रविवार, 13 मार्च 2016

संघ युगानुकूल चलने वाला संगठन-भैय्याजी उपाख्य सुरेश जोशी सरकार्यवाह  

संघ युगानुकूल चलने वाला संगठन- सरकार्यवाह



नागौर 13 मार्च । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी उपाख्य सुरेश जोशी ने कहा कि संघ जड़वादी नहीं अपितु काल के अनुसार चलने वाला संगठन है, इसलिए समय समय पर हम परिवर्तन करते आए हैं। संघ की पहचान केवल नेकर ही नहीं बल्कि दूसरे कारणों से भी है, पेंट भी आने वाले समय में संघ की पहचान बन जाएगा।



भैय्याजी जोशी रविवार को संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे। पेंट का डिजायन ऐसा तैयार किया जाएगा, जिससे शारीरिक कार्यक्रमों में बाधा न आए। वैसे भी आज योग, क्रिकेट, कराटे समेत कई खेलों में ट्राउजर पहने जाते हैं। नई गणवेश लागू करने में चार से छह माह का समय लगेगा।



सरकार के कारण संघ कार्य नहीं बढ़ा है। पिछले एक साल में साढ़े 5500 शाखाएं बढ़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है। समाज के बीच में संघ की स्वीकार्यता बढ़ी है, देशभर में 58000 हजार गांवो तक संघ की पहुंच है। उन्होंने कहा कि करीब ढ़ाई लाख गांवो में संघ की विभिन्न जागरण पत्र- पत्रिकाएं जाती है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष घर से दूर रहकर विस्तारक के रूप में संघ कार्य करने वाले 14500 कार्यकर्ता रहे।



संघ से आईएस तुलना करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा बयान देने वाले की जानकारी का स्तर देखकर पीड़ा होती है। उन्होंने अपने राजनीतिक अज्ञान को व्यक्त किया है।

आरक्षण –

हरियाणा और गुजरात में आरक्षण की मांग को लेकर हुए हिंसक आंदोलन पर उन्होंने कहा कि वास्तव में यह हम सबके लिए सोचने का विषय है। डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया था यह न्योचित था। इससे देश के वंचित वर्ग का बड़ा तबका लाभान्वित हुआ। दलितों में शिक्षा का स्तर बढ़ा। सम्पन्न वर्ग द्वारा आरक्षण की मांग करना उचित दिशा में सोच नहीं है, जो सम्पन्न उन्हें समाज के दुर्बल वर्ग के लिए अधिकार छोड़ने चाहिए।



क्रिमीलेयर को आरक्षण का लाभ पर उन्होंने कहा कि इस पर शास्त्र शुद्ध अध्ययन और सामाजिक स्तर पर विचार विमर्श की आवश्यकता है। किन व्यक्तियों और किन जातियों को अभी तक इसका लाभ मिला नहीं मिला है और वे पिछड़े हुए हैं, इसका अध्ययन होना चाहिए।



श्रीश्री रविशंकर के कार्यक्रम में बाधाएं क्यों-



श्रीश्री रविशंकर के कार्यक्रम पर उन्होंने कहा कि इसके कई पहलु हो सकते है। हो सकता है पर्यावरण को लेकर कुछ कमियां रही होगी। सरकार ने उन्हें सचेत किया और करना भी चाहिए। ऐसे विशाल और गरिमामय कार्यक्रम के लिए कोई मार्ग निकालना चाहिए। लेकिन कानून बताकार दंडित करते रहेंगे तो समाज जीवन में परिवर्तन लाने वाली संस्थाएं दुर्बल होगी। पर्यावरण नियमों का पालना सभी संस्थाओं करने की आवश्यकता है।



जेएनयू मामले में



उन्होंने कहा कि देशभक्त नागरिकों के लिए यह चिंता का विषय है। देशद्रोहियों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने वाली मानसिकता को हम क्या मानें। कानून अपना काम करेगा। भले ही ये लोग कानून के दायरे से बाहर आ जाए, लेकिन परिसर में ऐसे वातावरण का पोषण किसने किया, इस पर प्रबुद्ध वर्ग को सोचना चाहिए। इस विषय पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। सत्ता में चाहे जो भी बैठे सबसे पहले देश हित, राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता का विचार करना ही सर्वश्रेष्ठ है। इस मामले में जागरूक नागरिकों द्वारा इस घटना पर दी गई प्रतिक्रिया का उन्होंने स्वागत किया।



महिला मंदिर प्रवेश



भारत में हजारों मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं रही है। हमारें यहां महिलाएं वेदाध्यन और पौरोहित्य कार्य कर रही है, सन्यासी और प्रवचनकार है। कुछ स्थानों पर प्रवेश को लेकर विवाद हुए, वहां के प्रबंधन ने किसी कारण से ऐसा किया होगा। अनुचित प्रथा को संवाद, समझदारी व आपसी विचार विमर्श से दूर किया जाना चाहिए। ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति से प्रेरित आंदोलन चलाना अनुचित है।



मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा विश्वविद्यालयों को बजट स्वयं सृजित करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह तकनीकी विषय है। हमारा यह मानना है कि आर्थिक दुर्बलता के कारण कोई शिक्षा से वंचित नहीं रहे, इसके लिए समाज और सरकार को भी आगे आना चाहिए

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित