गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

हिंदू समाज के लिए बोलनेवाला नेतृत्व इस देश में अस्तित्व में है कि नहीं?’ - सरसंघचालक

नागपुर : न्यूजभारती : २४ अक्तूबर २०१२ : बहुसंख्य व उदारमनस्क होते हुये भी हिन्दुसमाज की अकारण बदनामी कर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास अभी भी चल रहा है। प्रजातंत्र, पंथनिरपेक्षता व संविधान के प्रति प्रतिबद्धता का दावा करने वाले ही मतों के लालच में हिन्दू समाज पर प्रच्छन्न आक्रमण करनेवाली प्रवृत्तियों से राजनीतिक साठगांठ कर रहे है। फलस्वरूप इस देश के परम्परागत रहिवासी, बहुसंख्यक राष्ट्रीयमूल्यक स्वभाव व आचरण का निधान बनकर रहने वाले हिन्दू समाज के मन में यह प्रश्‍न उठ रहा है कि ‘हमारे लिए बोलनेवाला व हमारा प्रतिनिधित्व करनेवाला नेतृत्व इस देश में अस्तित्व में है कि नहीं?’ ऐसा सवाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने उपस्थित किया| वे रा. स्व. संघ नागपुर महानगर के विजया दशमी उत्सव में उद्बोधन कर रहे थे. आर्ष विद्या संस्था के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वति जी प्रमुख अतिथी थे|
अपने भाषण में, देश की आज की स्थिति का परामर्श लेते हुए डॉ. मोहन जी ने कहा कि, समाज में सब बुरा ही नहीं हो रहा, जितना बुरा दिखता है उससे दस गुना अच्छा भी है. लेकिन हम उस तरफ देखते ही नहीं. इस देश को सुधारने के लिए हमने दूसरों का मुँह देखना बंद करना चाहिए. देश की परिस्थिति सुधारने के लिए दूसरों को ठेका देने से कुछ साध्य नहीं होगा. समाज, देश या सरकार यह करे, वह करे ऐसा बताने की अपेक्षा हमने पहले स्वयं से शुरुवात करनी चाहिए. पहले अपना घर सवॉंरना चाहिए.
$img_titleयह संकट हमारे देश, हमारे समाज को समाप्त करने जैसे नहीं है. लेकिन इस परिस्थिति में हम क्या करेंगे, यह महत्त्वपूर्ण है, ऐसा उन्होंने कहा.
संघ के बारे में आ रहे समाचार राजनीति से प्रेरित होते है, ऐसा बताते हुए उन्होंने कहा कि, संघ की एक घंटे की शाखा में हम जो सिखते है वह उर्वरित २३ घंटे आचरण में लाना चाहिए. यह हुआ तो, संगठन, नेता, पार्टी, सरकार पर नियंत्रण रहेगा उनकी गाड़ी रास्ता नहीं भटकेगी.
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भ्रष्टाचार पर भाष्य करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि, संस्कारों के अभाव में भ्रष्टाचार होता है. संपन्न व्यक्ति ही भ्रष्टाचार करने में सबसे आगे दिखते है. इस कारण संघ का चरित्रनिर्माण का मुख्य काम ही इस भ्रष्टाचार पर का जालीम उपाय है और अपना यह काम संघ सतत जारी रखेगा.

प्रलंबित रामजन्मभूमि विवाद के बारे में उन्होंने रोष व्यक्त किया. सरकार समाज में झगड़ा लगाने का प्रयास कर रही है, ऐसा आरोप उन्होंने किया. रामजन्मभूमि के समीप की जमीन उत्तर प्रदेश की सरकार अधिग्रहित कर वहॉं पर केंद्र सरकार स्वयं के खर्चे से ‘बाबरी’ का स्मारक बनाने जा रही है, ऐसी जानकारी मिली है. ऐसे किसी भी प्रस्ताव का हम तीव्र विरोध करेंगे ऐसा बताते हुए उन्होंने कहा कि, होना तो यह चाहिए था कि अलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद संसद कानून बनाकर राममंदिर के निर्माण का मार्ग साफ कर लेती.
एफडीआय की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि, स्वतंत्रता के बाद भारत को स्वावलंबी बनाने के बदले अधिकतम परावलंबी बनाने के प्रयास चल रहे है. जहॉं सुधारों की आवश्यकता है वहॉं कुछ भी न कर अनावश्यक क्षेत्र में जल्दबाजी में सुधार करने की क्या आवश्यकता है, ऐसा प्रश्‍न उन्होंने उठाया.
ठीक ७.३० बजे आरंभ हुए इस कार्यक्रम में स्वयंसेवकों ने संचलन, व्यायाम योग, योगासन, दंड, पिरॅमिड आदि के प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किए. ‘बढ़े निरंतर हो निर्भय, गूँजे भारत की जय जय’ यह सांघिक गीत प्रस्तुत हुआ.

$img_titleनागपुर महानगर संघचालक डॉ. दिलीप गुप्ता के प्रास्ताविक के बाद ‘विजय अपनी साधना है. कर्म ही आराधना है.’ यह वैयक्तिक गीत प्रस्तुत किया गया.
स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीय संस्कृति की महत्ता, सनातनत्व के बारे में उद्बोधन किया.
कार्यक्रम में विविध क्षेत्र के मान्यवरों के साथ राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका माननीय शांताक्का जी, पूर्व प्रमुख संचालिका प्रमिलाताई मेढे, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीन गडकरी, सांसद अजय संचेती, भूतपूर्व सांसद बनवारीलाल पुरोहित, इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के अजय संघी और सिंगापुर के भारत में के उपायुक्त जोनाथन टो और अन्य गणमान्य उपस्थित थे. मंच पर विदर्भ प्रान्त सह संघचालक राम हरकरे और नागपुर महानगर सह संघचालक लक्ष्मणराव पार्डीकर उपस्थित थे.


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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित