मंगलवार, 29 जून 2010

मणिपुर में नही छपा अखबार

इंफाल। मणिपुर के पत्रकारों को आतंकवादियों द्वारा मिल रही धमकी के बीच रविवार को कोई अखबार नही छपा। मणिपुर पत्रकार संगठन (एएमडब्ल्यूजेयू) ने इसका विरोध करते हुए धरना दिया। एएमडब्ल्यूजेयू के प्रवक्ता ने रविवार को कहा, दो गुटों में बंट चुके कांगेईपेक कम्युनिस्ट पार्टी-मिलिट्री कांउसिल (केसीपी-एमसी) ने इस सप्ताह की शुरूआत में संपादको और पत्रकारों को धमकी मिली थी कि उनके अनुसार खबरे प्रकाशित नही की गई तो इसका भंयकर परिणाम भुगतना होगा। पत्रकारों ने कहा कि संपादको, प्रकाशकों और पत्रकारों को उग्रवादियों की धमकियों के कारण यह निर्णय लिया गया है।

शुक्रवार, 25 जून 2010

अमूल्य निधि है स्वयंसेवक का समर्पण

भगवा ध्वज के समक्ष नियुध, दण्ड युद्ध तथा घोष का प्रदर्शन करते स्वयंसेवक और राष्टï्र की नीधि और संघ की संस्कार निर्माण में भूमिका पर विचार प्रकट करते वक्ता। अवसर था राष्टï्रीय स्वयं सेवक संघ के संघ शिक्षा वर्ष द्वितीय वर्ष के समापन कार्यक्रम का। कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि स्वयंसेवक का त्याग एवं समर्पण तथा संघ की कार्य पद्धति राष्टï्र की अमूल्य निधि है। ज्ञान चरित्र और शौर्य के बल पर ही भारत दुबारा से विश्व गुरु के पद पर आरूढ़ होगा। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि अखिल भारतीय गो सेवा प्रमुख शंकरलाल ने राष्टï्र की वर्तमान अस्थिर स्थिति के लिए राजनीतिज्ञों की तुष्किरण नीति और आमजन मानस में उत्पन्न अस्थिर भाव को बताया।उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में ही विश्व का कल्याण निहित है। कार्यक्रम की अध्यक्षता ठोस एवं भौतिकी प्रयोगशाला, रक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र के पूर्व निदेशक हनुमानप्रसाद व्यास ने स्वयंसेवकों से कर्तव्य पथ पर अडिग रहने तथा राष्टï्रीय स्वयं सेवक के उद्देश्यों को पूरा करने की बात कही। संघ के जोधपुर के प्रांत कार्यवाह जसवंत खत्री ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम में सुबोधगिरिजी महाराज सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों ने भाग लिया। इस मौके पर स्वयंसेवकों ने सुरक्षा अभ्यास भी किया।217 प्रतिभागियों ने लिया प्रशिक्षणसंघ शिक्षा वर्ग द्वितीय वर्ष में कुल 161 स्थानों से आए 217 प्रतिभागियों ने विविध प्रशिक्षण लिए। 20 दिन की अवधि तक चले इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान वर्ग के सर्वाधिकारी प्रो। मनोहरलाल कालरा, पूर्व कुलपति कोटा विश्वविद्यालय रहे।

बुधवार, 23 जून 2010

गृह मंत्रालय ने अफज़ल गुरु की फांसी को दी हरी झंडी

गृह मंत्रालय ने संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफज़ल गुरु की दया याचिका खारिज करते हुए अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज दी है। इस तरह गुरु को फांसी देने का रास्ता साफ होता जा रहा है।

13 दिसंबर 2001 को संसद हमले में अफज़ल गुरु को दोषी पाया गया था, जिसके बाद स्थानीय अदालत ने उसे 18 दिसंबर 2002 में फांसी की सज़ा सुनाई थी।

29 अक्टूबर 2003 में दिल्ली उच्च न्यायलय ने भी अफज़ल को फांसी की सज़ा सुनाई थी। इसके बाद अफज़ल ने सुप्रीम कोर्ट में दया याचिका दायर की थी। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी दया याचिका को खारिज कर दिया था।

जिसके बाद अफज़ल गुरु की पत्नी तबस्सुम ने चार साल पहले राष्ट्रपति से दया की अपील की था। राष्ट्रपति ने गुरु की फाइल गृह मंत्रालय को सौंप दी थी। 2006 में गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार से इस विषय में राय मांगी थी। यह फाइल दिल्ली सरकार के पास पिछले चार साल से थी।

मंगलवार, 22 जून 2010

भारतीय संस्कृति विश्व की अनुपम संस्कृति - माननीय सुरेश चन्द्र, अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख





कुछ दृश्य जोधपुर प्रान्त के तिंवरी में संपन्न संघ शिक्षा वर्ग से


प्रदक्षिणा संचलन

योग प्रदर्शन का विडियो


समारोप समारोह में मुख्य वक्ता माननीय सुरेश चन्द्र , अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख ने अपने उधबोधन में कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व कि अनुपम संस्कृति में से एक है. हिन्दू संस्कृति ही सहिष्णु है वही बाकि संस्कृति असहिष्णु कट्टर , अधिनायकवादी है और वह समाप्ति के कगार पर है .
माननीय सुरेश चन्द्र जी ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने कहा - भारत भूमि हिन्दुओ की मातृभूमि पित्रभूमि यहाँ हमारी श्रेष्ट संस्कृति विकसित हुई , परन्तु जब जब हिन्दू कमजोर हुआ तब तब भारत पर संकट आए. अत: उन्होंने फिर संघ द्वारा हिन्दू शक्ति को एक होने, शक्तिशाली होने का बीड़ा उठाया मूल आधार था हिन्दू विचारधारा . जब जहाँ हिन्दू विचारधारा का प्रभाव घटा वहां देश कमजोर हुआ देश का वह हिस्सा देश से कटा.
संघ के कारण हिन्दू समाज अपने भेद-भाव भूलकर , विषमता छोड़कर सामाजिक सदभाव से रहने लगे है. उपस्थित जन समूह से उन्होंने आग्रह किया कि धर्म समाज के कार्यो में साधना करे सहयोग करे , इस कार्य को गति दे . संस्कार के इस पुनीत कार्यक्रम में आपका सहयोग मिलता रहे .
कार्यक्रम कि अध्यक्षता श्री भेरा राम सियोल ने की.
कार्यक्रम के मुख्य अथिति संत कृपाराम जी महाराज ने संघ शिक्षा वर्ग के चर्चा करते हुए स्वयंसेवको को कहा कि इस शिक्षण से अपने जीवन को शारीरिक , बौद्धिक कार्यक्रम के द्वारा जीवन परिवर्तन हुआ है और उससे देश को लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा की अगर अपनी संस्कृति को बचाना है तो पाश्चत्य तत्वों, विचारो, परम्परा, वेशभूषा तथा त्योहारों को छोड़कर अपनी संस्कृति को अपनाना होगा. पाश्चात्य संस्कृति को शहरीकरण ने बढाया है.
मातृशक्ति एवं अभिभावकों से उन्होंने आग्रह किया की अपने बच्चो को संस्कारित करे और संघ जैसे संघटनो में सक्रिय भागीधारी निभाए.
पूर्व में संघ शिक्षा वर्ग के वर्गाधिकारी मान. घनश्याम जी ओझा ने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया. महेंद्र जी दवे ने मंचासीन अथितियो का परिचय प्रस्तुत किया.
समारोप कार्यक्रम में धव्जारोहन के पश्चात घोष का नयनाभिराम, दंड युद्ध का सुन्दर प्रदर्शन हुआ. योगासन के द्वारा विभिन्न योग तथा आसन का प्रदर्शन हुआ. नियुद्ध , पद विन्यास , सूर्य नमस्कार, समता का भव्य प्रदर्शन हुआ.
सभी प्रदर्शनों का जिवंत वर्णन (commentary) मान. चन्द्र शेखर ,पाली विभाग प्रचारक द्वारा किया गया.

शनिवार, 19 जून 2010

कैंसर रोगियों के लिए गौमाता का आशीर्वाद

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहयोगी संगठन गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र द्वारा गाय के मूत्र से बनाई एक कैंसररोधी दवा को अमेरिकी पेटेंट हासिल हुआ है। इस दवा को अपने एंटी-जीनोटॉक्सिटी गुणों के कारण यह पेटेंट मिला है।"कामधेनु अर्क" नाम की इस दवा को अनुसंधान केंद्र तथा नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियर रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने मिलकर तैयार किया है। नीरी के एक्टिंग डायरेक्टर तपन चक्रवर्ती और अनुसंधान केंद्र के प्रतिनिधि सुनील मानसिंघका ने बताया कि री-डिस्टिल्ड काउ यूरिन डिस्टिलेट (आरसीयूडी) जैविक तौर पर नुकसानग्रस्त डीएनए को दुरूस्त करने में उपयोगी है। इस नुकसान से कैंसर समेत कई बीमारी हो सकती हैं।
उन्होंने बताया कि आरसीयूडी जीनोटॉक्सिटी के खिलाफ काम करता है, जो कोशिका के आनुवांशिक पदार्थ को होने वाली नुकसानदायक क्रिया है। मानसिंघका ने बताया कि इसके लिए तीन मरीजों पर शोध किया गया, जिनमें से दो को गले और गर्भाशय का कैंसर था। उल्लेखनीय है कि गो विज्ञान अनुसंधान केंद्र की दवा को तीसरी बार अमेरिकी पेटेंट मिला है। इससे पहले बायो-इनहैंसर विद एंटी- बायोटिक्स तथा एंटी -कैंसर ड्रग्स के लिए पेटेंट मिला था। कई गोशालाएं कामधेनु अर्क बनाकर दवा के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।

स्त्रोत : http://epaper.indianexpress.com//IE/IEH/2010/06/19/PagePrint/19_06_2010_011.pdf

शुक्रवार, 18 जून 2010

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक संपन्न


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गुरुवार, 17 जून 2010

राजा दाहरसेन का बलिदान दिवस मनाया

पाली 16 june 2010. भारतीय सिंधु सभा के तत्वावधान में समाज बंधुओं ने सिंधुपति राजा दाहरसेन का बलिदान दिवस मनाया गया। बुधवार को सिंधु धर्मशाला में आयोजित बलिदान दिवस कार्यक्रम में राजा दाहरसेन के व्यक्तिव एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया। सभाध्यक्ष शीतल भाई शीतल ने कहा कि दाहरसेन विश्व इतिहास के ऐसे सच्चे महापुरुष थे, जिन्होंने अंतिम सांस तक संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष कर प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। समाजसेवी सतराम दास इसराणी ने कहा कि विश्व के पहले जौहर का यदि उदाहरण मिलता है तो वह राजा दाहरसेन की रानी का ही है। पूर्व पार्षद ललित प्रीतमानी ने उनके आदर्शों को अपनी जीवन में उतारने का आव्हान करते हुए राष्ट्र सेवा के लिए हमेशा तैयार रहने की अपील की। इस अवसर पर सभा मंत्री राधाकिशन शिवनानी, तुलसीदास संभावनी, प्रकाश सीरवानी, ललित अंगनानी, भागु भाई खेमलानी, दयाल भाई, हेमंत परीवानी सहित कई वक्ताओं ने विचार व्यक्त कर सिंधुपति राजा को पुष्पांजलि अर्पित की।

बुधवार, 9 जून 2010

जनगणना के अंतर्गत जातिगणना सामाजिक समरसता एवम एकात्मता के प्रयासों को दुर्बल करेगी --- भैय्याजी जोशी, संघ के सरकार्यवाह

यह तो कबीलाई संस्कृति की वापसी है!

भारत राष्ट्र के नागरिकों को जनगणना के फार्म में उनकी जाति संबंधी ‘सही या गलत’ जानकारी भरने के लिए बाध्य किया जाए या नहीं, इस मुद्दे पर सरकार उलझन में है और कोई दृढ़ फैसला नहीं ले पा रही है। सरकार की परेशानी यह है कि वह देश को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप में एकजुट भी रखना चाहती है और राजनीतिक हितों के चलते अलग-अलग जातियों, उपजातियों में विघटित करने का जोखिम भी मोल लेना चाहती है। जनगणना के जरिए जातियों और उनके हिस्से पड़ने वाले हाड़-मांस के पुतलों की गिनती लगाकर राजनीतिक दल देश को अलग-अलग कबीलों में बांटने का इरादा रखते हैं। कबीलाई संस्कृति में अपने-अपने मवेशियों की अलग-अलग पहचान बनाए रखने के लिए उन्हें गर्म सलाखों से दागे जाने की परंपरा है। दुनिया में एक सशक्त आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित होने जा रहे भारत की पहचान राजनीति के निहित स्वार्थ अब जातियों और उपजातियों के एक समूह के रूप में कायम करना चाहते हैं। देश का राजनीतिक नेतृत्व दुनिया को शायद यह बताना चाहता है कि वर्ष १९३१ के बाद के पिछले अस्सी सालों में भारत में कुछ भी नहीं बदला है। यानी कि वैश्वीकरण की दौड़ में हमारी उल्लेखनीय भागीदारी भी केवल आर्थिक मजबूरियों के कारण से है। हमारे राजनीतिक इरादे तो पहले धर्म के नाम पर और अब उससे भी आगे बढ़कर जाति के नाम पर देश को विभाजित करने के ही रहे हैं, चाहे फिर जनता का बहुमत उसके कितना ही खिलाफ क्यों न हो। जनगणना के जरिए जाति संबंधी जानकारी हासिल करने का घोषित उद्देश्य समाज में पिछड़े, अति पिछड़े और वंचितों की पहचान कर उन्हें आरक्षण के लाभ के साथ-साथ उनके सामाजिक और आर्थिक अधिकार दिलाने का है। इससे किसी को ऐतराज भी नहीं होना चाहिए। पर इसके अघोषित उद्देश्य हाल-फिलहाल तक धर्म और अगड़ों-पिछड़ों में ही बंटे हुए वोट बैंक में और बारीकी से फाड़ करने के ही नजर आते हैं। जातिगत संख्या के आधार पर सत्ता में भागीदारी के लिए सौदेबाजी कर पाना राजनीतिक महत्वाकांक्षियों के लिए तब शायद ज्यादा आसान हो जाएगा। जनगणना के बहाने नागरिकों की जाति की पहचान के बाद धार्मिक फतवे, राजनीतिक दादागिरी और टिकटों के लिए सौदेबाजी में तब्दील होने लगेंगे। जाति-आधारित जनगणना का विचार ही पीछे देखते हुए आगे बढ़ते रहने का है। यह एक सर्वथा अलग मुद्दा है कि जनगणना को रास्ता बनाकर सामाजिक/आर्थिक लाभ प्राप्त करने की आकांक्षा से मचने वाले फर्जीवाड़ों की जांच के लिए किसी मशीन का ईजाद होना अभी बाकी है। प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह से सवाल पूछा जा सकता है कि वे अपने उत्तराधिकारियों के हाथों में किस तरह का भारत सौंपना चाहते हैं। दैनिक भास्कर द्वारा करवाया गया सर्वेक्षण अगर कोई पैमाना है तो देश की जनता के बहुमत ने तो अपना जवाब दे दिया है।


सरकार्यवाह श्री. भैया जी जोशी की नागपुर में 23/5/2010, रविवार को दोपहर में हुई प्रेसवार्ता का शब्दांकन

अभी इस समय जनगणना की तैयारी चल रही है। इसमें दो-तीन विषय हैं, जिन्हें मैं आपके सामने रखना उचित समझता हूँ। एक, इसी समय नेशनल पापुलेशन रजिस्टर बनाने की बात शुरू हुई है, यह तो बनेगा पर इसमें जो विदेशी नागरिक भारत के अन्दर बसते हैं, अवैध रूप से बसे हुए हैं, उनकी जानकारी भी इसमें आने की संभावना है। संघ का निवेदन है कि, माँग है सरकार के सामने कि इस नेशनल पापुलेशन रजिस्टर को और जो बहुउद्देश्यीय पहचान पत्र दिया जायेगा उसके लिए इसे आधार न मानें। 2003 में उस समय की सरकार ने एक नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स तैयार करने का निर्णय किया था, हमारी माँग है कि उसी को लागू किया जाये। और यह जो पहचान पत्र दिया जायेगा, जो नागरिकता का कानून है उसको आधार बनाकर ही दिया जाये। अन्यथा सम्भावना है कि बहुत से विदेशी नागरिकों को भी पहचान पत्र मिलेगा। इससे, हमें लगता है कि देश की अखण्डता और सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है, खतरा बन सकता है।
उसी के साथ-साथ एक और विषय जो मैं आपके सामने रखना उचित समझता हूँ कि जनगणना में जातिगणना की माँग भी चल रही है। अपने जो संविधान निर्माता डा. बाबा साहब अम्बेडकर जी और उनके समान ही विचार करने वाले लोगों ने जातिविहीन समाज की कल्पना की है। इस प्रकार जाति आधारित गणना उस भावना को छेद देने वाली है, ऐसा लगता है। संविधान ने आरक्षण के संदर्भ में- शेड्यूल्ड कास्ट्स, शेड्यूल्डस ट्राइब्स, यह जो सूत्र दिये हैं, इस प्रकार की जाति आधारित गणना करने से उन सूत्रों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता रहेगी तो ऐसा निर्णय होगा। हम अनुभव करते हैं कि कई प्रकार की संस्थाओं के द्वारा, व्यक्तियों के द्वारा, संगठनों के द्वारा सामाजिक समरसता और एकता बनाये रखने के लिए कई प्रकार के प्रयास चल रहे हैं। हमारा मानना है कि इस प्रकार की गणना करने से उन सारे प्रयत्नों को दुर्बलता होगी। इसलिए इस संदर्भ में भी बहुत कुछ विचार करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम पहले से ही जाति भावना से ऊपर उठकर समाज विचार करे, संगठित हो, ऐसा रहा है। समग्र समाज का संगठन करने का काम कई वर्षों से रहा है। उसमें हम मानते हैं कि इस प्रकार की भावनाएँ यदि विकसित होती हैं। तो कुल मिलाकर यह सामाजिक ताना-बना खतरे में आ सकता है। ठीक है कि हिन्दू समाज का ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ जिसको माना जाता है, जिसे ओ. बी. सी. कहा जाता है, उनके आरक्षण के संदर्भ में जो प्रावधान करने की बात है, उस पर अलग प्रकार से विचार हो, उसके मानदण्ड अलग से निर्धारित किए जायें। आज सारे देश में उसमें कोई समानता है, ऐसा दिखाई नहीं देता है। तो इस संदर्भ में भी बहुत गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता ध्यान में आती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाते, हमारी मांग है कि इसकी राष्ट्रीय स्तर पर बहस हो। भिन्न-भिन्न प्रकार के यह प्रश्न सामाजिक सद्भाव के प्रश्न हैं, सामाजिक जीवन से जुड़े हुए प्रश्न हैं और इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक समूहों से भी इसकी एक व्यापक बहस चलनी चाहिए, विचार-विमर्श होना चाहिए। और कोई भी निर्णय करने के पूर्व ऐसी सारी प्रक्रिया हो और उसके बाद निर्णय होना उचित रहेगा, ऐसा संघ मानता है। विशेष रूप से दो बातें, नेशनल पापुलेशन रजिस्टर बनाते समय विदेशी नागरिकों के संदर्भ में, उनके पहचान का प्रावधान नहीं है, तो निश्चित किया जाए। और मल्टी परपज आइडेन्टिटी कार्ड को देते समय भी इस पर विचार होना चाहिए। कानून बना हुआ है 2003 में, उसको ध्यान में लाकर इसको लागू करें और उसके आधार पर ही पहचान पत्र देना चाहिए। और जाति के बारे में अपनी बातें मैंने आपके सामने रखी।

प्रश्न 1. कुछ संघ परिवार के लोग हैं, वह बढ़चढ़कर ऐसी डिमांड कर रहे हैं। ............... गोपीनाथ मुंडे जो हैं .............?
उत्तर - राजनैतिक दल क्या सोचें और क्या कहें......... मैंने संघ की राय आपके सामने रखी।

प्रश्न 2. अपने जो लोग हैं, पोलिटिकल आर्डर में, उन तक विचार नहीं पहुँचा है ?
उत्तर - उनकी अपनी एक सोच है, उनका एक राजनैतिक क्षेत्र है, उसमें वे जैसा चाहें, उचित समझें, करें।इन प्रश्नों को उनके सामने रखा जायेगा। हमने आज तक, संघ की जो रीति है, संघ की जो सोच है, उसको आपके सामने रखा है। हम चाहते हैं कि देश इसके कारण, समरसता और एकात्मता के जो प्रयास हैं, जातिविहीन समाज की जो कल्पना है, उसको इसके कारण ठेस पहुँचने वाली है।

प्रश्न 3. इस सामाजिक सच्चाई को आप स्वीकार करेंगे कि आज भी समाज में विवाह आदि संबंध लेके तमाम चीजें जाति के आधार पर ही होती हैं। आजादी के बाद भी जातियों को लेकर डेमोग्राफी हुई है, उसमें OBC को लेकर आँकड़े अलग-अलग हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में यह कह चुका है कि हमारे पास इसका कोई एक फिगर नहीं है, तो अगर कोई एक्जैक्ट साइंटिफिक फिगर निकाली जाती तो उसमें क्या विरोध हो सकता है?
उत्तर - हमारा विरोध नहीं। मैंने कहा है इसमें कि, इसके बारे में भिन्न भिन्न प्रकार की बहस हो और सामाजिक समूहों की राय इसमें ली जाए और फिर इसका निर्णय करें। हमने कहा है कि मापदण्ड निर्धारित किए जायें, OBC के आरक्षण के विरोध का तो सवाल ही नहीं आता।

प्रश्न 4. कास्ट -बेस्ड सेंसस नहीं होना चाहिए ये आपका कहना है ?
उत्तर - हाँ, कास्ट-बेस्ड नहीं होना चाहिए । ओ. बी. सी. का मतलब ही ‘अदर बैकवर्ड क्लास’ है तो क्लास के आधार पर ही इसे सेटल्ड भी किया जाए, इस पर विचार किया जाए।

प्रश्न 5. सेंसस की तैयारी चली, यह चालू भी हो गई, एक राउंड हो भी रहा है, आप इतना लेट अभी ........ संघ इतना ........?
उत्तर - इसकी बहस अभी शुरू हुई है। 1930 से लेकर आज तक कभी कास्ट को लेकर सेंसस नहीं हुआ है, पहली बार यह मांग उठी है। जब पहली बार यह मांग उठी......

प्रश्न 6 नहीं, SC, ST, तो पूछा जाता है .....
उत्तर - तो उतना ही, .........., कैटेगरी ही पूछी है, कास्ट नहीं पूछी। शेड्यूल्ड कास्ट पूछा है, शेड्यूल्ड ट्राइब पूछा है, उसका कोई संबंध नहीं है। आज सभी की जातियाँ जानने की कोशिश हो रही है।
प्रश्न 7 संसद में यह बात निकली है, पार्टीयों में कन्सेन्सस हो गया है। उसके काफी दिन बाद, एक महीने बाद यह....?
उत्तर - उसमें दो प्रकार के ओपिनियन आ रहे हैं। कोई विरोध करने वाले भी उसी प्रकार खड़े हैं, सभी दलों में से हैं। कास्ट के अनुसार जनगणना करना, उसका विरोध करने वाले भी हैं।

प्रश्न 8. मैं सीधे-सीधे एक प्रश्न यह पूछना चाहता हूँ कि क्या भा. ज. पा. से चर्चा हुई है, नहीं हुई है तो क्या चर्चा कर रहे हैं?
उत्तर - भा. ज. पा. से इस बारे में चर्चा करने की हमको बहुत ज्यादा आवश्यकता है। संघ ने इस बारे में जो सोचा है, प्रारंभ से जो चिंतन हमारा है, उसको मैंने आपके सामने रखा।

प्रश्न 8. आपका अर्थ है कि केवल कैटेगरी पूछी जाये? एस. सी., एस. टी ............?
उत्तर - एस. सी., एस. टी. पूछने का तो विरोध है ही नहीं, वह संविधान में दिया हुआ अधिकार है। उसके बारे में स्थिति स्पष्ट है।
एस. सी., एस. टी. , ओ. बी. सी. पूछने का विरोध नहीं ? ...
उत्तर - हाँ, ओ. बी. सी. का कोई स्टैण्डर्ड कहाँ बना हुआ है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग जातियाँ हैं। किस आधार पर ओ. बी. सी. का काउंटिंग किया जाये? उसका कोई निर्धारण नहीं किया है। इसलिये हमने माँग की है कि जरा इसके मानदण्ड निर्धारित करें और बाद में करें।

प्रश्न 10. मानदण्डों के बारे में आपका कोई सुझाव है क्या?
उत्तर - नहीं हमारा कोई सुझाव नहीं है। जब चर्चा चलेगी, तब इसके बारे में सोचकर बतायेंगे।

प्रश्न 11. यानि आप कहते हैं कि पहले बहस हो, उसमें जो निकले, उस पर ही?
उत्तर - उसी से। राष्ट्रीय स्तर पर इसकी बहस होनी चाहिए। इस प्रकार के बड़े कार्य की बात आप करने जा रहे हो और इसकी चर्चा कहीं पर नहीं हुई है। हमारी इच्छा है, हमारी अपेक्षा है कि शासन राष्ट्रीय स्तर पर इसकी बहस चलाये, भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक समूहों से चर्चा करे। विचार-विमर्श करके इस बारे में निर्णय हो। उचित वही होगा, सबकी राय ली जाये।

प्रश्न 12. एक दूसरा मुद्दा है, अवैध रूप से बसे हुए विदेशी नागरिकों को पहचान पत्र देने का प्रावधान नहीं है, इसमें ओरिजिनल एक्ट है और एक आई. एम. डी. टी. एक्ट भी है?

उत्तर - नहीं, यह जो नेशनल पापुलेशन रजिस्टर बन रहा है, उसमें नहीं है। उसके आधार पर वह आइडेन्टिटी कार्ड देते हैं तो समस्या है। आइडेन्टिटी कार्ड देते समय इस पर विचार किया जाय।

प्रश्न 13. अवैध रूप से आकर बसे हुए जो लोग हैं, 3.5 करोड़ - 4 करोड़ उनकी संख्या बतायी जाती है?
उत्तर - सभी आज इसको स्वीकार करते हैं कि बहुत से अवैध विदेशी नागरिक हैं भारत में। उनकी भी इसमें अगर ........ नेशनल सिटिजन्स में आ जाते हैं तो खतरा है। चलिए, धन्यवाद आपका।

मंगलवार, 8 जून 2010

तृतीय संघ शिक्षा वर्ग से ...............

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शुक्रवार, 4 जून 2010

इस फैमिली पर कुछ कहना नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै!


इस फैमिली पर कुछ कहना नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै!
4 Jun 2010, 0638 hrs IST,नवभारत टाइम्स
भारत में सबसे मुश्किल क्या है? नेहरू-गांधी फैमिली पर फिल्म बनाना या किताब लिखना। हाल का ट्रेंड तो यही कहता है। फिल्मकारों और लेखकों
े उम्मीद की जाती है कि वे वही कहेंगे, जो परिवार को नागवार न लगे। अपनी इज्जत से छेड़छाड़ उसे जरा भी बर्दाश्त नहीं।

सारी नहीं, सॉरी कहो
सबसे ताजा वाकया है स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की किताब एल सारी रोसो यानी द रेड सारी का। सोनिया गंधी की जिंदगी पर लिखी गई यह नॉवेल नुमा किताब 2008 में छपी थी। इटैलियन, फ्रेंच और डच में इसकी दो लाख से ज्यादा कॉपियां बिक चुकी हैं और अब इसका इंगलिश ट्रांसलेशन छपने के लिए तैयार है। मोरो और उनके पब्लिशर्स को लीगल नोटिस मिला है, जिसमें किताब वापस लेने को कहा गया है।

क्या है किताब में
किताब के टाइटल में जिस लाल साड़ी का जिक्र है, उसे लेखक के मुताबिक पंडित नेहरू ने जेल में बुना था और सोनिया ने अपनी शादी के दिन पहना था। यह कहानी है, इटली के एक छोटे से गांव में पैदा हुई लड़की के हैरतअंगेज सफर की जिसे पावर तो मिली, लेकिन मौतों के सिलसिले से गुजरकर। किताब का सब-टाइटल है- लाइफ इज द प्राइस ऑफ पावर यानी ताकत की कीमत है जिंदगी।

क्या कहना है वकीलों का
इस केस की अगुआई कर रहे सीनियर वकील और कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और उनके सहयोगियों का कहना है कि किताब में बेमतलब के और मनगढ़ंत किस्से रचे गए हैं। सब कुछ ऐसे पेश किया गया है, जैसे वाकई हुआ हो। मोरो इसे बायोग्राफी बताकर बेच रहे हैं, जिससे गलत इमेज बनती है। किताब में संजय गांधी को गालियां बकते और सोनिया को राजीव की मौत के बाद इटली चले जाने की सोचते दिखाया गया है। न सिर्फ यह किताब झूठ का पुलिंदा है, बल्कि इसे सच बताकर पेश किया गया है। मामला नेहरू-गांधी फैमिली की इज्जत से खिलवाड़ का बनता है।

क्या कहना है मोरो का
मोरो का दावा है कि यह एक उपन्यास है, हिस्ट्री नहीं। उनका कहना है कि कांग्रेस तो चाहेगी कि सोनिया को दिल्ली में पैदा हुई ब्राह्मण बताया जाए।

राजनीति या अनीति
आज रिलीज हो रही प्रकाश झा की फिल्म राजनीति को कांग्रेस की टेढ़ी नजर का सामना करना पड़ा है। हालांकि नेहरू-गांधी फैमिली ने सीधे कुछ कहने से परहेज किया है, लेकिन कांग्रेसी अपनी नाराजगी छुपा नहीं रहे हैं। माना जाता है कि फिल्म में काट-छांट की गई है। झा सेंसर की सख्ती से खफा हैं।

क्या कहा , सोनिया ?
इमर्जेंसी के दिनों में ' किस्सा कुर्सी का ' बनाकर सरकार का डंडा खा चुकेजगमोहन मूंदड़ा का इरादा सोनिया पर इसी नाम से फिल्म बनाने का था।सोनिया के रोल के लिए इटैलियन एक्ट्रेस मोनिका बलुची को साइन भी करलिया गया ा। फिर मूंदड़ा ने सोनिया से मुलाकात की और कुछ ही दिनबाद उन्हें सिंघवी का नोटिस मिल गया। बरस हो गए , इस फिल्म काजिक्नहीं हुआ।

नई मदर इंडिया
फिल्मकार कृष्णा शाह का इरादा ंदिरा गांधी पर एक फिल्म बनाने का है।इसका नाम होगा - मदर : इंदिरा गांधी स्टोरी। कहते हैं कि शाह ने इंदिराके रोल के लिए माधुरी दीक्षित से बात की , लेकिन माधुरी ने क्या कहा , यहकिसी को नहीं पता। इस फिल्म को 2011 में रिलीज करने की बात थी ,ेकिन कौन जानता है क्या हंगामा खड़ा हो जाए। हुए बिना रह जाए , ऐसातो नहीं हो सकता।

हॉट समर
फिल्मकार जो राइट ने इंडियन समर नाम से फिल्म बनाने की तैयारी लगभगपूरी कर ली थी। यह भारत के आखिरी गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन औरउनकी पत्नी एडविना की हानी है। एडविना से पंडित नेहरू के लव अफेयरका जिक्र भी इसमें होता , लिहाजा भारत सरकार को शक हुआ। उसने फिल्मकी स्क्रिप्ट ांगी। फिलहाल यह प्रोजेक्ट अटका पड़ा है। केट ब्लेंशेट को इसमेएडविना का रोल करना था।

03 जून 2010 आईबीएन-7 स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की किताब ‘द रेड साड़ी’ सोनिया गांधी की जिंदगी पर आधारित है। ये किताब भारत में आने से पहले ही विवादों से घिर गई है। कांग्रेस पार्टी को किताब की कुछ पंक्तिओं पर ऐतराज है और कांग्रेस चाहती है कि देश में किताब पर पाबंदी लगा दी जाए। कांग्रेस की तरफ से इस किताब के लेखक को कानूनी नोटिस भी भेजा गया है। मोरो की कलम से लिखी सोनिया गांधी की जिंदगी पर आधारित ये किताब स्पेन में 2008 से ही बिक रही है। अब इसके अंग्रेजी अनुवाद को भारत में बेचने की तैयारी च रही है। मोरो ने राजीव गांधी की बर्बर हत्या के बाद के पलों को सोनिया गांधी की नजरों से देखने की कोशिश की है। वो लिखते हैं ‘कि राजीव की मौत से सोनिया को झकझोर कर रख दिया और उसके बाद ही वो सब कुछ समेट कर वापस अपने मुल्क जाने की सोचने लगीं।’ जाहिर है सोनिया गांधी की ये छवि उनकी मौजूदा छवि से मेल नहीं खाएगी। कांग्रेस के नेता ये नहीं चाहेंगे कि सोनिया गांधी की एक ऐसी छवि जनता के बीच जाए जो पति की हत्या के बाद बहादुरी से हालात का सामना करने के बजाय, पति के ही देश को अपना देश बनाकर उनकी यादों को यहीं संजोने, अपने बच्चों को यहीं बड़ा करने के बजाय वापस अपने मुल्क लौट जाने की सोचने लगी थीं। आज राजीव का सपना पूरा हुआ: सोनिया गांधी ‘द रेड साड़ी’ किताब का इटालवी, फ्रेंच और डच भाषा में अनुवाद हो चुका है। मोरो का दावा है कि अब तक उनकी किताब ‘एल साड़ी रोज़ा’ की करीब ढाई लाख प्रतियां बिक भी चुकी हैं। ज़ाहिर है सोनिया की जिंदगी अतर्राष्ट्रीय ‘बेस्टसेलर’ के दर्जे में पहुंच रही हैं। लेकिन किताब पर तूफान सिर्फ राजीव गांधी की हत्या के बाद के पलों पर ही नहीं उठ रहा है बल्कि कांग्रेस की नाराजगी किताब में दर्ज सोनिया की शुरुआती जिंदगी के कई पन्नों पर भी है। यानि सोनिया का बचपन और इटली में बिताए गए कई अहम पल। साफ है कांग्रेस सोनिया के नाम के साथ कोई खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करने वाली। इसलिए कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मोरो को कानूनी नोटिस थमा दिया है। ये किताब नहीं एक तूफान है। कांग्रेस को डर है कि इसमें लिखी कुछ बातें अगर दुनिया के सामने आ गईं तो विरोधियों को बोलने का मौका मिल जाएगा। कांग्रेस पार्टी ये नहीं चाहेगी कि सोनिया की जिंदगी के कुछ अनछूए पहलू दुनिया के सामने आए। इसलिए कांग्रेस इस किताब को भारत में नहीं आने देना चाहती।

जयपुर.el sati rojoपहले ‘जयपुर फुट’, फिर ‘भोपाल में आधी रात’ और अब ‘द रेड सारी’। लाल साड़ी (स्पेनिश नाम- एल सारी रोज़ो) जेविएर मोरो की वह ताजा पुस्तक है, जिसने कांग्रेस के भीतर आतंक की लहर सी छेड़ दी है। पुस्तक में कांग्रेसियों को सत्ता का भूखा बताया गया है।। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी तक ने लेखक को कानूनी नोटिस भेजकर पुस्तक के भारत में प्रकाशन से रोका है। पुस्तक तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतंगमय उपनिषद वाक्य से शुरू की गई है। इसके बाद कहानी शुरू होती है 24 मई 1991 के दिन से, जब राजीव गांधी का अंतिम संस्कार किया जा रहा था।

लाल साड़ी ही क्यों?

राजीव की हत्या के बाद जब सोनिया ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद ठुकरा दिया तो कांग्रेसी नेता उनके पास गए और उनके घर में लगी उनकी एक तस्वीर की तरफ इशारा किया। सोनिया जी, इस फोटो को देखो। देखो ये लाल साड़ी, जो आपने शादी के दिन पहनी थी, इसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने चरखे पर कातकर तैयार किया था। इसी संदर्भ को उठाते हुए लेखक ने पुस्तक का नाम लाल साड़ी (द रेड सारी) रखा।

इस पर सोनिया ने जवाब दिया : हां, लेकिन यह मत भूलो कि मैं एक विदेशी हूं। इस पर कांग्रेसी नेताओं ने तर्क दिया : मैडम, आप ऐनी बिसेंट को याद कीजिए। कांग्रेस की प्रमुख नेता। उन्होंने पार्टी का नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर किया था। वे आयरिश थीं। आप इटली की हैं तो क्या हुआ? विचार बुरा नहीं है। लेकिन सोनिया बोलीं : आई एम सॉरी। आप गलत दरवाजा खटखटा रहे हैं।

पुस्तक के विवादित अंश

एक पुजारी ने सोनिया को राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में शामिल होने से यह कहकर रोक दिया था कि विधवाओं को ऐसे में दूर रहना होता है। और फिर वे तो दूसरे धर्म की हैं।

सोनिया जब पहली बार राजीव के साथ भारत आईं तो वे यह जानकर हैरान रह गईं कि इस देश में सती प्रथा जैसी बर्बर कुरीतियां हैं।

राजीव की हत्या के तत्काल बाद सोनिया ने अपनी बहन अनुष्का से आशंका जताई कि यह कुकृत्य इंदिरा के हत्यारे सिखों, गांधीजी की हत्या करने वाले हिंदू कट्टरपंथियों या कश्मीर के मुस्लिम अतिवादियों जैसों में से किसी का हो सकता है।

सोनिया ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद सुरक्षा कम किए जाने पर बेहतर सुरक्षा के लिए दबाव बनाया तो राजीव बोले : अगर वे तुम्हें मारना ही चाहते हैं तो मारकर ही रहेंगे।

राजीव की हत्या के तत्काल बाद सोनिया की मां ने फोन करके उन्हें कहा : बेटी तुम्हें इटली वापस लौट आना चाहिए। सोनिया खुद भी सोचने लगीं थी कि अब यहां रुकने का मतलब ही क्या है?

-राजीव गांधी सुरक्षा को लेकर पहले ही चिंतित थे। एक बार उन्होंने बच्चों को मास्को के अमेरिकन स्कूल में भर्ती कराने का फैसला कर लिया था, लेकिन सोनिया बच्चों को अपने पास ही रखना चाहती थीं।

-सोनिया ने कांग्रेसी नेताओं को फटकारा था : ये तो इंदिरा गांधी दबाव नहीं डालतीं तो राजीव भी राजनीति में नहीं आते। वे पायलट ही अच्छे थे। ऐसा होता तो आज वे हमारे बीच होते।

-कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें अध्यक्ष पद के लिए बार-बार जिम्मेदारी के लिए कहा तो सोनिया बोलीं : जिम्मेदारी? इस परिवार को ही बार-बार अपना खून देकर इस देश के लिए अपनी जिम्मेदारी क्यों निभानी चाहिए? क्या आपका दिल इंदिरा और राजीव के खून से भी नहीं भरा है? क्या अभी आप और भी चाहते हैं?

कांग्रेसी नेता : आप ही भारत हैं। आपके परिवार के बिना हम कुछ भी नहीं। आपके ही हाथों में आज गांधी-नेहरू का वो दीपक है, जो देश को अंधेरे में रोशनी दिखा सकता है।

कांग्रेसी नेताओं पर तीखे कटाक्ष

कांग्रेसी नेताओं ने सोनिया के दुख की घड़ी में भी ये नहीं सोचा कि उनके सीने में एक इनसान का दिल धड़क रहा है। उन्होंने बिना एक क्षण भी विलंब किए, सोनिया के जरिए अपने व्यक्तिगत सत्ता को सुरक्षित करने की चिंता की।

-भारत में सत्ता ऐसा चुंबक है, जिससे बचना किसी के लिए संभव नहीं। कांग्रेसी नेता इतने चालाक निकले कि उन्होंने सोचा तारीफों के जरिए सोनिया गांधी अंतत: मान ही जाएंगी। अपने लिए न सही, अपने बच्चों के लिए और अपने गांधी-नेहरू परिवार के नाम के लिए।

-सोनिया गांधी बचपन से ही दमे की मरीज है। उन्होंने अपने कुत्ते का नाम स्टालिन रखा था।

-सोनिया की मां पाओला एक पुलिस वाले की बेटी हैं और वे अपने दादा का बार संचालित करती थीं।

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित