बुधवार, 28 अप्रैल 2010

सैलानी देखेंगे बॉर्डर का नजारा


बीकानेर। अंतरराष्ट्रीय सीमा, तारबंदी, जीरो लाइन सीमा चौकी, बॉर्डर आउट पोस्ट अब अब इतने गोपनीय नहीं रहेंगे। बल्कि अब ये पर्यटन स्थल होंगे। सीमा सुरक्षा बल के पश्चिमी सीमान्त के श्रीगंगानगर सेक्टर के बाद बीकानेर सेक्टर में भी इसे "प्रायोगिक प्रोजेक्ट" के रूप में लागू किया जा रहा है। बीकानेर सेक्टर की दो चौकियों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। इनमें खाजूवाला के पास "सिसाड़ा" और रणजीतपुरा से कुछ दूरी पर स्थित "मारूति" चौकियां शामिल हैं। सुरक्षा और अन्य तथ्यों के अध्ययन के बाद ही अन्य चौकियों पर ऎसी परियोजना शुरू करने पर विचार किया जाएगा।

श्रीगंगानगर सेक्टर की "हिन्दूमल कोट" चौकी को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया गया है। वहां तारबंदी के पार नजारा देखने के लिए स्तरीय दूरबीन तथा धूप से बचाव व छाया के लिए शैड बनाया गया। अब बीकानेर सेक्टर की "सिसाड़ा" और "मारूति" चौकी पर सुविधाएं विकसित करने के लिए सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (बीएडीपी) ने 20-20 लाख रूपए स्वीकृत किए गए हैं। इस राशि से इन चौकियों पर आगुंतकों के लिए विश्राम स्थल,फर्नीचर, बाथरूम तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी। सिसाड़ा में विश्राम गृह बनकर तैयार है। इसे सिसाड़ा चौकी से लगभग एक किलोमीटर दूर पीरजी की दरगाह के पास विकसित किया गया है। वहां ओपी टावर भी है। यहां दूरबीन आदि उपलब्ध करवाई जाएंगी। सैलानी टावर पर चढ़कर सीमा पार का नजारा देख सकेंगे। ऎसी ही सुविधाएं मारूति चौकी पर भी विकसित की जाएंगी।

स्कूली बच्चों को प्राथमिकता
"सिसाड़ा चौकी के पास ही पीर बाबा की दरगाह के पास विश्रामगृह बनकर तैयार है। वहां टावर भी है। नागरिकों को वहीं से सीमा का नजारा देखने दिया जाएगा।स् कूली बच्चों को प्राथमिकता दी जाएगी। "-विपिन कुमार सिंह, उपमहानिरीक्षक, सीमा सुरक्षा बल बीकानेर सेक्टर40 लाख रूपए स्वीकृत "बीकानेर सेक्टर की दो चौकियों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम से 20-20 लाख रूपए की स्वीकृति मिली हैं।

हिन्दूमल कोट जैसा ही रूझान मिला तो मारूति व सिसाड़ा के बाद अन्य चौकियों को भी पर्यटन के लिए विकसित किया जा सकता है।"-हनुमानमल आर्य, सहायक निदेशक, पर्यटन विभाग

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

आजादी की लड़ाई का महायोद्धा - कुंवर सिंह




‘गनीमत रही कि 1857 की गदर के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी साल थी। अगर वो जवान होते तो अंग्रेजों को उसी वक्त भारत छोड़ना पड़ता।’ ब्रिटिश इतिहासकार होम्स की ये पंक्तियां आजादी की पहली लड़ाई के महायोद्धा बाबू कुंवर सिंह के ‘होने’ को ठीक-ठीक व्याख्यायित करती हैं।
इन पंक्तियों में आजादी की दीवानगी की वह आग है जो कभी इस बूढ़े शेर की आंखों में हुआ करती थी। पर अफसोस अपने किये के मुताबिक कुंवर सिंह इतिहास में वो जगह नहीं पा सके जिसके हकदार थे। लोक स्मृतियों में दर्ज कुंवर सिंह की वीरता के किस्से सुनने के बाद ऐसा ही लगता है। ऐसे में इतिहास के पन्नों और लोक जीवन में रची-बसी कुंवर सिंह की वीरता की दास्तान में बड़ा असंतुलन नजर आता है।
बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर में 23 अप्रैल 1777 को पैदा हुए थे कुंवर सिंह। पिता साहबजादा सिंह जगदीशपुर रियासत के जमींदार थे। सम्राट विक्रमादित्य के वंश में जन्म लेने वाले कुंवर सिंह को बचपन से ही तीरंदाजी, घुड़सवारी और बंदूक चलाने का शौक था। हालांकि इनकी जमींदारी बिहार की बड़ी रियासतों में शुमार नहीं थी, तब तीन लाख रूपये सालाना की आय थी। इसमें से आधी रकम अंग्रेजी हुकूमत के हिस्से चली जाती थी। पिता ही की तरह अपनी रियाया का खून चूसकर अंग्रेजों का खजाना भरना कुंवर सिंह को गवारा नहीं था।
लगान वसूली न होने के चलते उन पर तेरह लाख रूपये का सरकारी कर्ज हो गया। अंग्रेजों के अत्याचार और उनकी हड़प नीति ने कुंवर सिंह को अंदर तक हिला दिया। बचपन से ही बगावती मिजाज के कुंवर सिंह ने 1845-46 आते-आते अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। अंग्रेजों को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने एक चाल चली। 1855-56 में कर्ज में डूबे होने की दलील पर उनकी जमींदारी सरकारी राज्य प्रबंध के तहत ले ली गयी।
1857 में जमींदारी को राज्य प्रबंध से मुक्त कर दिया गया और एक माह के भीतर मालगुजारी की रकम अदा करने का आदेश दिया गया। ऐसा इसलिए ताकि कुंवर सिंह कर्ज अदायगी के बंदोबस्त में उलझ जाएं और विद्रोह की तैयारियां ठंडी पड़ जाएं। हालांकि 1857 के प्रथम मुक्ति संग्राम को स्वार्थों के निमित्त कुछ भारतीय शासकों द्वारा लड़ी गयी लड़ाई बताने वाले विद्वान इस कोण से कुंवर सिंह को भी देखते हैं पर यह भूल कर कि अंग्रेजों के खिलाफ होने वाली लड़ाई के लिए कर्ज में डूबे कुंवर सिंह ने चंदा दिया था। यदि स्वार्थ ही सर्वोपरि होता तो वह उन अंग्रेजों के खिलाफ बगावत पर क्यों उतरते जिनके कब्जे में उनकी पूरी जमींदारी फंस चुकी थी। जगदीशपुर पर अंग्रेजों ने कब्जा जमा लिया था। निरक्षर कुंवर सिंह को उचित-अनुचित का फर्क पता था।
तभी तो 1857 के विद्रोह में वे राजाओं, जमींदारों के साथ ही आम जन की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने देश के सैकड़ों जमींदारों और राजघरानों को लड़ाई का न्योता भेजा। यह और बात है कि उनका साथ कुछ छोटे-मोटे जमींदारों ने ही दिया पर अपने उदार व्यक्तित्व, नेक इरादों और लोकप्रियता की बदौलत आम जन का उन्हें इतना बड़ा सहयोग मिला कि वे 1857 की गदर के पर्याय बन गये। दुनिया के इतिहास में अस्सी साल के लड़ाके की दास्तान नहीं; ऐसा नहीं कहा जा सकता। कुंवर सिंह इसकी इकलौती अप्रतिम मिसाल हैं। जिस उम्र में इंसान का एक पैर कब्र में होता है उस उम्र में उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की कब्र खोदने का काम किया। तकरीबन एक साल तक कालपी से कानपुर और ग्वालियर से लखनऊ तक घोड़े पर सवार आजादी का यह दीवाना क्रांति की मशाल जलाता रहा।
लगातार लड़ता रहा और अंग्रेजी फौज को धूल चटाता रहा। इस बूढ़े राजपूत शासक की तलवार गोरी गर्दनों के खून की प्यासी बन चुकी थी। और अंग्रेजों की उन्हें पकड़ने की तमाम कोशिशें असफल हुईं। इन्हीं कोशिशों के क्रम में फैजाबाद, आजमगढ़, गाजीपुर होते हुए उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के शिवपुर घाट से गंगा पार कर जगदीशपुर लौट रहे कुंवर सिंह और उनकी सेना पर अंग्रेजों ने हमला कर दिया। इस हमले में उनकी बांह में गोली लग गयी। अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति कुंवर सिंह ने अपनी ही तलवार से अपनी बांह काट गंगा को यह कहकर अर्पित कर दी कि गोरी गोली से यह अपवित्र हो गयी है और इसे तू ही पवित्र करेगी। कुंवर सिंह इसी हाल में 22 अप्रैल 1858 को जगदीशपुर पहुंचे। अंग्रेजों ने यहां भी हमला किया और एक बांह के हो चुके कुंवर सिंह ने मोर्चा संभाल लिया। डेढ़ सौ में से सौ अंग्रेज सिपाही मारे गये, हमले का नेतृत्व कर रहा अंग्रेज अफसर ली ग्रांड भी और 23 अप्रैल को कुंवर सिंह का जगदीशपुर पर पुन: कब्जा हो गया।
यहां इस तिथि को आज भी ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। हालांकि अगले एक-दो दिनों के अंदर ही लड़ते-लड़ते चूर हो चुका यह ‘बूढ़ा जवान’ मौत की आगोश में समा गया (इतिहासकारों में कुंवर सिंह की मृत्यु तिथि को लेकर मतैक्य नहीं। कोई इसे 24 तो कोई 26 अप्रैल बताता है)। पर आंखें जब बंद हुईं तब भी जगदीशपुर में स्वतंत्रता का परचम लहरा रहा था ।

चर्च ने किया शर्मसार

चर्च में यह क्या हो रहा है ? समज से परे है । चर्च सेक्स स्केंडल का पर्याय बनता जा रहा है। पादरियों ने सेक्स कर लिया और औरत गर्भवती हो गई तो उसे गर्भपात के लिए कहा जाता है अथवा बच्चे को जन्म देने का और फिर उसे गोद देने के लिए तैयार किया जाता है। और तो और यह सब सौदा होता है चर्च के बिशप के आदेश से पीडिता को समजौता करने का कहा जाता है अच्छीखासी रकम दी जाती है।

हमारे हिंदी समाचार पत्र पत्रिकाओ तथा सबसे आगे सबसे पहले ब्रेकिंग न्यूज़ में कटरीना फिसली जैसी न्यूज़ देने वालो के लिए इन समाचारों की कोई अहमियत नहीं है।


पादरियों की रंगीन मिजाजी के नमूने आये दिन सामने आ रहे है कुछ नमूने विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त कर आपके लिए निचे दिए है आप खुद आकलन करे की आखिर क्या हो रहा है और हिंदुस्तान में इनकी गतिविधियों पर कौन नजर रख रहा है। धर्म परिवर्तन की बात करे तो वोट बैंक की खातिर kuch rajnitigy इन गतिविधियों की सबसे बड़ी पोषक रही है । वे सभी लोग जो इन खतरों से आगाह करते है उन्हें सरकार संप्रदायी ताकते कह कर इतिश्री कर लेती है । राष्ट्रवादी संगठनो से तो इन्हें सदैव खतरा ही रहा है ।

padhiye aur janiye hakikat -------

Feature -Secret children of priests to sue

Published: April 20, 2010
When Pat Bond told her lover Henry Willenborg, a Franciscan priest, that she was pregnant, he urged her to have an abortion.
Bond, who was 28, had a miscarriage and then became pregnant again. This time Willenborg’s superiors urged her to give up the child for adoption.
Bond, from Missouri, kept the child but agreed to a vow of silence. In a signed contract with the Catholic Church, she undertook to keep the priest’s identity secret in exchange for financial support for her son, Nathan.
In America, Britain, Ireland, Germany, France, Italy and Austria, women made pregnant by priests have signed such pledges in exchange for hush money from the church.
Pope Benedict XVI refused to comment on the scandals on his flight to Malta for a weekend visit yesterday, saying only that the church had been “wounded by our sins”. But he faces a new battle over the children of priests. Many former lovers and their offspring are preparing to mount lawsuits.
Bond was 25 when she started a five-year relationship with Willenborg in 1983, after going to him for marriage counselling. He kissed her passionately as she left his parlour, then she left her husband.
After Bond became pregnant by him for the second time in 1986, Willenborg’s order, the Order of Friars Minor, offered her $50,000 and a confidentiality contract. “They said: ‘Here, take this money, sign this contract and you’ll have support for your child’. I was very naive and I signed,” said Bond.
She broke her promise of silence last year after the Franciscans refused to meet part of the cost of treatment for her son Nathan, then 22, who died in November from a brain tumour.
FULL STORY Errant priests' secret children to sue church (Times Online)

Source : http://www.cathnews.com/article.aspx?aeid=20746


From The Sunday Times
April 18, 2010


Errant priests’ secret children to sue church


The Vatican faces fresh scandals over the children of priests John Follain in Rome and Bojan Pancevski in Vienna

When Pat Bond told her lover Henry Willenborg, a Franciscan priest, that she was pregnant, he urged her to have an abortion.
Bond, who was 28, had a miscarriage and then became pregnant again. This time Willenborg’s superiors urged her to give up the child for adoption.
Bond, from Missouri, kept the child but agreed to a vow of silence. In a signed contract with the Catholic Church, she undertook to keep the priest’s identity secret in exchange for financial support for her son, Nathan.
In America, Britain, Ireland, Germany, France, Italy and Austria,women made pregnant by priests have signed such pledges in exchange for hush money from the church.
RELATED LINKS
· Jewish leaders' fury over abuse remark
· Paedophile priests 'must own up to their sins'
Pope Benedict XVI refused to comment on the scandals on his flight to Malta for a weekend visit yesterday, saying only that the church had been “wounded by our sins”. But he faces a new battle over the children of priests. Many former lovers and their offspring are preparing to mount lawsuits.
Bond was 25 when she started a five-year relationship with Willenborg in 1983, after going to him for marriage counselling. He kissed her passionately as she left his parlour, then she left her husband.
After Bond became pregnant by him for the second time in 1986, Willenborg’s order, the Order of Friars Minor, offered her $50,000 and a confidentiality contract. “They said: ‘Here, take this money, sign this contract and you’ll have support for your child’. I was very naive and I signed,” said Bond.
She broke her promise of silence last year after the Franciscans refused to meet part of the cost of treatment for her son Nathan, then 22, who died in November from a brain tumour.
When Willenborg’s liaisons with Bond, now 53, and another woman became public, the priest was suspended from his parish in Ashland, Wisconsin. He was treated for sex addiction, then returned to his pastoral duties. Catherine Schroeder, a St Louis lawyer for the Order of Friars Minor, declined to comment. Willenborg and the order failed to return calls and emails.
Other cases are reaching the US courts. In Maryland, two children of the late Father Francis Ryan are suing their local archdiocese and a religious order for $10m after discovering through DNA tests that he was their father.
Carla Latty, 58, and Adrian Senna, 65, say Ryan never admitted he was their father or made any payments to their late mother. Senna was sent to an orphanage, while Latty was put up for adoption.
Cait Finnegan, of the Good Tidings association, an American charity for priests and their lovers, has been contacted by nearly 2,000 women who had relationships with priests. She said one pregnant friend had been told by a bishop to “get rid of the child” — a comment she took to mean she should have an abortion. The woman kept the baby.
Thousands of priests in German-speaking countries are believed to have fathered children. Paul Zuhlener, an Austrian theologian, has estimated that up to 22% of Austrian priests have sexual relationships.
Sabine Bauer of the Austrian branch of We Are Church, a reform group, predicted a spate of lawsuits. “The children of priests, and their mothers, are the next ones who will take legal action against the church. Their numbers are large and they have been denied basic rights,” she said.
In Britain, Adrianna Alsworth, who has two children by a priest and runs the Sonflowers helpline for those who have had relationships with priests, said she knew of several women who had been offered confidentiality contracts in return for child support.
“The children aren’t given an opportunity to have a normal family life, and they suffer,” she said.
In Ireland, the former Down bishop Pat Buckley, who runs Bethany, a support group for women in relationships with priests, said he had dealt with two whose abortions had been paid for by priest lovers. In one case, the priest had accompanied the woman to England for the abortion.
In central Italy, Luisa, a psychologist who has an 18-month-old son by a priest, was told by her bishop: “If you give up the baby for adoption, you can stay with the priest and I’ll pretend there’s nothing wrong.” She refused but the couple have since broken up and the priest refuses to recognise the child.
Lorenzo Maestri, a former priest and member of Vocatio, an association for married priests in Italy, accused the Pope of leading a cover-up. “Benedict is responsible for the secrecy, because in 2001, as head of the Vatican office which dealt with all sexual problems involving priests, he ordered the bishops to send these cases to him in Rome,” Maestri said.
Benedict, whose fifth anniversary of his election is tomorrow, may acknowledge the child-abuse cases by agreeing to meet seven victims on his Malta visit. There is no such prospect for the children of priests. When asked what she would like the pontiff to do, Bond quoted her late son: “Nathan told me, ‘I want the Pope to tell me he’s sorry. The church abandons us, it calls us legal obligations. It doesn’t even call us by our names’.”
- The Vatican has been hit by another embarrassing revelation after the leaking of a letter written in 2001 by a senior Vatican official praising a French bishop when he was convicted of failing to report a paedophile priest to the police. Cardinal Dario Castrillon Hoyos wrote to Bishop Pierre Pican: “I congratulate you for not denouncing a priest to the civil administration.”
The priest concerned, Father René Bissey, was jailed for 18 years.
Additional reporting: Justine McCarthy in Dublin

ब्राजील में भी सामने आया चर्च का सेक्स स्कैंडल


साओ पाउलो। सेक्स स्कैंडल के आरोपों से जूझ रहे रोमन कैथोलिक चर्च को एक और पादरी की हरकत ने शर्मसार कर दिया है। ब्राजील में 83 वर्षीय एक पादरी को बच्चों के साथ कथित दुराचार के आरोप में हिरासत में लिया गया है।
मोनसिग्नर लुइस मार्कीस बारबोसा और ब्राजील के दो अन्य पादरियों पर लगा यौन दु‌र्व्यवहार का आरोप इस कैथोलिक देश में सुर्खियां बना हुआ है। यह ताजा प्रकरण ऐसे वक्त पर सामने आया है जब अमेरिका और यूरोप में पादरियों के सेक्स स्कैंडल का मामला गर्म है। पिछले महीने यहां एक टीवी चैनल में प्रसारित वीडियो में बारबोसा को एक लड़के के साथ आपत्तिजनक हालत में दिखाया गया था। इस वीडियो को बाद में इंटरनेट पर भी डाल दिया गया।
मामला तूल पकड़ने पर ब्राजील की संसद के एक दल ने वीडियो की जांच की। आरोप सही पाए जाने पर बुजुर्ग पादरी को बीते रविवार को हिरासत में ले लिया गया।



जर्मनी के बिशप ने दिया इस्तीफा

जर्मनी के एक बिशप ने बच्चे को मारने के आरोप में नाम आने के बाद इस्तीफे की पेशकश की है। डेली टेलीग्राफ के मुताबिक, दक्षिणी जर्मनी के शहर आउजबर्ग के बिशप वॉल्टर मिक्स्टा ने पोप को खत लिखकर कहा कि मैं नई शुरुआत करना चाहता हूं। वैसे इस बिशप ने पहले बच्चे को मारने से इनकार किया था फिर कहा कि हो सकता है कि मैंने थप्पड़ मार दिया हो। इन दिनों अमेरिका और यूरोप में चाइल्ड अब्यूज के कई मामले सामने आए हैं। गुरुवार को ही पोप बेनेडिक्ट-16वें ने आयरलैंड स्थित किल्डेयर के बिशप जेम्स मॉरिऐरिटी का इस्तीफा लिया है। इसी हफ्ते के शुरू में पोप ने मयामी के बिशप जॉन फैवलॉरा का इस्तीफा लिया। उन पर चाइल्ड अब्यूज के मामले दबाने का आरोप है। ऐसे मामलों की तेजी को इंग्लैंड और वेल्स के बिशप विन्सेट निकोल्स ने बेहद शर्मनाक करार दिया है। उनके मुताबिक, कुछ संतों और धार्मिक लोगों के हाथों हुए अपराधों ने समूचे चर्च को शर्म में ढकेल दिया है।


बुधवार, 21 अप्रैल 2010

भारत में रहने वाला हर कोई भारतीय - मान. मोहन भागवत


रांची : संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आज मोरहाबादी मैदान में संघ समागम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में रहने वाला हर कोई भारतीय है चाहे वह हिन्दू हेा मुस्लमाल हो या ईसाई सभी के पूर्वज भारतीय है। इसलिए सब का डीएनए एक है। इस स्थिति में यहां रहने वाले सभी की सभ्यता और संसकृति एक होनी चाहिए। विविधता में एकता होना चाहिए क्योंकि सभी के पूर्वज भारतीय हैं। उन्होनें कहा कि यहां पर रहने वाले मुस्लिम या ईसाई कोई भी अरब और यूरोप से नहीं आया है। इसलिए जब पूर्वज यहां के हैं तो यहां की सभ्यता संस्कृति अपनाना सभी का दायित्व बनता है। भले हीं पूजा की पद्धति अलग क्यों न हो। हिन्दूत्व यही सिखलाता है। श्री भागवत आज संघ समागम को संबोधित कर रहे थे।
श्री भागवत ने कहा कि देश का सर्वोच्च न्यायलय भी यह कहता है कि हिन्दूत्व चलती जीवन का मार्गदर्शक है। इसको अपनाकर हीं हम अपनी संस्कृति को बचाये रख सकते हैं। उन्होनें कहा कि देश के अंदर जब जब एकात्मकता अलग हुआ है तब तब देश खंडित हुआ है। पाकिस्तान इसका उदाहरण है। अगर हमारा विचार और संस्कृति एक होता तो पाकिस्तान भारत का अंग हेाता। उन्होनें कहा कि पाकिस्तान को भारत के साथ बनाये रखने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कोरा चेक लेकर घुमते रहे लेकिन पाकिस्तान अलग हो गया। उन्होनें कहा कि यह हिन्दू का उदारता हीं था कि आज पाकिस्तान हिन्दुस्तान से अलग हेा गया। अगर हिन्दू नहीं चाहते तो पाकिस्तान नहीं बनता। श्री भागवत ने कहा कि संघ को समझने के लिए संघ के अंदर आना होगा। संघ के दरवाजे सब के लिए खुले हैं। आने जाने पर प्रतिबंध नहीं है। वे संघ में आयें और संघ को समझे। किसी के कहने सुनने पर संघ को गलत समझने का काम नहीं करें। उन्होनें कहा कि संघ का केाई पोलिटिकल एजेंडा नहीं है। और न हीं किसी पोलिटिकल पार्टी का समर्थक है। राष्ट्र हित में जो भी पोलिटिकल पार्टी काम करती है संघ का सहयोग उसे मिलता है।
श्री भागवत ने कहा कि देश और दुनियां के अंदर बहुत सारी समस्याएं है भारत के पास सीमा की सुरक्षा की समस्या है। क्यांेकि पश्चिम में पाकिस्तान है उतर पूर्व मंे चीन है तो पूर्व में बांगलादेश है। जिसकी स्वतंत्रता भारत ने हीं दिलायी है। बावजूद वह भारत पर आंखे तरेर रहा है। और 300 गांवों को बंगालादेश का अंग बता रहा है। उन्होनें कहा कि इतना हीं नहीं बंगालादेशी घुसपैठिये लाखों की संख्या में भारत में घुस आयें हैं। और भारत की सरकार उनकी जनगणना करा रही है। उन्होनें कहा कि जनगणना कराने से घुसपैठ की समस्या का हल नहीं हेा पायेगा। इसके लिए पहचानना होगा कि कौन घुसपैठिये हैं और कौन भारतीय हैं। क्यांेकि भारत की नागरिकता देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूती प्रदान करता है। अगर घुसपैठिये को भारत की नागरिकता मिल जाती है तो देश की सुरक्षा कभी भी खतरे में पड़ सकती है। उन्होनें कहा कि पाकिस्तान के साथ भारत की सरकारें बार बार शांति वार्ता करती है बावजूद नतीजा कुछ नहीं निकलता है और देश केा खामियाजा भुगतना पड़ता है। चीन के संबंध में उन्होनें कहा कि उसपर विश्वास करना हीं भारत की भयंकर भूल होगी। क्योंकि एक बार भारत ने चीन पर विश्वास किया था और चीन ने नारा दिया था हिन्दी चीनी भाई भाई। बावजूद उसने धोखा दिया और हमपर हमला किया इस सब के बावजूद भी हम उसपर विश्वास करते हैं तो देश की अंतराष्ट्रीय सीमा कभी भी खंडित हो सकती है।
देश में व्याप्त उग्रवाद की चर्चा करते हुए कहा कि यह समस्या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रही है। उन्होनें कहा कि इस समस्या से निबटने के लिए देश की सरकार को इच्छा शक्ति बनानी होगी। क्योंकि एक तरफ उग्रवादी बंदूक की नाली से सता प्राप्त करना चाहते हैं वहीं भारत की सरकार उनसे वार्ता कर इस समस्या का निदान चाहती है। जो अब संभव नहीं दिखायी देता। उन्होनें कहा कि अब समय आ गया है इस समस्या से निबटने के लिए सरकार को कारगर एवं ठोस नीति बनानी होगी। ढुलमूल नीति से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। क्योंकि वे सामने से गोली चला रहे हैं और हम उनसे शांति वार्ता की बात कर रहे हैं।
उन्होनंे व्यांगात्मक लहजे में कहा कि बड़े दुख की बात है कि भारत के प्रधानमंत्री स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि इस देश की संपति पर मुस्लिमों का हक बनता है या भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्षता पर चोट है। उन्होनें कहा कि अगर भारत के प्रधानमंत्री गरीबों के लिए समाजिक आरक्षण की बात करते तो यह बात समझ में आती कि उन्हें भारत के संविधान में वर्नित धर्म निरपेक्षता पर विश्वास है। धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं लागू होना चाहिए। क्योंकि कोई भी संविधान इसकी इजाजत नहंी देता है। उन्होनें कहा कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या कटरपंथ है जिसमें अहंकार की बू आती है। जबतक इस देश से कटरपंथ को समाप्त नहंी किया जाता है तबतक इस देश में व्याप्त समस्या से निजात नहंी मिल सकता है। उन्होेनंे कहा कि आज पूरे दुनियां में ग्लोबल वार्मिंग की बात की जा रही है। आखिर यह उत्पन्न कैसे हुआ इसकी समस्या की जड़ में क्या है इसपर विचार करने का पहल कोई भी नहीं कर रहा है। उन्होनें कहा कि शक्ति संपन्न राष्ट्र बनने के लिए प्राकृतिक द्वारा स्टोर की गयी संपदाओं को धडले से उपयोग करना ग्लोबल वार्मिंग का मार्ग प्रस्सत कर रहा है। इस पर रोक लगाना होगा। क्योंकि प्राकृतिक स्टोर जब समाप्त हो जायेगा तो दुनियां का विनाश हो जायेगा। उन्होनें कहा कि छोटी मोटी उर्जा शक्तियों को प्रयोग करके पूर्व में हम स्वेच्छा से जीते थे आज भी इसी तरह की उर्जा शक्तियों का उपयोग करें। तो ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव अपने आप समाप्त हो जायेगा।
झारख्ंाड की चर्चा करते हुए संघ प्रमुख श्री भागवत ने कहा कि झारखंड की बागडोर उचित हाथों में है या नहंी इस संबंध मंे मैं कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि अगर मैं कहूंगा तो समाचार की सुर्खियां बन जायेगी। उन्होनंे कहा कि बागडोर किसके हाथ में हो इसका उतर जनता हीं दे सकती है। क्योंकि जनता के हाथ में बागडोर देने की असीम शक्ति है। इसके पूर्व संघ प्रमुख ने संघ के झंडे की सलामी दी। संघ का गीत गायन हुआ संघ समागम में हजारों की संख्या में संघ के गणशक्ति उपस्थित थे वहीं श्री भागवत के भाषण को सुनने के लिए हजारों की संख्या में बुद्धिजीवी एंव संघ के विचारधारा के लोग उपस्थित थे। इस अवसर पर संघ समागम में गण वस्त्र धारी के रूप में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अर्जुन मुंडा विधानसभा अध्यक्ष सीपी सिंह सहित भाजपा के सांसद विधायक एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।
साभार-उदितवाणी

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

"मलीहाबादी आम" पर भी हमारी जीत

लखनऊ । लखनऊ से सटे मलीहाबाद क्षेत्र में लगभग सौ वर्षो से उत्पादित होने वाले फलों के राजा "मलीहाबाद दशहरी आम" भी पेटेंट वस्तुओं की श्रेणी में आ गया है। वस्तुओं व उत्पादों का भौगोलिक उपदर्शन (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) रजिस्ट्रेशन तथा संरक्षण कानून 1999 के तहत अब मलीहाबाद के दशहरी आम को अनुसंधान की लम्बी प्रक्रिया के बाद "ब्रांड" का दर्जा दे दिया गया है। आघिकारिक सूत्रों ने बताया कि पेटेंट होने के बाद अब दुनियाभर में केवल मलीहाबाद आम पट्टी क्षेत्र में किसानों को पैकिंग के लिए बक्से और दशहरी का "लोगो" भी उपलब्ध कराया जाएगा। "काकोरी" नाम की मांग मलीहाबाद से सटे काकोरी के दशहरी गांव में दशहरी आम का लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना मूल वृक्ष है। अखिल भारतीय आम उत्पादक संघ के महामंत्री आमिर अब्बासी ने कहा कि दशहरी के पेंटेट हो जाने की खुशी तो है, मगर यह मलीहाबाद की जगह दशहरी गांव अथवा काकोरी के नाम से पेंटेट किया जाता तो और बेहतर होता। दशहरी गांव के इस मूल वृक्ष के बीजों से मलीहाबाद मे दशहरी आम का उत्पादन शुरू हुआ। संघ मलीहाबाद के नाम से हुए पेटेंट के विरोध में अपने साक्ष्य प्रस्तुत करेगा।"लोगो" इंटरनेट पर जल्द मलिहाबादी दशहरी की पहचान कराने के लिए इसकी वेबसाइट और लोगो जल्द ही इंटरनेट पर उपलब्ध होगा। आम उत्पादक माल को लोगो सहित विशेष्ा पैकिंग में न केवल देश में बल्कि विदेशों में भेज सकेंगे।दशहरी के पेटेंट हो जाने से इसका सीधा लाभ आम उत्पादकों को पहुंचेगा। दुनिया के कुल आम का 50 फीसदी से ज्यादा भारत में पैदा होता है और देश में आंध्र प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा आम पैदा होता है। - इसराम अली, अध्यक्ष-ऑल इंडिया मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया।

रविवार, 18 अप्रैल 2010

कश्मीर और अरूणाचल के लोगों के लिए अलग वीजा दे रहा है चीन

नई दिल्ली। चीन ने एक बार फिर से अरूणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र बताते हुए निशानेबाज पेंबा को अलग पन्ने पर वीजा देकर उत्तर-पूर्व के इस सूबे के बारे में अपनी नीति का इजहार किया है।जब पेंबा तमांग स्टेपल वीजा के लिए चीन की उडान पर सवार होने जा रहे थे तो हवाई अड्डे पर मौजूद अधिकारियों ने उन्हें रोक लिया। तमांग अब प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकेंगे। उन्होनें खुद इस बात का खुलासा किया है।सूत्रों के अनुसार विदेश मंत्रालय ने इस मामले में हस्तक्षेप किया लेकिन परिणाम निराशाजनक ही रहा। चीनी दूतावास लगातार कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश के लोगों को भारतीय पासपोर्ट के पन्नों पर वीजा की मुहर नहीं लगाता आ रहा है। उन्हें अलग पन्नों पर वीजा देकर स्टेपल कर दिया जाता है।विदेश मंत्रालय ने चीन के इस तरह से दिए गए वीजा को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया। पेंबा ने खुलासा किया कि वह पहले भी इस तरह के वीजा पर तीन बार चीन जा चुका है। चीनी दूतावास के सूत्रों के अनुसार फिलहाल अधिकारियों ने यही जवाब दिया है कि उन्हें दिया गया वीजा मान्य और वैध है।

स्त्रोत:http://www.khaskhabar.com/china-issues-stapled-visa-to-kashmiri-and-arunachal-pradesh-peoples-04201017738803568.html

शनिवार, 17 अप्रैल 2010

माओवादियों के हितैषियों पर भी कार्रवाई करे सरकार - तरुण विजय

रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता तरुण विजय ने शुक्रवार को कहा है कि माओवादियों की हिंसा का समर्थन करने या उनका साथ देने वालों के खिलाफ राष्ट्रदोह का मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
तरुण विजय ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अरूंधति राय और उनके जैसे अन्य मानवाधिकार कार्यकर्तामाओवादियों के मानवाधिकार की बात करते हैं और उनकी हिंसा का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जो माओवादियों की हिंसा का समर्थन कर रहे हैं वे राष्ट्र के विरोध में हैं तथा यह आपराधिक कृत्य है। ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
तरुण विजय ने कहा कि पूरे विश्व में केवल छत्तीसगढ़ में ही सलवा जुड़ूम जैसा जन आंदोलन हुआ है तथा राज्य की सरकार ने इस पर कभी राजनीति नहीं की। जनआंदोलन सलवा जुड़ूम को कमजोर करने वाले अरूंधति राय जैसे वे मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जो दिल्ली के शानदार बंगले में रहते हैं और नक्सलवादियों के मानवाधिकार की बात कहते हैं।
हम यह मानते हैं कि जो कार्रवाई नक्सलवादियों या माओवादियों के साथ होती है आतंकियों के तथाकथित मानवाधिकारों का समर्थन करने वालों के साथ भी ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि केंद्र की संप्रग सरकार देश के लोगों को न भोजन दे पा रही है और न ही सुरक्षा। नक्सलियों से लड़ाई के मुद्दे पर आज विपक्ष एक है लेकिन सरकार बंटी हुई नजर आ रही है जो सुरक्षाबलों का मनोबल को गिराने वाला साबित हो रहा है।
उन्होंने कहा कि नक्सल मामले को लेकर जिस तरह चिदंबरम और दिग्विजय सिंह के मध्य टकराव हुआ ्रवह साबित कर रहा है कि कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर एक नहीं है। संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इस मामले में उनका क्या रुख है।
तरुण विजय ने कहा कि माओवादियों का न तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास और न ही वे रास्ते से भटके हुए लोग हैं। वे केवल अपराधी हैं और वे केवल सत्ता हथियाना तथा अपनी सरकार चलाना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि माओवादी सामानांतर सरकार चला रहे हैं और उनकी सामानांतर अर्थ व्यवस्था चल रही है। एक जानकारी के मुताबिक माओवादी अपहरण और अन्य अपराधों को अंजाम देकर प्रति वर्ष 15 सौ करोड़ रुपए एकत्र करते हैं। भाजपा चाहती है कि इस हिंसा का मुकाबला वैसे ही किया जाए जिसकी भाषा माओवादी समझते हैं। ऐसे लोगों को परास्त किया जाना चाहिए .

यौन शोषण का आरोपी भारतीय पादरी नजरबंद

टेरामो [इटली]। मध्य इटली में दस साल की लड़की के यौन शोषण का आरोप कबूल करने वाले एक भारतीय पादरी को यहां नजरबंद कर दिया गया है। 40 वर्षीय इस पादरी का नाम डेविड बताया गया है और वह दक्षिण भारत का रहने वाला है। वह दो साल से इटली में पढ़ाई कर रहा था।

रोम से 175 किलोमीटर दूर इस शहर में गुरुवार को गिरफ्तारी के बाद उसे किसी अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया है। पादरी ने स्वीकार किया है कि वह गत 19 दिसंबर को लड़की से मिलने उसके घर गया था। डेविड की वकील गिओवानी गेबिया ने कहा कि भारत से लौटते ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया। वह हतोत्साहित है। उसका कोई गलत इरादा नहीं था। दोषी पाए जाने पर पादरी को कई साल की जेल हो सकती है।

source : http://in.jagran.yahoo.com/news/international/crime/3_24_6341779.html


टिपण्णी : यह क्या हो रहा है पादरियों को ? ? जहाँ नजर डालो वहां से ही इस तरह की खबरे आती ही रहती है।
source : http://timesofindia.indiatimes.com/india/Indian-priest-accused-of-paedophilia-under-house-arrest-in-Italy-/articleshow/5820083.cms

अरूंधति पर कार्रवाई की तैयारी

कोलकाता। माओवादियों के समर्थन में खुलकर बोलती रहीं प्रख्यात लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरूंधति रॉय अपने ताजा वक्तव्यों के कारण संकट में फंसती नजर आ रही हैं। माओवादियों के समर्थन में बयान देने पर पश्चिम बंगाल सरकार रॉय के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
पश्चिम बंगाल वाममोर्चे के अध्यक्ष विमान बोस ने शुक्रवार को इस आशय का संकेत दिया। उधर भाजपा ने भी अरूंधति के बयानों को जवानों की शहादत का अपमान बताते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की है। बोस ने कहा कि अरूंधति की ओर से माओवादियों पर दी गई प्रतिक्रिया के सम्बन्ध में कानूनी कदम उठाने के बारे में प्रशासन फैसला करेगा।

सीमापार से घुसपैठ की फिराक में हजारों आतंकी

जैसलमेर। राजस्थान के श्रीगंगानगर और पंजाब से लगती सीमा तथा जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हजारों आतंकी भारतीय सीमा में घुसपैठ की तैयारी में हैं। विश्वसनीय रक्षा सूत्रों के अनुसार मुंबई हमलों के बाद सीमा पार से बब्बर खालसा और खालिस्तान कमाण्डो फोर्स के आतंकियों को पंजाब में किसी आतंकी वारदात को अंजाम देने के प्रयास तेज हो गए हैं ।

खुफिया सूचनाओं के अनुसार आत्मघाती और आतंकी हमलों के लिए सीमा पार बैठे कुछ आतंकी गुट साजिश रचने में जुटे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार जम्मू कश्मीर से लगती अन्तरराष्ट्रीय सीमा के सामने पाकिस्तान की सीमा और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में विभिन्न ठिकानों पर करीब तीन हजार आतंकी भारतीय सीमा में घुसपैठ के इंतजार में हैं।

इसी तरह राजस्थान के श्रीगंगानगर से लगती सीमा के सामने बड़ी संख्या में बब्बर खालसा तथा खालिस्तान कमाण्डो फोर्स के आतंकी पंजाब में किसी आतंकी वारदात को अंजाम देने की फिराक में हैं। सूत्रों की माने तो तालिबान, जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा मिलकर इस पूरे चक्रव्यूह का ताना बाना बुनने में जुटे हुए हैं।

बताया जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने तालिबान को भारत में हमले करने के लिए तैयार कर लिया है। सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों को भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान की जमीन पर प्रशिक्षण शिविर चलाने के लिए इलाके चिन्हित किए गए हैं।

इसके तहत सिन्ध प्रान्त में सिपाह ए साहबा, लश्कर ए जहनवी और लश्करे तैयबा तथा पंजाब में हरकत उल मुजाहीदीन .हरकत उल जेहाद .जैश ए मोहम्मद एवं लश्करे तैयबा के आतंकवादियों को भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने का जिम्मा दिया गया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 2500 से 3000 आतंकी नियंत्रण रेखा के आसपास ठिकानों पर घुसपैठ के लिए बर्फ पिघलने का इंतजार कर रहे हैं ।

इन्हें आधुनिकतम हथियार चलाने, विस्फोट करने, घात लगाकर हमला करने, पानी में चलने तथा अन्य गतिविधियों के लिए पाकिस्तानी सेना की देखरेख में प्रशिक्षित किया गया है। सूत्रों के अनुसार पंजाब में उग्रवाद को पुनर्जीवित करने के लिए राजस्थान के श्रीगंगानगर से लगती अन्तरराष्ट्रीय सीमा से आतंकियों को घुसपैठ कराने के लिए आईएसआई प्रयासरत है । इस तरह की सूचनाओं के मद्देनजर सीमा पर सतर्कता बढ़ा दी गई है।

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

शत शत नमन !!! जलियांवाला बाग कांड की 91वीं वर्षगांठ!!! कोई भला कैसे भूलेगा जलियांवाला बाग को


जलियाँवाला बाग हत्याकांड
कोई भला कैसे भूलेगा जलियांवाला बाग को

जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में १३ अप्रैल १९१९ (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल ओ. डायर नामक एक अँगरेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें १००० से अधिक व्यक्ति मरे और २००० से अधिक घायल हुए।[१]
१३ अप्रैल १९१९ को डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलेट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में लोगों ने एक सभा रखी जिसमें उधमसिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे। इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ डायर ने अपने ही उपनाम वाले जनरल डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को सबक सिखा दे। इस पर जनरल डायर ने ९० सैनिकों को लेकर जलियाँवालाबाग को चारों ओर से घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुँध गोलीबारी कर दी,[२] जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए। जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि १२० शव तो सिर्फ कुए से ही मिले। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या ३७९ बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम १३०० लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या १५०० से अधिक थी जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या १८०० से अधिक थी।
इस हत्याकाण्ड के विरोध में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में 'सर' की उपाधि लौटा दी और उधमसिंह ने लन्दन जाकर पिस्तौल की गोली से जनरल डायर को भून दिया और इस हत्या काण्ड का बदला लिया।

ओ जट्टा आई वसाखी



सिखों के दसवें गुरू गोबिन्द सिंह ने बैसाखी के दिन खालसा पंथ की नींव रखी और इस तरह फसल कटने के उल्लास में मनाए जाने वाले इस पावन दिन पर खुश होने की दो वजह हो गईं।
बैसाखी पर्व दरअसल एक लोक त्यौहार है जिसमें फसल पकने के बाद उसके कटने की तैयारी का उल्लास साफ झलकता है। पंजाब और हरियाणा सहित कई क्षेत्रों में बैसाखी मनाने के आध्यात्मिक सहित तमाम कारण हैं। सिख धर्म के विशेषज्ञों के अनुसार पंथ के प्रथम गुरू बाबा नानक देव ने वैशाख माह की आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से काफी प्रशंसा की है।देश के अधिकांश भागों में हालांकि गर्मी का प्रकोप शुरू हो चुका है, लेकिन बैसाखी को जाड़ा खत्म होने और गर्मी की शुरूआत के रूप में मनाया जाता है, जब खेतों में फसल पककर सुनहरी हो जाती है और नये पत्तों से सजे पेड़ पौधे हरी चादर ओड़ लेते हैं। लोकजीवन में बैसाखी फसल पकने का त्यौहार है। फसल पकने को ग्रामीण जीवन की समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है। बैसाखी के दिन ही दशम गुरू गोबिन्द सिंह ने आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन उन्होंने खालसा पंथ पर जान न्यौछावर करने के लिए अपने अनुयायियों को आगे आने को कहा था। लेकिन जब गुरू के लिए सिर देने की बात आयी तो केवल पांच शिष्य ही सामने आये।इन्हीं पांचों शिष्यों को पंज प्यारा कहा गया। गुरू गोबिन्द सिंह ने इन पंज प्यारों को अमृत छका कर अपना शिष्य बनाया और खालसा पंथ की स्थापना की थी। खालसा पंथ की स्थापना के दिन गुरू गोबिन्द सिंह ने पहले अपने शिष्यों को अमृत छकाया और फिर स्वयं उनके हाथों से अमृत छका। इसी लिए कहा गया है... ’’ प्रगट्यो मर्द अगमण वरियाम अकेला, वाह वाह गुरू गोबिन्द आपै गुरू आपै चेला। ’’उन्होंने कहा कि चूंकि खालसा की स्थापना के दिन गुरू गोबिन्द सिंह ने अपने शिष्यों को अमृत छकाया था, लिहाजा बैसाखी के दिन कुछ लोग उसी घटना की याद में अमृत छकते हैं। वैसे खालसा पंथ में साल के अन्य दिनों भी अमृत छका जाता है कि लेकिन इस मामले में बैसाखी का दिन सबसे विशिष्ट होता है।
गुरूद्वारा रकाबगंज में प्रचारक शिवतेज सिंह ने बताया कि सिख धर्म में बैसाखी का आध्यात्मिक महत्व है। जीवन में हमेशा नेकी और बदी की लड़ाई चलती रहती है। बैसाखी के दिन गुरू गोबिन्द सिंह ने अपने शिष्यों को बुराई से दूर करते हुए नेकी की राह पर चलने की शिक्षा दी थी।उन्होंने कहा कि खालसा पंथ में शामिल होने का आध्यात्मिक अर्थ ही नेकी की राह पर चलते हुए एक नये जीवन की शुरूआत करना है। सिंह ने बताया कि बैसाखी पर्व पर आनंदपुर गुरूद्वारे में विशष्टि आयोजन किया जाता है। देश के अन्य गुरूद्वारों में इस दिन अखंड पाठ का आयोजन होता है। कड़ाह प्रसाद वितरित किया जाता है और अमृत छकाया जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दू पचांग के अनुसार गुरू गोबिन्द सिंह ने वैशाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन चूंकि मकर संक्रांति भी थी, लिहाजा यह बैसाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। उन्होंने कहा कि सूर्य मेष राशि में प्राय: 13 या 14 अप्रैल को प्रवेश करता है, इसीलिए बैसाखी भी इसी दिन मनायी जाती है। बैसाखी का भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी विशिष्ट स्थान है। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के समीप 13 अप्रैल 1919 में हजारों लोग जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे। लोगों की भीड़ अंग्रेजी शासन के रालेट एक्ट के विरोध में एकत्र हुई थी।
जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोलियां बरसाई जिसमें करीब 1000 लोग मारे गये और 2000 से अधिक घायल हुए। अंग्रेजी सरकार के इस नृशंस कृत्य की पूरे देश में कड़ी निंदा की गयी और इसने देश के स्वाधीनता आंदोलन को एक नयी गति प्रदान कर दी। जलियांवाला बाग की घटना ने बैसाखी पर्व को एक राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया। आज भी लोग जहां इस पर्व को पारंपरिक श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं वहीं वे जलियावाला बाग कांड में शहीद हुए लोगों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना भी नहीं भूलते।
स्त्रोत : http://samaylive.com/article-hindi/day_spacial-hindi/77256.html

शीर्ष कोर्ट ने हिंदी को खाली हाथ लौटाया

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। राष्ट्रभाषा हिंदी के एक पैरोकार बड़े जोश के साथ सुप्रीम कोर्ट आए थे। हिंदी को न्याय दिलाने। लेकिन सोमवार को सिर्फ उन्हें ही नहीं, उनके साथ 'हिंदी' को भी अदालत ने खाली हाथ लौटा दिया। गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ लगाई गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए याचिकाकर्ता से कहा कि वे अपनी आपत्ति हाईकोर्ट के सामने ही दर्ज कराएं।

मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा व न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की पीठ ने राष्ट्रभाषा हिंदी के संबंध में याचिका लगाने वाले वकील मनोज कुमार मिश्र की याचिका को नकार दिया। मिश्रा ने अदालत को बताया कि वह गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के उस अंश को चुनौती देना चाहते हैं, जिसमें अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 343 को नजरअंदाज करते हुए कह दिया है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने के संबंध में रिकार्ड पर कोई आदेश या प्रावधान मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि उन्हें हाईकोर्ट के पूरे आदेश पर ऐतराज नहीं है वे सिर्फ हिंदी पर टिप्पणी करने वाले हिस्से के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट आए हैं।

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट के पूरे फैसले पर आपत्ति नहीं है, तो उन्होंने अपनी आपत्ति हाईकोर्ट के सामने ही क्यों नहीं जताई? पीठ ने याचिका पर विचार करने से मना करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अपनी बात हाईकोर्ट के सामने ही रखें। इससे पूर्व याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट के फैसले का वह अंश पढ़कर सुनाया, जिस पर उन्हें आपत्ति थी। इसके मुताबिक, 'सामान्यत: भारत में ज्यादातर लोगों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा की तरह स्वीकार किया है और बहुत से लोग हिंदी बोलते हैं तथा देवनागरी में लिखते हैं लेकिन रिकार्ड पर ऐसा कोई आदेश या प्रावधान मौजूद नहीं है जिसमें हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया हो।' इस अंश को न्यायमूर्ति दीपक वर्मा ने भी पढ़ा लेकिन वे और उनके साथ अन्य न्यायाधीश याचिकाकर्ता की दलीलों से संतुष्ट नहीं हुए।

source : http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6331422.html

विलुप्त हो रहीं औषधीय जड़ी-बूटिया

इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड के पहाड़ों पर पायी जाने वाली जीवनरक्षक जड़ी-बूटियों की कई प्रजातिया खत्म होने के मुहाने पर हैं। कई औषधीय पौधे को तो इंडेंजर्ड प्लाट की श्रेणी में डाल दिया गया है। इनकी सूची भी तैयार कराई जा रही है। समय रहते इनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो ये हमें सलाम कर जायेंगे। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के आकड़े तो यही कहते हैं। वनस्पति विज्ञानियों की मानें तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं झारखण्ड आदि राज्यों में सफेद मूसली, शतावर, पापड़, अगड़ी, बड़ी हंसिया व हरसिंगार जैसी महत्वपूर्ण जड़ी-बूटिया बहुतायत पायी जाती थीं। इसके अतिरिक्त वन तुलसी, इंद्रजौ, रोहणी, धामिन से इन प्रदेशों की पहाड़िया समृद्ध थीं लेकिन अब धीरे-धीरे ये विलुप्त हो रही हैं। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में पायी जाने वाली लगभग पांच हजार प्रजातियों जिनमें चमेली और गूलर आदि भी शामिल हैं को इंडैंजर्ड प्लाट यानी विलुप्तप्राय की श्रेणी में डाल दिया गया है। इसमें मध्य प्रदेश में पाया जाने वाला डायोस्पाइरॉस, होलियाना, जैसमिनम प्रिविपटियोटेस्टिम [चमेली की एक प्रजाति] फाइकस कपुलेटा [गूलर की एक जाति] और उत्तर प्रदेश में पाई जाने वाली इंडो पिप्टाडेनिया शामिल हैं। इसमें डायोस्पाइरास होलियाना को अंतिम बार 1922 के देखा गया था, जबकि जैसमिनम प्रिविपटियोटेस्टिम 1859 के बाद देखा ही नहीं गया। भारतीय वनस्पतिक सर्वेक्षण के अनुसार ऐसे संकटग्रस्त पौधों की लिस्ट बनायी जा रही है जिनका अस्तित्व संकट में है। ताकि उन्हें चिंहिंत कर खत्म होने से रोका जा सके। भारतीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रो. जीके पाण्डेय का कहना है कि विश्व के 12 वृहत्तम विविधपूर्ण देशों में एक भारत में लगभग 45 हजार पौधों की और 89 हजार जन्तुओं की प्रजातिया मौजूद हैं। पेड़ पौधों की जाति को विकसित होने में हजारों वर्ष लग जाते हैं यदि इन्हें संरक्षित नहीं किया गया मानव जाति खतरे में न पड़ जाये।

बेरोकटोक हो रहा दोहन- इलाहाबाद के प्रसिद्ध हकीम मो. शरीफ का कहना है कि देश की पहाड़ियों पर औषधीय पौधों का भंडार है। जो जड़ी बूटियों के जानकार हैं वे इनका दोहन कर रहे हैं। कलिहारी की जड़ पहले जंगलों में खूब पायी जाती थी, जिसका गठिया के इलाज में प्रयोग होता है। इसी तरह अन्य कई साध्य-असाध्य बीमारियों में यहा के औषधीय पौधे रामबाण साबित होते थे।

strot : http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6331246/

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

पाथेयकण पाठक सम्मेलन का हुआ आयोजन

बालोतरा पाक्षिक पत्रिका के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर शुक्रवार को स्थानीय डंूगर भवन में पाठक सम्मेलन का आयोजन किया गया।

सम्मेलन के दौरान मुख्यवक्ता डॉ. शांतिलाल चौपड़ा ने कहा कि सृजन शक्ति का संगठन आज की आवश्यकता है। उन्होंने संस्कारित व्यक्ति के निर्माण को रेखांकित करते हुए उसके माध्यम से समाज व राष्ट्र के निर्माण की आवश्यकता में पाथेयकण की भूमिका पर प्रकाश डाला। इससे पूर्व विभाग प्रचार प्रमुख अजय कुमार गुप्ता ने पाथेयकण के इतिहास व वर्तमान स्थिति की संक्षिप्त जानकारी दी। गुप्ता ने कहा वर्तमान में इसकी एक लाख तैतीस हजार प्रतियां छप रही है। भविष्य में इसे पांच लाख तक करने की योजना है। सम्मेलन में सुरेश चितारा, अशोक व्यास, सुरेंद्र जैन, चेतनप्रकाश गोयल सहित कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में पाथेयकण के रजत जयंति वर्ष के प्रांतीय सदस्य सुरंगीलाल सालेचा ने धन्यवाद ज्ञापित किया .

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

चिदम्बरम जी कुछ तो करे कि राष्ट्र कि आंतरिक सुरक्षा बनी रहे

छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा क्षेत्र में नृशंस नक्सली हमले में ८० से भी ज्यादा केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों के शहीद होने की ख़बर ने पुरे राष्ट्र को चोंका दिया। आख़िर कहाँ हैं हमारी माकूल सुरक्षा व्यवस्था ? यह नर संहार सरकार की निति रीती को स्पष्ट करती है कि सौ प्रतिशत सरकार कि निति सही नही रही हैं - "ऑपरेशन ग्रीन हंट" में । सेना को शामिल न करना कही भारी भूल तो नही थी ? अब भी समय है ऑपरेशन ग्रीन हंट की समीक्षा करने की। और तो और प्राथमिकता से नक्सली चुनौती का सामना करना एक लक्ष्य होना चाहिए सरकार का । नक्सली इलाको की भोगोलिक जानकारी को देखते हुए लगता है की वायुसेना की सहायता लेना भी लाजिमी होगा।
राष्ट्र की सुरक्षा में लगे जवानों को नक्सली गोलियों से आख़िर कब निजात मिलेगी ? सरकार भी मानती हैं कि नक्सली हथियारों की फैक्टरी चला रहे हैं, जो छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार के सुदूरवर्ती इलाकों में हैं। गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने हरिश्चंद्र चव्हाण के सवाल के लिखित जवाब में लोकसभा को बताया था कि भाकपा (माओवादी) हथियारों की फैक्टरियां भी चलाते हैं, जहां देशी हथियारों का निर्माण होता है। उन्होंने बताया था कि नक्सलियों के पास उपलध अधिकांश विदेश निर्मित हथियार सुरक्षाबलों से लूटे गए हैं। तो सरकार कब रोकेगी इन माओवादियों के हथियारों की फक्ट्रियां ? क्या शहीदो की और भी तादाद बढ़नी है सरकार को ?
इसे सिर्फ़ नक्सली हमला मानना एक बहुत बड़ी भूल होगी दरअसल यह समाज और सरकार के लिए इक चेतावनी हैं। राजनीती के नफा नुकसान की गणित किए बगैर दृढ़ संकल्प से राष्ट्र हित में राष्ट्र के लिए सोचने की इच्छा शक्ति जिस दिन हमारी सरकार में आ जाएगी उस दिन समझो सारी समस्याएँ स्वत: समाप्त हो जाएगी ।
हाँ एक और अब वे सब मानवाधिकार के ठेकेदार कहाँ गए जो फरवरी माह में कोबाड़ गाँधी के गिरफ्तारी का विरोध करने दिल्ली आए थे । इन्ही कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने ऑपरेशन ग्रीन हंट को खत्म करने की माँग की थी। अब ये बगले झांक रहे होंगे ।
एक और विषय जिसको दरकिनार नही किया जा सकता कि आख़िर कैसे नक्सलियों को जानकारी मिली ? कही कोई भेदिया तो नही है इस तंत्र में कि नक्सलियों ने एक हज़ार से भी ज्यादा की तादाद में इक्कठे होकर जवानों पर हमला किया ?
नम आँखों से श्रदांजलि देना ही हमारा कर्तव्य नही है समस्या के मूल में जाकर उससे सही तरीके से निबटना जरुरी है ताकि हमारे जवान कम शहीद हो और दुश्मन अधिक ढेर हो ।

"गांवों को बनाएं विकास केन्द्र" - कु.सी. सुदर्शन

मोमासर (बीकानेर)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघ चालक कु.सी. सुदर्शन ने कहा है कि गांवों को विकास केन्द्र बनाए जाने की जरूरत है। पूर्व सरसंघ चालक सोमवार को आचार्य महाप्रज्ञ के सानिध्य में आयोजित अहिंसा व अभयप्रदान जीवन शैली एवं कृषि स्वावलम्बन विषयक संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में शहर तो विकसित होते जा रहे हैं लेकिन गांव पिछड़ते जा रहे हैं। इसलिए गांवों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

उन्होंने अहिंसा, कृषि, बिजली उत्पादन, जल संरक्षण तथा अनुसंधान सहित अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की। सुदर्शन ने झरनों के जरिए उत्पादित बिजली का महत्व बताते हुए कहा कि इस तरह के प्रयोग प्रकृति की सुरक्षा के साथ-साथ देश के विकास में सहायक हैं। इन पर और कार्य किया जाना चाहिए।

परमाणु संधि हास्यास्पद
पूर्व सरसंघ चालक ने केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि अमरीका के साथ विद्युत उत्पादन बढ़ाने के लिए की गई परमाणु समझौता संधि हास्यास्पद है। इस मुद्दे पर भारत को बहकावे में नहीं आना चाहिए।

गरीबों को भूले जनप्रतिनिधि
जनतंत्र में जनप्रतिनिधियों की भूमिका पर उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि अपने भत्ते व सुविधाओं के चक्कर में गरीब की ओर ध्यान नहीं देते हैं। जबकि उन्हें गरीबों व पिछड़ों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।

इन्द्रिय तृप्ति को ही प्रधानता
इस अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा कि जो देश अधिक उत्पादन की सोच रखता है वही पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। आज विकास की अवधारणा पर चिंतन जरूरी है। वर्तमान में केवल इन्द्रिय तृप्ति को ही प्रधानता दी जा रही है। अधिक उत्पादन व उपभोग पर ही ध्यान दिया जा रहा है। यह अवधारणा नहीं बदलेगी तो देश का एक वर्ग विकास से अछूता रह जाएगा।

ग्राम कोष बनाएं
गांवों में बसने वाले इस वर्ग के लिए यदि ग्राम कोष बन जाए तो इन्हें सरकार की ओर देखना नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि शहरों और गांवों की जीवन शैली में भिन्नता है।

ग्रामीण विकास महत्वपूर्ण मुद्दा
युवाचार्य महाश्रमण ने कहा कि ग्रामीण विकास महत्वपूर्ण मुद्दा है। खेती में नैतिक साधनों में विकास की अपेक्षा है। साध्वी प्रमुख कनकप्रभा, दीपक सचदेवा, राज्य गौ आयोग संघ के पूर्व अध्यक्ष भंवरलाल कोठारी ने भी विचार रखे। इससे पहले पूर्व सरसंघ चालक ने कार्यकर्ताओं से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

दीप मंत्र के साथ आयोजित हुआ पाथेय कण पाठक सम्मेलन

दीप मंत्र के साथ आयोजित हुआ पाथेय कण पाठक सम्मेलन

भास्कर न्यूज
First Published 01:49[IST](06/04/2010)
Last Updated 01:49[IST](06/04/2010)

बाड़मेर . मुगलों तथा अंग्रेजों ने भारत आकर शासन करना चाहा। उन्होंने हमारी मानसिकता को गुलाम बनाने का प्रयास करते हुए खून बदलने का प्रयास किया, लेकिन इन सब को पूरा नहीं होने दिया। इसी क्रम में पाथेय कण ने राष्ट्रीय विचारों की भागीरथी प्रवाहित की है। इससे पाथेय विचारों की तारतम्यता को जोडऩे का कार्य कर रही हैं।

यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जोधपुर विभाग के प्रचार प्रमुख शंकर मंगनाणी ने आदर्श विद्या मंदिर में आयोजित पाथेय पाठक सम्मेलन में कही। कार्यक्रम की शुरूआत दीपमंत्र से हुई। शंकर मंगनाणी ने पाथेय कण के अब तक के विभिन्न कलम आंदोलनों तक की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जागरण पत्रिकाओं का उद्देश्य राष्ट्रीयता के विचारों को जगाना है। कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी खुशालनाथ धीर ने कहा कि पाथेय कण ने कई बार विभिन्न मुद्दों पर देशवासियों में वैचारिक क्रांति लाने का प्रयास किया है। पाथेय के सभी अंकों की एक प्रदर्शनी भी लगाई जानी चाहिए। कार्यक्रम में बाड़मेर नगर के सभी जागरुक पाठकों ने इस पर विविध सुझाव भी रखे।

सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघ चालक दुर्गेश सोनी, जिला संघ चालक पुखराज गुप्ता, विहिप के ओमप्रकाश गर्ग मधुप, छतुमल सिंधी, सीमा जन कल्याण समिति के अम्बालाल जोशी समेत कई जने उपस्थित थे। अंत में कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

source : http://www.bhaskar.com/2010/04/06/429482-843785.html

एयरफील्ड का उद्घाटन आज

भास्कर न्यूज
First Published 04:29[IST](06/04/2010)
Last Updated 04:29[IST](06/04/2010)

जोधपुर. पाकिस्तान से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हवाई सुरक्षा तंत्र की मजबूती के लिए बनेफलौदी एयरफील्ड का उद्घाटन मंगलवार को भारतीय वायुसेना के मुखिया चीफ मार्शल पीवी नाइक करेंगे। ऑपरेशनल गतिविधियों के लिए तैयार सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह एयरफील्ड लड़ाकू विमान जगुआर उतरने के साथ ही विधिवत रूप से शुरू हो जाएगा।



समारोह में लड़ाकू विमान फ्लाई पास्ट करेंगे। जैसलमेर व बीकानेर सीमा की संक्रियात्मक गतिविधियों को मजबूती देने के लिए सरकार ने अप्रैल 2000 में फलौदी मंे एयरबेस की स्वीकृति दी थी। यहां 31 जुलाई 2001 को एक केयर एंड मेंटेनेन्स यूनिट स्थापित की गई। 2 मार्च, 2005 को एयरबेस की नींव रखी गई।



वहीं जुलाई 2006 में फलौदी में एयरफोर्स स्टेशन की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की गई । तब से फलौदी स्टेशन स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है, लेकिन एयरबेस की मंगलवार शाम पांच बजे विशेष समारोह में वायुसेनाध्यक्ष नाइक की मौजूदगी में लड़ाकू विमान जगुआर लैण्ड करने के साथ ही विधिवत शुरुआत हो जाएगी। इस अवसर पर तीन लड़ाकू विमान मिग- 21 फ्लाई पास्ट करेंगे। समारोह में दक्षिण पश्चिम वायु कमान के वायु अफसर कमांडिंग इन चीफ सहित वायुसेना के आला अधिकारी मौजूद रहेंगे।



दूरी होगी कम


राजस्थान से सटी सीमा की हवाई सुरक्षा का जिम्मा अभी वायुसेना के जोधपुर, उतरलाई व बीकानेर एयरबेस पर है। जैसलमेर एयरबेस पर लड़ाकू विमानों की स्क्वाड्रन तैनात नहीं है। फलौदी एयरबेस जैसलमेर सीमा की हवाई सुरक्षा को मजबूती देगा। जैसलमेर व जोधपुर एयरफोर्स स्टेशन के अलावा बीकानेर एयरबेस के बीच की दूरी कम करेगा।

पश्चिमी सीमा पर जंग छिड़ने की स्थिति में फलौदी सामरिक दृष्टि से काफी मददगार साबित होगा। वहां फिलहाल जोधपुर स्थित डेजर्ट हॉक की तीन लड़ाकू हेलीकॉप्टर की विंग हर वक्त मौजूद रहेगी। बाद में जोधपुर एयरबेस से मिग विमानों का स्क्वाड्रन भी तैनात कर दिया जाएगा।

दो एयरबेस

वायुसेना की दक्षिण पश्चिम वायु कमान ने राजस्थान व गुजरात सीमा पर हवाई प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करने के लिए पांच साल पूर्व फलौदी व डीसा में एयरबेस बनाना शुरू किया था। फलौदी में काम पूरा हो गया। डीसा एयरबेस का काम चल रहा है


source : http://epaper.bhaskar.com/index.php?state=raj&dates=04/06/2010&priority=11&editioncode=11&logicalgageno=14&indexxml=63795&parentid=11

सेना का ‘युद्धशक्ति’ इसी माह

विशेष संवाददाता
First Published 04:36[IST](06/04/2010)
Last Updated 04:36[IST](06/04/2010)

जोधपुर. भारतीय थल सेना राजस्थान से सटी सीमा के नजदीक पोकरण फायरिंग रेंज में अप्रैल के मध्य में वार गेम ‘युद्धशक्ति’ शुरू करेगी। युद्ध रणनीति कौशल, ताकत व रात्रिकालीन विजन की मारक क्षमता परखने के लिए होने वाले सेना के इस युद्धाभ्यास में मैकेनाइज्ड फोर्स, आम्र्ड कोर और आर्टिलरी कोर के पांच हजार सैनिक शामिल होंगे।



एक महीने तक चलने वाले युद्धाभ्यास मंे सेना की स्ट्राइक कोर तोप गोलों से लेकर बख्तरबंद टैंकों तक में दुश्मन से लड़ने की महारत हासिल करेगी। सेना के जांबाज दुश्मन के काल्पनिक ठिकाने ध्वस्त कर जीवंत जंग लड़ेंगे।



सेना के इस महत्वपूर्ण अभ्यास में वायुसेना के लड़ाकू विमान और हेलीकाप्टर मदद करेंगे। ऑपरेशन पराक्रम से सबक लेने के बाद सेना वार गेम का आयोजन कर अपनी ताकत का आकलन कर रही है। मथुरा स्थित सेना की 1 कोर इस वार गेम का आयोजन करेगी। इसमें मैकेनाइज्ड फोर्स, आम्र्ड कोर व आर्टिलरी मिसाइल,गोला, बारूद, बख्तरबंद टैंकों के साथ रेतीले टीलों पर दुश्मन से लड़ने का अभ्यास करेगी।



इसमें आधुनिक बैटल टैंक टी-90 व टी-72 के अलावा आर्टिलरी गन की मारक क्षमता को परखा जाएगा। इस अभ्यास में दुश्मन की सेना को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने और अपना कम से कम नुक्सान हो, इसके गुर सीखने के साथ ही काल्पनिक जंग में सेना की स्ट्राइक कोर अपनी ताकत व दक्षता दिखाएगी।



इस अभ्यास में सेना में शामिल नए अत्याधुनिक मिसाइल, उपकरणों व नाइट विजन की क्षमता को भी परखा जाएगा। यौद्धाशक्ति में काल्पनिक दुश्मन टीम के साथ जीवंत जंग होगी। अभ्यास के आखिरी दौर में वायुसेना के लड़ाकू विमान मिग, जगुआर व मिराज के अलावा डेजर्ट हॉक के जंगी हेलीकाप्टर भी शामिल होंगे। एयरफोर्स के प्रवक्ता विंग कमांडर टी एस सिंगा ने बताया कि अप्रैल मध्य में शुरू होने वाले इस सेना के वारगेम यौद्धाशक्ति वायुसेना भी मदद करेगी, लेकिन अभी इसकी तिथि तय नहीं हुई है।



सीमा पार भी 10 अप्रैल से होगा युद्धाभ्यास



सेना के इस महत्वपूर्ण अभ्यास की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बख्तरबंद टैंक, तोपें व गोला-बारूद पोकरण फायरिंग रेंज पहुंचने लगा है। पाकिस्तानी सेना सीमा पार ‘अज्म-ए-नेयू’ नामक युद्धाभ्यास 10 अप्रैल से शुरू करने वाली है। यह अभ्यास 13 मई तक चलेगा। उसमें पाकिस्तानी वायुसेना भी शामिल होगी

strot : http://www.bhaskar.com/2010/04/06/army-yudhshakti-this-month-only-845309.html


सोमवार, 5 अप्रैल 2010

दीक्षांत समारोह से गाऊन आउट, कुर्ता-पायजामा इन

बिलासपुर। दीक्षांत समारोहों में पहने जाने वाले पारंपरिक गाऊन और टोपी के खिलाफ केन्द्रीय वन पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश के सार्वजनिक विरोध के तत्काल बाद छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के गुरूघासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने इसी माह होने जा रहे अपने दीक्षांत समारोह में इस पुरानी परंपरा को समाप्त करने का निर्णय लिया है।

गुरूघासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डा. लक्ष्मण चतुर्वेदी ने रविवार को पत्रकारों को बताया कि विश्वविद्यालय ने नई परंपरा शुरू करने का निर्णय लिया है जिसके तहत हिन्दी भाषी राज्य की पहचान के रूप में प्रचलित वेशभूषा अपनाने का फैसला लिया गया है। इस नवीनतम देशी वेशभूषा में डिग्रियां प्रदान करने से सदियों पुरानी गैरजरूरी परम्परा से मुक्ति मिलेगी।

उन्होंने कहा कि केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद 26 अप्रेल को प्रस्तावित दीक्षांत समारोह में गाऊन और टोपी की जगह अतिथियों को खादी का कुर्ता, पायजामा तथा छत्तीसगढ़ी परम्परागत पगडी पहनाई जाएगी। वहीं गोल्ड मेडिलिस्ट और शोधार्थियों यानी डिग्रियां प्राप्त करने वालों के लिए कुर्ता, पायजामा एवं टोपी पहनाना तय किया गया है।

डा. चतुर्वेदी का कहना है कि गाउन पहनने की परम्परा अग्रेंजों की देन है। आजादी के लंबे दौर के बाद दीक्षांत समारोह में भारतीय एवं क्षेत्रीय संस्कृति की झलक होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में खादी का कुर्ता, पायजामा व टोपी पहनने के साथ सिर पर पगड़ी बांधने की परम्परा है, जो भारतीय संस्कृति की पहचान भी है। युवतियों के लिए भारतीय संस्कृति आधारित पारंपरिक वेशभूषा साड़ी तय की गई है।

उल्लेखनीय है कि दो दिन पूर्व शुक्रवार को मध्यप्रदेश के भोपाल में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के दीक्षांत समारोह में केन्द्रीय राज्य मंत्री जयराम रमेश ने अपने मुख्य वक्तव्य के दौरान ही हुड और गाऊन यह कहते उतार दिया कि किसी पुरानी परम्परा को ढोते रहने का कोई औचित्य नहीं। उनके गाऊन उतार फेंकने और गुलामी की प्रतीक परम्परा बताने के बाद नई बहस छिड़ गई है। समर्थन तथा विरोध दोनों पक्षों के बयान सामने आ रहें हैं।

दूसरी ओर स्थानीय शिक्षाविदों ने यद्यपि नई परम्परा के प्रस्ताव का पक्ष तो लिया पर साथ ही यह भी कहा है कि कुलपति का केन्द्रीय मंत्री के बयान के बाद तुरत फुरत में वेशभूषा बदलने का निर्णय लेना लोकप्रियता हासिल करने जैसा कदम माना जा सकता है।

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित