बुधवार, 13 मई 2015

ये पाकिस्तान परस्त भारत विरोधी आजाद क्यों हैं?'






वो कौन होते हैं तय करनेवाले कि कश्मीर पंडित कहां बसें, श्री अमरनाथ यात्रा कितने दिनों का हो? क्या कभी किसी ने ये तय किया है कि वो नमाज कितनी देर पढ़ें। या भारत ने कभी किसी हज यात्री को मजबूर किया है कि वो कितने दिनों में जाए। हज की योजनानुसार वो जाते हैं और उसी अनुसार सरकार सुविधायें देतीं हैं। जाहिर है, ये सांप्रदायिक सौहार्द्र के खलनायक हैं।
- अवधेश कुमार
इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी तत्व फिर से अस्थिरता,
हिंसा और अव्यवस्था की स्थिति पैदा करने की साजिश कर रहे हैं। ऑल पार्टी  हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक धड़े के नेता सैयद अली शाह गिलानी की
15 अप्रैल को दिल्ली से कश्मीर वापसी के दिन से लेकर आप नजर उठा लीजिए, घटनायें इसको प्रमाणित कर देंगी। वास्तव में अभी उन्होंने त्राल की अपनी रैली में पवित्र अमरनाथ यात्रा को 15 दिन से 1 महीने तक सीमित करने का जो भाषण दिया है वह इसी की कड़ी है। इस भाषण में वहां के एक समुदाय को वास्तव में इस यात्रा  के विरुद्ध भड़काने की कोशिश की गई है। 2008 में श्री अमरनाथ यात्रा को ही निशाना बनाकर अलगाववादियों और आतंकवादियों ने वहां अशांति एवं हिंसा कायम करने में सफलता पाई थी। निश्चय ही वे फिर से
वही स्थिति पैदा करना चाहते हों। जम्मू
-कश्मीरके उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने पहले और मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बाद में यह साफ कर दिया है कि यात्रा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के
अनुसार ही चलेगा। सुरक्षा से लेकर यात्रियों के ठहरने
, उनके खाने-पीने सबकी व्यवस्था उसी अनुसार की जा रही है। यानी 2 जुलाई से आरंभ होकर यह करीब दो महीने तक चलेगी। तो इससे हमें कुछ समय के लिए संतोष हो सकता हैं। पर ये अलगावादी जैसा माहौल बना रहे हैं उसमें ये अपनी साजिश को सफल करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। 
1 मई को त्राल की जामिया मस्जिद में नमाज ए जुमा अदा करने के बाद गिलानी ने जो भाषण दिया उसमें अमरनाथ यात्रा को सीमित करने की बात केवल उसका एक अंश था। हालांकि इसमें भी उनका यह गुरुर झलक रहा था कि यहां वो जैसा चाहेंगे वही होना चाहिए। तीर्थयात्रियों को उनके रहमोकरम पर अपनी इष्टदेव की यात्रा करनी चाहिए। लेकिन उसमें गिलानी ने भारत के खिलाफ पूरा विष वमन किया। यह भी कहा कि भारत का जिस तरह बंटवारा हुआ जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल हो जाना चाहिए था। हम पाकिस्तान में शामिल होने की लड़ाई लड़ रहे हैं और लड़ते रहेंगे। उनकी सभा में कुछ लोगों ने पाकिस्तानी  झंडे लहराए। पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए। भारत के विरोध में नारे लगाए गए। खूब सांप्रदायिक नारे भी लगे। गिलानी ने तो यहां तक कह दिया कि जिनने बंदूक उठाई हैं वे मजबूर होकर। इस तरह उनने आतंकवाद का भी समर्थन कर
दिया। वे ऐसा भाषण देनेवाले अकेले नहीं थे। 
आपको याद हो कि 18 अप्रैल को एक साथ गिलानी और उनसे थोड़ा उदारवादी माने जानेवाले मौलवी
मीरवायज उमर फारुख तथा यासिन मलिक...एक साथ आग उगल रहे थे। दरअसल
, मसरत आलम को पाकिस्तान के पक्ष में नारा लगाने तथा झंडा फहराने के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद इनने जो बंद का आह्वान किया था वह शांतिपूर्ण तो था नहीं। उसमें शामिल युवकों ने जगह-जगह तोड़फोड़ की, पत्थरवाजी की, पुलिस पोस्ट तक को आग लगाई। उसमें नियंत्रण करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी तथा नरबल में एक नौंवी का छात्र मारा गया। तो ये लोग उसक विरोध कर रहे थे और उसके घर शोक संवेदना व्यक्त करने जा रहे थे। मीरवायज ने शेर-ए-खास के नौहत्ता क्षेत्र में जुमे की नमाज के बाद विरोध मार्च का आयोजन किया। दूसरी ओर यासिन मलिक ने भी मार्च किया जिसमें स्वामी अग्निवेश शमिल थे। इस दिन जो स्थिति पैदा हुई उसमें त्राल क्षेत्र में दो युवक मारे गए। हालांकि इन नेताओं ने भारत के खिलाफ पूरा जहर उगला। लंबे समय बाद ये नेता एक साथ दिखे।

यह भारत की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक प्रगति थी लेकिन हो गई। वहां मीरवायज ने आजादी के पक्ष में भाषण दिया
, यासिन मलिक ने भी यही कहा कि हम भारत के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ते रहेंगे। पूरा भारत विरोध वातावरण बनाने की कोशिश थी।
ऐसे कार्यक्रमों से उत्तेजना और तनाव तो बढ़ता ही है। ये क्षेत्र 2010 में पत्थर आतंक के लिए प्रसिद्ध थे जिसका जन्मदाता मसर्रत आलम था। तो उसकी गिरफ्तारी के बाद उसके द्वारा ईजाद पत्थरवाजी हुई उसमें सुरक्षा बलों को कार्रवाई करनी पड़ी। तो अब ये उसे तूल देकर फिर से किसी तरह जम्मू-कश्मीर को ऐसी स्थिति में लाना चाहते हैं जिससे दुनिया ये कहे कि वहां वाकई भारत से अलग होने की लड़ाई, जिसके साथ लोग हैं और भारत केवल सैन्य बल की बदौलत कश्मीर को नियंत्रित रख रहा है। ऐसा लगता है कि इसके पीछे पाकिस्तान की साजिश है। मसर्रत के रिहा होने के बाद 50 से ज्यादा फोन लश्कर-ए-तैयबा की ओर से उसे आए। हाफिज सईद ने उससे बात की। 

दूसरे जमात उद दावा के नेताओं ने बात किया था। गिलानी का कश्मीर लौटने का स्वागत वह दूसरे तरीके से भी कर सकता था। मेरी जान पाकिस्तान, गिलानी साहब की क्या पहचान पाकिस्तान पाकिस्तान, हाफिज सईद की क्या पहचान पाकिस्तान पाकिस्तान...इस प्रकार का नारा लगाने और पाकिस्तान का झंडा फहराना यूं ही नहीं हो सकता। निश्चित रूप से इसके पीछे सीमा पार की सुनियोजित रणनीति थी। 


पाकिस्तान अभी आतंकवादी हिंसा
, मजहबी टकराव और राजनीतिक अनिश्चितता के उस दौर से गुजर रहा है जहां वहां के नेताओं के लिए कश्मीर एक मुद्दा हो सकता है अपनी राजनीति साधने के लिए।
इसलिए वे इनका उपयोग कर रहे होंगे। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ से हर संभव तीन उपायों से कश्मीर की ओर मोड़ने की कोशिश की और तीनों बार उसे मुंह की खानी पड़ी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कह दिया कि यह दो देशों का मसला है जिसमें वह हस्तक्षेप नहीं करेगा। तो उसके पास रास्ता किसी तरह कश्मीर को हिंसा और अशांति में झांकने तथा वहां अलगाववादी लड़ाई को तेज करने का है। 
हुर्रियत के नेता पाकिस्तान के पिट्ठू हैं। पाकिस्तान भी इन्हें तभी तक पूछता है जब तक कि वहां ये कुछ उसके अनुसार करते रहे। चाहे वे पाकिस्तान में कश्मीर को मिलाने की मांग करें या फिर आजादी की। ऐसा नहीं करेंगे तो इनको मिलने वाली मदद रुक जाएगी। चुनाव के बाद भाजपा पीडीपी की सरकार ने पाकिस्तान की चिंता और बढ़ा दी है। उसका सरकारी कश्मीर ढांचा और गैर सरकारी ढांचा दोनों सक्रिय हैं। उनके पास बजट और गैर बजट की राशि भी है। इसलिए वे इनके माध्यम से
अपना खेल रहे हैं। खासकर कश्मीरी पंडितों को स्मार्ट सिटी में बसाने के केन्द्र के संकल्प ने उनको परेशान कर दिया है। ये वापस बुलाने का विरोध नहीं करते
, पर व्यवहार में इनका अलग बसाने का विरोध वास्तव में वापसी का विरोध ही है। यह विरोध करते-करते गिलानी श्री अमरनाथ यात्रा तक पहुंय गए। क्यों? यही सांप्रदायिक मानसिकता है जिसे वे तेज आग के रूप में फैलाना चाह रहे हैं।
लेकिन प्रश्न हे कि वो कौन होते हैं तय करनेवाले कि कश्मीर पंडित कहां बसें, श्री अमरनाथ यात्रा कितने दिनों का हो? क्या कभी किसी ने ये तय किया है कि वो नमाज कितनी देर पढ़ें। या भारत ने कभी किसी हज यात्री को मजबूर किया है कि वो कितने दिनों में जाए। हज की योजनानुसार वो जाते हैं और उसी अनुसार सरकार सुविधायें देतीं हैं। जाहिर है, ये सांप्रदायिक सौहार्द्र के खलनायक हैं। ये शांति और लोकतंत्र के दुश्मन हैं। ये देश की एकता अखंडता के दुश्मन हैं। ये देश को तोड़ना चाहते है, इसलिए देशद्रोही हैं। परोक्ष रूप से आतंकवाद का समर्थन भी कर रहे हैं। तो इनके साथ अब व्यवहार वैसा ही करना चाहिए जैसा देश के गद्दारों के साथ किया जाता है। देश में यदि आप किसी से पूछिए उसकी प्रतिक्रिया गुस्से से भरी होगी। लेकिन एक बात पर एकमत है कि चाहे जितनी अशांति हो अब इन सबको उनके मुकाम पर पहुंचा देना चाहिए। यानी पहले कड़े कानूनों में मुकदमा करके जेल में डालो, इनको सजा दिलवाओ, जो इनके समर्थन में आएं उनके साथ सुरक्षा बल कार्रवाई करें। यदि देश की एकता को बचाने के लिए कुछ लोगों की बलि चढ़ती है इसमें हिचक नहीं होनी चाहिए। 

आखिर भारत को बचाने के लिए कितने लोगों ने अपनी बलि चढ़ाई। कश्मीर को बचाने के लिए ही कितने शहीद हो गए तो जो इसके विरोधी हैं उनकी बलि चढ़ जाए तो उसमें समस्या क्या है। जो भी हो देश न तो एक इंच जमीन किसी को देने के हक में है और न ऐसी भारत विरोधी गतिविधियां चलानेवालों को आजाद देखने के पक्ष में।   


स्रोत: न्यूज़ भारती हिंदी     

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित