बुधवार, 14 दिसंबर 2011

साम्प्रदायिक हिंसा बिल के खिलाफ होगा देशव्यापी आंदोलन

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को भंग करने की मांग


दिल्ली। भारतीय संस्वृति सभा के तत्वावधान में ज्वालामुखी मंदिर में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय शीर्ष संत समागम में एक स्वर से सांप्रादायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011 का विरोध करते हुए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) को तत्काल भंग किए जाने की मांग की।

समागम में पारित प्रास्ताव में विधेयक को देश को तोड़ने राला, असंवैधानिक, हिन्दू एवं मुस्लिमों को बांटने वाला, देश के हिन्दुओं को गुनहगार मानकर विश्व में सहिष्णु हिन्दू संस्वृति को बदनाम करने वाला, दंगाईं, जेहादी, व्यवहार को प्राोत्साहन एवं हिंसा करने के बाद संरक्षण देने वाला, देश के प्राशासन के ऊपर इस कानून के द्वारा नईं असंवैधानिक व्यवस्था खड़ी करने वाला बताया गया।

इस दौरान विशेष रूप से आमंत्रित किए गए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव मधुकर भागवत ने कहा कि विश्व में धर्म की एकमात्र शक्ति भारत बची है जो अन्य मजहबों के लोगों को अपने मार्ग को रोड़ा लगता है उनकी मंशा पूरी हो सके। इसके लिए वे भारत को तोड़ने में लगे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि यह विधेयक देखने से ही पता चलता है कि यह अन्याय को न्याय बनाने वाला, प्राशासन को पंगु बनाने वाला और पंचमहापातक को नियम बनाने वाला विधेयक है। संत समाज के विरोध के कारण वे विधेयक में वुछ परिवर्तन की बात करने लगे हैं किन्तु यह ऐसा ही है मानों ताड़का को पूतना के रूप में प्रास्तुत किया जाए।

डॉ. भागवत ने उपस्थित संत समुदाय से अपील की कि इस विधेयक को खारिज करवाने के लिए बड़ा शक्ति प्रादर्शन करना होगा जिसके लिए पूरी तैयारी रखनी है। इसके लिए आवश्यक जनजागरण की विस्तृत योजना संत समाज तय करे जिसमें संघ पूरी तरह सहभागी होगा।

कार्यंव््राम के उपरांत संवाददाताओं से बातचीत करते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने कहा कि परिषद इस विधेयक सहित देश में तुष्टिकरण के प्रात्येक प्रायास का कड़ा विरोध करेगी। उन्होंने कांग्रोस महासचिव दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में प्राधानमंत्री से मिलने गए 25 कांग्रोसी सांसदों के प्रातिनिधिमंडल द्वारा 12वीं पंचवषाय योजना में मुस्लिम समुदाय के लिए 15 प्रातिशत बजट आवंटन का विशेष प्रावधान किए जाने को तुष्टिकरण की पराकाष्ठा करार दिया। प्रास्ताव में कहा गया है कि इस विधेयक से देश के मंदिर, संत, रामलीला, गणेशोत्सव तथा हिन्दुओं के अन्य धार्मिक कार्यंव््राम, हिन्दुओं की सामाजिक धार्मिक संस्थाएं, हिन्दुओं के व्यापार, जेहादियों की दया पर निर्भर हो जाएंगे। संतों की यह सभा देश के सभी संत, सभी सामाजिक-धार्मिक बिरादरी की संस्थाओं का आह्वान करती है कि इस विधेयक के खिलाफ देशव्यापी जनजागरण एवं आंदोलन हो और दिल्ली में भी प्रादर्शन की तैयारी हो। समागम में संतों ने संकल्प व्यक्त किया और कहा कि इस विधेयक को किसी भी कीमत पर कानून का रूप नहीं लेने देंगे।

इसके लिए देश की जनता किसी भी प्राकार के बलिदान के लिए तैयार है। संतों के इस प्रास्ताव को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद सहित देश के लगभग सभी सामाजिक, सांस्वृतिक एवं धार्मिक संगठनों ने अपना खुला समर्थन व्यक्त किया।

स्त्रोत: http://epapervirarjun.com/epapermain.aspx?queryed=9&eddate=12%2f13%2f2011

साम्प्रदायिक हिंसा बिल के खिलाफ होगा देशव्यापी आंदोलन

भारतीय संस्कृति सभा के तत्वावधान में दिल्ली स्थित ज्वालामुखी मंदिर में आयोजित दो दिवसीय ‘अखिल भारतीय शीर्ष संत समागम’ ने एक स्वर से “साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक - 2011” का विरोध करते हुए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) को तत्काल भंग किये जाने की मांग की।

समागम में पारित प्रस्ताव में विधेयक को देश को तोड़ने वाला, असंवैधानिक, हिंदू एवं मुस्लिमों को बांटने वाला, देश के हिंदुओं को गुनहगार मानकर विश्व में सहिष्णु हिंदु संस्कृति को बदनाम करने वाला, दंगाई, जेहादी, व्यवहार को प्रोत्साहन एवं हिंसा करने के बाद संरक्षण देने वाला, देश के प्रशासन के ऊपर इस कानून के द्वारा नई असंवैधानिक व्यवस्था खड़ी करने वाला बताया गया।

इस दौरान विशेष रूप से आमंत्रित किये गये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव मधुकर भागवत ने कहा कि विश्व में धर्म की एकमात्र शक्ति भारत बची है, जो अन्य मजहबों के लोगों को अपने मार्ग का रोड़ा लगता है, उनकी मंशा पूरी हो सके इसके लिए वे भारत को तोड़ने में लगे हुए हैं।

उन्होंने कहा कि प्रस्तावित विधेयक देखने से स्पष्ट हो जाता है कि यह अन्याय को न्याय बनाने वाला, प्रशासन को पंगु और पंचमहापातक को नियम बनाने वाला विधेयक है। संघ प्रमुख ने कहा कि संत समाज के विरोध के कारण वे विधेयक में कुछ परिवर्तन की बात करने लगे हैं किंतु यह ऐसा ही है मानो ताड़का को पूतना के रूप में प्रस्तुत किया जाए।

डॉ. भागवत ने उपस्थित संत समुदाय से अपील की कि इस विधेयक को खारिज करवाने के लिए बड़ा शक्ति प्रदर्शन करना होगा जिसके लिए पूरी तैयारी रखनी है। इसके लिए आवश्यक जनजागरण की विस्तृत योजना संत समाज तय करे जिसमें संघ पूरी तरह सहभागी होगा।

कार्यक्रम के उपरांत संवाददाताओं से बातचीत करते हुए विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने कहा कि परिषद इस विधेयक सहित देश में तुष्टीकरण के प्रत्येक प्रयास का कड़ा विरोध करेगी।

उन्होंने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से मिलने गये 25 कांग्रेसी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल द्वारा 12वीं पंचवर्षीय योजना में मुस्लिम समुदाय के लिए 15 प्रतिशत बजट आवंटन का विशेष प्रावधान किये जाने को तुष्टीकरण की पराकाष्ठा करार दिया।

प्रस्ताव में कहा गया है, “इस विधेयक से देश के मंदिर, संत, रामलीला, गणेशोत्सव तथा हिंदुओं के अन्य धार्मिक कार्यक्रम, हिंदुओं की सामाजिक धार्मिक संस्थाएं, हिंदुओं के व्यापार, जेहादियों के दया पर निर्भर हो जायेंगे। संतों की यह सभा देश के सभी संत, सभी सामाजिक-धार्मिक बिरादरी की संस्थाओं का आह्वान करती है कि इस विधेयक के खिलाफ देशव्यापी जनजागरण एवं आदोलन हो और दिल्ली में भी प्रदर्शन की तैयारी हो।”

समागम में संतों ने संकल्प व्यक्त किया और कहा कि इस विधेयक को किसी भी कीमत पर कानून का रूप नहीं लेने देंगे। इसके लिए देश की जनता किसी भी प्रकार के बलिदान के लिए तैयार है। संतों के इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद सहित देश के लगभग सभी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक संगठनों ने अपना खुला समर्थन व्यक्त किया।

स्त्रोत: http://bharatshri.blogspot.com/2011/12/blog-post.हटमल

सांप्रदायिक हिंसा विधेयक के विरोध में होगा आंदोलन

शीर्ष संतों ने तैयार की शक्ति प्रदर्शन की रणनीति

नई दिल्ली (एसएनबी)। सांप्रदायिक हिंसा विधेयक 2011 को रद्द कराने के लिए संतों के शक्ति प्रदर्शन में आरएसएस सहयोग करेगा। सरसंघ चालक मोहन राव भागवत ने सोमवार को भारतीय सांस्कृतिक सभा के दो दिवसीय रणनीतिक चिंतन बैठक में घोषणा की कि विधेयक को खारिज कराने के लिए बड़े शक्ति प्रदर्शन की जरूरत पड़ेगी जिसमें संघ संतों को पूरा सहयोग देगा। चिंतन बैठक में विधेयक को हिंदू शक्ति और देश को तोड़ने की साजिश करार देते हुए मांग की गई कि सोनिया गांधी की अध्यक्षता की एनएसी को तत्काल भंग किया जाए। संतों के दो दिवसीय समागम में प्रस्ताव पारित कर कहा गया कि यह विधेयक देश को तोड़ने वाला, असंवैधानिक और हिंदू एवं मुस्लिम एकता को तोड़ने वाला है। साथ ही कहा गया कि इसके लागू होने से देश में कानून द्वारा नई असंवैधानिक व्यवस्था खड़ी की जाएगी। चिंतन बैठक में खास तौर पर बुलाए गए मोहन राव भागवत ने कहा कि भारत को तोड़ने के सपने बुने जा रहे हैं। विधेयक को देखने से ही लगता है कि अन्याय को न्याय बनाने वाला है। प्रशासन को पंगु बनाने वाला है। पंचमहापातक को नियम बनाने वाला है। उन्होंने कहा कि संतों के विरोध के चलते सरकार थोड़े बदलाव के लिए तैयार जरूर हुई लेकिन इसको रद्द करने की जरूरत है। भागवत ने संतों से कहा कि विधेयक को खारिज कराने के लिए दिल्ली में बड़े शक्ति प्रदर्शन की जरूरत पड़ेगी जिसके लिए संघ पूरी मदद करने को तैयार है। जनजागरण की रणनीति और विस्तृत योजना संत समाज तैयार करे जिसमें संघ पूरी तन्मयता से साथ खड़ा रहेगा। बाद में संवाददाताओं से बात करते हुए विहिप के अशोक सिंघल ने कहा कि सरकार तुष्टीकरण की कोशिश में लगी है जिसे सफल नहीं होने दिया जाएगा। सिंघल ने कहा कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की अगुवाई में प्रधानमंत्री से मिलने गए 25 कांग्रेस के सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए 15 फीसद बजट अलग से मुस्लिम समुदाय के लिए करने को तुष्टीकरण की पराकाष्ठा बताई। संतों ने आह्वान किया कि कितना आश्चर्य है कि सहिष्णु हिंदू समाज को आज सरकार इस विधेयक के माध्यम से आताताई और दंगाई घोषित करने पर तुली है। संतों ने कहा कि केंद्र सरकार पूर्वाग्रह से यह विधेयक ला रही है और देश के लिए यह एक खतरनाक षडयंत्र है। बैठक की अध्यक्षता जगदगुरू माधवाचार्य विेशतीर्थ (उडपी) ने की। वहीं कांची कामकोठि ने शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, महा मंडलेर सत्यमित्रानंद गिरी, महामंडलेर विदेवानंद, कर्नाटक के संत निर्मलानंद, चुचुनगिरी मठ के जियर स्वामी, हिंदू धर्म आचार्य सभा के परमानंद महाराज, गोविंद गिरी महाराज मौजूद थे।

स्त्रोत: http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=9&eddate=12%2f13%2f2011



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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित