गुरुवार, 11 सितंबर 2014

हिन्दू कौन, क्यों और कैसे ?'

हिन्दू कौन, क्यों और कैसे ?'







हिन्दू कौन, क्यों और कैसे ?

स्रोत: न्यूज़ भारती हिंदी      तारीख: 10 Sep 2014 13:30:00









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लम्बे समय से कथित सेक्यूलरों ने हिन्दुत्व, हिन्दुस्थान
और हिन्दू शब्द के प्रति प्रत्येक भारतीय के मन में कुछ-कुछ घृणा और
वितृष्णा का भाव भरने का काम किया है। आम आदमी हिन्दू और हिन्दुत्व सुनते
ही बिदक जाता है। सेक्यूलरिज्म के इन्हीं दुकानदारों ने अपने स्वार्थों के
कारण विभिन्न सम्प्रदायों के बीच
, खासकर हिन्दू और मुसलमानों के बीच अलगाव की खाई गहरी करने की कोशिश की है।
- लोकेन्द्र सिंह
हिन्दू कौन हैं? भारत में रहने वाला प्रत्येक निवासी हिन्दू है क्या? क्या भारत के मुस्लिम और ईसाई सम्प्रदाय के लोग भी हिन्दू होंगे? क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ.मोहन भागवत का कथन उचित है? ऐसे ही तमाम सवालों पर हम कुछ देर बाद लौटेंगे और जवाब टटोलने का प्रयास करेंगे। फिलहाल एक महात्मा और जिज्ञासु व्यक्ति के बीच के संवाद को देखते हैं। 
तो कहानी कुछ-कुछ इस तरह है कि एक महात्मा रथ में सवार होकर कहीं जा रहे थे।  मार्ग में उन्हें एक व्यक्ति दिखा। जो कुछ सवालों के जवाब खोज रहा था।  महात्मा को देखकर वह ठिठक गया और अपनी कुछ जिज्ञासाएं उनके सामने रख दीं। महात्मा रथ से नीचे उतरे। उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा- 'मेरे पीछे क्या है? ' उन सज्जन ने जवाब दिया- 'रथ है महाराज।' महात्मा ने अपने सारथी को संकेत किया। सारथी ने रथ से घोड़े निकाल दिए, रथ के ऊपर लगी सुसज्जित छत निकाल दी और पहिए भी निकाल दिए। 'अब क्या है मेरे पीछे? ' महात्मा ने फिर पूछा। सज्जन ने कहा-'महाराज घोड़े हैं, जमीन पर पहिए पड़े हैं और कुछ लकड़ी के जोड़ भी पड़े हैं। तब महात्मा ने कहा-'जो सुन्दर रथ तुम अभी देख रहे थे, वह इन तमाम चीजों के मेल से बनी विशिष्ट पहचान थी। पहिए, सुसज्जित छत, घोड़े और लकड़ी की अपनी स्वतंत्र पहचान है लेकिन इनका सुव्यवस्थित मेल रथ का आकार ले लेता है।' महात्मा और जिज्ञासु व्यक्ति के संवाद को यहीं छोड़कर अब हम अपने सवालों के जवाब ढूंढऩे के लिए निकलते हैं। एक बात तो स्पष्ट हो गई होगी कि अलग-अलग संज्ञाओं के योग से एक विशिष्ट पहचान बनती है। इसी संदर्भ में हम आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के कथन का अध्ययन करने की कोशिश करते हैं- 'इंग्लैण्ड में रहने वाले अंग्रेज हैं, जर्मनी में रहने वाले जर्मन हैं और अमरीका में रहने वाले अमेरिकन हैं तो फिर हिन्दुस्थान में रहने वाले सभी हिन्दू क्यों नहीं हो सकते?' उन्होंने यह भी कहा है कि सभी भारतीयों की सांस्कृतिक पहचान हिन्दुत्व है और इस देश
में रहने वाले इस महान संस्कृति के वंशज हैं। हिन्दुत्व एक जीवन शैली है और किसी भी ईश्वर की उपासना करने वाला या किसी भी ईश्वर की उपासना नहीं करने वाला भी हिन्दू हो सकता है। 
सबसे पहले सवाल उठता है कि मोहन भागवत ने यह बयान क्यों दिया? क्या हिन्दूवादी पार्टी भाजपा के केन्द्रीय सत्ता में आने के बाद संघ भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है? क्या यह स्वयंसेवक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संदेश देने की कोशिश है कि ऐसी कुछ संवैधानिक व्यवस्था हो कि भारत के नागरिकों को हिन्दू कहा जाए। ये सब सवाल मूल मसले से दूर ले जाने वाले हैं। बेमतलब सवाल हैं। दरअसल, लम्बे समय से कथित सेक्यूलरों ने हिन्दुत्व, हिन्दुस्थान और हिन्दू शब्द के प्रति प्रत्येक भारतीय के मन में कुछ-कुछ घृणा और वितृष्णा का भाव भरने का काम किया है। आम आदमी हिन्दू और हिन्दुत्व सुनते ही बिदक जाता है। सेक्यूलरिज्म के इन्हीं दुकानदारों ने अपने स्वार्थों के कारण विभिन्न सम्प्रदायों के बीच, खासकर हिन्दू और मुसलमानों के बीच अलगाव की खाई गहरी करने की कोशिश की है। इसी खाई और कटुता को पाटने की कोशिश आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने की है। 

हिन्दू शब्द के जरिए उन्होंने इस देश को चिर-पुरातन सांस्कृतिक एकता के सूत्र की याद दिलाने की कोशिश की है। संघ की यह कोशिश आज की नहीं है बल्कि आरएसएस की ओर से लम्बे अरसे से हिन्दुत्व को सही अर्थ में समझाने का प्रयास किया जा रहा है। संघ की विचारधारा में हिन्दुत्व शब्द को अधिक समावेशक बनाया गया है। संघ नियमित रूप से कहता रहा है कि भारत से एकात्मता रखनेवाला कोई भी हिन्दू है
, जैसे मुस्लिम हिन्दू और ईसाई हिन्दू। भारत में निवास करनेवाला एवं भारतीय संस्कृति का अनुसरण करनेवाला हिन्दू है। सभी भारतीय हिन्दू हैं। भारतीयत्व ही हिन्दुत्व है। केवल मुस्लिम अथवा ईसाई होने के कारण ही किसी की राष्ट्रीयता में परिवर्तन नहीं होता है। 

हिन्दू शब्द की उत्पत्ति को देखें तो पाएंगे कि यह शब्द सनातन और वैदिक परम्परा का पालन करने वाले लोगों का पर्यायवाची नहीं है बल्कि यह एक विशेष भू-भाग में रहने वाली जातियों-सम्प्रदायों को अर्थ देता है। भारत के बाहर के लोग सिन्धु नदी के इस पार बसे लोगों को हिन्दू कहा करते थे। बाहरी आक्रमणों से पहले हिन्दू शब्द की व्याख्या में वैदिक, सनातनी, जैन, बौद्ध, आर्य, शैव, वैष्णव और संस्थाल तक सभी समाविष्ट थे। क्योंकि, तब सिन्धु से लेकर हिन्द महासागर तक फैली भारतभूमि पर ये और कुछ दूसरे सम्प्रदाय ही बसते थे। लेकिन, बाद में शक, हूण, मंगोल, ईसाई और मुस्लिम, आक्रमणकारी के रूप में इस देश में आए। वे सब-के-सब महान भारत की भूमि पर ही बस गए और यहां की संस्कृति में घुलमिल गए। तब हिन्दू की व्याख्या में भारतभूमि पर रह
रहे पारसी
, ईसाई और मुस्लिम सहित अन्य सम्प्रदाय के लोग भी आने लगे, भले ही उनकी उपासना पद्धति अलग-अलग थीं। महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने भी हिन्दू का मतलब बताया है कि सिंधु नदी के उद्गम स्थान ले लेकर हिन्द महासागर तक सम्पूर्ण भारतभूमि जिसकी मातृभूमि है, पवित्र भूमि है, वह हिन्दू है। हिन्दू शब्द सर्वसमावेशक है। सच ही तो है, जो व्यक्ति भारतभूमि को अपनी मातृभूमि मानकर उसके प्रति श्रद्धा समर्पित करता है, वह हिन्दू ही तो है। 

अब कुछ विद्वान कह सकते हैं कि मान लिया कि ब्रिटेन के लोग ब्रिटिश, चीन के नागरिक चीनी और रूस के बाशिंदे रशियन कहलाते हैं। हम भारत के नागरिकों को भारतीय भी तो कह सकते हैं, हिन्दू कहना जरूरी है क्या? तब जवाब है- कोई समस्या नहीं है, भारतीय कहने में। लेकिन, हिन्दू
कहने से कौन-सा पहाड़ टूट जाता है। जबकि दुनिया हमें हिन्दू कहती है।


भारतीय और हिन्दू में बहुत फर्क नहीं है। दोनों शब्द एक-दूसरे के समानार्थी हैं। समूची दुनिया हमारी क्षेत्रीय सीमाओं और उसके करोड़ों निवासियों को  सदियों से
'भारत' और 'भारतीय' या 'हिन्द' और 'हिन्दी' के नाम से पुकारती आ रही है। सभी शब्दावलियों में मूल शब्द हिन्दू है जो पारसियों, अरबों और यूरोपवासियों को 'सिन्धु नदी के उस पार रहने वाले लोग' का तात्पर्य देता है। हिन्दू और हिन्दुत्व से विरोध इसलिए भी ठीक नहीं क्योंकि यह साम्प्रदायिक नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान है। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी विशिष्ट पहचान होती है। भारत की भी पहचान उसका हिन्दूपन या हिन्दुत्व है। हिन्दुत्व हमारी पहचान और राष्ट्रीयता है। हिन्दुत्व का विरोध करने वाले भी देश के बाहर हिन्दू ही माने जाते हैं। इसीलिए तो गोवा के उपमुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूजा बड़े गर्व के साथ कहते हैं- 'इसमें कोई शक नहीं कि भारत हिन्दू राष्ट्र है। भारत हमेशा से हिन्दू राष्ट्र रहा है और आगे भी रहेगा। उन्होंने कहा कि इस देश में रहने वाले सभी लोग हिन्दू हैं, मैं खुद एक ईसाई हिन्दू हूं।' दुनियाभर में भारत के लोगों की सांस्कृतिक पहचान हिन्दू के नाते ही है। इसी कारण भारत के मुसलमानों को भी अरब में हिन्दू मुसलमान या हिन्दी मुसलमान कहा जाता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के गहरे मित्र, प्रख्यात कवि और लेखक रामधारी सिंह दिनकर ने भी अपनी पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' में लिखा है कि - 'असल में, भारतवर्ष हिन्दुओं का ही देश है और इस देश की संस्कृति अपनी व्यापक विशिष्टताओं के साथ हिन्दू-संस्कृति ही समझी जाती है।' वे आगे लिखते हैं कि - 'प्राचीन संस्कृत और पाली-ग्रन्थों में हिन्दू नाम कहीं भी नहीं मिलता। किन्तु, भारत से बाहर के लोग भारत अथवा भारतवासियों को हिन्दू या 'इंडो' कहा करते थे, इसके प्रमाण हैं। भारतवर्ष को हिन्दुस्तान और भारतवासियों को हिन्दू कहना इतिहास और भूगोल, दोनों ही दृष्टियों से युक्ति-संगत है। 

हिन्दू अवधारणा का विचार करते समय सबसे पहले यह स्पष्ट करना चाहिए कि हिन्दुत्व का हम क्या अर्थ समझते हैं। हिन्दुत्व को आज अनेक सही-गलत अर्थों में समझाया और प्रस्तुत किया जाता है। हिन्दू जाति, हिन्दू राष्ट्र या हिन्दू देश, हिन्दू धर्म, हिन्दू सम्प्रदाय आदि संकल्पनाओं को कभी अज्ञान के कारण तो कभी अल्पज्ञान और कभी जानबूझकर अपने निहित स्वार्थों से प्रेरित होकर उलझाया जा रहा है। विवाद खड़े किए जा रहे हैं, खासकर तब जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या संघ का कोई अनुषांगिक संगठन हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दुस्थान शब्द को रचनात्मक पहचान देने की कोशिश करे। अन्यथा तो हिन्दू शब्द को भ्रामक और घृणित रूप में प्रस्तुत करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की कारिसतानियों पर देश में सन्नाटा पसरा रहता है। 

इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने 'हिन्दू' को अपने व्यापक अर्थ के साथ सबके सामने रखा और इस राष्ट्र को एक सांस्कृतिक पहचान से एकजुट करने की दिशा में पहल की है। विविधता में एकता खोजने वाले देश में कम से कम एक पहचान तो सबकी हो। भाषा, बोली, पूजा पद्धति, खान-पान और आचार-विचार में बंटें लोग कहीं तो एक दिखें। वर्षों से जो सांस्कृतिक पहचान रही है, उसे स्वीकार करने में हर्ज कैसा? हिन्दू कोई धार्मिक पहचान नहीं है, जिस पर विवाद खड़ा किया जाए, बेमतलब तौबा-तिल्ला मचाया जाए, सेक्यूलरों को छाती कूटने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि हिन्दू अपने वास्तविक अर्थ में जीवन पद्धति है और लोकतंत्र का प्रतीक है। यह सांस्कृतिक पहचान है, धार्मिक पहचान नहीं। इसलिए गर्व के साथ भारतभूमि पर रहने वाला प्रत्येक नागरिक कह सकता है- हिन्दू हैं हम, वतन है हिन्दुस्थान हमारा।
- लेखक युवा साहित्यकार हैं एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में पदस्थ हैं।

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित