शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, भाग्यनगर (तेलंगाणा) – विभिन्न राज्यों में जेहादी सांप्रदायिक हिंसा पर वक्तव्य

विभिन्न राज्यों में जेहादी सांप्रदायिक हिंसा पर वक्तव्य

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विभिन्न राज्यों में जेहादी सांप्रदायिक हिंसा पर वक्तव्य
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत कुछ दिनों में पं बंगाल, तमिRSS ABKM 2016लनाडु एवं कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में अतिवादी जेहादी तत्वों द्वारा की गई क्रूर सांप्रदायिक हिंसा और प्रस्थापित सत्ता केन्द्रों की निष्क्रियता की कठोर निंदा करता है और ऐसी हिंसा फ़ैलाने वालों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही तथा अतिवादी तत्वों के प्रति सतर्क रहने की माँग करता है|
      गत विधानसभा चुनावों के बाद पं बंगाल में, हिन्दुओं के विरुद्ध सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में भयावह वृद्धि हुई है जिनमें अब तक अनेक मृत्यु एवं बड़ी संख्या में लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं| अनेक ग्रामों में, हिन्दुओं की सम्पत्ति को नष्ट किये जाने, महिलाओं के उत्पीड़न, मंदिरों तथा मूर्तियों को भ्रष्ट करने की घटनाओं आदि के परिणामस्वरूप हिन्दू समाज इन क्षेत्रों से पलायन करने को विवश हो रहा है| ऐसी ही एक घिनौनी घटना में, 10 अक्तूबर को नदिया जिले के हंसकाली थाना अंतर्गत दक्षिण गांजापारा क्षेत्र में एक दलित नाबालिग बालिका मऊ रजक पर उसके घर में ही हमला करके उसकी हत्या कर दी गई| गत दिनों दुर्गापूजा के समय हिन्दुओं को पंडाल खड़े करने से रोका गया और एक दर्जन से अधिक घटनाओं में दुर्गा पूजा विसर्जन यात्राओं पर हमले भी हुए| शासन तंत्र  ऐसी घटनाओं में मूक दर्शक बन कर प्राथमिकी भी दर्ज नहीं कर रहा है| कोलकाता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा दुर्गा विसर्जन पर समय की अव्यवहारिक पाबन्दी लगाने के सरासर पक्षपातपूर्ण व्यवहार की ‘अल्पसंख्यक तुष्टीकरण’ कहते हुए कठोर शब्दों में निंदा की है|
      तमिलनाडु, केरल एवं कर्नाटक सहित दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों में जेहादी तत्वों द्वारा हिंसात्मक गतिविधियों में वृद्धि होती दिखाई दे रही है, जिनमें हिन्दू, विशेष रूप से विविध राष्ट्रवादी संगठनों में कार्यरत स्वयंसेवकों पर हिंसक आक्रमण हुए हैं|
गत दो मास में, तमिलनाडु राज्य में चेन्नई, कोयम्बटूर, मदुरै एवं डिंडीगुल आदि स्थानों पर हिंसात्मक घटनाओं में वृद्धि होती दिखाई दे रही है, जिसमें रा. स्व. संघ, विहिप, भाजपा एवं हिन्दू मुन्नानी के अनेक कार्यकर्ताओं पर आक्रमण हुए हैं| शासन-तंत्र द्वारा जानबूझकर की गई अनदेखी से इन अतिवादी तत्वों के दुस्साहस में वृद्धि हुई है, जिसके कारण इन में से कुछ स्थानों पर संघ कार्यकर्ताओं की हत्या, करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति का विनाश एवं हिन्दू महिलाओं पर अत्याचार हुए हैं| अम्बुर में महिला पुलिस बल के विरुद्ध हिंसा इन शक्तियों के बढ़ते प्रभुत्व को दर्शाती है, जिसे नियंत्रित करने में शासन भी असमर्थ हो रहा है| एक सांप्रदायिक संगठन के प्रमुख नेता द्वारा दी गई ‘सीधी कार्यवाही’ की धमकी भयावह भविष्य की चेतावनी है| राज्य प्रशासन द्वारा ऐसे तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई करने की अनिच्छा एवं उनके दबाव में आकर राष्ट्रवादी शक्तियों का उत्पीड़न अकल्पनीय है|
इसी मास कर्नाटक में एक संघ स्वयंसेवक की व्यस्त सड़क पर दिनदहाड़े हत्या कर दी गई| गत कुछ दिनों में कर्नाटक में बंगलूरू के अलावा मुडबिदरी, कोडागु एवं मैसूर में जेहादी तत्वों द्वारा चार से भी अधिक हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्याएँ हुई हैं|
केरल एवं तेलंगाना सहित विभिन्न राज्यों में गत दिनों में हुई गिरफ्तारियों से यह स्पष्ट होता है की उपरोक्त घटनाएँ पृथक स्थानीय घटनाएँ नहीं है अपितु विभिन्न राज्यों के अतिवादी तत्वों की परस्पर साठ गाठ की और संकेत करती हैं, जिनका संबंध IS जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों से भी है|
      रा. स्व. संघ संबंधित राज्य सरकारों से आग्रहपूर्वक माँग करता है कि ऐसे तत्वों की अविलम्ब और निष्पक्ष जाँच कर अपराधियों को दण्डित करें एवं समाज में शांति एवं सद्भाव के लिए सदा सतर्क रहें|

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

प्रस्ताव क्र. 2 - वर्तमान वैश्विक संकट का समाधान : एकात्म मानव दर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल,भाग्यनगर (तेलंगाणा)

क्र. 2 - वर्तमान वैश्विक संकट का समाधान : एकात्म मानव दर्शन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल,भाग्यनगर (तेलंगाणा)

आश्विन कृष्ण 8-10  युगाब्द 5118 (23-25 अक्तूबर 2016)

विश्व के सम्मुख उभरती वर्तमान चुनौतियों के सन्दर्भ में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का सुविचारित मत है कि पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय द्वारा शाश्वत भारतीय चिंतन के आधार पर प्रतिपादित “एकात्म मानव दर्शन” के अनुसरण से ही इन सबका सहज समाधान संभव है। चर-अचर सहित समग्र सृष्टि के प्रति लोक-मंगल की प्रेरक एकात्म दृष्टि के साथ सम्पूर्ण जगत के पोषण का भाव ही इसका आधार है।
     आज विश्व में बढ़ रही आर्थिक विषमता, पर्यावरण-असंतुलन और आतंकवाद विश्व मानवता के लिए गंभीर चुनौती का कारण बन रहे हैं। अनियंत्रित पूँजीवाद व वर्ग-संघर्ष की साम्यवादी विचारधाराओं को अपनाने के कारण ही आज विश्वभर में बेरोजगारी, गरीबी, कुपोषण के साथ-साथ विविध देशों में बढ़ते आर्थिक संकट और विश्व के दो-तिहाई से अधिक उत्पादन पर चंद देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आधिपत्य आदि समस्याएँ अत्यन्त चिंताजनक हैं। भौतिक आवश्यकताओं पर ही केन्द्रित जीवनदृष्टि के कारण परिवारों में विघटन व मनोविकार-जन्य रोग तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। प्रकृति के अनियंत्रित शोषण से बढ़ते तापमान के कारण उभरती प्राकृतिक आपदाएँ, समुद्र के जल स्तर में निरंतर वृद्धि, वायु-जल-मिट्टी का बढ़ता प्रदूषण, जल संकट, उपजाऊ भूमि का बंजर होते चले जाना और अनेक जीव-प्रजातियों का विलोपन आदि चुनौतियाँ बढ़ रही हैं। आज संपूर्ण विश्व में मजहबी कट्टरता एवं अतिवादी राजनैतिक विचारधाराओं से प्रेरित आतंकवाद विकराल रूप धारण कर चुका है। परिणामत: आबाल-वृद्ध व महिलाओं की क्रूरतापूर्ण हत्याएँ निर्बाध गति से बढ़ रही हैं। इन सबके प्रति कार्यकारी मण्डल गहरी चिंता व्यक्त करता है। इन सबका निवारण एकात्म मानव दर्शन के चिंतन के अनुरूप व्यक्ति से विश्व पर्यंत संपूर्ण जीव सृष्टि व उसके पारिस्थितिकी-तंत्र में पारस्परिक समन्वय से संभव है। व्यक्ति, परिवार, समाज, विश्व, समग्र जीव-सृष्टि व परमेष्ठी अर्थात् संपूर्ण ब्रह्माण्ड के बीच अंगांगी भाव से ही सभी व्यक्तियों, समुदायों व राष्ट्रों में संघर्ष व अनुचित स्पर्धा को समाप्त कर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ सतत विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।
     सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा रियो डी जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मलेन में 172 राष्ट्रों ने विश्व शांति, धारणक्षम विकास व पर्यावरण-संरक्षण के लक्ष्यों से स्वयं को प्रतिबद्ध किया था। दुर्भाग्यवश, विश्व आज उन लक्ष्यों से सतत दूर होता जा रहा है | एक बार पुन: 2015 के पेरिस सम्मलेन में विश्व के अधिकांश राष्ट्रों ने वैश्विक तापमान में वृद्धि पर नियंत्रण के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध किया है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सभी राष्ट्र एकात्म विश्व के अंग के रूप में साधनों के मर्यादित उपभोग के साथ सबके सामूहिक विकास का प्रयास करें और सभी नागरिक इसी अंगांगी भाव से परिवार, समाज और प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण व्यवहार करें तब ही विश्व में बिना संघर्ष व टकराव के स्थायी सौहार्द स्थापित हो सकेगा।
     यह वर्ष पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय की जन्मशताब्दी एवं उनके द्वारा शाश्वत भारतीय  चिंतन के युगानुकूल प्रतिपादन - एकात्म मानव दर्शन का 51वाँ वर्ष है। इस वर्ष को इस विचार की क्रियान्विति का समीचीन अवसर मानकर अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल स्वयंसेवकों सहित समस्त नागरिकों, केंद्र व विभिन्न राज्य सरकारों तथा विश्व के प्रबुद्ध विचारकों का आवाहन करता है कि समग्र प्रकृति सहित वैश्विक संरचना के सभी घटकों के बीच सामंजस्य हेतु सभी प्रकार के संभव प्रयास करें। इस हेतु उपयुक्त प्रतिरूप (मॉडल) के विकास के साथ ही इस विचार के क्रियान्वयन के लिए समुचित प्रयोग भी करने होंगे। इससे सम्पूर्ण विश्व में प्राणी-मात्र के सुखमय जीवन और लोक-मंगल के लक्ष्य की प्राप्ति होगी।

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, भाग्यनगर (तेलंगाणा) – प्रस्ताव क्र. 1 – केरल में साम्यवादियों द्वारा अनियंत्रित हिंसा

प्रस्ताव क्र. 1 – केरल में साम्यवादियों द्वारा अनियंत्रित हिंसा

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, भाग्यनगर (तेलंगाणा) – प्रस्ताव क्र. 1 – केरल में साम्यवादियों द्वारा अनियंत्रित हिंसा

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अन्य विरोधियों के विरुद्ध उसकी निरंतर हिंसा की कठोर शब्दों में निंदा करता है. केरल में 1942 में अपना कार्य प्रारंभ करने के समय से ही संघ द्वारा केरल प्रदेश के नागरिकों में राष्ट्रीय भावना, एकता एवं एकात्मता का भाव उत्पन्न करने के पवित्र कार्य तथा इसकी लोगों में सतत बढ़ती लोकप्रियता एवं प्रभाव से हताश होकर वामपंथी एवं बाद में विशेषकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, संघ की शाखाओं व कार्यकर्ताओं पर अकारण एवं नृशंस आक्रमण कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समाप्त करने के निष्फल प्रयासों में जुटे हुए हैं. मार्क्सवाद, एक विचारधारा के नाते अपनी मूल प्रवृत्ति से ही, न केवल असहिष्णु अपितु अधिनायकवादी भी है. केरल प्रदेश में गत सात दशकों में रक्त पिपासु मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी काडर द्वारा अपने नेतृत्व की मूक सहमति एवं मिलीभगत से 250 से अधिक संघ के ऊर्जावान एवं होनहार युवा कार्यकर्ताओं की वीभत्स तरीके से हत्याएँ एवं भारी संख्या में स्त्रियों और पुरुषों को गंभीर चोटें पहुंचाकर उन्हें अक्षम बनाया है. संघ के इन उत्पीड़ित कार्यकर्ताओं की सर्वाधिक संख्या मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ माने जाने वाले कन्नूर जिले से ही है. संघ के स्नेह तथा आत्मीयता आधारित कार्य, स्वच्छ छवि एवं राष्ट्रवादी चिंतन से आकर्षित होकर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के काडर का निरंतर उसके प्रभाव में आते जाना उनको सर्वाधिक अखरता है.
संघ अपनी सहज प्रवृत्ति “सभी से मित्रता – द्वेष किसी से नहीं” के ध्येय को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों में सौहार्द, एकजुटता एवं एकता स्थापित करने में संलग्न है. सभी प्रकार के मतभेदों के होते हुए भी, संघ ने प्रदेश में शांतिपूर्ण वातावरण निर्माण करने के सदैव प्रामाणिक प्रयास किये हैं. परन्तु दुर्भाग्य से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी सोच के अनुरूप विवेक रहित हिंसा के अत्यधिक निंदनीय कार्य में निरंतर लगी हुई है.
विगत 11 जुलाई 2016 को भारतीय मजदूर संघ के श्री सी.के.रामचंद्रन की, उनके घर में, उनकी पत्नी के सामने ही, उसकी दया याचनाओं को अनसुना करते हुए क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई. श्री के. रमित 12 अक्टूबर 2016 को अपनी गर्भवती बहन के लिए औषधि लेने जा रहा था, तब दिनदहाड़े उसी के घर के सामने उसे मौत के घाट उतार दिया गया. अपने पिता का इकलौता पुत्र श्री के. रमित परिवार की आजीविका का एकमात्र सहारा था. उसके पिता, बस चालक श्री उत्तमन की हत्या भी 14 वर्ष पूर्व मार्क्सवादी गुंडों ने बस चलाते हुए कर दी थी. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की हिंसक एवं बर्बर असहिष्णुता के ये नवीनतम उदाहरण हैं. मार्क्सवादियों की हिंसा केवल विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय संघ कार्यकर्ताओं के विरुद्ध ही नहीं, अपितु उनके मातृ संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सहित सभी वर्तमान गठबंधन सहयोगियों यथा आर.एस.पी, जनता दल आदि के विरुद्ध भी हो रही है. श्री टी.पी.चंद्रशेखरन की 4 मई 2012 को की गई निर्मम हत्या से यह सिद्ध होता है कि वे संगठन से अलग होने वाले अपने स्वयं के काडर को भी नहीं छोड़ते हैं. यह घोर विडंबना है कि मार्क्सवादी हिंसा के शिकार मुख्यतया गरीब, पिछड़े, दलित तथा अल्पसंख्यक वर्गों के लोग ही होते हैं, जिनके रक्षक होने का वे दावा करते हैं. उन्होंने महिलाओं व बच्चों को भी नहीं छोड़ा है.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चा जब भी सत्ता में आया है, तब-तब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी गृह मंत्रालय को अपने ही पास रखा तथा पुलिस बल को अपना हस्तक बनाकर पार्टी के कार्यकर्ताओं को अभयदान देते हुए, संघ की शाखाओं एवं कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हिंसात्मक आक्रमण की खुली छूट देती है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की कार्यशैली, केवल संघ के कार्यकर्ताओं का निर्मूलन करना ही नहीं, अपितु उन्हें आर्थिक रूप से पंगु बनाने व आतंकित करने के लिए उनकी खड़ी फसलों, भवन, घरेलू सामान, विद्यालय भवनों, मोटर वाहनों आदि को नष्ट करना है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की असहिष्णु एवं अलोकतांत्रिक कार्यशैली पर अविलम्ब अंकुश लगना चाहिए. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग अन्यथा छोटे-छोटे विषयों पर भी आग्रहपूर्वक मुखर होते हैं, इस विषय पर मौन बने हुए हैं.
यह गर्व का विषय है कि इन सब अत्याचारों तथा निर्मम हत्याओं के उपरांत भी हमारे कार्यकर्ताओं का मनोबल बहुत ऊँचा है तथा वे और अधिक शक्ति के साथ संघ के विचार को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में संघ की गतिविधियाँ तीव्र गति से बढ़ रही हैं तथा इन कार्यकलापों में समाज बड़े पैमाने पर समर्थन एवं सहयोग के लिए आगे आ रहा है.
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल केरल सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार से यह आवाहन करता है कि हिंसा के दोषी-तत्वों के विरुद्ध तुरंत उचित कार्यवाही करते हुए, केरल में विधि-सम्मत शासन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएँ. अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल संचार माध्यमों सहित जनसामान्य से भी आवाहन करता है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के हिंसात्मक तौर-तरीकों के विरुद्ध जनमत निर्माण करने के लिए विभिन्न मंचों पर अपनी आवाज उठाएँ.

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

जाति आधारित भेदभाव अमानवीय, असंवैधानिक एवं अधार्मिक भी है – संघ

जाति आधारित भेदभाव अमानवीय, असंवैधानिक एवं अधार्मिक भी है – संघ

abkm-baithak-3हैदराबाद (विसंकें). आज 23 अक्तूबर को प्रातः 08:30 बजे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक का शुभारंभ श्रीविद्या विहार, अन्नोजिगुडा, भाग्यनगर (हैदराबाद) में हुआ.
पहले दिन पत्रकारों को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह वी भागैय्या जी ने कहा कि कार्यकारी मंडल बैठक समाज के विभिन्न आयामों से सम्बंधित संघ कार्य के विस्तार की समीक्षा करता है. अ. भा. का. मं. सामाजिक, धर्मिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक मूल्यों एवं ग्राम विकास से सम्बंधित विषयों पर चर्चा करेगा. सांगठनिक विस्तार के अतिरिक्त अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल हिन्दू समाज और राष्ट्र से सम्बंधित महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करेगा.
1. केरल में राजनीति से प्रेरित हत्याएं
केरल के वर्तमान मुख्यमंत्री के नेतृत्व में असहिष्णु साम्यवादी, विशेषकर सी.पी.एम काडर, संघ एवं भाजपा के कार्यकर्ताओं की राजनैतिक हत्याएं कर रहे हैं.
2. एकात्म मानव दर्शन
सम्पूर्ण विश्व के प्रबुद्ध मनुष्यों के लिए वैश्विक आर्थिक संकट, पृथ्वी का बढ़ता तापमान एवं राष्ट्रों के बीच बढ़ती वैमनस्यता एक चिंता का विषय है. वे इनका समाधान खोज रहे हैं. यह वर्ष पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्मशती वर्ष है. उन्होंने भारतीय चिंतन मूल्यों पर आधारित “एकात्म मानव दर्शन” (Integral Humanism) के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था. इस वर्ष हम इस सिद्धांत के 51वां वर्ष पूरा करेंगे. एकात्म मानव दर्शन “धारणक्षम विकास” एवं “धारणक्षम उपभोग”, मनुष्य का प्रकृति के प्रति व्यवहार पर एक वैश्विक दृष्टि प्रदान करता है.
3. बंगाल में हिन्दुओं पर जेहादी तत्वों द्वारा हमलों पर चर्चा
हिन्दू महिलाओं के बलात्कार एवं हत्या की घटनाओं में मुस्लिम समुदाय के लोग लिप्त पाये जा रहे हैं. इनमें से कई महिलाएं अनुसूचित जाति तथा जनजाति समाज से हैं. यह सब तृणमूल कांग्रेस के संरक्षण से पश्चिम बंगाल में हो रहा है. इस सन्दर्भ में कोलकाता उच्च न्यायलय द्वारा राज्य सरकार की आलोचना अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने कहा कि – “अल्पसंख्यक समुदाय के तुष्टीकरण हेतु हिन्दुओं के मूलभूत अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए .
abkm-baithak-2संघ यह मानता है कि जाति आधारित भेदभाव अमानवीय, असंवैधानिक है एवं ऐसे भेदभाव अधार्मिक भी है. ऐसी सामाजिक समस्याओं के निर्मूलन हेतु संघ के स्वयंसेवक देश भर में सर्वेक्षण कर रहे हैं. सभी हिन्दुओं को समान मंदिर प्रवेश, समान श्मशान तथा जल स्रोतों में एक सा प्रवेशाधिकार है या नहीं, यह इस सर्वेक्षण के मुख्य बिंदु है. कई स्वयंसेवकों ने सक्रिय रूप से ऐसी समस्याओं के निर्मूलन में भी प्रतिभाग किया है, उदहारण के लिये – तेलंगाना प्रान्त के पालमूर जिले में जाति के आधार पर अलग–अलग पेयपात्र की व्यवस्था को समाप्त करने के लिये संघ, विद्यार्थी परिषद एवं विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं ने प्रयास किये.
हिन्दू समाज के उपेक्षित विशेषकर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के वर्गों को सरकार द्वारा मिलने वाली योजनाओं का लाभ दिलाने के लिये संघ प्रतिबद्ध है. SC/ST बंधुओं के सशक्तिकरण के लिये संघ अन्य संगठनों के साथ मिल कर सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है.
Sabbat::vskbharat.com
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शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

Press Conference Addressed By Akhil Bharateeya Prachar Pramukh Dr. Manmohan Vaidya Ji

Press Conference Addressed By
Akhil Bharateeya Prachar Pramukh Dr. Manmohan Vaidya Ji

Addressing the media on 22nd October 2016, Dr. Manmohan Vaidya Ji  said: “RSS conducts 3 important national level meetings every year. In March every year we have the Akhil Bharateeya Pratinidhi Sabha baithaks. In July, we have the Prant Pracharaks baithaks. Before Deepavali, we have the Akhil Bharateeya Karyakari Mandal ( ABKM )  meetings, in which the Praant Sanghachalaks, Prant Karyavah and Prant Pracharaks i.e. State President, State Secretary and State Organising Secretary participate.
ABKM meetings will be held from tomorrow i.e 23 October to 25 October, 2016 at Annojiguda, Hyderabad. Nearly 400+ senior RSS Karyakartas representing every province across the nation will participate. During these three days, there will be discussions on RSS shakhas, social and service activities being conducted by the swayamsevaks and other national and social issues influencing the nation. On important social and national issues, resolutions will be introduced , discussed and passed.
Growth in Sangh Work
In 2009, Sangh took an initiative for spread of shakhas. During the last 6 years, we have seen continuous growth of shakhas_s8a5989-1024x683across the nation. About 55000 shakhas run across the country. 65% of the swayamsevaks who are attending the daily shakhas are students. 91% of the swayamsevaks who are taking training daily are below 40 years of age and remaining 9% are those above 40 years of age and doing social work.  During our Prathmik Siksha varga ( 7 day camps ) this year, we had 1.12 Lakhs youth participating in them showing the high enthusiasm among youth regarding the Sangh.
Youth is attracted to RSS, reflected by the fact that we received nearly 47200 online requests from youth to join RSS in the first six months of this year, a surge of 35% compared to last year.
Social Harmony Initiatives

RSS is stressing on Gram Vikas through cow-based farming, Kutumb Prabodhan ( initiatives for instilling family values  ) and Samarasta ( social harmony ) in the society. Pujaniya Sarsanghchalakji has given a direction to swayamsevaks and also an appeal to society to ensure unrestricted access to temples, water bodies and cremation grounds to every Hindu irrespective of his or her jaati (caste ) .
From 2006 onwards , RSS has been working among various social communities to bring about social reform.  An extensive survey spanning the entire country has been initiated to understand social problems and to work out solutions to eradicate any social discrimination.  RSS is organizing every sect of the Hindu society and seeing that there exists no discrimination among them.
The inaugural session of ABKM will commence at  8:30 am on 23rd October, 2016.
Resolutions will be passed on 24th October and  on the last day i.e 25 October 2016  Maa.Sarkaryavaha of RSS Sri. Bhaiyya ji Joshi will address the media.”
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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

पूज्य सरसंघचालक मोहन राव भागवत जी करेंगे राष्ट्र सेविका समिति के "अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर" का उद्घाटन



संघ प्रमुख मोहन राव भागवतजी करेंगे राष्ट्र सेविका समिति के "अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर" का उद्घाटन

राष्ट्र सेविका समिति के 80 वर्ष पूर्ण
 
राष्ट्र सेविका समिति के 80 वर्ष पूर्ण होने के अवसर समिति द्वारा 11 से लेकर 13 नवम्बर, 2016 तक दिल्ली के तेरापंथ भवन एवं अध्यात्म साधना केंद्र छत्तरपुर में आयोजित किए जा रहे तीन दिवसीय "अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर" की जानकारी देने हेतु लोधी एस्टेट, दिल्ली में आज एक प्रेस वार्ता रखी गई थी. जिसमें अलका जी नामदार, शिविर कार्यवाहिका (अ.भा.जॉइंट जनरल सेक्रेटरी, राष्ट्र सेविका समिति) ने "अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर" से संबंधित कार्यक्रम की रूपरेखा के बारे में प्रेस को जानकारी दी. 

अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका एवं शिविर कार्यवाहिका अलका इनामदार जी ने आगे प्रेरणा शिविर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि महिलाओं के लिए भी शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक विकास का अवसर होना चाहिए, राष्ट्र के प्रति दायित्व के प्रति जागरूक होना चाहिए, इस उद्देश्य के निमित्त ही सन् 1936 में विजया दशमी के दिन आद्य संचालिका वंदनीया लक्ष्मीबाई केलकर (मौसी जी) जी ने राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की थी. उसके बाद प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल पर शिविर का आयोजन समिति द्वारा किया जाता है.

उन्होंने बताया कि इस प्रेरणा शिविर में पुरे देश भर से हर नगर, जिला कार्यकारिणी, प्रान्त कार्यकारिणी एवं अखिल भारतीय कार्यकारिणी स्तर की दायित्ययुक्त 2500 कार्यकर्ता बहने भाग ले रहीं हैं. जो इस शिविर के दौरान चिंतन-मनन करेंगी कि राष्ट्र के निर्माण में परिवार की कैसी और क्या भूमिका होनी चाहिए? इस चिंतन से जो नवनीत उभर कर सामने आएगा, उसके आधार पर हम आगे की अपनी कार्ययोजना बनाने वाले हैं.  

उन्होंने आगे बताया कि 11 नवम्बर, 2016 शुक्रवार के प्रातः 10:30 बजे कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सरसंघचालक माननीय डॉ. मोहन राव भागवत जी अपने कर-कमलों द्वारा करेंगे और इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के विद्वान शिष्य मुनिश्री जयंत कुमार जी का सान्निध्य प्राप्त होगा.  

उन्होंने आगे बताया कि इसके पश्चात् अगले दिन 12 नवम्बर, 2016 शनिवार को प्रातः 09:45 बजे गोवा की माननीया राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा जी की अध्यक्षता में बौद्धिक सत्र होगा. जिसमें वक्ता कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद केंद्र की उपाध्यक्षा माननीया निवेदिता भिड़े जी होंगी. शिविर के अंतिम दिन 13 नवम्बर रविवार को प्रातः 09:45 बजे "राष्ट्र के विकास में परिवार की भूमिका" विषय पर "राष्ट्रीय महिला विचार संगोष्ठी" होगी. जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्षा माननीय सुमित्रा महाजन जी करेंगी. 

उन्होंने आगे बताया कि "राष्ट्र के विकास में परिवार की भूमिका" विषय पर तीन अलग-अलग बिन्दुओं पर तीन नारी शक्तियां अपनी-अपनी प्रस्तुति प्रस्तुत करेंगी. जिसमें "परिवार : संस्कृति संरक्षण" पर डॉ. उमा वैद्य, उपकुलपति, कालिदास विश्वविद्यालय, रामटेक, नागपुर, "परिवार : सामाजिक समरसता" पर डॉ. मीना चंदावरकर, पूर्व उपकुलपति, महिला विश्वविद्यालय, विजयपुर और "परिवार : आर्थिक विकास" पर डॉ. ज्योतिकिरण शुक्ला, अध्यक्षा, वित्त आयोग, राजस्थान द्वारा विषय प्रस्तुत किया जायेगा. 

उन्होंने आगे बताया कि "अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर" का समापन समारोह अपरान्ह 04:30 बजे होगा. इस अवसर पर वंदनीया प्रमुख संचालिका राष्ट्र सेविका समिति माननीया शान्तक्का जी का विशेष उद्बोधन होगा और जिसकी अध्यक्षता बैंगलुरु स्थित एन.ए.एल. की वैज्ञानिक डॉ. शुभा जी करेंगी. 

उन्होंने आगे कहा कि विश्व के विभिन्न देश आशा की दृष्टि से भारत की ओर देख रहे हैं, ऐसे में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की भूमिका क्या होनी चाहिए, और हम कैसे विश्व का नेतृत्व करने वाले भारत को खड़ा कर सकते हैं, शिविर के दौरान इन विषयों पर विचार विमर्श होगा. साथ ही राष्ट्र सेविका समिति की अभी तक की यात्रा में क्या किया, भविष्य में क्या कर सकते हैं, तीन दिनों में देशभर से आईं कार्यकर्ताओं में आगामी कार्य योजना को लेकर चितंन मंथन होगा और कहें तो भविष्य का मार्ग (रोड मैप) तय करेंगे.
देश में महिला अधिकारों के मुद्दे पर अलका जी ने कहा कि सड़कों पर उतरकर या संघर्ष से मुद्दे नहीं सुलझते, अपितु उलझते हैं. आपस में विचार विमर्श कर समस्या का हल निकाला जा सकता है. समाज मन और विचार में परिवर्तन लाना होगा. सेविका समिति इसी दिशा में प्रयास कर रही है. उन्होंने कहा कि सेविका समिति समाज से अलग नहीं है, यह राष्ट्र के लिए महिलाओं का संगठन है. हमारा आपका राष्ट्र के प्रति दायित्व क्या है, इसका प्रबोधन करवाना है. एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि राष्ट्र सेविका समिति के दरवाजे समस्त महिलाओं के लिए खुले हैं, लेकिन उनकी निष्ठा राष्ट्र के प्रति होनी चाहिए. प्रेस वार्ता में उनके साथ दिल्ली प्रांत प्रचारिका विजया जी, प्रेरणा शिविर की प्रचार प्रमुख सरजना जी भी उपस्थित थीं.
राष्ट्र सेविका समिति का परिचय
वर्तमान में देशभर में राष्ट्र सेविका समिति की करीब 2400 स्थानों पर तीन हजार के लगभग शाखाएं चलती हैं, विश्व के 22 देशों में हिन्दू सेविका समिति के नाम से कार्य चल रहा है. स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वावलंबन, के क्षेत्र में राष्ट्र सेविका समिति द्वारा 400 से अधिक सेवा कार्य देशभर में चलाए जा रहे हैं. सेविका समिति ने वंदेमातरम गीत के सौ वर्ष पूर्ण होने पर वर्ष 2005 में युवा पीढ़ी को केंद्रित करते हुए वंदेमातरम अभियान लिया था. वर्ष 2014-15 में 1570 स्थानों पर किशोरी शिविरों का आयोजन हुआ, जिसमें सवा तीन लाख किशोरियों ने भाग लिया, 168 स्थानों पर आयोजित प्रबुद्ध महिला संगोष्ठियों में करीब 16 हजार महिलाओं ने भाग लिया, 2015-16 में देशभर में 200 स्थानों पर आयोजित तरुणी सम्मेलनों में 65,000 तरुणियों ने भाग लिया. वर्ष 1996 में दिल्ली में सेविकाओं का विशाल सम्मेलन हुआ था, जिसमें 7500 सेविकाओं ने भाग लिया था, इसी प्रकार नागपुर में दस वर्ष पूर्व आयोजित सम्मेलन में 10,000 सेविकाएं उपस्थित थीं. प्रेरणा शिविर केवल दायित्ववान कार्यकर्ताओं का है.

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

रेशिमबाग नागपुर में विजयादशमी उत्सव पर प पू सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का पूर्ण संबोधन की विडीयो

रेशिमबाग नागपुर में विजयादशमी उत्सव पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी का पूर्ण संबोधन……..

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 आदरणीय प्रमुख अतिथि महोदय, निमंत्रित विशिष्ट अतिथिगण, नागरिक सज्जन माता भगिनी, माननीय संघचालक गण एवं आत्मीय स्वयंसेवक बंधु,

अपने पवित्र संघकार्य के 90 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात् युगाब्द 5118 अर्थात् ई. स. 2016 का यह विजयादशमी उत्सव एक वैशिष्ट्यपूर्ण कालखण्ड में संपन्न हो रहा है. स्व. पंडीत दीनदयाल जी उपाध्याय की जन्मशती के संबंध में पिछले वर्ष ही मैंने उल्लेख किया था. वह 100वाँ वर्ष पूरा होने के बाद इस वर्ष भी उनके जन्मशती के कार्यक्रम चलने वाले है. यह वर्ष अपने इतिहास के कुछ और ऐसे महापुरुषों के पुनःस्मरण का वर्ष है, जिनके जीवन संदेश के अनुसरण की आवश्यकता आज की परिस्थिति में हम सबको प्रतीत होती है.

यह वर्ष आचार्यश्री अभिनवगुप्त की सहस्राब्दी का वर्ष है. वे शैवदर्शन के मूर्धन्य आचार्य तथा साक्षात्कार प्राप्त संत थे. ‘‘प्रत्यभिज्ञा’’ संज्ञक दार्शनिक संकल्पना के प्रवर्तन के साथ-साथ उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के अविष्कार से काव्य, नाट्य, संगीत, भाषा, ध्वनिशास्त्र आदि लौकिक जीवन के पहलुओं में अत्यन्त समर्थ, प्रमाणभूत व शाश्वत परिणाम करने वाले हस्तक्षेप किये है. ‘ध्वनि’ के विषय में उनकी तात्विक विवेचना, परमतत्व की अनुभूति तक ले जाने की ‘ध्वनि’ शक्ति का विवेचन तो मात्र दर्शनशास्त्री ही नहीं, आधुनिक संगणक वैज्ञानिकों के भी गहन अध्ययन का विषय बना है. परन्तु उनकी जीवन तपस्या का सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने देश की विविधता में एकता का दर्शन कराने वाली सनातन संस्कृति धारा को कश्मीर की भूमि से पुनःप्रवर्तित करना. स्वयं शैव दर्शनधारा के उपासक होते हुए भी उन्होंने मत संप्रदायों का भेद न करते हुए, सभी का आदरपूर्वक अध्ययन करते हुए सभी से ज्ञान प्राप्त किया. प्रेम व भक्तिपूर्ण समन्वय की दृष्टि तथा पवित्र आचरण का सन्देश स्वयं के जीवन तथा उपदेशों से देकर वे कश्मीर में बडगाँव के पास बीरवा की भैरव गुफा में शिवत्व में लीन हो गये.

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दक्षिण के प्रसिद्ध संत ‘श्रीभाष्य’कार श्री रामानुजाचार्य की भी यह सहस्राब्दि है. दक्षिण से दिल्ली तक पदयात्रा कर सुल्तान के दरबार से अपने आराध्य की उत्सवमूर्ति वे निकालकर ले आये तथा मूर्ति की भक्त बनी सुल्तान कन्या को भी मेलकोटे के मन्दिर में स्थान दिया. जातिपंथ के भेदभावों का पूर्ण निषेध करते हुए समाज में सभी के लिए भक्ति व ज्ञान के द्वार खोल दिये. सामाजिक समता को प्रतिष्ठित करते हुए जीवन में धर्म के संपूर्ण व निर्दोष आचरण के द्वारा संपूर्ण देश में समता व बंधुता का अलख जगाया.

देश, समाज व धर्म की रक्षा हेतु ‘‘मीरी व पीरी’’ का दोधारी बाना अपनाते हुए स्वाभिमान की रक्षा व पाखंड का ध्वंस करने वाले दशमेश श्री गुरुगोविंद सिंह जी महाराज के जन्म का 350वाँ वर्ष मनाने जा रहा है. देश धर्म के हित में सर्वस्व समर्पण व सतत संघर्ष का उनका तेजस्वी आदर्श स्मरण करते हुए स्वामी विवेकानन्द जी ने भी लाहौर के उनके प्रसिद्ध भाषण में हिन्दू युवकों को उस आदर्श का अनुसरण करने का परामर्श दिया था.
यह वर्ष प्रज्ञाचक्षु श्री गुलाबराव महाराज का भी जन्मशती वर्ष है. संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज की स्वयं को ‘कन्या’ कहते हुए, परिश्रमपूर्वक स्वदेश तथा विदेश के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक ग्रंथों का व्यासंगपूर्ण अध्ययन उन्होंने किया. ब्रिटिश दासता के घोर आत्महीनता के कालखंड में अकाट्य तर्कों सहित हमारे शास्त्रों के परंपरागत तथा पश्चिम के अत्याधुनिक वैज्ञानिक प्रमाणों के द्वारा बौद्धिक जगत में व भारतीय मनों में स्वधर्म, स्वदेश व स्वसंस्कृति की श्रेष्ठता का गौरव व आत्मविश्वास स्थापित किया. भविष्य में विज्ञान की प्रगति, मानवीयता व सार्थकता तथा विश्वभर के सभी पंथ-संप्रदायों के समन्वय का आधार हमारी श्रेष्ठ आध्यात्मिक संस्कृति ही हो सकती है, यह उनकी अति विशाल ग्रन्थ सम्पदा का स्पष्ट संदेश है.

वर्ष भर में जो परिस्थिति व घटनाक्रम हम अनुभव करते आ रहे हैं उसका अगर बारीकी से अध्ययन व चिन्तन करें तो इन चारों महापुरुषों के संदेशों के अनुसरण का महत्व ध्यान में आता है.

nagpuirयह स्पष्ट है कि यद्यपि गति बढ़ाने की गुंजाईश है व और कई बातों का होना अपेक्षित है, गत दो वर्षों में देश में व्याप्त निराशा दूर करने वाली, विश्वास बढ़ाने वाली व विकास के पथ पर देश को अग्रसर करने वाली नीतियों के कारण कुल मिलाकर देश आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. यह भी स्पष्ट है – व हमने अपनायी हुई प्रजातांत्रिक प्रणाली में कुछ अपेक्षित भी है – कि जो दल सत्ता से वंचित रहते हैं वे विरोधी दल बनकर शासन प्रशासन की कमियों को ही अधो-रेखांकित कर अपने दल के प्रभाव को बढ़ाने वाली राजनीति कर रहे हैं, करेंगे. इसी मंथन में से देश के प्रगतिपथ की सहमति व उसके लिये चलने वाली नीतियों की समीक्षा, सुधार व सजग निगरानी होते रहना प्रजातंत्र में अपेक्षित रहता है. परंतु जो चित्र पिछले सालभर में दिख रहा है, उसमें कुछ चिंताजनक प्रवृत्तियों के खेल खेले जाते हुए स्पष्ट दिखते हैं. देश की स्थिति व विश्व परिदृश्य की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वाले सभी को यह पता है कि भारत का समर्थ, एकात्म, आत्मनिर्भर व नेतृत्वक्षम होकर उभरना फूटी आँखों न सुहाने वाली कुछ कट्टरपंथी, अतिवादी, विभेदकारी व स्वार्थी शक्तियाँ दुनिया में हैं व भारत में भी अपना जाल बिछाए काम कर रही हैं. भारत के समाज-जीवन से अभी तक पूर्णतः निर्मूल न हो पायी विषमता, भेद व संकुचित स्वार्थ प्रवृत्तियों के चलते यदाकदा घटने वाली घटनाओं का लाभ लेकर, अथवा घटना घटे इसके लिये कतिपय लोगों को उकसाते हुए अथवा अघटित घटनाओं के घटने का असत्य प्रचार करते हुए विश्व में भारतवासी तथा भारत का शासन प्रशासन तथा भारत में ऐसी दुष्प्रवृत्तियों को रोक सकने वाले संघ सहित सज्जन शक्ति को विवादों में खींचकर बदनाम करने का व लोकमानस को उनके बारे में भ्रमित करने का प्रयास चलता हुआ दिखाई देता है. जैसी उनकी आकांक्षाएँ व चरित्र रहा है, यह प्रयास, आपस में भी टकराने वाली यह शक्तियाँ अलग-अलग अथवा समान स्वार्थ के लिये गोलबंद होकर करेंगी हीं. उनके भ्रमजाल तथा छल कपट के चंगुल में फँसकर समाज में विभेद व वैमनस्य का वातावरण न बने इसके प्रयास करने पड़ेंगे.

संघ के स्वयंसेवक इस दिशा में अपने प्रयासों की गति बढ़ा रहे हैं. अनेक प्रांतों में इस दृष्टि से सामाजिक समता की सद्यःस्थिति का सर्वेक्षण किया जा रहा है तथा उपाय के लिये समाज-मन की अनुकूलता बनाने की बातचीत शाखाओं के द्वारा अपने-अपने गाँव-मुहल्ले में प्रारंभ कर दी गयी है. उदाहरण के लिये संघ की दृष्टि से मध्यभारत प्रान्त माने गये क्षेत्र के 9000 गाँवों का विस्तारपूर्वक सर्वेक्षण पूरा हुआ, जिसमें अभी तक लगभग 40 प्रतिशत गांवों में मंदिर, 30 प्रतिशत में पानी व 35 प्रतिशत गांवों में शमशान को लेकर भेदभाव का व्यवहार होता है, यह बात सामने आयी हैं. उनके उपाय के लिये प्रयास भी प्रारम्भ हुए है. अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिये बने संवैधानिक प्रावधानों का, उनके लिये आवंटित धनराशि का विनियोग व निर्वाह प्रामाणिकता व तत्परता के साथ शासन व प्रशासन के द्वारा हो इसलिये भी संघ के स्वयंसेवकों ने सहायता का कार्य प्रारम्भ कर दिया है. अपनी जितनी शक्ति, जानकारी व पहुँच है, उतना सामाजिक समता की दिशा में संघ के स्वयंसेवकों का यह प्रयास होगा ही. परंतु समाज हितैषी सभी व्यक्तियों व शक्तियों को अधिक सक्रिय होकर इस दिशा में प्रयास करने की आवश्यकता है. छोटी मोटी घटना से उत्तेजित होकर अथवा अपनी श्रेष्ठता के अहंकार में अपने ही निरपराध बंधुओं को अपमान व प्रताड़ना सहन करनी पड़े, यह 21वीं सदी के भारतीय समाज के लिये लज्जाजनक कलंक है ही, कतिपय छिद्रान्वेषी शक्तियां इसी का लाभ लेकर भारत को बदनाम करने की गतिविधियाँ चलाती हैं तथा समाज में चलने वाले अच्छे उपक्रमों की गति अवरुद्ध करने का प्रयास करती हैं.



14690953_1708774862777165_9215344321387944934_nदेशी गाय जो अपने देश के पशुधन का बडा हिस्सा है, का रक्षण, संवर्धन व विकास यह संविधान के मार्गदर्शक तत्वों में निर्दिष्ट, भारतीय समाज की आस्था व परंपरा के अनुसार पवित्र कार्य है. केवल संघ के स्वयंसेवक ही नहीं, देशभर में अनेक संत, सज्जन, संविधान कानून की मर्यादा का पूर्ण पालन करते हुए जीवन तपस्या के रूप में इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं. आधुनिक विज्ञान के प्रमाण देशी गाय की उपयुक्तता व श्रेष्ठता को सिद्ध कर चुके हैं. अनेक राज्यों में गोहत्या प्रतिबंधक कानून तथा पशुओं के प्रति क्रूरता प्रतिबंधक कानून बने हैं. उनका ठीक से अमल हो, इसके लिये भी कभी-कभी व कहीं-कहीं गौसेवकों को अभियान करना पड़ता है. गौहत्या की घटनाओं का आधार लेकर अथवा कपोलकल्पित घटनाओं की अफवाह को उछालते हुए अपना व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना, समाज में बिना कारण कलह खड़ा करना, अथवा केवल गौसेवा के पवित्र कार्य को ही लांछित व उपहासित करने के लिये कौभांड रचने वाले अवांच्छित तत्वों से उनकी तुलना नहीं हो सकती. गौसेवकों की तपस्या तो चलती, बढ़ती रहेगी. अपना हर कार्य कानून सुव्यवस्था की मर्यादा में ही हो यह स्वतंत्र देश के प्रजातंत्र का अनुशासन सभी सज्जन भावनाओं को भड़काने के प्रयासों के बावजूद पालन कर रहे हैं, करते रहेंगे. गोहत्या प्रतिबंधन कानूनों का अमल कड़ाई से हो व कानून सुव्यवस्था का पालन भी कड़ाई से हो यह देखते समय प्रशासन, सज्जन व दुर्जनों को एक ही तराजू में न तोले यह आवश्यक है. ऐसी घटनाओं में राजनीतिक लाभ की आशा से राजनैतिक व्यक्ति जो भी पक्ष लें, अपनी करनी से समाज में पड़ी दरारें चौड़ी न हों, विद्वेष का शमन हो ऐसा उनका मन, वचन, कर्म रहे, यह समाज की अपेक्षा है. माध्यमों में भी कुछ वर्ग अपने व्यापारिक लाभ की आशा से ऐसी घटनाओं के वृत्तकथन को वास्तविकता से अधिक भड़काऊ रंग में प्रस्तुत करता दिखाई देता है, इस मोह से उनको बचना चाहिये. सभी को यह ध्यान में रखना चाहिये कि समाज में स्वतंत्रता व समता का अवतरण व दृढ़ीकरण, समाज में बंधुभाव की व्याप्ति व दृढ़ता पर निर्भर रहता है. देश के सामने मुँह बाये खड़ी चुनौतियों का सामना उसी के बल पर देश कर सकेगा. श्री अभिनवगुप्त व श्रीरामानुज जैसे द्रष्टा महापुरुषों ने आगे बढ़ायी इस सद्भाव की परंपरा को और भी आगे बढ़ाने की आवश्यकता इसलिये भी है कि देश की सुरक्षा, एकात्मता, संप्रभुता व अखण्डता पर अभी भी खतरों के बादल मंडरा रहे हैं.



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समूचे जम्मू-कश्मीर राज्य की सद्यःस्थिति इस दृष्टि से हमारी चिंताएँ और बढ़ाती है. इस संबंध में अब तक चलती आयी सफल अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक गतिविधियाँ तथा शासन व संसद के द्वारा बारबार व्यक्त किये दृढ़तापूर्ण संकल्प स्वागतार्ह हैं, परंतु उस सही नीति का तत्पर व दृढ़तापूर्ण क्रियान्वयन हो यह भी आवश्यक है. जम्मू-लद्दाख सहित कश्मीर घाटी का बड़ा क्षेत्र अभी भी कम उपद्रवग्रस्त व अधिक नियंत्रण में है. वहाँ पर राष्ट्रीय प्रवृत्तियाँ व शक्तियों का बल बढ़े, पक्का हो व स्थापित हो, ऐसी शीघ्रता करनी चाहिये. उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में उपद्रव उत्पन्न करने वाले स्थानीय व परकीय तत्वों का कड़ाई से व शीघ्र नियंत्रण हो इसलिये राज्य शासन व केन्द्र शासन अपने अपने प्रशासन सहित एकमत व एकनीति बनाकर दृढ़ता व तत्परता दिखाए, इसकी आवश्यकता है. मीरपुर, मुजफ्फराबाद, गिलगिट, बाल्टिस्तान सहित संपूर्ण कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है, यह दृढ़ भूमिका बनी रहनी चाहिये. वहाँ से विस्थापित हुए बंधु और कश्मीर घाटी से विस्थापित पंडित हिंदू, सम्मान, सुरक्षा तथा योगक्षेम की स्थिरता के प्रति निश्चिंत होकर यथापूर्व पुनःस्थापित हो जायें, यह कार्य शीघ्रता से आगे बढ़ाना होगा. विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर राज्य में तत्कालीन राज्य शासन द्वारा पाकिस्तान में गये भूभाग से विस्थापित होकर आये हिंदुओं को आश्वस्त करते हुए राज्य में ही बसने को कहा था, उनको राज्य में भी नागरिकता के सभी अधिकार प्राप्त करा देने होंगे. अब तक राज्य प्रशासन के द्वारा जम्मू व लद्दाख के साथ होने वाला भेदभाव तुरंत ही समाप्त होना चाहिये. जम्मू व कश्मीर में राज्य का प्रशासन राष्ट्रभाव से, स्वच्छ, तत्पर, समदृष्टि व पारदर्शी होकर चले तभी राज्य की जनता को विजय तथा विश्वास की एकसाथ अनुभूति मिलेगी व घाटी की जनता के सात्मीकरण की प्रक्रिया आगे बढे़गी.

कश्मीर घाटी में चलने वाले उपद्रवों के पीछे सीमा पार से ऐसे उपद्रवों को उकसाने, हवा देने के लिये सतत चलने वाली कुचेष्टा यह एक बड़ा कारण है, यह बात सारा विश्व अब जानता है. विश्व के अन्यान्य देशों में अपना केन्द्र बनाकर सीमा प्रदेशों में अलगाव, हिंसा, आतंक व नशीली दवाओं की तस्करी जैसी समाज के स्वास्थ्य व बल को नष्ट करने वाली गतिविधियाँ चलाने वाले छोटे बड़े समूहों का भी इनके साथ गठबंधन बनता चला जा रहा है, यह जानकारियाँ भी मिलती रहती हैं. ऐसी अवस्था में हमारे सामरिक बल की नित्यसिद्धता, सेना दल, रक्षक बल तथा सूचना तंत्रों में समन्वय व सहयोग का प्रमाण व नित्य सजगता में क्षणभर की ढिलाई महंगी पड़ सकती है, यह उरी के सैनिक शिविर पर हुए हमले की घटना ने फिर एक बार अधोरेखित किया है. इस हमले का ठीक उत्तर बहुत दृढ़तापूर्वक तथा कुशलतापूर्वक अपने शासन के नेतृत्व ने हमारे वीर जवानों द्वारा दिया गया, इसलिये शासन व सभी सेना दलों का हार्दिक अभिनंदन! परंतु हमारी यह दृढ़ता तथा राजनयिक व सामरिक कुशलता हमारी नीति में स्थायी हो यह आवश्यक है. समूचे सागरी व भूसीमा प्रदेशों में इस दृष्टि से कड़ी निगरानी रखते हुए शासन, प्रशासन व समाज के परस्पर सहयोग से अवांच्छित गतिविधियों को तथा उनके पीछे काम करने वाली कुप्रवृत्तियों को जड़मूल से समाप्त करना आवश्यक हो गया है.

राज्यों की शासन व्यवस्थाओं का भी इसमें पूर्ण सहयोग आवश्यक रहता है. देश की व्यवस्था के नाते हमने अपने संविधान में संघराज्यीय कार्यप्रणाली को स्वीकार किया है. ससम्मान व प्रामाणिकता पूर्वक उसका निर्वाह करते समय हम सभी को, विशेषकर विभिन्न दलों द्वारा राजनीतिक नेतृत्व करने वालों को यह निरन्तर स्मरण रखना पडे़गा कि व्यवस्था कोई व कैसी भी हो, संपूर्ण भारत युगों से अपने जन की सभी विविधताओं सहित एक जन, एक देश, एक राष्ट्र रहा है, तथा आगे उसको वैसे ही रहना है, रखना है. मन, वचन, कर्म से हमारा व्यवहार उस एकता को पुष्ट करने वाला होना चाहिये, न कि दुर्बल करने वाला. समाज जीवन के विभिन्न अंगों में नेतृत्व करने वाले सभी को इस दायित्वबोध का परिचय देते चलने का अनुशासन दिखाना ही पड़ेगा. साथ-साथ समाज को भी ऐसे ही दायित्वपूर्ण व्यवहार को सिखाने वाली व्यवस्थाएँ बनानी पड़ेंगी.

अनेक वर्षों से देश की शिक्षा व्यवस्था – जिससे देश व समाज के साथ एकात्म, सक्षम व दायित्ववान मनुष्यों का निर्माण होना चाहिये – पर चली चर्चा, इस परिप्रेक्ष्य में ही अत्यंत महत्वपूर्ण है. उस चर्चा के निष्कर्ष के रूप में एक सामान्य सहमति भी उभरकर आती हुई दिखाई देती है कि शिक्षा सर्वसामान्य व्यक्तियों की पहुँच में सुलभ, सस्ती रहे. शिक्षित व्यक्ति रोजगार योग्य हों, स्वावलंबी, स्वाभिमानी बन सकें व जीवनयापन के संबंध में उनके मन में आत्मविश्वास हो. वह ज्ञानी बनने, सुविद्य बनने के साथ-साथ दायित्वबोधयुक्त समंजस नागरिक तथा मूल्यों का निर्वहन करने वाला अच्छा मनुष्य बने. शिक्षा की व्यवस्था इस उद्देश्य को साकार करने वाली हो. पाठ्यक्रम इन्हीं बातों की शिक्षा देने वाला हो. शिक्षकों का प्रशिक्षण व योगक्षेम की चिन्ता इस प्रकार हो कि विद्यादान के इस व्रत को निभाने के लिये वे योग्य व समर्थ हों. शासन व समाज दोनों का सहभाग शिक्षा क्षेत्र में हो तथा दोनों मिलकर शिक्षा का व्यापारीकरण न होने दें. नयी सरकार आने के बाद इस दिशा में एक समिति बनाकर प्रयास किया गया, उसका प्रतिवेदन भी आ गया है. शिक्षा क्षेत्र के उपरोक्त दिशा में कार्य करने वाले बंधु तथा शिक्षाविदों की राय में उस प्रतिवेदन की संस्तुतियाँ इस दिशा में शिक्षा पद्धति को रूपांतरित करेंगी कि नहीं यह देखना पडेगा. दिशागत परिवर्तन के लिये उपयुक्त ढाँचा बनाने की रूपरेखा तभी प्राप्त होगी, अन्यथा उपरोक्त सहमति प्रतीक्षा की अवस्था में ही रहेगी.

परंतु नई पीढ़ी के शिक्षित होने के स्थानों में विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विद्यापीठों के साथ-साथ कुटुंब व पर्व उत्सवों से लेकर समाज की सभी गतिविधियाँ व उपक्रमों से निर्माण होने वाला वातावरण भी है. अपने कुटुंब में नई व पुरानी पीढ़ी का आत्मीय संवाद होता है क्या? उस संवाद में से उनमें शनैः-शनैः समाज के प्रति दायित्वबोध, व्यक्तिगत व राष्ट्रीय चारित्र्य के सद्गुण, मूल्यश्रद्धा, श्रमश्रद्धा, आत्मीयता तथा बुराइयों के आकर्षण से दूर रहने की प्रवृत्ति का निर्माण होता है क्या? वे ऐसे बनें इसलिये घर के बड़ों का व्यवहार उदाहरण बनता है क्या? इन प्रश्नों के उत्तर अपने-अपने कुटुंब के लिये हम ही को देने होंगे. घर से उचित स्वभाव, लक्ष्य तथा प्रवृत्ति प्राप्त हो तो ही शिक्षा प्राप्ति का परिश्रम तथा उसके उचित उपयोग का विवेक बालक दिखाता है, यह भी हम सभी का अनुभव है. कुटुंब में यह संवाद प्रारम्भ हो व चलता रहे यह प्रयास अनेक संत सज्जन तथा संगठन कर रहे हैं. संघ के स्वयंसेवकों में भी एक गतिविधि कुटुंब प्रबोधन के ही कार्य को लेकर चली है, बढ़ रही है. किसी के माध्यम से हमारे पास यह कार्य पहुँचे, इसकी प्रतीक्षा किये बिना हम इसे अपने घर से प्रारम्भ कर ही सकते हैं.
समाज में चलने वाले अनेक उपक्रम, पर्व त्यौहार, अभियान इत्यादि का प्रारंभ समाज प्रबोधन व संस्कार की शाश्वत आवश्यकता को ध्यान में लेकर हुआ. उस प्रयोजन का विस्मरण हुआ तो उत्सव तो चलते रहता है, परंतु उसका रूप बदलकर कभी कभी भद्दा, निरर्थक बन सकता है. प्रयोजन ध्यान में लेकर इन पर्वों के सामाजिक स्तर पर आयोजन का काल सुसंगत रूप गढ़ना चाहिये तो आज भी वह समाज प्रबोधन का अच्छा साधन बन सकते हैं. महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेश मंडलियों के द्वारा अनेक स्थानों पर अच्छे प्रयोग किये हैं. वर्ष प्रतिपदा पर नव वर्ष मनाने की अनेक उपयुक्त कल्पनाएँ सामने आयी हैं. समाज से ऐसे कल्पक सुधारित उपक्रमों का प्रोत्साहन, सहयोग तथा अनुकरण होने की आवश्यकता है. शासकीय तथा अशासकीय दोनों प्रकार की पहल होकर कुछ नये प्रयास चले है, उनमें भी समाज का उत्साह बना रहे, बढ़ता रहे, इसका ध्यान निरन्तर सभी समाज हितैषी बंधु व स्वयंसेवकों को रखना पड़ेगा. वृक्षारोपण, स्वच्छ भारत अभियान, योग दिवस आदि इन उपक्रमों का महत्व समाज में सामूहिकता, समाज में स्वावलंबन, सामाजिक संवेदना आदि अनेक गुणों के निर्माण की दृष्टि से ध्यान में आ सकता है. इसी बात को मन में लेकर संघ के स्वयंसेवक भी इन उपक्रमों में, उत्सवों में समाज के साथ सहभागी होकर उनको अधिक सुव्यवस्थित, सुंदर व प्रभावी बनाने में समाज का सहयोग कर रहे हैं, करेंगे. समाज की स्वाभाविक संगठित अवस्था ही देश व विश्व में सुव्यवस्था, एकात्मता, शांति व प्रगति का मूल व मुख्य कारण बनती है, इस सत्य के आधार पर ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 90 वर्षों से निरंतर कार्य करते हुए आगे बढ़ रहा है.

परंपरा से ही हमारा समाज कई विविधताओं को साथ लेकर चला है. संपूर्ण सृष्टि के विविधरंगी दृश्य के पीछे, उन सभी विविधताओं के अस्तित्व में ओतप्रोत जो सनातन व शाश्वत एकत्व है, उसका साक्षात् बोध हमारे मनीषियों को हुआ. इसी बोध का प्रबोधन संपूर्ण जगत को कराने का साधन इस नाते उनके दुर्धर तप से हमारा राष्ट्र उत्पन्न हुआ और अब तक इसी प्रबोधन का सफल साधन बनने के लिये उसकी जीवन यात्रा चल रही है. सृष्टि के अस्तित्व तक इस प्रबोधन की आवश्यकता बनी रहेगी, उस आवश्यकता को पूर्ण करने वाला यह राष्ट्र भी बना रहेगा. हमारे राष्ट्र को इसलिये अमर राष्ट्र कहा जाता है. जड़ता, कलह की स्वनिर्मित श्रृंखलाओं में बद्ध विश्व को फिर उस प्रबोधन की आवश्यकता है. हमारे लिये अपने अस्तित्व के प्रयोजन को सिद्ध करने के लिये कर्तव्यबद्ध होकर चलने की घड़ी है. संपूर्ण अस्तित्व की एकता के सत्य पर दृढ़ता पूर्वक स्थापित, उसी से निःसृत हमारे सनातन धर्म व संस्कृति को वर्तमान युग के अनुसार समझकर, देशकाल परिस्थिति के अनुरूप उसका नूतन आविष्कार, हमारे संगठित, बल संपन्न, समतायुक्त, शोषणमुक्त, सर्वांग परिपूर्ण, वैभव संपन्न राष्ट्रजीवन को खड़ा करते हुए विश्व के सामने उदाहरण के रूप में रखना होगा. कई शतकों की विदेशी दासता व हमारी आत्म विस्मृति के कुप्रभावों से पूर्ण मुक्त होकर हमारे अपने विचार धन के आधार पर हमें राष्ट्र की नीतियाँ बनानी होंगी. उसके लिये हमारे उन सनातन मूल्यों, आदर्शों व संस्कृति की गौरव गरिमा श्रद्धापूर्वक हृदय में धारण करनी पड़ेगी. विश्व में आत्मविश्वास युक्त पदक्षेपों के साथ राष्ट्र आगे बढ़ रहा है, विश्व को सहस्राब्दियों से पीड़ा देने वाली समस्याओं का अचूक समाधान दे रहा है, यह दृश्य अपने जीवन व कर्तृत्व से खड़ा करना पड़ेगा. संतशिरोमणि श्री गुलाबराव महाराज की विशाल ग्रंथ संपदा व दुर्धर जीवन तपस्या का सारांश में संदेश यही है.

शासन का कार्य इस दिशा का ध्रुव रखकर चलें, प्रशासन उसकी नीति का तत्पर व कार्यक्षम रहकर क्रियान्वयन करें व देश के अंतिम व्यक्ति तक सभी को सुखी, सुंदर, सुरक्षित व उन्नत जीवन का लाभ हो रहा है, इस पर दोनों का ध्यान निरंतर रहे, इसके साथ-साथ समाज भी एकरस, संगठित व सजग होकर इन दोनों का सहयोग करे, प्रसंग पड़ने पर नियमन भी करे, यह राष्ट्रजीवन की उन्नति के लिये आवश्यक है. इन तीनों के एक दिशा में सुसूत्र व परस्पर संवेदनशील होकर समन्वित चलने से ही, आसुरी शक्तियों के छल-कपट व्यूहों के भ्रमजाल को भेदकर, समस्याओं व प्रतिकूलताओं की बाधाओं को चीरकर परम विजय की प्राप्ति में हम समर्थ हो सकेंगे.
कार्य कठिन लगता है, परंतु वही हमारा अनिवार्य सद्य कर्तव्य है. असंभव से लगने वाले कार्य को दृढ़निश्चय, पराक्रम, सर्वस्व समर्पण व निःष्काम, निःस्वार्थ बुद्धि से निरंतर सफलता की ओर बढ़ाने वाले श्री गुरुगोविंद सिंह जी महाराज के तेजस्वी जीवन की विरासत हमें मिली है. हमें श्रद्धापूर्वक सारी शक्ति लगाकर उस आदर्श की राह पर चलने का साहस दिखाना होगा.

समाज ऐसा दैवीगुणसंपदयुक्त बने, इसलिये अपने उदाहरण से ऐसे आचरण का वातावरण बनाने का एकमात्र कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है. अपने निःस्वार्थ एवं अकृत्रिम आत्मीयता से समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जोड़ना, अपने इस पवित्र और प्राचीन हिन्दू राष्ट्र को विश्व का परमवैभव संपन्न बनाने के भव्य लक्ष्य के साथ उसको तन्मय करना, कार्य के योग्य बनने के लिये शरीर, मन, बुद्धि का विकास करने वाली सहज, सरल शाखा साधना उसके जीवन का अंग बनाना, तथा ऐसे साधकों को आवश्यकता व क्षमतानुसार समाज जीवन के विविध अंगों में आवश्यक कार्य को सेवाभाव से करने के लिये प्रवृत्त करना यही उसकी कार्यपद्धति रही है. शीघ्रतापूर्वक समाज में इस परिवर्तन को लाने के लिये चलने वाली समरसता, गौसंवर्धन, कुटुंब प्रबोधन जैसी गतिविधियों का व उपक्रमों का अत्यल्प परिचय इस भाषण में आपको दिया है. परंतु संपूर्ण समाज ही इस दृष्टि से सक्रिय हो इसकी आवश्यकता है. नवरात्रि के नौ दिन तपस्यापूर्वक देवों ने – अर्थात् उस समय की सज्जनशक्ति ने – अपनी-अपनी शक्ति को परस्पर समन्वित व पूरक बनाकर सम्मिलित किया व दसवें दिन चंडमुंडमहिषासुर रूप मायावी असुर शक्ति का निर्दलन कर मानवता के त्रास का हरण किया, वही आज का विजयादशमी – विजयपर्व है. अतएव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस राष्ट्रीय कार्य पर आपके स्नेह व प्रोत्साहन की छाया की दृष्टि के साथ आपकी सहयोगिता व सहभागिता भी बढ़ती रहे, इस विनम्र आह्वान के साथ मैं इस वक्तव्य को विराम देता हूँ. आप सभी को विजयादशमी की शुभेच्छाएँ तथा सभी की ओर से एक प्रार्थना –

देह सिवा बरु मोहे ईहै, सुभ करमन ते कबहूं न टरों.
न डरों अरि सो जब जाइ लरों, निसचै करि अपुनी जीत करों..
अरु सिख हों आपने ही मन कौ, इह लालच हउ गुन तउ उचरों.
जब आव की अउध निदान बनै, अति ही रन मै तब जूझ मरों..
.. भारत माता की जय ..

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित