शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

नयी एफ.डी.आई नीति का कोई लाभ भारत को नहीं - स्वदेशी जागरण मंच

नयी एफ.डी.आई नीति का कोई लाभ भारत को नहीं  - स्वदेशी जागरण मंच
 
जोधपुर २८ जुलाई २०१६। स्वदेशी जागरण मंच चीन द्वारा भारत की एन.एस.जी. में सदस्यता के विरोध से लेकर क्षोभ प्रकट करता है क्योंकि भारत का अधिकांश व्यापार घाटा चीन से वस्तुओं के आयात के कारण ही है। चाहे मसूद अजहर हो या लखवी जैसे आंतकवादीयों के समर्थन में भी चीन खड़ा रह कर भारत के प्रति अपनी शत्रुता हर अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर प्रकट करता है। ऐसे मे भारतीय सरकार का व लोगों का चीन वस्तुओं का आयात करना शत्रु राष्ट्र का आर्थिक पोषण करना है। इसलिए स्वदेशी जागारण मंच राष्ट्र व्यापी अभियान चला कर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार करने का सरकार व जनता का आहवान् करता है।

पिछले दिनों जिस प्रकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दरवाजे भारत सरकार ने खोले है ये भी अत्यन्त दुखदायी विषय है। स्वदेशी जागरण मंच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सदा से विराध करता रहा है और आगे भी करता रहेगा। ऐफ.र्डी. आइ. से रोजगार बढने की सम्भावना तलाशना महज मृगमारिचिका पूरी दूनिया में इस समय रोजगार विहिन विकास का दौर चल रहा है और जब से भारत ने विदेशी निवेश को बढ़ाया है तभी से बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। गत 12 वर्षाे में मात्र 1.6 करोंड रोजगार सृजित हुए है जबकि 14.5 करोड़ लोगों को इसकी तलाश थी। यदि यू.एन.ओं की संस्था अंकटाड की माने तो दुनियाभर में 41 प्रतिशत एफ.डी.आई ब्राउन फील्ड में आयी है अर्थात पुराने लगे उद्योंगों के ही उन्होंने हथियाया है, कोई नया उद्योग शुरू नहीं किया।

दुसरी और बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों का जोर केवल स्वचालित या रोबोट प्रणाली द्वारा निर्माण व उत्पादन करने का रहता है जिसके चलते रोजगार की सम्भावनाएं समाप्त हो रही है। इसी प्रकार से विदेशी पुंजी जितनी आती है उससे दुगुनी से भी अधिक पूंजी रायॅल्टी व लांभाश आदि द्वारा विकसित देश गरीब देशों से निकाल लेते है। आज तक न ही कोई उच्च तकनीकि  किसी देश को इन कम्पनीयों द्वारा दी गयी है।

स्वदेशी जागरण मंच का स्पष्ट मानना है कि नयी एफ.डी.आई नीति का कोई लाभ भारत को नहीं होगा बल्कि नुकसान  एक से बढकर एक अवश्य होगे। 9 अगस्त क्राति दिवस से “एफ.डी.आई वापस जाओं” के उदघोष के साथ पूरे देश में प्रत्येक जिला स्तर पर मंच द्वारा सरकार की एफ.डी.आई नीति का विरोध शुरू होगा। आगामी 3 व 4 सितम्बर 2016 को  दिल्ली मंच के सभी पदाधिकारी एकत्र होकर आगे की रणनिति तय करेगें।

तीसरा मुद्दा जेनेरिक व भारतीय सस्ती दवाईयों का है आज दुनिया भर के 35 प्रतिशत मरीज भारत की सस्ती दवाईयों  पर आश्रित है। ऐसे में यदि 74 प्रतिशत ब्राउन फिल्ड निवेश ओटोमेंटिक रूट से 100 प्रतिशत सरकारी अनुमति के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भारत के इस व्यवसाय पर हमला करना खतरनाक है। यह न केवल हमारे फार्मा सेक्टर को अपूरणीय क्षति पहुचायेंगा बल्कि साथ ही साथ दुनिया की गरीब जनता का, जैनरिक दवाई के नाते, एक मात्र भारतीय विकल्प भी छिन जायेगा।

यह विचार स्वदेशी जागारण मंच के राष्ट्रीय संगठक कश्मीरीलाल द्वारा जोधपुर प्रवास के दौरान गुरूवार को प्रत्रकारों से रूबरू होते हुए दिये गयें। मंच के प्रदेश संयोजक धर्मेन्द्र दूबे ने जानकारी दी कि मंच के प्रदेश कार्यकर्ताओं का सम्मेलन 20 व 21 अगस्त 2016 को अलवर में आयोजित होगा जिसमें मंच की प्रदेश टोली इन मुद्दो पर व्यापक आदोंलन की रणनीति  तय करेगी।

हमारा अधिकाशं व्यापार घाटा चीन से वस्तुओं के आयात के कारण - कश्मीरी लाल जी

वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में स्वदेशी ही एक मात्र विकल्प 
हमारा अधिकाशं व्यापार घाटा चीन से वस्तुओं आयात के कारण -
कश्मीरी लाल जी
 
 शहीद बाबू गेनू स्मृति स्वदेशी विचार व्याख्यान माला 
 

जोधपुर 28 जुलाई 2016 . स्वदेशी आन्दोलन  भारत के प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन के समय से ही जुड़ा हुआ है। भारत को पुनः सोने की चिड़िया का गौरव प्राप्त करने के लिए क्रांतिकारियों ने स्वदेशी अपनाओं का नारा दिया था। 12 दिसम्बर 1930 को बाबू गेनू स्वदेशी के लिए शहीद होने वाले प्रथम व्यक्ति थें। उन्होंने इस बात को समझा कि विदेशी वस्तुओं का भारत में व्यापार हमारे लिए आर्थिक नुकसान एवं राष्ट्रीय दासता के लिए जिम्मेदार तत्व है। उपरोक्त कथन स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संगठक कश्मीरीलाल जी ने शहीद बाबू गेनू स्मृति स्वदेशी विचार व्याख्यान माला में “वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में स्वदेशी ही एक मात्र विकल्प" विषय पर बोलते हुए मोटर मर्चेन्ट एसोसिएशन सभागार में कहें।
 
उन्होंने आगे कहा कि स्वदेशी जागरण मंच चीन द्वारा भारत की एन.एस.जी. में सदस्यता के विरोध को लेकर क्षोभ प्रकट करता है क्योंकि हमारा अधिकाशं व्यापार घाटा चीन से वस्तुओं आयात के कारण ही हैं। अजहर मसूद हो या महमूद लखवी जैसे आतंकवादी, चीन उनके समर्थन में खड़ा हो कर भारत के प्रति अपनी शत्रुता हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रकट करता है। ऐसे में चीनी वस्तुओं का आयात करना व इनका उपयोग करना शत्रु राष्ट्र का आर्थिक पोषण करना है। इसलिए स्वदेशी जागरण मंच राष्ट्रव्यापी अभियान चला कर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार करने का सरकार व जनता का आहवान करता है। मंच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सदा से विरोध कर रहा है। एफ.डी.आई. से रोजगार बढने कि जो बात की जा रही है, आकंडे़ बताते है कि इससे रोजगार बढ़ने की जगह घटा है और बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। बहुर्राष्ट्रीय कम्पनीयां स्वचालित प्रणाली द्वारा निर्माण व उत्पादन करती है जिससे केवल कुछ प्रशिक्षित व्यक्तियों को ही रोजगार प्राप्त होता है। मंच का मानना है कि एफ.डी.आई. नीति से भारत को लाभ कि जगह नुकसान ही हो रहा है। 9 अगस्त से “एफ.डी.आई. वापस जाओं“ उद्घोष के साथ पूरे देश में प्रत्येक जिला स्तर पर मंच द्वारा इसका विरोध शुरू होगा। आगामी 3 व 4 सितम्बर 2016 को दिल्ली में मंच के सभी पदाधिकारी एकत्र होकर आगे की रणनिति तय करेंगें।

व्याख्यान माला कि अध्यक्षता करतेें हुए डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राधेश्याम शर्मा ने कहा कि आज हमें पुनः एक नये स्वतंत्रता आन्दोलन की जरूरत है जिसमें हम विदेशी कम्पनीयों के सामानों का पूर्णतः बहिष्कार करे तभी हम वास्तविक रूप से स्वतंत्र होंगे। मैं मंच के कार्यकर्ताओं का साधुवाद देता है कि वे सम्पूर्ण भारत में इस पुनित कार्य को निस्वार्थ भाव से पूर्ण कर रहे है। उन्होनंे आगे कहा कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद एक बार पुनः पुरे विश्व में प्रतिष्ठित हो रही है। सभी जगह योग का डंका बज रहा है। भारतीय संस्कृति व पारिवारिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठा बढ़ रही है।
 
व्याख्यानमाला के मुख्य अतिथि उत्कर्ष संस्थान के निदेशक निर्मलजी गहलोत ने कहा कि वर्तमान समय भौतिकवाद का है। हमारी युवा पीढ़ी तेजी से विदेशी संस्कृति, विदेशीब्रांड, विदेशी खान-पान की ओर आकर्षित हो रही है। जिससे देश की प्रतिभा व धन का पलायन हो रहा है और देश को प्रतिवर्ष अरबो डाॅलर का नुकसान हो रहा हैं। मैं मुक्त कंठ से मंच को धन्यवाद देता है कि मंच इस नुकसान को निस्वार्थ भाव से रोकने में लगा हुआ है। हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि हम सम्मिलित रूप से मंच के साथ कंधा से कंधा से मिलाकर इस परोपकारी कार्यो को गति प्रदान करें।
 
 व्याख्यानमाला के विशिष्ट अतिथि मोटर मर्चेन्ट एसोसिएशन जोधपुर के अध्यक्ष सोहनलाल मंत्री ने कहा कि आज देश की आर्थिक नीतियाँ विदेशी ताकतों से प्रभावित हो रही हैं। इसमें हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि हम देश की आर्थिक हितो को देखते हुए नीतियों का चयन करे और आर्थिक विषमनता को दूर करें।
 
 मंच के प्रांत संयोजक धर्मेन्द्र दूबे ने कहा कि वर्तमान समय में देश के 388 जिलो में स्वदेशी जागरण मंत्र की ईकाईयां सक्रिय है। दुनिया के 124 देशों के 1112 शहरों में मंच की वेबसाइट नियमित रूप से देखी जाती है।
 
मंच के मीडिया प्रमुख मिथिलेश झा ने बताया कि व्याख्यनमाला के मंच का संचालन विभाग संयोजक अनिल वर्मा ने किया तथा राष्ट्रीय परिषद के सदस्य देवेन्द्र डागा ने धन्यवाद दिया। इस अवसर पर शहर के गणमान्य लोग व मंच के दायित्वान कार्यकर्ता उपस्थित थे।

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

समाचार को सत्य, मंगलकारी और सकारात्मक होना चाहिए – जे. नंद कुमार जी

समाचार को सत्य, मंगलकारी और सकारात्मक होना चाहिए – जे. नंद कुमार जी

Noida workshop (2)
नोएडा. प्रेरणा मीडिया नैपुण्य संस्थान द्वारा दो दिवसीय नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण शिविर संपन्न हुआ. इसमें नोएडा के साथ-साथ वैशाली, गाजियाबाद, फरीदाबाद, ग्रेटर नोएडा और दिल्ली के कुल 58 प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया. समापन सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार जी थे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार बल्देव भाई शर्मा ने की. शिविर के 23 जुलाई को उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक केजी सुरेश थे.

Noida workshop (3)शिविर के समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार जी ने कहा कि पत्रकारिता सत्यं शिवं सुंदरम की अभिव्यक्ति है. समाचार को सत्य होना चाहिए, मंगलकारी होना चाहिए तथा सुंदर अर्थात् सकारात्मक भी होना चाहिए. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि आजकल समाचारों में एकांगी सत्य परोसा जा रहा है. आज समाज को बांटने के लिए पत्रकारिता हो रही है. आज की पत्रकारिता मिशन की जगह व्यावसायिक हो रही है. उन्होंने कहा कि यह नागरिक पत्रकारिता का युग है. सोशल नेटवर्किंग साइट के साथ-साथ प्रिन्ट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में भी नागरिक पत्रकारिता को महत्ता मिल रही है और इसके माध्यम से समाज जीवन में नई चेतना जाग रही है. आज सोशल मीडिया के कारण समाज जीवन की अभिव्यक्ति को दबाना कठिन हो गया है. अब पत्रकारिता में गेटकीपिंग की व्यवस्था के कारण लोग सोशल मीडिया की तरफ उन्मुख हो रहे हैं. इस नवीन माध्यम ने संचार में फीडबैक की महत्ता को आत्मसात किया है. यही कारण है कि यह सही अर्थों में लोक माध्यम बन गया है. उन्होंने विभिन्न प्रांतों से नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण के लिए आये प्रतिभागियों को शुभकामनाएं दी और नागरिक पत्रकारिता के विभिन्न मंचों का सदुपयोग करने की प्रेरणा दी.

कार्यशाला के पहले दिन केजी सुरेश ने कहा कि सोशल मीडिया भी नागरिक पत्रकारिता में महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता है. साथ ही एक जागरुक नागरिक को संपादन के नाम पत्र आदि गतिविधियों द्वारा अखबारों, टीवी समाचार चैनलों, पत्रिकाओं से संवाद स्थापित करना चाहिए. पाठकों व दर्शकों के फीडबैक के जरिए समाचार संस्थाओं को उनकी रुचि और वह क्या चाहते हैं, इसका पता चलता है.

Noida workshop (1)तीसरे सत्र में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार भगत ने समाचार की अवधारणा, तत्व एवं प्रकार पर विस्तार से प्रकाश डाला. पत्रकारिता के विभिन्न माध्यमों के संबंध में प्रो. अनिल निगम तथा इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की बारीकियों के बारे में राकेश योगी ने विस्तार से बताया.
मीडिया कार्यशाला के दूसरे दिन गलगोटियाज विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के डीन प्रो. अमिताभ श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया, इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. सीपी सिंह ने नागरिक पत्रकारिता तथा मानव रचना विश्वविद्यालय फरीदाबाद के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष डॉ. सुरेश नायक ने पत्रकारिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान चुनौतियों से अवगत करवाया.

Noida workshop (4)
राष्ट्रवाद की पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां विषय पर वरिष्ठ पत्रकार बल्देव भाई शर्मा ने विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा अनादि काल से रही है. भारत के लोगों की सांस्कृतिक चेतना ही उसे एक राष्ट्र के रूप में व्याख्यायित करती रही है. यह ठीक है कि अंग्रेजों के शासन से पूर्व भारत अनेक रियासतों में बंटा था, किन्तु हमारी सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय धरोहर के कारण निर्मित पहचान तथा चिंतन परंपरा भारत को एक राष्ट्र के रूप में महिमामंडित कर रहा है. उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता उत्तर क्षेत्र प्रचार प्रमुख नरेन्द्र ठाकुर ने नागरिक पत्रकारिता प्रशिक्षण शिविर की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख माननीय कृपाशंकर जी ने मीडिया कार्यशाला के कार्य योजना के विषय में विस्तार से बताया.

सोमवार, 25 जुलाई 2016

शिक्षा के साथ विद्या का समन्वय लेकर चलें शिक्षक: डॉ. मोहन भागवत जी



नई दिल्ली, 24 जुलाई (इंविसंके)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के  परमपूज्य  सरसंघचालक डॉ . मोहन भागवत ने सिविक सेंटर स्थिति केदारनाथ साहनी आडिटोरियम में अखिल भारतीय ‘ शिक्षा भूषण ’ शिक्षक सम्मान समारोह में शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि शिक्षा में परम्परा चलनी चाहिए , शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था के साथ विद्या और संस्कारों की परम्परा को भी साथ लेकर चलना चाहिए। सभी विद्यालय अच्छी ही शिक्षा छात्रों को देते हैं फिर भी चोरी डकैती , अपराध आदि के समाचार आज टीवी और अखबारों में देखने को मिल रहे है। तो कमी कहां है ? सर्वप्रथम बच्चे मां फिर पिता बाद में अध्यापक के पास सीखते हैं। बच्चों के माता पिता के साथ अधिक समय रहने के कारण माता - पिता की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसके लिए पहले माता - पिता को शिक्षक की तरह बनना पड़ेगा साथ ही शिक्षक को भी छात्र की माता तथा पिता का भाव अंगीकार करना चाहिए। शिक्षा जगत में जो शिक्षा मिलती है उसको तय करने का विवेक शिक्षक में रहता है। शिक्षक को चली आ रही शिक्षा व्यवस्था के अतिरिक्त अपनी ओर से अलग से चरित्र निर्माण के संस्कार छात्रों में डालने पड़ेंगे। लेकिन यह भी सत्य है कि हम जो सुनते हैं वह नहीं सीखते और जो दिखता है वह शीघ्र सीख जाते हैं। आज सिखाने वालों में जो दिखना चाहिए वह नहीं दिखता और जो नहीं दिखना चाहिए वह दिख रहा है। इसलिए शिक्षकों को स्वयं अपने कृतत्व का उदाहरण बनकर दिखाना चाहिए तभी वह छात्रों को सही दिषा दे सकेंगे। हमारे सम्मुख ऐसे शिक्षा भूषण पुरस्कार से पुरस्कृत तीन उदाहरण यहां है , आज के कार्यक्रम का उद्देष्य भी यही है कि ऐसे श्री दीनानाथ बतरा जी , डॉ . प्रभाकर भानू दास जी और सुश्री मंजू बलवंत बहालकर जैसे शिक्षकों से प्रेरणा लेकर और शिक्षक भी ऐसे उदाहरण बन कर समाज को संस्कारित कर फिर से चरित्रवान समाज खड़ा करें।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि देव संस्कृति विष्वविद्यालय के कुलपति तथा गायत्री परिवार के अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख डॉ . प्रणव पांड्या ने बताया कि हर व्यक्ति को जीवन भर सीखना और सिखाना चाहिए। शिक्षा जीवन के मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। शिक्षा एक एकांगी चीज है जब तक उसमें विद्या न जुड़ी हो। आज शिक्षा अच्छा पैकेज देने का माध्यम बन गई है। पैसे के बल पर डिग्रियां बांटने वाले संस्थानों की बाढ़ आ गई है। 1991 के बाद उदारीकरण की नीति बनाते समय हमने शिक्षा नीति के बारे में कुछ सोचा नहीं। इसका परिणाम आज अपने ही देष के विरुद्ध नारे लगाते हुए छात्रों के रूप में दिख रहा है। हम क्या पहनते हैं इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता फर्क पड़ता है हमारा चिंतन कैसा है। शिक्षक ही बच्चों का भाग्य विधाता होता है , शिक्षा व्यवस्था जैसी भी चलती रहे , लेकिन शिक्षक को अपना कर्तव्य बोध नहीं छोड़ना चाहिए।
 
अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ द्वारा आयोजित ‘ शिक्षा भूषण ’ शिक्षक सम्मान समारोह में शिक्षा बचाओ आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ शिक्षाविद् श्री दीनानाथ बतरा , डॉ . प्रभाकर भानूदास मांडे , सुश्री मंजू बलवंत राव महालकर को शिक्षा डॉ . मोहन भागवत तथा डॉ . प्रणव पांड्या ने ‘ शिक्षा भूषण ’ सम्मान से सम्मानित किया। मंचस्थ अतिथियों में उनके साथ श्री महेन्द्र कपूर , के . नरहरि , प्रोफेसर जे . पी . सिंहल , श्री जयभगवान गोयल उपस्थित थे।

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

गुरुपूर्णिमा और संघ

गुरुपूर्णिमा और संघ
भगवा ध्वज


अपने राष्ट्र और समाज जीवन में गुरुपूर्णिमा-आषाढ़ पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है। व्यास महर्षि आदिगुरु हैं। उन्होंने मानव जीवन को गुणों पर निर्धारित करते हुए उन महान आदर्शों को व्यवस्थित रूप में समाज के सामने रखा। विचार तथा आचार का समन्वय करते हुए, भारतवर्ष के साथ उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शन किया। इसलिए भगवान वेदव्यास जगत् गुरु हैं। इसीलिए कहा है- 'व्यासो नारायणम् स्वयं'- इस दृष्टि से गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा गया है।


गुरु की कल्पना
"अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन् चराचरं, तत्पदं दर्शितंयेनं तस्मै श्री गुरुवे नम:" यह सृष्टि अखंड मंडलाकार है। बिन्दु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का, जो परमेश्वर तत्व है, वहां तक सहज सम्बंध है। यानी वह जो मनुष्य से लेकर समाज, प्रकृति और परमेश्वर शक्ति के बीच में जो सम्बंध है। इस सम्बंध को जिनके चरणों में बैठकर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है। संपूर्ण सृष्टि चैतन्ययुक्त है। चर, अचर में एक ही ईश्वर तत्व है। इनको समझकर, सृष्टि के सन्तुलन की रक्षा करते हुए, सृष्टि के साथ समन्वय करते हुए जीना ही मानव का कर्तव्य है। सृष्टि को जीतने की भावना विकृति है-सहजीवन ही संस्कृति है। सृष्टि का परम सत्य-सारी सृष्टि परस्पर पूरक है। सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है। देना ही संस्कार है, त्याग ही भारतीय संस्कृति है। त्याग, समर्पण, समन्वय-यही हिन्दू संस्कृति है, मानव जीवन में, सृष्टि में शांतियुक्त, सुखमय, आनन्दमय जीवन का आधार है।

नित्य अनुभव
वृक्ष निरन्तर कार्बन डाइ ऑक्साइड को लेते हुए आक्सीजन बाहर छोड़ते हुए सूर्य की सहायता से अपना आहार तैयार कर लेते हैं। उनके आक्सीजन यानी प्राणवायु छोड़ने के कारण मानव जी सकता है। मानव का जीवन वृक्षों पर आधारित है अन्यथा सृष्टि नष्ट हो जाएगी। आजकल वातावरण प्रदूषण से विश्व चिंतित है, मानव जीवन खतरे     में है।
इसलिए सृष्टि के संरक्षण के लिए मानव को योग्य मानव, मानवतायुक्त मानव बनना है, तो गुरुपूजा महत्वपूर्ण है। सृष्टि में सभी जीवराशि, प्रकृति अपना व्यवहार ठीक रखते हैं | मानव में विशेष बुद्धि होने के कारण बुद्धि में विकृति होने से प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने का काम भी मानव ही करता है।
बुद्धि के अहंकार के कारण मानव ही गड़बड़ करता है। इसलिए 'गुरुपूजा' के द्वारा मानव जीवन में त्याग, समर्पण भाव निर्माण      होता है।

गुरु व्यक्ति नहीं, तत्व है

अपने समाज में हजारों सालों से, व्यास भगवान से लेकर आज तक, श्रेष्ठ गुरु परम्परा चलती आयी है। व्यक्तिगत रीति से करोड़ों लोग अपने-अपने गुरु को चुनते हैं, श्रद्धा से, भक्ति से वंदना करते हैं, अनेक अच्छे संस्कारों को पाते हैं। इसी कारण अनेक आक्रमणों के बाद भी अपना समाज, देश, राष्ट्र आज भी जीवित है।  समाज जीवन में एकात्मता की, एक रस जीवन की कमी है। राष्ट्रीय भावना की कमी, त्याग भावना की कमी के कारण भ्रष्टाचार, विषमय, संकुचित भावनाओं से, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, शोक रहित (चारित्र्य दोष) आदि दिखते हैं।
इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने गुरु स्थान पर भगवाध्वज को स्थापित किया है। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है। अपने राष्ट्र जीवन के, मानव जीवन के इतिहास का साक्षी यह ध्वज है। यह शाश्वत है, अनंत है, चिरंतन है।

व्यक्ति पूजा नहीं, तत्व पूजा
संघ तत्व पूजा करता है, व्यक्ति पूजा नहीं। व्यक्ति शाश्वत नहीं, समाज शाश्वत है। अपने समाज में अनेक विभूतियां हुई हैं, आज भी अनेक विद्यमान हैं। उन सारी महान विभूतियों के चरणों में शत्-शत् प्रणाम, परन्तु अपने राष्ट्रीय समाज को, संपूर्ण समाज को, संपूर्ण हिन्दू समाज को राष्ट्रीयता के आधार पर, मातृभूमि के आधार पर संगठित करने का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है। इस नाते किसी व्यक्ति को गुरुस्थान पर न रखते हुए भगवाध्वज को ही हमने गुरु माना है।

तत्वपूजा- तेज, ज्ञान, त्याग का प्रतीक
हमारे समाज की सांस्कृतिक जीवनधारा में 'यज्ञ' का बड़ा महत्व रहा है। 'यज्ञ' शब्द के अनेक अर्थ है। व्यक्तिगत जीवन को समर्पित करते हुए समष्टिजीवन को परिपुष्ट करने के प्रयास को यज्ञ कहा गया है। सद्गुण रूप अग्नि में अयोग्य, अनिष्ट, अहितकर बातों को होम करना यज्ञ है। श्रद्धामय, त्यागमय, सेवामय, तपस्यामय जीवन व्यतीत करना भी यज्ञ है। यज्ञ का अधिष्ठाता देव यज्ञ है। अग्नि की प्रतीक है ज्वाला, और ज्वालाओं का प्रतिरूप है-अपना परम पवित्र भगवाध्वज।
हम श्रद्धा के उपासक हैं, अन्धविश्वास के नहीं। हम ज्ञान के उपासक हैं, अज्ञान के नहीं। जीवन के हर क्षेत्र में विशुद्ध रूप में ज्ञान की प्रतिष्ठापना करना ही हमारी संस्कृति की विशेषता रही है।

सच्ची पूजा- 'तेल जले, बाती जले-लोग कहें दीप जले'
 जब दीप जलता है हम कहते हैं या देखते हैं कि दीप जल रहा है, लेकिन सही अर्थ में तेल जलता है, बाती जलती है, वे अपने आपको समर्पित करते हैं तेल के लिए।
कारगिल युद्ध में मेजर पद्मपाणी आचार्य, गनर रविप्रसाद जैसे असंख्य वीर पुत्रों ने भारत माता के लिए अपने आपको समर्पित किया। मंगलयान में अनेक वैज्ञानिकों ने अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक सुख की तिलाञ्जलि देकर अपनी सारी शक्ति समर्पित की।
प्राचीन काल में महर्षि दधीचि ने समाज कल्याण के लिए , संरक्षण के लिए अपने जीवन को ही समर्पित कर दिया था। समर्पण अपने राष्ट्र की, समाज की परंपरा है। समर्पण भगवान की आराधना है। गर्भवती माता अपनी संतान के सुख के लिए अनेक नियमों का पालन करती है, अपने परिवार में माता, पिता, परिवार के विकास के लिए अपने जीवन को समर्पित करती है। खेती करने वाले किसान और श्रमिक के समर्पण के कारण ही सबको अन्न मिलता है। करोड़ों श्रमिकों के समर्पण के कारण ही सड़क मार्ग, रेल मार्ग तैयार होते हैं।
शिक्षक- आचार्यों के समर्पण के कारण ही करोड़ों लोगों का ज्ञानवर्धन होता है। डाक्टरों के समर्पण सेवा के कारण ही रोगियों को चिकित्सा मिलती है। इस नाते सभी काम अपने समान में आराधना भावना से, समर्पण भावना से होते थे। पैसा केवल जीने के लिए लिया जाता था। सभी काम आराधना भावना से, समर्पण भावना से ही होते थे। परंतु आज आचरण में हृास दिखता  है।

राष्ट्राय स्वाहा- इदं न मम्
इसलिए प.पू. डॉ. हेडगेवार जी ने फिर से संपूर्ण समाज में, प्रत्येक व्यक्ति में समर्पण भाव जगाने के लिए, गुरुपूजा की, भगवाध्वज की पूजा का परंपरा प्रारंभ की।
व्यक्ति के पास प्रयासपूर्वक लगाई गई शारीरिक शक्ति, बुद्धिशक्ति, धनशक्ति होती है, पर उसका मालिक व्यक्ति नहीं, समाज रूपी परमेश्वर है। अपने लिए जितना आवश्यक है उतना ही लेना। अपने परिवार के लिए उपयोग करते हुए  शेष पूरी शक्ति- धन, समय, ज्ञान-समाज के लिए समर्पित करना ही सच्ची पूजा है। मुझे जो भी मिलता है, वह समाज से मिलता है। सब कुछ समाज का है, परमेश्वर का है, जैसे- सूर्य को अर्घ्य देते समय, नदी से पानी लेकर फिर से नदी में डलते हैं। मैं, मेरा के अहंकार भाव के लिए कोई स्थान नहीं। परंतु आज चारों ओर व्यक्ति के अहंकार को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस लिए सारी राक्षसी प्रवृत्तियां- अहंकार, ईर्ष्या, पदलोलुपता, स्वार्थ बढ़ गया है, बढ़ रहा है। इन सब आसुरी प्रवृत्त्यिों को नष्ट करते हुए त्याग, तपस्या, प्रेम, निरहंकार से युक्त गुणों को अपने जीवन में लाने की साधना ही गुरु पूजा है।
शिवोभूत्वा शिवंयजेत्- शिव की पूजा करना यानी स्वयं शिव बनना, यानी शिव को गुणों को आत्मसात् करना, जीवन में उतारना है। भगवाध्वज की पूजा यानी गुरुपूजा यानी-त्याग, समर्पण जैसे गुणों को अपने जीवन में उतारते हुए समाज की सेवा करना है। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी ने स्वयं अपने जीवन को अपने समाज की सेवा में अर्पित किया था, ध्येय के अनुरूप अपने जीवन को ढाला था। इसलिए कहा गया कि प.पू. डाक्टरजी के जीवन यानी देह आयी ध्येय लेकर।
वैसे प.पू. गुरुजी, रामकृष्ण मिशन में दीक्षा लेने के बाद भी हिमालय में जाकर तपस्या करने की दृष्टि होने के बाद भी "राष्ट्राय स्वाहा, इदं न मम्", मैं नहीं तू ही- जीवन का ध्येय लेकर संपूर्ण शक्ति को, तपस्या को, अपनी विद्वता को समाज सेवा में समर्पित किया। लाखों लोग अत्यंत सामान्य जीवन जीने वाले किसान, श्रमिक से लेकर रिक्शा चलाने वाले तक, वनवासी गिरिवासी से लेकर शिक्षित, आचार्य, डाक्टर तक, ग्रामवासी, नगरवासी भी आज समाज जीवन में अपना समय, धन, शक्ति समर्पण करके  कश्मीर से कन्याकुमारी तक काम करते दिखते हैं। भारत के अनेक धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों में भी ऐसे समर्पण भाव से काम करने वाले कार्यकर्ता मिलते हैं।
गुरुपूजा- हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा को व्यक्तिश: संघ की शाखाओं में गुरुपूजा यानी भगवाध्वज की पूजा स्वयंसेवक करते हैं। अपने तन-मन-धन का धर्म मार्ग से विकास करते हुए, विकसित व्यक्तित्व को समाज सेवा में समर्पित करने का संकल्प लेते हुए, संकल्प को आगे बढ़ाते हुए, जीवन भर व्रतधारी होकर जीने के लिए हर वर्ष भगवाध्वज की पूजा करते हैं।
यह दान नहीं, उपकार नहीं, यह अपना परम कर्तव्य है। समर्पण में ही अपने जीवन की सार्थकता है, यही भावना है। परिवार के लिए काम करना गलत नहीं है, परंतु केवल परिवार के लिए ही काम करना गलत है। यह अपनी संस्कृति नहीं है। परिवार के लिए जितनी श्रद्धा से कठोर परिश्रम करते हैं, उसी श्रद्धा से, वैसी कर्तव्य भावना से समाज के लिए काम करना ही समर्पण है। इस भावना का सारे समाज में निर्माण करना है। इस भावना का निर्माण होने से ही भ्रष्टाचार, हिंसा प्रवृत्ति, ईर्ष्या आदि दोष दूर हो जाएंगे।
समर्पण भाव से ही सारे समाज में एकात्म भाव भी बढ़ जाएगा। इस भावना से ही लाखों स्वयंसेवक अपने समाज के विकास के लिए, हजारों सेवा प्रकल्प चलाते हैं। समाज में भी अनेक धार्मिक, सामाजिक सांस्कृतिक संस्थानों के कार्यकर्ता अच्छी मात्रा में समाज सेवा करते हैं। आज सभी समर्पण भाव को हृदय में जगाकर काम करने वालों को एकत्र आना है, एक हृदय से मिलकर, परस्पर सहयोग से समन्वय करते हुए, समाज सेवा में अग्रसर होना है। व्यक्तिपूजा को बढ़ावा देते हुए भौतिकवाद, भोगवाद, के वातावरण के दुष्प्रभाव से अपने आपको बचाना भी महान तपस्या है। जड़वाद, भोगवाद, समर्पण, त्याग, सेवा, निरहंकारिता, सहकारिता, सहयोग, समन्वय के बीच संघर्ष है। त्याग, समर्पण, सहयोग, समन्वय की साधना एकाग्रचित होकर, एक सूत्रता में करना ही मार्ग है। मानव जीवन की सार्थकता और विश्व का कल्याण इसी से  संभव है।
-व भागैय्या  
सह सरकार्यवाह,रा.स्व.संघ

साभार :http://rss.org

खाद्य प्रसंस्करण एवं ई-कॉमर्स में 50 प्रतिशत से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रभाव विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

खाद्य प्रसंस्करण एवं ई-कॉमर्स में 50 प्रतिशत से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रभाव विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

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जोधपुर . जोधपुर के पूर्व सहकारिता सचिव आरसीएस जोधा ने कहा कि सरकार की मजबूरी हो सकती है, हमारी नहीं. हमें देश का अहित करने वाला खाद्य प्रसंस्करण व ई-कॉमर्स में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश किसी भी शर्त पर मजूंर नहीं. यह खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पिछले दरवाजे से विदेशी करण है. वह रविवार को स्वदेशी जागरण मंच के विचार वलय में खाद्य प्रसंस्करण एवं ई-कॉमर्स में 50 प्रतिशत से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रभाव विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि हमारा सहकारिता तंत्र इसके कारण पंगु हो जाएगा. दूध, खाद्यान्न एवं पशुपालन, कुटीर उद्योगों पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव रोजगार सृजन की तुलना में लोगों को बेरोजगार बनाएंगे. हमारे मारवाड़ क्षेत्र के पापड़, बड़ियां, खिचीयां, व पंचकुटा जैसी चीजों पर खाद्य प्रसंस्करण में एफडीआई के चलते विदेशी कम्पनियों का एकाधिकार हो जाएगा.

जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय प्रबन्ध अध्ययन संकाय के प्रो. रामचन्द्र सिंह राजपुरोहित ने कहा कि आज हमारी सरकार विश्व व्यापार संगठन एवं अन्य समझौतों के चलते विदेशी निवेश की तरफ बढ़ रही है. देश की जीडीपी को बढ़ाने एवं विदेशी मुद्रा भण्डार के लिए ऐसा किया जा रहा है, लेकिन जिस प्रकार किसी भी देश की प्रगति उसके स्वयं के संसाधनों के विकसित करने से होती है. परन्तु गत 25 वर्षों से किये जा रहे. आर्थिक विकास में हम केवल विदेशी पूँजी को बढ़ाने की बात कर देश के व्यापार को अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों में सौंपते जा रहे हैं जो हमारे आने वाले भविष्य के लिए घातक सिद्व हो सकता है. वर्तमान में सत्ताइस प्रतिशत बढ़ोतरी से एफडीआई बढ़ रही है, सरकार इसके तहत 2020 तक फूड ट्रेड सेक्टर को डेढ़ प्रतिशत से बढ़ाकर तीन प्रतिशत तक ले जाने के लक्ष्य को लेकर चल रही है. देश में पैंतीस से अधिक मेगाफूड पार्क बनाने का लक्ष्य रखा है.

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मंच के प्रदेश संयोजक धमेन्द्र दुबे ने कहा कि इन क्षेत्रों में सरकार द्वारा एफडीआई की छूट देना हमारे छोटे-छोटे उद्योग धन्धों व खुदरा व्यापारियों को चौपट करने के लिए एक बड़ा विध्वंसकारी कदम होगा. आने वाले समय में एमबीए युवा सड़कों पर  मोटरसाईकिल के माध्यम से घरों तक सामान का पहुंचाने का कार्य कर रोजगार प्राप्त करेंगे. उन्होंने कहा कि एग्रीकल्चर प्रॉड्यूस निर्यात विकास एजेन्सी के अनुसार सभी कृषि उत्पाद, फल, फ्लोरी कल्चर, सब्जियां, मसाले, पोल्ट्री, उत्पाद दूध एवं दूध उत्पाद, एल्कॉहोली उत्पाद, मछली उद्योग, आइसक्रीम, आचार, प्लांटेशन, कन्फैक्शनरी, बिस्कुट, ब्रेड, चॉकलेट, सोया आधारित उत्पाद, खाद्य तेल, दालें, तिलहन, सॉफ्ट ड्रिंक्स, नमक, चीनी, कहने का तात्पर्य यह है कि दवा के अलावा मुख से ग्रहण की जाने वाली वस्तुएं खाद्य प्रसंस्करण श्रेणी में आती है. जिन पर एफडीआई के चलते विदेशी एकाधिकार हो जाएगा, वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या अपनी आय का औसतन सत्रह प्रतिशत खर्च इन उत्पादों पर करती है, वहीं मध्यम एवं उच्च वर्ग की जनसंख्या अपनी कुल आय का तीस प्रतिशत खाद्य प्रसंस्करण पर खर्च करती है, जिसे विदेशी कम्पनियों की हड़पने की नजर है. ई-कॉमर्स व खाद्य प्रसंस्करण में एफडीआई के कारण खाद्य प्रसंस्करण के व्यापार में प्रत्यक्ष रूप से लगे एक करोड़ तीस लाख एवं अप्रत्यक्ष रूप से लगे तीन करोड़ तीस लाख लोगों के रोजगार पर बड़ा हमला साबित होगा.

विचार वलय का संचालन विभाग संयोजक अनिल वर्मा ने किया. वित्त मंत्रालय के आंकड़ों में वर्ष दो हजार तेरह चौदह के सर्वे अनुसार लगभग सात करोड़ नागरिकों की आय का  मुख्य स्त्रोत दूध है. कृषि एवं मांस उद्योग भी भारी मात्रा में रोजगार प्रदान करता है, इसके अतिरिक्त देश में विभिन्न उत्सवों के अवसर पर खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ जाती है, उस समय लगभग अस्सी लाख लोग अतिरिक्त रोजगार प्राप्त करते है. इन सब पर एफडीआई के कारण खतरे के बादल मंडरा रहे हैं.

मंगलवार, 12 जुलाई 2016

बढ़ रहा है संघ का कार्य,संघ के प्रति जनता के विश्वास से – डॉ. मनमोहन वैद्य जी

बढ़ रहा है संघ का कार्य

संघ के प्रति जनता के विश्वास से  – डॉ. मनमोहन वैद्य जी

कानपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि पिछले छह सालों से संघ का कार्य क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है. यह तभी संभव हो पाया, जब लोगों का संघ के प्रति विश्वास बढ़ा. जिससे अब इसकी शाखाएं 57 हजार के करीब जा पहुंची. इसके साथ ही उन्होंने जाकिर नाईक के बयान पर भी इशारों-इशारों में आपत्ति जता दी.

लवकुश नगरी बिठूर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारकों के तीन दिवसीय अभ्यास वर्ग से पहले प्रेस वार्ता में पत्रकारों से बातचीत की. अभ्यास वर्ग के पश्चात दो दिन बैठक रहेगी. जिसमें सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी भी भाग ले रहें है. पिछले दो दिनों से मीडिया में चल रही खबरों को देखते हुए सोमवार को आयोजित प्रेस वार्ता में डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि यह अभ्यास वर्ग प्रांत प्रचारकों के लिए है, यह हर पांच वर्ष में एक बार होता है तथा 14, 15 को प्रांत प्रचारकों की बैठक है, हर साल होती है. मैं देख रहा हूँ कि पिछले पांच दिनों से संघ की बैठक को मीडिया भाजपा से जोड़कर देख रहा है, जो गलत है. यह बैठक संघ की है, इससे भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा कि पांच साल में जो कार्यकर्ता नया आता है, उसे बताया जाता है कि प्रांत प्रचारक का दायित्व क्या है. सामाजिक सरोकार व बौद्धिक की चर्चा के साथ आगामी प्रवासों के विषय में मंथन किया जाता है. इसके साथ ही संघ के प्रचार-प्रसार पर भी चर्चा होती है. संघ चुनाव की दृष्टि से कतई बैठक नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 के बाद संघ के प्रति लोगों का लगातार विश्वास बढ़ता जा रहा है. जिससे आज संघ की शाखाएं 57 हजार की संख्या पार कर गई हैं. जो 2010 में 45 हजार के करीब थी.

ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचेगा संघ
डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि संघ के प्रति लोगों का झुकाव इस बात का प्रमाण है कि जो बातें संघ के विषय में कही जाती हैं, वह गलत है. संघ की कोशिश है कि गांव-गांव तक इसकी विचारधारा पहुंचे और लोगों की धारणा को बदला जाए.

जाकिर के बयान गलत
प्रेस वार्ता में जब मीडिया ने डॉ. मनमोहन वैद्य जी से सवाल किया कि संघ जाकिर नाइक के बयानों को किस तरह से देखता है. तो उन्होंने पहले तो बचने की कोशिश की, लेकिन बाद में मीडिया से ही सवाल कर पूछा कि इसमें आपकी क्या राय है जो आप लोगों की व आम जनता की राय है. उससे संघ अलग नहीं है, जो गलत है, उसे गलत ही कहा जाएगा.

सुरेश सोनी निभाएंगे जिम्मेदारी
सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी जी के विषय पर जब मीडिया ने डॉ. वैद्य जी से सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि वह एक साल के लिए अवकाश पर गए थे. वह संघ के सच्चे सिपाही हैं, अपनी जिम्मेदारियों का वह फिर से निर्वहन करेंगे.

साभार ::vskbharat.com 

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित