रविवार, 22 जुलाई 2012

हमारा कार्य हिन्दू समाज को संगठित करते हुए अपने राष्ट्र को परम वैभव पर पहुचाना - सरसंघचालक मोहन जी भागवत

जसोल २२ जुलाई २०१२ . तेरापंथ के आचार्यश्री महाश्रमण चातुर्मास के अवसर पर बालोतरा जिले के स्वयंसेवको का  जिला सम्मलेन तेरापंथ भवन में आयोजित किया गया. इस शुभावसर पर परम पूजनीय सर संघचालक मोहन जी भागवत का मार्गदर्शन स्वयंसेवको को तथा तेरापंथ समाज के श्रावको को मिला. कार्यक्रम का शुभारंभ  बढे  निरंतर हो निर्भय गूंजे भारत की जय जय  से हुआ. 
धव्जारोहन  के पश्चात प्रार्थना हुई तत्पश्चात आचार्यश्री महाश्रमण ने स्वयंसेवको को संबोधित करते हुए कहा कि संकल्प में शिथिलता  नहीं होनी चाइये सपने लेने से कार्य पूरा नहीं होता है संकल्प लेने से कार्य पूरा होता है. संकल्प बल का साहस हो तो सब कुछ संभव है. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओ में अनुशाशन की शक्ति , संयम की शक्ति तथा राष्ट्र भक्ति की शक्ति .होती है।   किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए समर्पण की शक्ति आवश्यक होती है और यह स्वयंसेवको में देखने को मिलती है। नाम  की कामना समर्पण में कमी की घोतक है। 
उन्होंने राष्ट्रीयस्वयंसेवक संघ को अनुशासन का दूसरा नाम बताया। 

 आचार्यश्री ने कार्यकर्ताओ की तीन श्रेणिया बतलाई - निम्न श्रेणी  न उत्साह न कठिन कार्य करने का साहस, मध्यम श्रेणी जो उत्साह से कार्य शुरू करता है बाधा  आने पर कार्य बंद कर देता है तथा उत्तम श्रेणी का कार्यकर्त्ता उत्साह साहस से कार्य प्रारंभ करता है तथा कठिनाइयों को चीर कर आगे बढ़ता है एवं लक्ष्य प्राप्ति तक रुकता नहीं है.
कार्यकर्ताओ के कई प्रकार का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा की गुरु से ज्ञान लेना चाहिए ज्ञानवान से ज्ञान लेना ही चाहिए.  दाता कौन होता है ? अर्थ व् दान देने वाले दाता  नहीं होता।दुसरो को सम्मान देने वाला दाता होता है। भाषा एवं व्यवहार में विनम्रता होनी कहिये। विद्या के साथ विनय होना चाहिए. विद्या के विकास के लिए ज्ञानियों से ज्ञान लेना चाहिए। गीता का उदहारण देते हुए उन्होंने कहा की ज्ञान के लिए गुरु के सामने झुको , जिज्ञाशु तथा परिश्रमी बनो और गुरु की सेवा करो।
आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कहा की विद्या बल, यश, बलम, दक्षता, कार्य को सुन्दर व्यवस्थित और दक्षता से कार्य करे वही कार्यकर्त्ता जीवन में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकता है।
कार्यकर्त्ता नशामुक्त, राष्ट्र धर्म में ईमानदारी और नैतिकता , समर्पण का भाव, संस्कार दिलो में बने होते है और यही कार्यकर्त्ता सामान्य आदमी से बड़ा होता है, सेवाभाव उसमे होता है।
आचार्यश्री ने आव्हान किया की अपने जीवन में विशेष करो लक्ष्य राष्ट्र सेवा का बन जायेगा। बूंद बूंद विशेष से विशेषताओ का घड़ा भरना चाहिए।

प्रकाश माली कैसेट आचार्यश्री  महाश्रमण जी को भेंट करते हुए
कैसेट का विमोचन करते हुए परम पूजनीय सरसंघचालक जी
परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत  कैसेट का अवलोकन करते हुए

क्षेत्रीय प्रचारक माननीय दुर्गादास जी , माननीय मूलचंद जी, माननीय प्रकाश जी,क्षेत्रीय संपर्क प्रमुख राजेंद्र जी, माननीय नन्दलाल जी जोशी
अनुशाषन की परिभाषा - स्वयंसेवक 
तेरापंथ भवन में कार्यक्रम का इक दृश्य 



परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भगवत उध्बोधन  देते हुए 


परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने स्वयंसेवको तथा उपस्थित तेरापंथ समाज के धर्मप्रेमियों को उधबोधन देते हुए कहा कि हम सब लोगो को महाश्रमण जी ने सटीक शब्दों में कार्यकर्त्ता का स्मरण कराया है. हमारा कार्य हिन्दू समाज को संगठित करते हुए अपने राष्ट्र को परम वैभव पर पहुचाना है. देश के स्वतंत्र होने के ६५ वर्ष बाद भी कुछ बातें ठीक हें और कुछ नहीं है. राष्ट्र कि सब बातों को ठीक करते हुए राष्ट्र कि सर्वांगीन उन्नति होनी चाहिए . राष्ट्र यानि सबका विकास है. आज से २००-२५० वर्ष पहले भारतीय को विदेशो में मजदूर बना कर भेजा और उन्होंने विदेशो में नया भारत बसा लिया और उन्होंने भारत की जीवन  पद्धति को सबको बतलाया. 


सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने सभी स्वयंसेवकों को आह्वान करते हुए कहा कि आचार्य ने जो कार्यकर्ता के ये सात गुण बताए है। हम उन्हें जीवन में भी समाहित करें और भारतीय संस्कृति के निर्माण व उत्थान में आगे बढ़ते रहें। क्योंकि हम बदलेंगे तो पूरी दुनिया बदलेगी। डॉ. भागवत ने कहा कि राष्ट्र का सर्वांगीण विकास ही हमारा लक्ष्य है। सर्वांगीण विकास का अर्थ है, जमीन, जल, जन, जंगल, जानवर सभी का विकास होना चाहिए। उन्होंने कहा हमारे मूल पूर्वज एक है, हमारी संस्कृति एक है और हमारे लिए भारतीयता ही हमारी पहचान है।


मोहन जी भागवत  ने आगे कहा की दुनिया में हम कौन है यह विवाद सिर्फ भारत में है . हमारे देश में अनेक भ्रान्तिया उतप्न्न की जा रही है जबकि भारत के विशिष्ट स्वाभाव विविधता में एकता है. विभिन्न मत सम्प्रदायों का भारत है. हम सत्य अहिंसा को मुख्य रूप से लेकर चलते है. भारत की संस्कृति एक है स्वाभाव एक है . भारत की संस्कृति सबको प्रेम  करना सिखाती  है किसी  को बैर  करना नहीं सिखाती  . अखंड  भारत का स्वभाव  एक है . अन्य  धर्मो  को मानने  वालो  को भारत में स्थान मिलता है. हमारी प्राचीन जीवन पद्वति से जीवन जीने वाला व्यक्ति राष्ट्रीय है.  विविधता में एकता तथा वसुधैव कुटुम्बकुम  देखने वाला एकमात्र देश भारतवर्ष ही है।
भागवत  जी ने कहा की यह देश सबकी उन्नति का कारक तथा सबके प्रति प्रेमभाव रखने व किसी के प्रति बैर भाव नहीं रखने वाला एकमात्र देश है। मुसलमानों के हितों से कोई विरोध नहीं है. उन्होने कहा कि संघ व तेरापंथ का कार्य एक जैसा ही है। युवा स्वभाव, उत्साह, साहस व निर्भिकता का नाम है। राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का ही योगदान है। युवाओं से अपेक्षा है कि वे अपनी प्रतिभा को संभाल कर उसे राष्ट्रीय निर्माण में लगाएं।
 कार्यक्रम के दौरान गायक कलाकार प्रकाश माली द्वारा राष्ट्र जागरण भावना को लेकर रचित सी.डी. का विमोचन मोहन जी भागवत द्वारा किया गया।

कार्यक्रम में जसोल, बालोतरा, समदड़ी, पचपदरा, सिवाना, सिणधरी, गुड़ा, चौहटन, बाड़मेर, शिव, बायतु, जालोर, भीनमाल आदि स्थानों से स्वयंसेवक पहुंचे। कार्यक्रम में 45सौ स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित थे.
कार्यक्रम में प्रांत संघचालक ललित शर्मा, क्षेत्रीय प्रचारक दुर्गादास जी , क्षेत्रीय प्रचारक प्रमुख नंदलाल जी जोशी, क्षेत्रीय संपर्क प्रमुख राजेंद्र जी, क्षेत्रीय सह संपर्क प्रमुख प्रकाशचंद्र जी , प्रांत प्रचारक मुरलीधर जी , विभाग प्रचारक राजाराम जी  भी उपस्थित थे। जिला संघ चालक सुरंगी लाल ने अतिथियों को परिचय व आभार व्यक्त किया।


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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित