शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

याकूब की फांसी का विरोध करनेवाले इस तथ्य को समझें  '

याकूब की फांसी का विरोध करनेवाले इस तथ्य को समझें  '







- फारुख अहमद खान

आतंकी याकूब मेनन की फांसी का विरोध अपने ही देश के अनेक जानेमाने लोग कर रहे हैं, जिनमें फिल्म अभिनेता, बड़े वकील, पत्रकार और राजनीति से जुड़े लोग शामिल हैं। अपने तुच्छ हितों के लिए साम्प्रदायिक राजनीति करके देश के अच्छे माहौल को दूषित करनेवाले लोग देश के 125 करोड़ लोगों के दिल को ठेस पहुंचा रहे हैं। आतंकी का समर्थन कर ये लोग मजहत-ओ-मिल्लत को बदनाम कर रहे हैं। याकूब की फांसी का विरोध करनेवाले उन लोगों को कुछ बोलने या लिखने से पहले आतंकी करतूतों, घटनाक्रमों तथा देश की न्याय प्रणाली का पूरा विश्लेषण कर लेना चाहिए।
ज्ञातव्य है कि 1993 मुम्बई महानगर में सीरियल बम धमाकों में 527 निर्दोष नागरिकों की जानें गई तथा 713 निर्दोष नागरिक गंभीर रूप से जख्मी हुए। सुरक्षा/खुफिया एजेंसियों ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जांच की, जिसमें संदिग्ध व्यक्तियों की कॉल डिटेल्स, इंटरनेट पर सूचनाओं का आदान-प्रदान, सम्पर्क सूत्र तथा अन्य सभी
संभावनाओं को ध्यान में रखकर इस विश्लेषण पर पहुंची कि मुम्बई सीरियल धमाकों के मास्टर माइंड टाइगर मेनन तथा दाऊद इब्राहिम थे। तथा टाइगर मेनन का सगा भाई चार्टर्ड एकाउंटेंट याकूब मेनन था जिसने “हवाला” के जरिए आतंकियों को धन उपलब्ध करवाया, विस्फोटकों का संग्रह किया। इसी याकूब मेनन ने 15 युवाओं को ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजा। घटना के 1-2 दिन पहले ये सभी भारत छोड़ चुके थे।
जांच एजेंसियों ने जिनमें रॉ, एफबीआई, मुसाद, एम-5 तथा इंटरपोल आदि एजेंसियों ने कड़ी मेहनत के बाद याकूब मेनन को दिनांक 05 अगस्त, 1994 को हिरासत में लेने में कामयाबी पाई। खुफिया एजेंसियों का ये भी मत है कि “भगोड़ा” घोषित होने के बाद याकूब मेनन अपनी 100 करोड़ की जायदाद को बचाने के लालच में सरकार का मुखबिर बनकर भारत वापिस आना चाहता था। परंतु हिरासत में पूछताछ होने पर सभी तरह की सच्चाई सामने आ गई इसलिए सीबीआई द्वारा जांच पूरी करके टाडा कोर्ट में चालान पेश किया गया।

टाडा कोर्ट द्वारा   27 जुलाई, 2007 को याकूब मेनन को दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई, जिसकी अपील माननीय उच्चतम न्यायालय में पेश की गई। माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 21 मार्च, 2013 को याकूब मेनन की सजा-ए-मौत बहाल रखी मुजरिम द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय ने रिव्यू पिटिशन पेश की गई जिसकी सुनवाई उच्चतम न्यायालय के चीफ जज (सी.जे.आई.) की खण्ड पीठ में की गई। तथा रिव्यू पिटिशन दिनांक 30 जुलाई, 2013 को खारिज कर दी गई।

याकूब मेनन ने दुबारा उच्चतम न्यायालय में रिव्यू पिटिशन पेश करते हुए यह कानूनी बिन्दू सामने रखा कि रिव्यू पिटिशन की सुनवाई जज के चेम्बर में नहीं होकर खुली अदालत में होनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित संवैधानिक पीठ ने दिनांक 09 अप्रैल, 2015 को खुली अदालत में सुनवाई करने के पश्चात् याकूब मेनन की याचिका खारिज की। इसके पूर्व भारत के राष्ट्रपति द्वारा पूर्व में ही दिनांक 11 अप्रैल, 2014 को ही याकूब मेनन की मर्सी पिटिशन खारिज की जा चुकी थी। तथा तत्पश्चात् महाराष्ट्र के राज्यपाल के सामने मर्सी पिटिशन दायर की। इन दोनों स्थानों से याचिकाएं समाप्त हो जाने के कारण याकूब मेनन जो कि नागपुर सेन्ट्रल जेल में बंदी है, की फांसी की सजा दिनांक 30 जून, 2015 को कायम रखा गया है।
इस प्रकार 1994 से लेकर आज तक लगभग 21 साल तक याकूब मेनन को अपना पक्ष पेश करने के लिए न्यायिक प्रणाली ने हर स्तर पर पूरा-पूरा अवसर दिया है। इसलिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय जो कि Law of Land बन चुका है, जिसपर किसी को भी संदेह होने की कतई गुंजाईश नहीं है।
जहां तक बेअंतसिंह तथा राजीव गांधी के हत्यारों को सजा देने की बात है तो यह स्पष्ट है कि उनका प्रकरण न्याय
प्रणाली के अनुसार विचाराधीन है। कोई भी संतुलित मस्तिष्क का व्यक्ति या नागरिक संविधान के आर्टिकल 14 के अन्तर्गत प्राप्त मूलभूत सुविधाओं में भेदभाव होने पर न्यायपालिका का सहारा लेकर उस भेदभाव को खत्म करवा सकता है, परन्तु साम्प्रदायिक मस्तिष्क के व्यक्तियों को ये कौन समझाएं कि एक हत्यारा जिसने सैकड़ों कत्ल एक साथ कर दिए हो और देश में आग लगाने का पूरा इंतजाम कर लिया हो, उसकी तुलना 1 या 2 व्यक्तियों के हत्यारे से करना किस तरह से न्याय सम्मत है?
अंत में याकूब मेनन के समर्थकों से मेरा एक ही सवाल है कि यदि यह जघन्य हत्याकांड किसी मुस्लिम देश में होता तो क्या मुजरिम को एक सप्ताह (आनेवाले शुक्रवार) में चौराहे पर खड़ा करके उसका सिर कलाम नहीं कर दिया जाता? हमारे मुल्क में उसे अपना पक्ष प्रस्तुत करके बेगुनाह साबित करने का पूरा-पूरा अवसर दिया गया है। इसलिए एक जघन्य अपराधी का समर्थन करना जघन्य अपराध ही है। माननीय उच्चतम न्यायालय यदि किसी तकनीकी कारण से क्यूरेटिव पीटिशन को दुबारा सुनना चाहे तो अपने निर्णय में विलम्ब नहीं करे। यही देशहित में उचित रहेगा।

भारत के 125 करोड़ आबादी में 18 करोड़ मुसलमान किसी याकूब मेनन का समर्थन नहीं करता, वरन नफरत करते हैं। वे समर्थन करते हैं तो अपने आदर्श डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का करते है और उसकी मगफीरत की दुआ मांगते हैं। ‘भारतरतन डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम’ - एक सच्चे भारतीय एवं एक सच्चे मुसलमान को खिराजे-अकीदत पेश करते हैं।
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है।
बड़ी मुश्किल से चमन में होता है दीदावर पैदा।।
साभार:: newsbharati.com

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित