शिक्षा के साथ विद्या का समन्वय लेकर चलें शिक्षक: डॉ. मोहन भागवत जी
नई दिल्ली, 24 जुलाई (इंविसंके)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के
परमपूज्य सरसंघचालक डॉ . मोहन भागवत ने सिविक
सेंटर स्थिति केदारनाथ साहनी आडिटोरियम में अखिल
भारतीय ‘ शिक्षा भूषण ’ शिक्षक सम्मान समारोह
में शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि
शिक्षा में परम्परा चलनी चाहिए , शिक्षक को
शिक्षा व्यवस्था के साथ विद्या और संस्कारों
की परम्परा को भी साथ लेकर चलना चाहिए।
सभी विद्यालय अच्छी ही शिक्षा छात्रों को देते
हैं फिर भी चोरी डकैती , अपराध आदि के
समाचार आज टीवी और अखबारों में देखने को
मिल रहे है। तो कमी कहां है ? सर्वप्रथम
बच्चे मां फिर पिता बाद में अध्यापक के
पास सीखते हैं। बच्चों के माता पिता के
साथ अधिक समय रहने के कारण माता - पिता की
भूमिका महत्वपूर्ण है। इसके लिए पहले माता -
पिता को शिक्षक की तरह बनना पड़ेगा साथ ही
शिक्षक को भी छात्र की माता तथा पिता
का भाव अंगीकार करना चाहिए। शिक्षा जगत में
जो शिक्षा मिलती है उसको तय करने का
विवेक शिक्षक में रहता है। शिक्षक को चली आ
रही शिक्षा व्यवस्था के अतिरिक्त अपनी ओर
से अलग से चरित्र निर्माण के संस्कार छात्रों
में डालने पड़ेंगे। लेकिन यह भी सत्य है
कि हम जो सुनते हैं वह नहीं सीखते और
जो दिखता है वह शीघ्र सीख जाते हैं। आज
सिखाने वालों में जो दिखना चाहिए वह नहीं
दिखता और जो नहीं दिखना चाहिए वह दिख
रहा है। इसलिए शिक्षकों को स्वयं अपने कृतत्व
का उदाहरण बनकर दिखाना चाहिए तभी वह
छात्रों को सही दिषा दे सकेंगे। हमारे सम्मुख
ऐसे शिक्षा भूषण पुरस्कार से पुरस्कृत तीन
उदाहरण यहां है , आज के कार्यक्रम का उद्देष्य
भी यही है कि ऐसे श्री दीनानाथ बतरा
जी , डॉ . प्रभाकर भानू दास जी और सुश्री
मंजू बलवंत बहालकर जैसे शिक्षकों से प्रेरणा
लेकर और शिक्षक भी ऐसे उदाहरण बन कर समाज
को संस्कारित कर फिर से चरित्रवान समाज
खड़ा करें।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि देव संस्कृति
विष्वविद्यालय के कुलपति तथा गायत्री परिवार के
अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख डॉ . प्रणव पांड्या ने
बताया कि हर व्यक्ति को जीवन भर सीखना और
सिखाना चाहिए। शिक्षा जीवन के मूल्यों पर
आधारित होनी चाहिए। शिक्षा एक एकांगी चीज है
जब तक उसमें विद्या न जुड़ी हो। आज
शिक्षा अच्छा पैकेज देने का माध्यम बन गई
है। पैसे के बल पर डिग्रियां बांटने वाले
संस्थानों की बाढ़ आ गई है। 1991 के बाद
उदारीकरण की नीति बनाते समय हमने शिक्षा नीति
के बारे में कुछ सोचा नहीं। इसका परिणाम
आज अपने ही देष के विरुद्ध नारे लगाते
हुए छात्रों के रूप में दिख रहा है। हम
क्या पहनते हैं इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
फर्क पड़ता है हमारा चिंतन कैसा है। शिक्षक
ही बच्चों का भाग्य विधाता होता है , शिक्षा
व्यवस्था जैसी भी चलती रहे , लेकिन शिक्षक
को अपना कर्तव्य बोध नहीं छोड़ना चाहिए।
अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ द्वारा आयोजित ‘
शिक्षा भूषण ’ शिक्षक सम्मान समारोह में शिक्षा
बचाओ आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ शिक्षाविद् श्री
दीनानाथ बतरा , डॉ . प्रभाकर भानूदास मांडे ,
सुश्री मंजू बलवंत राव महालकर को शिक्षा डॉ .
मोहन भागवत तथा डॉ . प्रणव पांड्या ने ‘
शिक्षा भूषण ’ सम्मान से सम्मानित किया। मंचस्थ
अतिथियों में उनके साथ श्री महेन्द्र कपूर , के
. नरहरि , प्रोफेसर जे . पी . सिंहल , श्री जयभगवान
गोयल उपस्थित थे।
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