राष्ट्र विरोधी तत्व हमारी उदात्त हिन्दु सांस्कृतिक विचारधारा के व्यापक होते स्वरूप से परेशान- चन्द्रशेखर जी, प्रान्त प्रचारक
आधुनिक राज्यवाद की अवधारणा में युद्धों की परिणीति से उत्पन्न राष्ट्रवाद मंगलकारी नही होता - प्रोफेसर पूनम बावा
"राष्ट्रीय अस्मिता-चिन्तन व चुनौतियां" विषय पर संगोष्ठी संपन्न
माननीय चंद्रशेखर जी प्रान्त प्रचारक एवं श्री हेमन्त घोष, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष , अ भा वि प , राजस्थान |
जोधपुर 8.02.2017. राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय शैक्षिक संघ के तत्वावधान में राष्ट्रीय अस्मिता-चिंतन व चुनौतियाँ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें प्रथम सत्र् में प्रोफेसर एन.के. चतुर्वेदी, अध्यक्ष प्रोफेसर चन्द्रशेखर मुख्य वक्ता तथा पुनम बावा मुख्य अतिथि थे। मुख्यवक्ता प्रो. चन्द्रशेखर ने राष्ट्र के आध्यात्मिक स्वरूप की व्याख्या की जिसमें राष्ट्र को एक विराट पुरूष के रूप में बताया व कहा कि राष्ट्र का स्वरूप हमेशा कल्याणकारी होता है। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर एन.के. चतुर्वेदी ने बताया कि जब सभी यूरोपीय देशों मे उनकी अपनी स्वयं की भाषा होती है फिर अपने देश में दूसरें लोगो से संवाद के लिये अंग्रेजी माध्यम क्यों है, उन्होनें बताया कि यूरोपीय देश अपनी शिल्पकला को बढ़ा-चढ़ा कर बताते है। जबकि हमारे पास वैदिक सभ्यता के समय की शिल्पकला होते हुए भी उसको सही ढंग से प्रस्तुत नही किया जा रहा है। तथा उसे अर्वाचीन सिद्ध करने का कृत्रिम प्रयास किया जा रहा है। इसी संदर्भ मे उन्होने दिनांक 02.02.2017 को प्रोफेसर निवेदिता मैनन द्वारा दिये गये राष्ट्र विरोधी भाषण के प्रत्युतर में उनके द्वारा किये गये संवाद को स्पष्ट किया।
इसी सत्र् में मुख्य अतिथि प्रोफेसर पूनम बावा ने इस संगोष्ठी को संकीर्ण मानसिकता वाले लोगो द्वारा फैलाये गये दुर्विचारों की मुक्ति के लिये किया जा रहा हवन बताया। उन्होने बताया कि आधुनिक राज्यवाद की अवधारणा में युद्धों की परिणीति से उत्पन्न राष्ट्रवाद मंगलकारी नही होता है। जबकि भारतीय संस्कृति में राष्ट्र का निर्माण सांस्कृतिक सद्भावना का स्वरूप है। इसी सत्र् मे प्रोफेसर जयश्री वाजपेयी ने भारत के प्राचीन गौरव का स्मरण कराते हुए भारतीय संस्कृति को सबसे प्राचीनतम व सर्वोच्च बताया। प्रोफेसर कैलाश डागा ने कहा कि किसी भी भाषा में धर्म का पर्यायवाची शब्द नही है। हिन्दू धर्म कहने का तात्पर्य हिन्दू जीवन पद्धति व आचार पद्धति है। प्रोफेसर चन्दनबाला जी ने कहा कि हमें राष्ट्र विखंडनवादी विचारों का प्रतिकार करना ही होगा। अतिसहिष्णुता भी राष्ट्र के लिये हितकारक नही है।
द्वितीय सत्र् श्री हेमन्त घोष पूर्व प्रदेशाध्यक्ष एबीवीपी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हूए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जोधपुर के प्रान्त प्रचारक माननीय चन्द्रशेखर जी ने कहा की राष्ट्र विरोधी तत्व हमारी उदात हिन्दु सांस्कृतिक विचारधारा के व्यापक होते स्वरूप से परेशान है। अतः वे राष्ट्र विरोधी विचारो को समय समय पर तूल देते रहते है।। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत का जन-सामान्य राष्ट्रीय विचारों के प्रचार-प्रसार व संपोषण व संरक्षण के लिये आगे आये । देश की सीमा माता के वस्त्र के समान होती है उनकी रक्षा प्रत्येक मातृभक्त पुत्र का परमदायित्व है। हमारी सेना के जवान भारत माता की रक्षा के लिये कृतसंकल्प व सर्वात्मना समर्पित हमारे बन्धु हैं जिन्होनें राष्ट्र सेवा के पथ का स्वयंवरण किया है। आज भी हमारे लाखों लाखों युवा सर्वथा समृद्ध होकर भी भारत माता की सेवा हेतु सेना मे जाने को तत्पर हैं उसके लिए दिन-रात कठिन तैयारीयां कर रहे है।
प्रो. प्रभावती चौधरी ने संगोष्ठी मे उपस्थित सभी प्रतिभागियों व वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा संगोष्ठी का संचालन प्रोफेसर कैलाश डागा ने किया, संगोष्ठी मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ,जोधपुर के विभाग प्रचारक धर्मेन्द्र सिंह जी, प्रो. अजय गुप्ता, प्रो. अनिल गुप्ता, प्रो. अखिल रंजन गर्ग, प्रो.मनीष कुमार, प्रो. अरविंद परिहार, प्रो. कैलाश कौशल, डाॅ. विजयश्री, डाॅ. रश्मि मीणा, डाॅ. भानाराम गाडी, डाॅ. हिराराम, डाॅ. रामदयाल, डाॅ. रिछपाल सिंह, डाॅ. ओ.पी. देवासी, डाॅ. जी.एन. पुरोहित, डाॅ. वी.डी. दवे, डाॅ. कुलदीप गहलोत व बड़ी संख्या में प्रवक्तागण व विद्यार्थी उपस्थित थे। संगोष्ठी का समन्वयन संगठन के उपाध्यक्ष प्रो. विजय मेहता व सचिव प्रो. विकल गुप्ता ने किया।
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