शनिवार, 29 सितंबर 2012

जनता जो संघ से चाह रही है

जनता जो संघ से चाह रही है

                                                    गोपाल शर्मा, महानगर टाइम्स , जयपुर 

ऐतिहासिक गुलाबी नगरी, सांस्कृतिक रूप से छोटी काशी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सुदृढ़ पहचान के लिए छटपटा रहे जयपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के यशस्वी सरसंघचालक मोहनराव भागवत का हार्दिक स्वागत..शुभाभिनंदन!! हालांकि गुलाबी नगर में स्वामी विवेकानंद से लेकर महात्मा गांधी और क्रांतिकारियों में चंद्रशेखर आजाद तक का पर्दापण होता रहा है..आजादी के बाद कांग्रेस का पहला राष्ट्रीय महाधिवेशन जयपुर में ही हुआ था और भारतीय जनता पार्टी ने भी उड़ान भरने से पूर्व जयपुर में ही राम, राज और रोटी का ऐतिहासिक उद्घोष किया था और उसी के बाद दिल्ली में सिंहासन प्राप्त कर सकी थी। लेकिन यह पहली घटना है जब सेवा, सादगी, समर्पण, संकल्प के प्रतीक मोहनराव भागवत जयपुर में पांच दिवसीय प्रवास कर रहे हैं। बेदाग भागवत पर देश की निगाहें हैं और करोड़ों देशभक्त यह उम्मीद लगाए हैं कि संघ कुछ ऐसा करे जिससे सामथ्र्यशाली भारत के निर्माण का स्वप्न शीघ्रातिशीघ्र संभव होता दिखाई दे। राजस्थान और जयपुर भी इस जनभावना से अछूते नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीयता और देशभक्ति के भाव से ओतप्रोत यहां के लोगों की भावनाएं और अधिक उद्वेलित हैं और किसी भी सद्प्रयास का साथ देने के लिए ज्वार उठ रहा है तथा मानस की उत्ताल लहरें और वेगवती हो चली हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक के लिए कहने को आम जन के पास कुछ विशेष नहीं है क्योंकि रचनात्मक कार्य में अहर्निश जुटे स्वयंसेवकों के प्रति मन में कोई विपरीत भाव  उठता ही नहीं..आपदा के समय स्वयंसेवकों की सक्रियता हर प्रश्न का जवाब दे देती है; और, चूंकि संघ का नेतृत्व सदैव बेदाग और निष्कलंक रहा है इसलिए समीक्षा की भी कोई गुंजाइश शेष नहीं रहती।
लेकिन विषय तब खड़ा होता है जब भारतीय जनता पार्टी की बात उठती है और आम जन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भाजपा के सहयोगी और मार्गदर्शक के रूप में देखता है..और देखता है कि भाजपा तथा अन्य दलों की सोच, राजनीतिक दृष्टि, शासन के तौर तरीकों तथा शुचिता से दूरी बनाए रखने के मामले में कोई अंतर नहीं है। एक जैसे ही छोटे-बड़े ज्यादातर भ्रष्ट चेहरे, अहंकार और आडम्बर से ओत प्रोत तथा सर्वोच्च वरीयता शासन प्राप्त करने को देते हुए..जातिवादी आधार पर टिकट वितरण.. टिकटों की बिक्री.. भ्रष्ट तत्वों का सहयोग और आगे बढऩे के लिए अपने ही साथियों से घात-प्रतिघात! ऐसे में आम जन के मन में ही नहीं, राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत अनगिनत मन सोचने को विवश हो उठते हैं कि संघ क्या कर रहा है..अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर देने वाले संघ के प्रमुख पदाधिकारी कोई हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रहे हैं! निश्चय ही संघ के प्रमुख कार्यों में राजनीतिक विषय शामिल नहीं है और न ही संघ को आम जन दैनन्दिन राजनीति में लिप्त देखना चाहते हैं लेकिन संक्रमण वेला में संघ की लगभग चुप्पी मन में भविष्य के लिए भय पैदा कर रही है।
विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन को किसी सलाह या निर्देशन की जरूरत नहीं है और न ही उस ओर सोचा जाना चाहिए। क्योंकि संघ सरसंघचालकों ने विभिन्न अवसरों पर आपद् दिशा निर्देश देने का काम किया है। संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार तो कांग्रेस और क्रांतिकारियों से जुड़े हुए थे तथा एक बार सरसंघचालक पद छोड़कर सत्याग्रह करने का ऐतिहासिक कार्य किया था..द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी उस जनसंघ से ही सहमत थे जो नैतिक और राष्ट्रीय मूल्यों से कोई समझौता नहीं करे..तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने 25 वर्ष पूर्व जयपुर में ही आह्वान किया था कि राष्ट्रीय हितों से जुड़े मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस के लोगों को मिलकर कार्य करना चाहिए। चूंकि सरसंघचालक भागवत उसी श्रेणी के है और उसी पद पर विद्यमान हैं इसलिए जनभावनाएं उनसे राष्ट्रीय पहल की आकांक्षा रखती है।
भ्रष्टाचार और महंगाई ने आम आदमी को गिरफ्त में ले रखा है..राष्ट्रीयता के भाव लुप्त प्राय हो रहे हैं और काम के बदले रिश्वत, जीने के लिए किसी भी तरह कमाओ, कम-से-कम काम करो जैसी सोच राष्ट्र को जर्जर बना रही है..हमें मानसिक रूप से तोड़ चुकी है। ऐसे में प्रभावशाली नेतृत्व की ओर जनता की निगाहें लगी हैं..अण्णा हजारे और बाबा रामदेव का समर्थन करते समय यही सोच हावी रहती है। लेकिन यह कार्य हजारों-लाखों तक जुड़े अण्णा-रामदेव से संभव नहीं है..इसके लिए तो संघ से ही जनता को अपेक्षा है। ..क्योंकि उसमें ही यह दिशा दृष्टि देने की क्षमता है और सकारात्मक रूप से राष्ट्र जागरण के कुछ तात्कालिक प्रयोग करने की कुव्वत है। चूंकि सरसंघचालक भागवत में डॉ. हेडगेवार जी की छवि देखी जाती रही है, उनमें कुशल नेतृत्व क्षमता है, वे राष्ट्रीय समस्याओं से परिचित हैं और संघ करोड़ों हृदयों में रचा-बसा है इसलिए उम्मीद की किरण उधर से ही अधिक है। निश्चय ही सरसंघचालक का पांच दिवसीय प्रवास उस दिशा में सार्थक होगा और कोई निश्चित दिशा बोध का मार्गदर्शन होगा।

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित