह है, यह भी वैसा ही रहेगा. लेकिन एक तांत्रिकता है, विधि-विधान के तहत निर्दोष व्यवस्था, उसका पूर्णतः पालन हो ऐसी व्यवस्था करना, उसको उस विधि का जो भाव है, उसके अनुसार ही चलाना. यह स्वयंसेवक का स्वभाव रहता है, वैसे ही चले. लेकिन हम सब लोग जानते हैं कि कुल मिलाकर ऐसे सब भवनों को, वहां-वहां के स्वयंसेवक, वहां-वहां का समाज भी संघ कार्यालय के रूप में जानता है. अब हमारी ऐसी स्थिति है कि अगर आवश्यकता बढ़ी है तो उस आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए न्यूनतम आवश्यक जितना है, उतना हम जुटा सकते हैं, और वो जुटाते हैं. क्योंकि साधनहीन निष्कांचन रहने में गौरव अथवा वैसे रहने का कोई हमारा शौक नहीं है. कार्य के लिए जितना आवश्यक है उतना चाहिए. पहले था ही नहीं, बिना उसके भी काम किया. अब हो सकता है इसके कारण कार्य करने में सुविधा, कार्य करने की गति में वृद्धि होती है तो हम करेंगे. लेकिन पहली बात तो यह है कि इन साधनों के स्वामी हम रहते है, उस पर हम निर्भर नहीं रहते. दूसरी बात है साधन भी एक तांत्रिकता है.
संघ कार्यालय है यानि क्या है, वो भवन ही होना चाहिए, ऐसा भी है क्या, ऐसा नहीं है. संघ प्रारंभ हुआ, तब संघ का कोई कार्यालय नागपुर में नहीं था. मोहिते शाखा लगी, वो पुराना एक बाड़ा था, उसके खंडहर में एक तलघर भी था, तलघर के दो तीन कमरे साफ करके उसमें कार्य चलता रहा. डॉ. साहब सुबह एक मोहल्ले में एक घर में, दोपहर एक मोहल्ले में एक घर में ऐसे बैठते थे, वहीं से काम होता था और बाकी समय वह अपने घर में होते थे. वहीं पर बैठकें होती थीं. बाद में वहां एक दशोत्तर नाम के सज्जन थे, उन्होंने अपने बाड़े में एक कमरा खाली कर दिया बिना किराये अपना काम वहां से चले तो बहुत दिन वहां पर कार्यालय चला. फिर धीरे-धीरे आज जहां कार्यालय है, वहां की भूमि हमको प्राप्त हुई और 1940 में वहां हमने आवश्यक जैसा भवन बनाया. तो भवन है, भवन होना चाहिए, भवन बन रहा है, ये हमारे लिए आनंद की बात है. कैसे बनेगा, कैसा बनेगा, हमारी उत्सुकता रहना भी स्वाभाविक है. लेकिन हम जानते हैं कि केवल भवन बनने से हम उसको कार्यालय नहीं कहते. कार्यालय एक वातावरण का नाम है. केशव स्मारक समिति का भवन रहेगा, उसमें संघ कार्यालय का काम चलेगा. हो सकता है कि जैसे केशव कुंज के साथ-साथ इतिहास संकलन समिति का कार्यालय था, संस्कृत भारती वाले थे. ऐसे अनेक संगठनों के नाम पट्टा यहां पर थे, वैसे वहां पर भी होगा. लेकिन कुल मिलाकर उस भवन में जाने से हम कहेंगे संघ कार्यालय क्योंकि ये एक या अनेक संस्थाओं का कार्यालय, ऐसा उसका स्वरूप नहीं रहता है. हम जानते हैं कि हम सब लोगों का एक कुटुंब है और उस कुटुंब का वो स्थान है.  कौटुंबिक वातावरण रहता है, वो आत्मीयता रहती है, परस्पर संबंधों की वह पवित्रता रहती है. भारत माता की पूजा का मंदिर हम अपने भावों में मानते हैं, तो उस पूजा भाव की पवित्रता सारे वातावरण में अनुभव होती है. अपने समाज के प्रति संवेदना हमको कार्य में प्रवृत्त करती है, तो कार्यालय में जाने से वो संवेदना अपने हृदय में प्रस्फुरित होने से समाज के लिए सक्रिय होने की प्रेरणा भी मिलती है. अब स्वयंसेवक मिलकर भवन को अच्छा बनाएंगे, पर्याप्त बनाएंगे, सारा काम बारिकी से ठीक संपन्न हो जाएगा. परंतु कार्यालय का ये भवन पूरा बन जाने के बाद हो सकता है, गृह प्रवेश का भी ऐसा ही एक कार्यक्रम होगा. लेकिन उस समय कार्यालय भवन का काम पूरा हो गया, ऐसा नहीं माना जाएगा. क्योंकि कार्यालय के भवन के अंदर कार्यालय की सृष्टि करना, ये बाद में हम सब लोगों को मिलकर करना पड़ेगा. वही आत्मीयता, वही पवित्रता, वही शुचिता, वही प्रेरणा, वहीं स्वच्छता, जैसे पहले से चलती आ रही है. उस भवन में भी वही वातावरण बने तो फिर वो नाम सार्थक होंगे. अभी शिलान्यास के समय हम मन की तैयारी कर रहे होंगे या कर चुके होंगे कि भवन के लिए परिश्रम, व्यय की व्यवस्था अपने को करनी है. लेकिन साथ-साथ हम इसकी भी तैयारी करें कि जो नया भवन बनेगा, उसमें संघ का कार्यालय, उस प्रकार से वहां के भावों की परिपूर्ति करते हुए, हम सब लोग बनाएंगे.  सब स्वयंसेवकों के लिए और समाज के सभी लोगों के लिए वो एक पवित्रता का, प्रेरणा का, शुचिता का, आत्मीयता का केंद्र बने, इसकी चिंता भी हमको करना है. ये दायित्व एक भवन बनाने के निमित्त बढ़ा हुआ, बड़ा भवन निर्माण करते हुए बढ़ा हुआ, बड़ा दायित्व भी हम अपने सिर पर ले रहे हैं. इसका ध्यान रखकर हम सब लोग अपनी तैयारी करें. इतना ही एख निवेदन आप सबके सामने रखता हूं.
कार्यक्रम में सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी, दिल्ली प्रांत संघचालक कुलभूषण आहुजा जी, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी जी, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ जी, अमित शाह जी, केशव समारक समिति के अध्यक्ष श्याम सुंदर अग्रवाल जी, महामंत्री मूलचंद जैन जी, समिति के उपाध्यक्ष एवं दिल्ली प्रांत सह संघचालक आलोक कुमार जी सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.
कार्यक्रम के पश्चात केशव स्मारक समिति के उपाध्यक्ष आलोक कुमार जी ने पत्रकार वार्ता में कहा कि वर्तमान संघ कार्याल की भूमि सन् 1947 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरू जी ने नाम हुई थी. सन् 1972 में श्रीगुरू जी ने निर्णय लिया कि संपत्ति अपने नाम नहीं रखनी, तत्पश्चात केशव स्मारक समिति का गठन हुआ और भूमि समिति के नाम की गई. उस समय आवश्यकता के अनुसार भवन का निर्माण किया गया, अब कार्य को देखते हुए बड़े भवन की आवश्यकता अनुभव हुई तो नए भवन की योजना बनी.
उन्होंने बताया कि नया भवन सात मंजिला होगा, और उसमें 700 गाड़ियों की पार्किंग की सुविधा होगी. भवन में तीन ब्लॉक होंगे, अंतिम ब्लॉक में वरिष्ठ अधिकारियों के आवास की व्यवस्था रहेगी. भवन के निर्माण पर करीब 70 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है और तीन साल में निर्माण कार्य पूरा होने की संभावना है. नए भवन में दिल्ली प्रांत कार्यालय, केंद्रीय व क्षेत्र कार्यालय, प्रचार विभाग की आवश्यकता के अनुसार कार्यालय, व आवास व्यवस्था, पुस्तकालय, डिस्पेंसरी भी होगी.
उन्होंने कहा कि नए भवन के निर्माण के लिए नक्शा पास करवाने के साथ ही समस्त विभागों से अनुमति लेने की प्रक्रिया वर्ष 2013 में शुरू की गई थी. जो अब 2016 में पूरी होने के पश्चात निर्माण कार्य शुरू किया जा रहा है. दिल्ली में एक लाख के करीब स्वयंसेवक व संघ हितैषी हैं, समय व आवश्यकता अनुसार भवन निर्माण के लिए उनसे ही राशि एकत्रित की जाएगी. उनके प्रांत कार्यवाह भारत भूषण जी भी उपस्थित थे.
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उत्कट आत्मीयता है संघ कार्य का आधार – डॉ. मोहन भागवत जी

उत्कट आत्मीयता है संघ कार्य का आधार – डॉ. मोहन भागवत जी

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने रविवार को केशव स्मारक समिति के नए भवन (केशव कुंज, संघ कार्यालय) के निर्माण का भूमि पूजन व शिलान्यास किया. कार्यक्रम में उपस्थित स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि जब अपना कार्य शुरु हुआ, तब हम साधनहीन अवस्था में थे और आज भी साधनहीन अवस्था में काम करने की हमारी शक्ति भी है और तैयारी भी है, क्योंकि अपने कार्य का यह स्वभाव है. डॉ. साहब जिन कागजों पर पत्र लिखते थे, उसके शीर्षक में एक मुद्रित पंक्ति रहती थी. कार्य की सिद्धि तो कार्यकर्ताओं के सत्व के भरोसे होती है, उपकरणों का महत्व नहीं रहता. कार्य हमने शुरु किया, तब हमने विचार ही नहीं किया कि हमारे पास साधन क्या हैं और कौन से साधन हमको चाहिए. अपने देश, राष्ट्र, समाज उसका दुःख, उसकी दुरावस्था हमारी प्रेरणा रही और जैसे अपने किसी अत्यंत आप्त को संकट में देख कर आदमी बिना विचार किए दौड़ पड़ता है, वैसे हम दौड़े. और वही उत्कट आत्मीयता आज भी हमें दौड़ा रही है. हमको किसी साधन की आवश्यकता नहीं है. इसलिए अपना भवन बनेगा, यह कहा गया है कि उसमें मुख्यतः संघ कार्यालय रहेगा. लेकिन संघ ने अपने नाम पर कोई प्रॉपर्टी नहीं है. तरह-तरह के सेवा कार्य करने वाले न्यासों के भवन जगह-जगह है, यह भी वैसा ही रहेगा. लेकिन एक तांत्रिकता है, विधि-विधान के तहत निर्दोष व्यवस्था, उसका पूर्णतः पालन हो ऐसी व्यवस्था करना, उसको उस विधि का जो भाव है, उसके अनुसार ही चलाना. यह स्वयंसेवक का स्वभाव रहता है, वैसे ही चले. लेकिन हम सब लोग जानते हैं कि कुल मिलाकर ऐसे सब भवनों को, वहां-वहां के स्वयंसेवक, वहां-वहां का समाज भी संघ कार्यालय के रूप में जानता है. अब हमारी ऐसी स्थिति है कि अगर आवश्यकता बढ़ी है तो उस आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए न्यूनतम आवश्यक जितना है, उतना हम जुटा सकते हैं, और वो जुटाते हैं. क्योंकि साधनहीन निष्कांचन रहने में गौरव अथवा वैसे रहने का कोई हमारा शौक नहीं है. कार्य के लिए जितना आवश्यक है उतना चाहिए. पहले था ही नहीं, बिना उसके भी काम किया. अब हो सकता है इसके कारण कार्य करने में सुविधा, कार्य करने की गति में वृद्धि होती है तो हम करेंगे. लेकिन पहली बात तो यह है कि इन साधनों के स्वामी हम रहते है, उस पर हम निर्भर नहीं रहते. दूसरी बात है साधन भी एक तांत्रिकता है.
संघ कार्यालय है यानि क्या है, वो भवन ही होना चाहिए, ऐसा भी है क्या, ऐसा नहीं है. संघ प्रारंभ हुआ, तब संघ का कोई कार्यालय नागपुर में नहीं था. मोहिते शाखा लगी, वो पुराना एक बाड़ा था, उसके खंडहर में एक तलघर भी था, तलघर के दो तीन कमरे साफ करके उसमें कार्य चलता रहा. डॉ. साहब सुबह एक मोहल्ले में एक घर में, दोपहर एक मोहल्ले में एक घर में ऐसे बैठते थे, वहीं से काम होता था और बाकी समय वह अपने घर में होते थे. वहीं पर बैठकें होती थीं. बाद में वहां एक दशोत्तर नाम के सज्जन थे, उन्होंने अपने बाड़े में एक कमरा खाली कर दिया बिना किराये अपना काम वहां से चले तो बहुत दिन वहां पर कार्यालय चला. फिर धीरे-धीरे आज जहां कार्यालय है, वहां की भूमि हमको प्राप्त हुई और 1940 में वहां हमने आवश्यक जैसा भवन बनाया. तो भवन है, भवन होना चाहिए, भवन बन रहा है, ये हमारे लिए आनंद की बात है. कैसे बनेगा, कैसा बनेगा, हमारी उत्सुकता रहना भी स्वाभाविक है. लेकिन हम जानते हैं कि केवल भवन बनने से हम उसको कार्यालय नहीं कहते. कार्यालय एक वातावरण का नाम है. केशव स्मारक समिति का भवन रहेगा, उसमें संघ कार्यालय का काम चलेगा. हो सकता है कि जैसे केशव कुंज के साथ-साथ इतिहास संकलन समिति का कार्यालय था, संस्कृत भारती वाले थे. ऐसे अनेक संगठनों के नाम पट्टा यहां पर थे, वैसे वहां पर भी होगा. लेकिन कुल मिलाकर उस भवन में जाने से हम कहेंगे संघ कार्यालय क्योंकि ये एक या अनेक संस्थाओं का कार्यालय, ऐसा उसका स्वरूप नहीं रहता है. हम जानते हैं कि हम सब लोगों का एक कुटुंब है और उस कुटुंब का वो स्थान है.  कौटुंबिक वातावरण रहता है, वो आत्मीयता रहती है, परस्पर संबंधों की वह पवित्रता रहती है. भारत माता की पूजा का मंदिर हम अपने भावों में मानते हैं, तो उस पूजा भाव की पवित्रता सारे वातावरण में अनुभव होती है. अपने समाज के प्रति संवेदना हमको कार्य में प्रवृत्त करती है, तो कार्यालय में जाने से वो संवेदना अपने हृदय में प्रस्फुरित होने से समाज के लिए सक्रिय होने की प्रेरणा भी मिलती है. अब स्वयंसेवक मिलकर भवन को अच्छा बनाएंगे, पर्याप्त बनाएंगे, सारा काम बारिकी से ठीक संपन्न हो जाएगा. परंतु कार्यालय का ये भवन पूरा बन जाने के बाद हो सकता है, गृह प्रवेश का भी ऐसा ही एक कार्यक्रम होगा. लेकिन उस समय कार्यालय भवन का काम पूरा हो गया, ऐसा नहीं माना जाएगा. क्योंकि कार्यालय के भवन के अंदर कार्यालय की सृष्टि करना, ये बाद में हम सब लोगों को मिलकर करना पड़ेगा. वही आत्मीयता, वही पवित्रता, वही शुचिता, वही प्रेरणा, वहीं स्वच्छता, जैसे पहले से चलती आ रही है. उस भवन में भी वही वातावरण बने तो फिर वो नाम सार्थक होंगे. अभी शिलान्यास के समय हम मन की तैयारी कर रहे होंगे या कर चुके होंगे कि भवन के लिए परिश्रम, व्यय की व्यवस्था अपने को करनी है. लेकिन साथ-साथ हम इसकी भी तैयारी करें कि जो नया भवन बनेगा, उसमें संघ का कार्यालय, उस प्रकार से वहां के भावों की परिपूर्ति करते हुए, हम सब लोग बनाएंगे.  सब स्वयंसेवकों के लिए और समाज के सभी लोगों के लिए वो एक पवित्रता का, प्रेरणा का, शुचिता का, आत्मीयता का केंद्र बने, इसकी चिंता भी हमको करना है. ये दायित्व एक भवन बनाने के निमित्त बढ़ा हुआ, बड़ा भवन निर्माण करते हुए बढ़ा हुआ, बड़ा दायित्व भी हम अपने सिर पर ले रहे हैं. इसका ध्यान रखकर हम सब लोग अपनी तैयारी करें. इतना ही एख निवेदन आप सबके सामने रखता हूं.
कार्यक्रम में सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी, दिल्ली प्रांत संघचालक कुलभूषण आहुजा जी, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी जी, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ जी, अमित शाह जी, केशव समारक समिति के अध्यक्ष श्याम सुंदर अग्रवाल जी, महामंत्री मूलचंद जैन जी, समिति के उपाध्यक्ष एवं दिल्ली प्रांत सह संघचालक आलोक कुमार जी सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.
कार्यक्रम के पश्चात केशव स्मारक समिति के उपाध्यक्ष आलोक कुमार जी ने पत्रकार वार्ता में कहा कि वर्तमान संघ कार्याल की भूमि सन् 1947 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरू जी ने नाम हुई थी. सन् 1972 में श्रीगुरू जी ने निर्णय लिया कि संपत्ति अपने नाम नहीं रखनी, तत्पश्चात केशव स्मारक समिति का गठन हुआ और भूमि समिति के नाम की गई. उस समय आवश्यकता के अनुसार भवन का निर्माण किया गया, अब कार्य को देखते हुए बड़े भवन की आवश्यकता अनुभव हुई तो नए भवन की योजना बनी.
उन्होंने बताया कि नया भवन सात मंजिला होगा, और उसमें 700 गाड़ियों की पार्किंग की सुविधा होगी. भवन में तीन ब्लॉक होंगे, अंतिम ब्लॉक में वरिष्ठ अधिकारियों के आवास की व्यवस्था रहेगी. भवन के निर्माण पर करीब 70 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है और तीन साल में निर्माण कार्य पूरा होने की संभावना है. नए भवन में दिल्ली प्रांत कार्यालय, केंद्रीय व क्षेत्र कार्यालय, प्रचार विभाग की आवश्यकता के अनुसार कार्यालय, व आवास व्यवस्था, पुस्तकालय, डिस्पेंसरी भी होगी.
उन्होंने कहा कि नए भवन के निर्माण के लिए नक्शा पास करवाने के साथ ही समस्त विभागों से अनुमति लेने की प्रक्रिया वर्ष 2013 में शुरू की गई थी. जो अब 2016 में पूरी होने के पश्चात निर्माण कार्य शुरू किया जा रहा है. दिल्ली में एक लाख के करीब स्वयंसेवक व संघ हितैषी हैं, समय व आवश्यकता अनुसार भवन निर्माण के लिए उनसे ही राशि एकत्रित की जाएगी. उनके प्रांत कार्यवाह भारत भूषण जी भी उपस्थित थे.
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संस्कृति संरक्षण, सामाजिक समरसता एवं आर्थिक विकास के मूल में परिवार की भूमिका होती है और परिवार को परिष्कृत स्त्री करती है. -श्रीमती सुमित्रा महाजन

संस्कृति संरक्षण, सामाजिक समरसता एवं आर्थिक विकास के मूल में परिवार की भूमिका होती है और परिवार को परिष्कृत स्त्री करती है.  -श्रीमती सुमित्रा महाजन 



इंविसंके (नई दिल्ली). राष्ट्र सेविका समिति के तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर के तीसरे और अंतिम दिन राष्ट्र के विकास में परिवार की भूमिका संगोष्ठी के अध्यक्षीय भाषण में लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने कहा कि हमें अपने परिवार की स्त्री को सक्षम बनाना होगा क्योंकि संस्कृति संरक्षण, सामाजिक समरसता एवं आर्थिक विकास के मूल में परिवार की भूमिका होती है और परिवार को परिष्कृत स्त्री करती है. समाज की आधार शक्ति परिवार होता है, परिवार की आधार शक्ति स्त्री होती है.
उन्होंने कहा संस्कृति संरक्षण में स्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि माँ ही परिवार में संस्कारों की पोषक होती है. जिस प्रकार शरीर के हर अंग का महत्व और कार्य है. ठीक उसी प्रकार समाज के प्रति समाज के हर वर्ग, संप्रदाय का महत्व है. जब समाज के सभी अंग भेदभाव और आपसी वैमनस्य भुलाकर आपस में मिलकर कार्य करेंगे, तभी सामाजिक समरसता आएगी, उन्नति एवं विकास होगा.
उन्होंने कहा मात्र दिखावे और ढोल पीटने से समाज में बदलाव नहीं आएगा. समाज में परिवर्तन लाने के लिए हमें खुद को बदलना होगा.
उन्होंने अपने परिवार के अनेक ऐसे उदहारण दिए जिनमें अपनी दादी, माँ और सास से उन्होंने सामाजिक समरसता का पाठ सीखा. जिसमें गाँव के कुम्हार, धोबी, सपेरे और अन्य जातियों के साथ सदभावपूर्ण और सहयोगपूर्ण व्यव्हार किया जाता था और उनकी हर संभव मदद की जाती थी. उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता संस्कारों से आती है, अलग-अलग सम्प्रदायों के साथ भोजन करने से नहीं आती है और ना मात्र अंतरजातिय विवाह करने से सामाजिक समरसता आती है.
उन्होंने कहा आर्थिक विकास में परिवार की स्त्री बहुत अच्छा योगदान दे सकती है. यदि वो दृढ़ता के साथ अपने पति और पुत्र को कहे कि किसी कीमत पर काला धन या रिश्वत की कमाई उसके घर में नहीं आएगी. जिससे समाज भ्रष्टाचार रहित बनेगा. एक हजार और पांच सौ के नोटों के बंद होने पर देश में जिस तरह लोगों में अफरा-तफरी मची है, उसे घर की स्त्रियाँ कंट्रोल करने में सक्षम हैं. क्योंकि वो ये अच्छे से जानती हैं कि सरकार ने ये कदम आतंकवाद और नशे के व्यापर को रोकने के लिए उठाया है.
लगभग छः वर्ष की आयु से राष्ट्र सेविका समिति की सेविका रही श्रीमती सुमित्रा महाजन को गर्व है कि समिति ने उन्हें बहुत अच्छे संस्कार दिए. जो कि परिवार के संस्कारों के साथ मिलकर सोने पर सुहागा बन गए. उन्होंने समिति के कार्यों की सराहना की और प्रसन्नता जताई कि 80 वर्ष की अपनी यात्रा में समिति ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं. हजारों-लाखों स्त्रियों को बौद्धिक, सांस्कृतिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाया है.
उनका ये दृढ विश्वास है कि समिति हर परिस्थिति, हर काल में अपने मूल्यों का संरक्षण करेगी और देशभर की महिलाओं को प्रेरित भी करेगी.

इस संगोष्ठी में कालिदास विश्वविद्यालय, रामटेक, नागपुर की उपकुलपति डॉ. उमा वैद्य ने परिवार के संस्कृति एवं संरक्षण विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति शाश्वत है. इसका प्रवाह निरंतर रहेगा क्योंकि इसके मूल में परिवार है और परिवार ही संस्कृति की रक्षा करता है.

संगोष्ठी की अन्य वक्ता महिला विश्वविद्यालय, विजयपुर की पूर्व उपकुलपति डॉ. मीना चंदावरकर ने कहा कि मानवीय संबंधों का नाम ही परिवार है. परिवार नींव है तो समाज इमारत. हमें समरस नींव और इमारत के लिए समाज से भेदभाव और जात-पात को त्यागना होगा.

वित्त आयोग, राजस्थान की अध्यक्ष डॉ. ज्योतिकिरण शुक्ला ने परिवार के आर्थिक विकास पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि भारतीय विकास की अवधारणा परिवार केन्द्रित है, जिसका पोषण स्त्रियाँ करती हैं. हमारे यहाँ भौतिकता के बजाय आध्यात्मिकता में संतोष मिलता है. जब हम अपने स्त्रीश्रम को मौद्रिक रूप में देखते हैं तो हमारी जीडीपी 40 प्रतिशत बढ़ जाती है. इससे सिद्ध होता है कि आर्थिक विकास में परिवार और महिला की महत्वपूर्ण भूमिका है.   

शनिवार, 12 नवंबर 2016

मातृशक्ति के बिना भारत न अपने परम वैभव को पा सकता है न ही विश्व को परम वैभव पर ले जा सकता है.- डॉ. मोहनराव भागवत



मातृशक्ति के बिना भारत न अपने परम वैभव को पा सकता है न ही विश्व को परम वैभव पर ले जा सकता है.- डॉ. मोहनराव भागवत 
राष्ट्र सेविका समिति का त्रिदिवसीय अखिल भारतीय कार्यकर्त्ता प्रेरणा शिविर प्रारम्भ 





इंविसंके (नई दिल्ली). भारत जैसी कुटुंब व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है और अब ये विश्व के लिए प्रेरणा का श्रोत है क्योंकि कुटुंब में जोड़ने की ताकत है. सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने दिल्ली में राष्ट्र सेविका समिति के तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर का उद्घाटन करते हुए मातृशक्ति एवं परिवार के संस्कारों पर विशेष बल दिया. 


उन्होंने कहा कि मातृशक्ति के बिना भारत न अपने परम वैभव को पा सकता है न ही विश्व को परम वैभव पर ले जा सकता है. 


वर्तमान समस्याओं के बारे में अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि जिस देश के लोग समुद्र लांघकर दूसरे देश में जाने को भी समस्या समझते थे. आज उस देश के लोग मंगल पर जा रहें हैं. लेकिन, साथ ही विज्ञान और प्रगति के कारण पर्यावरण की समस्याएं जन्म ले रही हैं. पूरी दुनिया आज पर्यावरण की चिंता कर रही है. दुनिया भर में पर्यावरण को बाचने के लिए उसमें केवल समीक्षा होती है. लेकिन, सम्मेलनों में जो तय किया जाता है वो पूरा होता है क्या? 


उन्होंने सुझाव दिया कि अब मनुष्य को अपने छोटे-छोटे स्वार्थ छोड़ने पड़ेंगें. क्योंकि स्वार्थ ही मनुष्य के विनाश का सबसे बड़ा कारण है. मनुष्य अपने आप को सृष्टि का स्वामी मानने लगा है. सृष्टि से हमारे संबंध एक उपभोक्ता के संबंध बन गए हैं और यही फाल्ट लाइन मनुष्य को गर्त की ओर ले जा रही है.  


आजकल पांच सौ और एक हजार के नोटों का बंद किया जाना चर्चा का विषय है. मोहन भागवत जी के भाषण में ये विषय भी आया. उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक देखते हुए ये लगता है सारा लेन-देन कैशलेस हो जायेगा. भविष्य में बढ़ती कट्टरता और आतंकवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि आज कट्टरता के कारण मनुष्य ही मनुष्य का जानी-दुश्मन बन गया है. आतंकवाद पर चर्चा करने में ऐसे लोग और देश भी शामिल हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा और प्रश्रय दे रहें हैं.  


राष्ट्र सेविका समिति ने अपनी स्थापना के 80 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली में तीन दिन के प्रेरणा शिविर का आयोजन किया है. जिसमें भारता के कोने-कोने से लगभग 3000 सेविकाएं हिस्सा ले रहीं हैं. दिल्ली के छत्तरपुर में एक लघु भारत की झलक देखी जा सकती है. जहां लद्दाख से लेकर केरल तक और सौराष्ट्र से लेकर अरुणाचल तक की संस्कृतियों का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है. सेविकाएं अपने-अपने राज्यों की पारंपरिक वेश-भूषाओं में नजर आ रही हैं. 


उदघाटन समारोह में जैन मुनि श्री जयंत कुमार जी भी उपस्थित थे. उन्होंने कहा कि संघ और जैन धर्म त्याग की राह पर चलते हुए समाज और देश के लिए सराहनीय कार्य कर रहें हैं और ये एक नदी के दो किनारे समान हैं. उन्होंने कहा कि त्याग ही भारतीय सोच का मूल है. उन्होंने इस बात पर चिंता जताई की ज्यादातर सत्ताधारी लोग पहले अपना स्वार्थ, फिर पार्टी का स्वार्थ और अंत में राष्ट्रहित के बारे में सोचते हैं. लेकिन सबसे पहले देश हित आना चाहिए. 


राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय महासचिव सीता अन्नदानम् ने सेविका समिति की 80 वर्ष की गौरवमयी यात्रा को बहुत संक्षेप में रखा और गतिविधियों का लेखा-जोखा भी दिया.
 

इस उद्घाटन समारोह में अनेक जानी-मानी महिलाएं विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थीं जिनमें गोवा की माननीया राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा, पंजाब केसरी समूह की निदेशिका श्रीमती किरण चोपड़ा और अनेक केंद्रीय मंत्रियों की पत्नियां भी उपस्थित रहीं.


शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

यज्ञ सर्वश्रेष्ठ कर्म - मुरलीधर :: विश्व संवाद केन्द्र के नये भवन का भव्य उद्घाटन समारोह सम्पन्न

यज्ञ सर्वश्रेष्ठ कर्म - मुरलीधर

विश्व संवाद केन्द्र के नये भवन का भव्य उद्घाटन समारोह सम्पन्न





जोधपुर, 10 नवम्बर। यज्ञ व हवन करना मानव का सर्वश्रेष्ठ कर्म है। वर्तमान समय में बढ़ रहा प्रदूषण वातावरण सम्बन्धित अन्य समस्याऐं यज्ञ व हवन न करने का ही दुष्परिणाम है। यह विचार अखिल भारतीय सीमाजन कल्याण समिति के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री मुरलीधर ने उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। मौका था विश्व संवाद केन्द्र के हेड़गेवार भवन, नेहरु पार्क के नजदीक स्थित नये कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर आयोजित यज्ञ एवं हवन समारोह का।


इस बारे में जानकारी देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचार प्रमुख मनोहर शरण ने बताया कि इस नये कार्यालय से ही अब विश्व संवाद केन्द्र की समस्त गतिविधियों का संचालन किया जायेगा। मनोहर शरण ने बताया कि विश्व संवाद केन्द्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार विभाग के अन्तर्गत एक ईकाई है जिसका मुख्य कार्य सूचना (information ) का संकलन तथा वितरण करना है। मनोहर शरण ने यह भी बताया कि विश्व संवाद केन्द्र समाचार संस्था नही बल्कि विचार संस्था है।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक चन्द्रशेखर, प्रान्त संघचालक ललित शर्मा, हेड़गेवार भवन के कार्यालय प्रमुख दुर्गा सिंह, वरिष्ठ एवं वयोवृद्ध प्रचारक हरिओम, रतन लाल गुप्ता, हरदयाल, महेन्द्र दवे, गंगा बिशन, गंगा विष्णु सहित शहर के कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। समारोह के अन्त में विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर टोली के सदस्य सुधांशु टाक ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।

औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति के लिए भोपाल में 'लोकमंथन'


औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति के लिए भोपाल में 'लोकमंथन'

विधानसभा परिसर में 12, 13 एवं 14 नवम्बर को होगा आयोजन

 देश-दुनिया से भोपाल आ रहे हैं प्रख्यात विद्वान
लोक मंथन के दो हिस्से रहेंगे- मंच और रंगमंच


भोपाल, 10 नवम्बर, 2016 राष्ट्र सर्वोपरि के विचार से ओतप्रोत विचारकों और कर्मशीलों का तीन दिवसीय राष्ट्रीय आयोजन लोकमंथन 12 से 14 नवम्बर तक विधानसभा परिसर, भोपाल में आयोजित हो रहा है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित इस आयोजन की विशेषता है कि इसमें राष्ट्र निर्माण में कला, संस्कृति, इतिहास, मीडिया और साहित्य की भूमिका पर विमर्श किया जाएगा। 'औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति' लोकमंथन का केंद्रीय विषय है। इसलिए यह अपने तरह का पहला आयोजन है। लोकमंथन में शामिल होने आ रहे देश-दुनिया से प्रख्यात विचारक और रचनाधर्मियों के परस्पर विचार-विमर्श से भारत के साथ विश्व को नई दृष्टि मिलेगी। यह तीन दिवसीय विमर्श गहरी वैचारिकता की वजह से हमारे राष्ट्र के उन्नयन में सहायक सिद्ध होगा। समता, संवेदनात्मकता, प्रगति, सामाजिक न्याय, सौहार्द्र और सद्भाव की आकांक्षा राष्ट्रीयता के मूलमंत्र है। इसी भावना के साथ सामाजिक बदलाव और समाज का विकास इस राष्ट्रीय विमर्श का मूल उद्देश्य है।
            लोकमंथन का आयोजन मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग, भारत भवन और सामाजिक वैचारिक संस्था प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त आयोजन में किया जा रहा है। लोकमंथन में शामिल होने के लिए देशभर से लगभग 800 प्रतिभागी आ रहे हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी में तीन दिन 'लघु भारत' के दर्शन होंगे। ऑनलाइन पंजीयन के जरिए लोकमंथन में शामिल होने वाले प्रतिभागियों में अधिकतर 40 वर्ष से कम आयु के युवा हैं। वहीं, विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ के तौर पर 130 से अधिक विद्वान भी इसमें शामिल हो रहे हैं। यह जानकारी गुरुवार को विधानसभा परिसर में आयोजित प्रेसवार्ता में दी गई। प्रेसवार्ता को लोकमंथन आयोजन समिति के महासचिव जे. नंदकुमार, भारत नीति प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा और आयोजन समिति के संयोजक दीपक शर्मा ने संबोधित किया।
            श्री नंदकुमार ने बताया कि लोकमंथन का उद्देश्य है कि राष्ट्र निर्माण को लेकर अब तक बनी पश्चिम परस्त अवधारणा को दूर कर भारत के इतिहास, कला, विज्ञान, संस्कृति, भूगोल और मनोविज्ञान को यूरोपीय आस्थावाद से बाहर निकालकर राष्ट्रीयता की संकल्पना की स्थापना की जाए। उन्होंने बताया कि नवउदारवाद और वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में राष्ट्रीयता का देशज या यूँ कहें कि शुद्ध भारतीय पाठ तैयार करने की योजना है। उन्होंने बताया कि लोकमंथन में मीडिया, कला, संस्कृति, इतिहास, साहित्य और अन्य क्षेत्रों से जुड़े स्वतंत्र विचारक और चिंतक शामिल होने वाले हैं। उन्होंने बताया कि लोक मंथन के दो हिस्से रहेंगे- मंच और रंगमंच। मंच से विभिन्न विषयों पर विचारक विमर्श करेंगे। उसी दौरान रंगमंच के जरिए कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर राष्ट्रीय भावना को प्रकट करेंगे। कार्यक्रम का उद्घाटन 12 नवम्बर को सुबह 10 बजे रहेगा, इसके बाद तीन दिन तक विभिन्न विषयों पर गहन विमर्श किया जाएगा। श्री नंदकुमार ने बताया कि लोकमंथन को वार्षिक कार्यक्रम का स्वरूप भी दिया जाएगा।
अकेला कश्मीर भारत के लिए खतरनाक : उन्होंने बताया कि अलग-अलग पहचान महत्वपूर्ण हैं, उनका स्वागत होना चाहिए। लेकिन, भारत के बाहर उनकी कल्पना ठीक नहीं। कश्मीर हो या केरल, सबकी स्वतंत्र पहचान का सम्मान है, क्योंकि इनके बिना भारत पूर्ण नहीं है। लेकिन, भारत के बाहर जाकर अकेला कश्मीर खतरनाक है। लोकमंथन में सभी प्रकार की अस्मिता के प्रश्नों पर गंभीरता से मंथन किया जायेगा।
देश तोड़ने का प्रयास कर रही है 'ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड' : लोक मंथन आयोजन समिति के महासचिव जे. नंदकुमार ने बताया कि आजकल कुछ लोग देश को तोड़ने के सूत्र खोज रहे हैं। इस 'ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड'का एजेंडा है कि कैसे देश को नुकसान पहुँचाया जाए। इसके लिए वह हर संभव प्रयास कर रहे हैं। लेकिन,उनका सफल होना असंभव है। क्योंकि, देश के सामान्य व्यक्ति के जीवन में भी राष्ट्रीयता प्रकट होती है। सामान्य लोग देश को एकसूत्र में बाँधकर रखे हुए हैं। उन सामान्य लोगों के जीवन में कैसे राष्ट्र प्रकट होता है, इसी पर लोक मंथन में विमर्श होगा।
मुख्यमंत्री करेंगे 11 नवम्बर को सुबह 10 बजे प्रदर्शनी का लोकार्पण
लोकमंथन में लोक कला-संस्कृति के संबंध में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी का लोकार्पण 11 नवम्बर, शुक्रवार सुबह 10 बजे किया जाएगा। प्रदर्शनी का लोकार्पण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, विधानसभा अध्यक्ष सीतासरन शर्मा और संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले करेंगे। इस प्रदर्शन का निर्माण लोक कलाकारों ने किया है। लोकमंथन के दौरान यह प्रदर्शनी सभी कला-संस्कृति प्रेमियों के लिए खुली रहेगी। 

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित