रविवार, 12 अक्तूबर 2014

आध्यात्मिक बने बिना आजादी असंभव: दादा वासवानी


आध्यात्मिक बने बिना आजादी असंभव: दादा वासवानी

विजयादशमी समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में साधु वासवानी मिशन के अध्यक्ष दादा वासवानी जी को आमंत्रित किया गया था, लेकिन स्वास्थ्य कारणों के चलते वे उपस्थित नहीं हो सके. उनका संक्षिप्त भाषण उन्हीं की वाणी से ध्वनिमुद्रित कर समारोह स्थल पर सुनाया गया. विस्तृत भाषण सबके समक्ष पढ़ा गया. यहां वह अविरल रूप में प्रस्तुत है.

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! आप सबको मेरा हार्दिक प्रणाम!

मैं भारत देश की मीठी मधुर हिंदी भाषा, संतों, सत्पुरुषों की भाषा, संत कबीर, संत तुलसीदास और अन्य संतों की भाषा पूरी तरह नहीं जानता. मेरी भाषा तो है प्रेम की भाषा, प्यार की भाषा, मुहब्बत की भाषा, जिस भाषा की आवाज यह है- आप सब भिन्न-भिन्न प्रांतों के, भिन्न-भिन्न धर्मों के – हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, पारसी, यहूदी, बहाई, आप सब एक हैं. एक माता की संतान, भारत माता की संतान. जुदाई जलाओ, भेद-भाव भुलाओ, हाथ से हाथ मिलाओ और प्रेम की शक्ति से आगे बढ़ो, नवीन भारत बनाओ और सारे संसार पर जादू लगाओ, जादू लगाओ.

इस प्यार की भाषा, प्रेम की भाषा, मुहब्बत की भाषा में चंद शब्द मैं आपके चरणों में रखना चाहता हूँ.

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! मेरा पहला शब्द है ‘आभार’! मैं इस सुंदर सभा का आयोजन करने वाले सभी लोगों का आभारी हूँ. विशेष रूप से श्री मोहन भागवतजी का, जिन्होंने मुझे यहाँ बोलने का निमंत्रण दिया. श्री मोहन भागवतजी महान चरित्र के मालिक तथा कई गुणों के धनी हैं. आज के इस पवित्र दिन मुझे आप लोगों के बीच होना चाहिये था, किंतु ईश्वर की इच्छा कुछ और है. इस समय हमारे बीच दूरी है पर विचारों तथा प्रार्थना में, मैं आपके साथ हूँ. मेरी हार्दिक इच्छा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, श्री मोहन भागवतजी की नेतृत्व और मार्ग-दर्शन में प्रगति करे. ईश्वर की महिमा करते हुये, सभ्यता का निर्माता, सदियों से दुखद अनुभवों के सामने अडिग खड़े इस देश, एक समय विश्व का सरताज कहलाने वाले इस देश की सेवा करते हुये सफलता के शिखर पर पहुँचे.

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! आज दशहरे का पवित्र दिन है. भारत के कैलेंडर में ये एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. ये विजय का दिन है. इस पवित्र दिन भगवान श्री राम ने रावण पर विजय पाई थी. विजयादशमी प्रतीक है अंधेरे पर उजाले की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय. आज भारत कठिन दौर से गुजर रहा है. आज भारत को भ्रष्टाचार और आतंकवाद के अंधकार से नफरत और हिंसा के, स्वार्थ और लालच के अंधकार से निकालकर प्रेम, एकता, शांति और भाईचारे के उजाले की ओर ले जाना है.

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! हजारों साल पहले आज के इस पवित्र दिन सत्य की जय हुई, नम्र लोगों की जय हुई. फिर इसी पवित्र दिन सन् 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने उस संघ की स्थापना की जो आज आरएसएस के नाम से प्रसिद्ध है. जिस संघ को बहुत कुछ सहना पड़ा है, पर वे सत्य से दूर नहीं रहे. आज मैं डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के चरणों में नमन करता हूँ. 89 वर्षों से इस संघ ने सत्य की साक्षी दी है, जिसके लिये मैं आपको धन्यवाद कहना चाहता हूँ.

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! सन् 1947 में भारत आजाद हुआ. भारत को आजाद हुये कितने सारे वर्ष हो गये हैं. पर मेरे मन में सवाल उठ रहा है, क्या भारत सचमुच आजाद है? आज लाखों भारतवासियों के सिर पर छत नहीं है, लाखों भारतवासियों को चिकित्सा सुविधायें नहीं मिलती. लाखों बच्चों को बुनियादी शिक्षा नहीं मिलती. ऐसे में क्या हम भारत को सचमुच आजाद कह सकते हैं?

गुरुदेव साधु वासवानी कहते थे, यह आजादी काफी नहीं है. एकता की जरूरत है, एकता भी काफी नहीं है, गरीबों के कल्याण और उद्धार की भावना चाहिये. हमें ऐसा स्वराज चाहिये, जो लोगों की रक्षा और सेवा करे. हमें नवीन भारत बनाना है. कौन बनायेगा नवीन भारत? धन, विज्ञान या तंत्र विज्ञान देश को नहीं बनाते. देश को बनाते हैं चरित्रवान लोग. आज भारत को सबसे ज्यादा जरूरत है चरित्रवान स्त्री-पुरुषों की. ऐसे स्त्री-पुरुष जिन्हें पद की लालसा गुमराह न कर सके, जिन्हें धन का लोभ न हो, जो पूरी नम्रता से अपनी शक्ति का उपयोग भारतवासियों की सेवा में करें. ऐसे स्त्री-पुरुष जिन्हें चुपचाप सेवा करने में खुशी मिलती है. हम में से कई लोगों की उम्मीद आप पर टिकी है, आरएसएस पर टिकी है. आप सब भारत को उस शिखर पर पहुँचायेंगे, जहाँ पर वह एक समय था, जब लोग भारत को तीर्थ-स्थान मानते थे. दे केम टू भारत एज टू ए प्लेस ऑफ पिलग्रिमेज.

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! आप मेरे ये टूटे-फूटे शब्द याद रखें या न रखें किन्तु मैं यह आशा करता हूँ कि आप मेरी इस नम्र प्रार्थना को कभी नहीं भूलेंगे. “जागो! भारत जागो!” यह आपका आने वाला भविष्य पुकार रहा है.

मेरे प्यारे भाइयो और बहनो! इस देश के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिये हम क्या यत्न कर सकते हैं? इसके बारे में मैं आपकी सेवा में कुछ सुझाव रखना चाहता हूँ.

पहला सुझावः देश के युवाओं के लिये मैं कहूंगा, तुम सत्ता के लोभी मत बनो. भारत को इस समय सेवकों और सिपाहियों की जरूरत है. भारत को सच्चे कर्मयोगी, देश-भक्तों की जरूरत है जो स्वयं को याद दिलायें कि मैं भारतवासी हूँ, तो भारत नई ऊँचाइयों को छू सकता है. आई एम भारतीय! आई एम भारतीय! हमें अपने देश को प्रथम रखना है. पहले भारत! पहले भारत! भारत के हर सेवक का यही मंत्र होना चाहिये.

दूसरा सुझावः सादगी और पवित्रता, हमें इन दो गुणों के विकसित करने की जरूरत है. सादगी में ही सच्ची सुंदरता है और पवित्रता में पूर्णता का बीज है. हमें इन दो महान आदर्शों को अपनाना चाहिये. खान-पान में सादगी, पहनावे में सादगी. सादगी ही सच्ची शक्ति है. इसलिये अपने जीवन में सादगी को धारण करें.

तीसरा सुझावः आज बड़ा फैशन है, संसार को ग्लोबलाइज्ड वर्ल्ड कहने का, इस पर ग्लोबल बाज़ार में कोई सादगी, कोई अच्छाई, सही धारणा नहीं है. इसमें मुझे सुख-सुविधाओं तथा चतुराई का, स्वार्थ और पतन का चलन ही नज़र आता है. भारत माता के सच्चे सेवको, हमें दूसरो की नकल नहीं करनी है. हमें भारत की महान संस्कृति को अपने जीवन में धारण करना है.

चौथा सुझावः विज्ञान और तंत्र विज्ञान जरूरी है. हम इनका अध्ययन बेशक करें. हमारी सोच में वैज्ञानिक दृष्टिकोण भले ही हो परंतु स्वयं से पूछें, वैज्ञानिक होना  क्या है? विज्ञान में बताया जाता है कि पदार्थ को कैसे वश में करना है? पर पदार्थ को वश में करने से कहीं बेहतर है, अपने मन को वश में करना. भारतीय विचार के अनुसार सबसे उत्तम विज्ञान है स्व-अनुशासन, जिसे हम योग कहते हैं. योग हमें स्वयं पर तथा अपनी कामनाओं पर काबू पाना सिखाता है. जिसका मकसद हिंसा या फसाद नहीं, अपितु सेवा और बलिदान की भावना को जगाना है.

आज विज्ञान ने बहुत उन्नति की है. विज्ञान ने हमें चाँद पर जाना और अन्तरिक्ष में यात्रा करना सिखाया है. परन्तु विज्ञान ने हमें स्वयं पर विजय पाना नहीं सिखाया. उसके लिये हमें आत्म-विद्या की जरूरत है.

किसी ने मुझे एक बार कहा था की गरीबों की सेवा के लिये जो पैसा दिया जाता है, उसमें से हमारे देश में एक रुपये में से गरीब की जेब में केवल दस पैसे ही पहुँचते हैं. इस भ्रष्टाचार ने हमें कितना ह्रदय-हीन बना दिया है. इसने हमारे देश की आत्मा का विनाश कर दिया है.

पांचवां सुझाव : सबसे पहले हमें देश की गरीब जनता पर ध्यान देना होगा. इसके साथ ही किसानों, मजदूरों, बेघर और अनपढ़ लोगों पर ध्यान देना होगा. अगर हमने इनकी सहायता और उद्धार की कोशिश नहीं की तो आगे चलकर इस देश का विकास संभव नहीं होगा. यदि हम देश के सच्चे सेवक बनना चाहते हैं तो हमें नि:स्वार्थ होकर, सहानुभूति, सेवा और त्याग के पथ पर चलना होगा. करीब अस्सी वर्ष पहले गुरुदेव साधू वासवानी ने मीरा अभियान ( मीरा मूवमेंट इन एजूकेशन) शुरू किया. तब उनकी तमन्ना थी की शिक्षा का मकसद रोजगार कमाना नहीं, अपितु जिन्दगी को संवारना और बेहतर बनाना हो, और इस महान कल्पना को साकार रूप देने के लिये उन्होंने नयी शिक्षा प्रणाली का शुभारम्भ किया. उनका संकल्प था कि शिक्षा के द्वारा छात्रों के दिल, दिमाग और हाथों को परिष्कृत किया जाये.

मैं अक्सर सोचता हूँ कि शिक्षा ने हमारे युवाओं के दिमाग को अति चतुर और चालाक बना दिया है. पर उन्हें चतुर और प्रतिस्पर्धा  बनाने की प्रक्रिया में उनके दिल कठोर हो गये हैं. मैं यहाँ साधू वासवानी जी के शब्द दुहराना चाहता हूँ. शिक्षा का मकसद सोना-चांदी पाना नहीं है. शिक्षा का मकसद गरीबों और दुखियों की सेवा. श्रद्धा और आदर शिक्षा की जड़ें हैं. सेवा शिक्षा का फल है.

छठा सुझाव : मैं आपसे कहना चाहता हूँ सादगी और सेवा, त्याग और सच्चाई का जज्बा होना कोई आसान राह नहीं है. इसके लिये साहस और दृढ़ विश्वास चाहिये. आज भारत को साहसी देश सेवकों की जरूरत है. ऐसे सेवक जो भ्रष्टाचार और झूठ को मिटा दें. बेईमानी से मुंह मोड़ लें. में आपको बताऊँ कि सादगी और साहस का अटूट संगम है. हमें ऐसे ही स्वयंसेवक चाहिये जो शक्ति पुत्र हों, शक्ति से मेरा अर्थ है आत्मिक शक्ति.

मेरा समय तेजी से बीता जा रहा है. बस अंतिम सातवाँ सुझाव आपको देना चाहता हूँ. याद रखें, भारत का महान खजाना उसकी आध्यात्मिक सम्पदा है. गुरुदेव साधू वासवानी जी ने कहा, भारत को पूरब तथा पश्चिम के देशों को महान सन्देश देना है. यह सन्देश होगा कि यदि आप अध्यात्मिक नहीं हैं तो आप वास्तव में आजाद नहीं हो सकते.

मित्रो, मैं आपसे कहता हूँ कि भारत को स्वयं-सेवी चाहिये, भारत को सिपाही चाहिये, भारत को निर्माता चाहिये, भारत को शिल्पी चाहिये जो उसका भविष्य बनायें और महान नियति का विश्वास दिलायें. क्या आप ऐसे सेवादार, ऐसे मददगार, ऐसे निर्माता, ऐसे सिपाही बनेंगे?यदि हाँ तो फिर नवीन भारत बनाने की तपस्या में लग जायें. सच्ची देशभक्ति के यज्ञ में आहुति बनने के लिये तैयार हो जायें. यह सचमुच एक तपस्या ही है. ये त्याग की कसौटी है, ये आग पर चलने का काम है. क्या आप में इतना साहस, ऐसी चैतन्य शक्ति है जो इस महान कार्य की पुकार पर स्वयं की आहुति दे सकें? यदि हाँ! तो ये देश सचमुच भाग्यशाली है! और आप में से जो भारत के सच्चे सेवक बनना चाहते हैं, मेरी मंगल कामनायें उनके साथ हैं. अंत में मेरा यही संदेश है, “पहले भारत! पहले भारत”! हे देशवासियो, उठो जागो! एक बार फिर सिद्ध कर दो!

सारे जहां से अच्छा,

हमारा हिन्दुस्थान,

वो दिन जल्दी आयेगा,

जब भारत का होगा गुणगान!

ओम शांति! ओम शांति!


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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित