महिलाओंका मूल कर्तृत्त्ववान रूप उभरने में समाज का योगदान आवश्यक : भागवत
स्रोत: News Bharati Hindi तारीख: 4/21/2013 10:33:05 AM |
पुणे, अप्रैल 21 : अपने समाज में नैतिकता एवं संस्कारोंका जतन करने में महिलाओंकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी समय ब्रह्मवादिनी एवं समाजके निर्णयप्रक्रिया में आगे रहनेवाली महिलाएँ आज अनेको समस्याओं के बली चढ रही है। उन्हें इन समस्याओंसे मुक्त करके उनका मूल कर्तृत्त्ववान रूप उभरने में समाज का योगदान आवश्यक बन गया है, ऐसा प्रतिपादन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवतने शनिवार को यहाँ किया।
भारतीय स्त्री : एक मीमांसा इस पुस्तक के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे डा. भागवत ने अपने आगे कहा की, पिछले कुछ शतकों में भारतवर्ष पर हुए आक्रमणों के कारण यहां की स्थिती महिलाओं के लिए विपरीत हो गई। इसी कालखंड में स्त्री जीवन में विपरीत परिणाम हुए जिसके कारण अनेकों समस्याएँ उभर आई। उन समस्याओं के निराकरण के लिए समाज को अब प्रयास करने होंगे। सुधा रिसबुड लिखित इस पुस्तक का प्रकाशन स्नेहल प्रकाशन ने किया है। इस विमोचन समारोह की अध्यक्षता डेक्कन कालेज अभिमत विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डा. गो. बं. देगलूरकर ने की।
डा. भागवत ने कहा की, आज भी ग्रामीण तथा वनवासी क्षेत्रों में घर-गृहस्ती के निर्णय महिलाएँही करती है, किन्तु घर के बाहर का पूरा जीवन पुरुष वर्चस्ववादी संस्कृतीसे भरा हुआ है। यह चित्र बदले जाने की आवश्यकता है। ज्ञान-विज्ञान, उद्योग, तत्त्वज्ञान एवं अनुसंधान के क्षेत्र में महिलाओं का मूल रूप प्रकट होने की आवश्यकता है। और यह करते हुए हम उन्हें आगे आने के लिए बढावा दे रहे हैं ऐसी भावना नहीं होनी चाहिए। हमारी भूमिका सहयोग की होनी चाहिए। महिलों के प्रकटीकरण में पुरुषों का चिंतन, सहयोग एवं घर के सारे सदस्यों का सहभाग हो, यह सबसे आदर्श स्थिती होगी।
संघ और महिला इस विषय पर भाष्य करते हुए डा. भागवत ने कहा, संघ के आरंभकाल में संघ संस्थापक डा. हेडगेवार का परिचय वंदनीय मावशी केळकर से हुआ। उन्होंने डाक्टरजी से प्रश्न पूछा की, समाज का ५० प्रतिशत हिस्सा जो महिलाएँ है वे संघ के कार्य का भाग क्यों नही है? इस प्रश्न पर डा. हेडगेवार ने कहा की, संघ के कार्यकर्ता सुचारू रूपसे सामाजिक कार्य कर पाते है क्यों की किसी की माँ, किसी की बहन उनका नीजी जीवन सवाँरने में लगी होती है। पर, संगठन का रूप निश्चित होने के कारण महिलाओं के इसमें प्रवेश नही है। किन्तु यदि कोई महिलाओं का संगठन करने के लिए आगे आए, तो हम उन्हें पूरा सहयोग देंगे। डाक्टरजी के इस उत्तर के बाद वं. मावशी केळकरजी ने राष्ट्रसेविका समिती की स्थापना की और आज उनका भी बडा काम है।
पुस्तक की लेखिका सुधा रिसबूड ने कहा की, परिवार सँवारनेवाले स्त्री को आज असहाय और दुखियारी बताजा जा रहा है। संस्कारों को संजोए रखने वाली इस स्त्री को प्रगत शिक्षा से दूर रखा जा रहा है। उसकी यह स्थिती में बदलाव लाने के लिए संगठित प्रयासोंकी आवश्यकता है।
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