मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

अपने स्वत्व के ऊपर गर्व करें - डॉ. कृष्ण गोपाल जी,सह सरकार्यवाह

अपने स्वत्व के ऊपर गर्व करें - डॉ. कृष्ण गोपाल जी

नई दिल्ली, 15 अक्टूबर। अपनी ठीक बात साबित करने के लिए भी आज प्रमाण की आवश्यकता आ गई है, यह पुस्तक स्वयं को स्वीकारने का प्रमाणिक दस्तावेज है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘‘रामायण की कहानी विज्ञान की जुबानी’’ पुस्तक के लोकापर्ण समारोह में यह बात कही। उन्होंने कहा कि तर्कसंगत व वैज्ञानिक तथ्यों द्वारा हम अपने गौरवपूर्ण अतीत से हम भविष्य की पीढ़ी को लाभान्वित कर सकते हैं। हारी हुई जाति का स्वत्व नष्ट कर दिया जाता है। अंग्रेजों ने जो लिखा वही हमारे भाग्य में आ गया। पराधीनता की अवधि में दस-बारह पीढ़ियां बीतने के बाद एक ऐसा समाज खड़ा हुआ जो स्वयं को ही नकारने लगा। यह पुस्तक हमें स्वयं को नकारने से बाहर निकालती है। महर्षि वाल्मीकि ने उस समय के इतिहास को श्लोकों में लिखा। विज्ञान आज हजारों साल पूर्व लिखी वाल्मीकि रामायण में बताई गई ग्रहों-नक्षत्रों की स्थिति को प्रमाणित करता है। रामायण में दिए हिमयुग के वर्णन को आधुनिक विज्ञान अब मान रहा है। वाल्मीकि रामायण में बताया गया रामसेतु तथा समुद्र में डूबी द्वारका को आज नासा भी स्वीकार रहा है। इसलिए हमें अपने साहित्य, स्वत्व अपनी मेधा, प्रज्ञा, तथा अपने महापुरुषों के ऊपर गर्व करना चाहिए।

केन्द्रीय संस्कृति राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि इस पुस्तक में दिए वैज्ञानिक तथ्यों को देखकर लगता कि न्यायालयों में जो आज बहुत बड़े-बड़े फैसले रुके हुए हैं उनके लिए अब किसी साक्ष्य या गवाही की जरूरत नहीं रह जाएगी। हमें ईश्वर, माता-पिता और गुरु के अस्तित्व पर सवाल नहीं उठाने चाहिए। देश का इतिहास कोई बदल नहीं सकता, हमारा गौरवमयी इतिहास है, लेकिन उस इतिहास में वैल्यू ऐडिशन जरूर हो सकता है। हमारी कोई भी कथनी का तर्कसंगत विश्लेषण के बिना कोई महत्व नहीं है।

पुस्तक की लेखिका सरोज बाला ने बताया कि यह वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। रामायण को भविष्य तक पहुंचाने के लिए वाल्मीकि ने लवकुश को रामायण कंठस्त करवाई तथा लवकुश ने इसे स्थान-स्थान पर ऋषि-मुनियों तथा अश्वमेघ यक्ष के समय श्रीराम के दरबार में अनेकों राजाओं तक पहुंचाई। वाल्मीकि ने इसे सीता के जीवन को ध्यान में रखकर लिखा था इसलिए इसे सीतायन भी कहा जा सकता है। रामायण में श्रीराम के जन्म को जिस खगोलीय दृश्य से प्रदर्शित किया गया है। कालगणना के आधुनिक सॉफ्टवेयर भी उसे सही ठहराते हैं। इसी तरह 7000 हजार साल पूर्व समुद्र का जलस्तर तीन मीटर नीचे था और रामसेतु समुद्र के ऊपर था।

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित