भ्रष्टाचार के खिलाफ हर लड़ाई को समर्थन देगा स्वयंसेवक |
विजयादशमी उत्सव भारत को समर्थ बनाने के लिए किसी नकल की आवश्यकता नहीं समाज परिवर्तन में विश्वास करता है संघ साम्प्रदायिक हिंसा अधिनियम लोगों में झगड़ा लगाने वाला कानून
गोरखपुर (एसएनबी)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में चल रह आंदोलन का पुरजोर समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी तरह के संघर्ष में स्वयंसेवक अपनी सहभागिता करते रहेंगे। संघ की प्रतिनिधि सभा इस संबंध में पूर्व में ही प्रस्ताव पारित कर चुकी है। सरसंघचालक ने कहा कि दुनिया को भारत की जरूरत है। भारत को फिर से समर्थ बनाने के लिए किसी का नकल करने की आवश्यकता नहीं बल्कि इसके लिए हमारे अपने रास्ते ही पर्याप्त हैं। उन्होंने स्वयंसेवकों व आम नागरिकों से गांव-गांव तक संघ विचारधारा के विस्तार का आह्वान किया। एमपी इंटर कालेज परिसर में संघ की महानगर इकाई द्वारा आयोजित विजयादशमी उत्सव को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया रास्ता भटक गई है। एक के बाद एक नया वाद सामने आता जा रहा है। समय की यात्रा के साथ हमारी संस्कृति में कुछ विकृत्तियां आ गई है। लेकिन यह इसलिए हो रहा क्योंकि हम अपनीैआत्मा को भूलते जा रहे हैं। दूसरा कारण यह
भी है कि हम नकल कर रहे हैं। हमको अपना रास्ता ही खोजना पड़ेगा क्योंकि उसी में ही समग्रता है। उन्होंने कहा कि संघ ने कभी धर्म को पूजा-पद्धति से नहीं जोड़ा। हर कोई अपने तरीके से पूजा-पद्धति करेगा लेकिन पहुंचेगा एक ही स्थान पर। हिन्दुत्व किसी की विरोधी विचारधारा नहीं है और न ही इसका प्रतिक्रिया स्वरुप जन्म हुआ है। सरसंघचालक श्री भागवत ने रविन्द्र नाथ ठाकुर के निबंधों का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में हिन्दू-मुस्लिम के बीच जो समस्या है उसका रास्ता हिन्दुत्व से ही निकलेगा। लेकिन हमने इस तरीके को छोड़ दिया और यही कारण है कि आजादी के 64 वर्षों बाद भी हम इस समस्या से जूझ रहे हैं। सरसंघचालक ने कहा कि संघ सत्ता परिवर्तन में नहीं अपितु समाज परिवर्तन में विश्वास करता है। संघ इसके लिए समाज में उदाहरण खड़ा करने में लगा है। स्माज में परिवर्तन के लिए नायक की आवश्यकता होती है। ऐसा नायक जरुरी नहीं कि वो सर्वगुण सम्पन्न हो लेकिन उसमें शुद्ध चरित्र होना आवश्यक है। ऐसा नायक जो संपूर्ण समाज के साथ आत्मीय संपर्क स्थापित कर सके। संघ गांव-गांव में ऐसे नायकों को खड़ा करना चाहता है। सरसंघचालक ने विवेकानन्द को उद्घृत करते हुए कहा कि दुनिया के कष्ट को दूर करने के लिए भारत को समर्थ बनाना होगा। लेकिन विश्व की परिस्थितियां बदल रही है। अमेरिका और चीन अपने को शक्तिशाली बनाकर दुनिया को अपनी व्यवस्था के रंग में रंगना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी विचारधारा पूरे विश्व को कुटुम्ब मानने की रही है। लेकिन हम आज नकलची होते जा रहे हैं। हम ज्ञान की बातें करते हैं पर हमारे देश का क्या हाल है। वेदों को भूल गए एवं कई जगहों पर लोगों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार किया जा रहा है। मन में जल, जंगल, जमीन, जानवर सबके लिए भाव उत्पन्न करना होगा ऐसा उद्यम होगा तभी भारत बदलेगा। उन्होंने कहा कि भारत सनातन अनुभूतियों पर खड़ा है लेकिन हम नकल करते जा रहे हैं। अंग्रेज गए लेकिन अंग्रेजियत यही रह गई। इसलिए हमारी योजनाएं ठीक ढंग से नहीं बन पा रही हैं। गरीब आदमी को 32 Rs में बांधा जा रहा है। इस देश को समझकर नीति बनाने की जरूरत है। शिक्षा से लेकर चुनाव तक इसका असर पड़ रहा है। हम अपने आचरण और शिक्षा से क्या सिखा रहे हैं। ऐसी शिक्षा से निकलने वाले व्यक्ति को यह पता नहीं है कि इस देश का पूर्व गौरव क्या है और इस राष्ट्र में विश्व को क्या देने की शक्ति है। सरसंघचालक ने यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तावित साम्प्रदायिक हिंसा अधिनियम की आलोचना करते हुए कहा कि यह झगड़ा लगाने वाला कानून है। जनता मानती है तभी कोई कानून चलता है। सरकार लोगों के मन में सद्भावना जगाए तो सब ठीक हो जाएगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दीदउ विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो. सभाजीत मिश्र ने कहा कि वतर्मान भारत का बौद्धिक परिवेश कई उलझनों से जूझ रहा है। ग्लोबलाइजेशन की अवधारणा से भारत में भी कई विकृतियां आयी हैं। हम बहुत सारे नारों से खुद को जोड़ लेते है भले ही उनका अर्थ न जानते हो। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के आदि-अंत की र्चचा करना ही उसके मिजाज के विपरीत है।
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