शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

हिंदुस्तान की महान विरासत का उत्सव - राजा कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक का ५०० वां वर्ष





राजा कृष्णदेव राय की प्रतिमा


राजा कृष्णदेव का इक चित्र
विजयनगर साम्राज्य एवं राजा कृष्णदेव राय के 500 वें राज्याभिषेक का आज शुभदिन है । कर्नाटक में इस त्रिदिविसीय समारोह के रूप में मनाया जा रहा है।
सर्वश्रेष्ठ राजा, महान शासक और एक न्याय-पुरुष।’ यह लिखा था सोलहवीं शताब्दी में भारत की यात्रा पर आए एक पुर्तगाली यात्री डॉमिंगोज पेस ने। राजा थे कृष्णदेव राय, जो १५क्९ में विजयनगर की गद्दी पर बैठे थे और चालीस की उम्र में किसी अज्ञात बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके गद्दी पर बैठने के लगभग आधी सहस्राब्दी के बाद उनके राज्याभिषेक का उत्सव मनाया जा रहा है।वे महान योद्धा थे, लेकिन एक योग्य प्रशासक, सहिष्णु राजनीतिज्ञ और कलाओं के महान संरक्षक भी थे। 20 साल की अवधि में कृष्णदेव राय ने विजयनगर को एक विशालकाय साम्राज्य में तब्दील कर दिया था। उनके राज्य की राजधानी और अब विश्व की विरासतों में से एक हम्पी में कृष्णदेव राय की महानता घुली-मिली है। वस्तुत: लगातार हम्पी की तुलना अब रोम से की जाती है।उनके समय में दक्षिण भारत की कला और स्थापत्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था। वास्तव में यहां के मिले-जुले स्थापत्य में हिंदू और इस्लामिक, दोनों ही कलाओं के तत्व मिलते हैं। हम्पी के लोटस महल में इस कला के दर्शन किए जा सकते हैं। भले ही कर्नाटक ने उनके राज्याभिषेक के ५०० वें varsh का समारोह मनाने की पहल की हो, लेकिन उनकी कभी न खत्म होने वाली महानता के दर्शन आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी किए जा सकते हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र इसे समारोह पूर्वक मनाये ।

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बुधवार, 27 जनवरी 2010

चला गया यह गणतंत्र दिवस - फिर आएगा फिर मनाएंगे

६० वर्ष पूर्ण हो गए हमारे गणतंत्र दिवस को । हर वर्ष आता है और हम हर वर्ष मनाते भी है । बड़ी बड़ी बातें कर जाते है देश को नसीहते दे जाते है । धरातल से परे बातें अच्छी कर जाते है । प्रिंट एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया को मिल जाता है मसाला हमें परोसने का । आम जन का जुडाव सच्चे मन से कम होता लगता है यह कडवा सच है । और इस कडवे सच की परिणिति भयावह होगी । जिस देश में राष्ट्रीयता की भावना में जब जब कमी आई है तब तब उसे परिणाम भुगतने पड़े है ।


कारणों की तह में जायेंगे , बहुत कारण मिल जायेंगे - मगर निराकरण कैसे होगा ? इस देश को सत्तालोलुपता की भयावहता से बचाना होगा । सत्ता की खातिर राष्ट्र की संप्रभुता से खिलवाड़ , तुष्टिकरण को गले लगाकर राष्ट्र धारा में आने की चाहत को रोकना , आपस में गहरी खाई पैदा करने की साजिश ताकि आम जन इन समस्याओ को ही देख पाए इससे ऊपर उसे सोचने का अवसर ही नही मिल पाए।


दिल में दर्द क्यों नही होगा जब यह जानकारी मिलती है कि श्रीनगर के लाल चौक में १९ वर्षो में पहली बार राष्ट्र ध्वज नही फहराया गया। मुझे जहाँ तक याद आता है १९९० मेंअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने उस समय कि विषम परीस्थितियों में आन्दोलन के तहत लाल चौक में जान की परवा न कर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की मंशा तय की थी मगर तत्कालीन सरकार ने इस राष्ट्रवादी संगटन को इज़ाज़त नही । उधमपुर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओ को गिरफ्तार कर लिया गया था । विद्यार्थी परिषद् को श्रीनगर जाकर राष्ट्रीय ध्वज पहराने से रोका गया । ऐसा तो होता है इस देश में।
१९९१ में मुरली मनोहर जोशी ने लाल चौक के घंटाघर में तिरंगा फहराया तब से हर वर्ष गणतंत्र दिवस तथा स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता ।
इस सरकार को ऐसा कैसा लगा की कश्मीर में सब सामान्य सा हो गया है इस लिए सेना वापसी का निर्णय लिया , १९ वर्षो से लहरा रहा तिरंगा इस बार नहीं लहराया यह तो असामान्य ही है।
हमें इस विषय को हल्का नहीं लेना चाहिए इस तरह करते रहे तो नापको के होसले बुलंद होते रहेंगे।
होसले किसके बुलंद हो रहे साफ़ जाहिर हो रहा है तभी तो इस बार हमारे श्रीनगर की लाल चौक की आँखे नम है क्योंकि इस गणतंत्र दिवस पर उसके सीने पर राष्ट्रीय ध्वज नही लहरा ।

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

पाथेय कण रजत जयंती वर्ष के अंतर्गत पाली में पत्र लेखन अभ्यास वर्ग संपन्न




पाली । पाथेय कण रजत जयंती वर्ष के अंतर्गत रास्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार विभाग द्वारा पाली विभाग का पत्र लेखन अभ्यास वर्ग का आयोजन किया गया।
पत्र लेखन अभ्यास वर्ग में पाली विभाग प्रचारक चंद्रशेखर जी ने संघ के प्रचार विभाग के बारे में तथा पत्र लेखन के महत्व के बारे में बतलाया।
प्रचार विभाग के निखिल व्यास ने बतलाया कि पत्र लेखन कला की बारीकियों के बारे में पत्रकार श्री प्रमोद जी श्रीमाली तथा लेखक श्री विष्णु प्रसाद चतुर्वेदी ने दो सत्र लिए।
विभाग प्रचार प्रमुख मेघराज बम्ब ने अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया।

बुधवार, 20 जनवरी 2010

ये देश का क्या हाल करना चाहते हैं? तुष्टिकरण की नीति से आख़िर क्या हासिल करना चाहती हैं कांग्रेस सरकार

ऊपर आप पढ़ सकते है इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर की क्लिप - आप क्या सोचते है इस बारे में ?


जोधपुर । इंडियन एक्सप्रेस के १९ जनवरी के अंक में छपी एक ख़बर ने फिर देश की जनता को यह बतला दिया है की कांग्रेस सरकार की नीति देश हित की कभी हो नही सकती। उसका हित तो तुष्टिकरण की नीति से अपना वोट बैंक का हित साधने में ही है ।

इंडियन एक्सप्रेस के सवांददाता श्री जे पी यादव ने अपनी ख़बर में लिखा है कि भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री सी पी जोशी ने तय किया की, मुस्लिमो को बीपीएल में शामिल किया जाएगा । लेकिन मुस्लिम शब्द कही परेशानी खड़ी न करदे इसलिए मुस्लिम शब्द को मायानोरीटी से बदलने कि इक साजिश रची है। मगर कांग्रेस कि मंशा साफ़ जाहिर हो रही है कि वो मुस्लिम तुष्टिकरण में ही अपना, अपने नेताओ और देश का हित समझती है और देश की जनता को मात्र बेवकूफ । और माने भी क्यों नही , क्योंकि इस देश कि जनता रहती भी तो बेखबर हैं। मगर कर रहे हम ख़बर की समय रहते नही चेते तो आपके अपने अधिकार जिनके आप है हकदार छीनते चले जायेंगे यह मुस्लिम तुष्टिकरण के ठेकेदार




मंगलवार, 19 जनवरी 2010

19 janvari 1990 kya bhula payega is din ko Hindusthan

strot:rajasthan patrika


नक्शा बदलने की साजिश

दैनिक जागरण 11,January,2010 तरुण विजय

अगले सप्ताह 19 जनवरी को कश्मीरी हिंदुओं के घाटी से निष्कासन के दो दशक पूरे हो जाएंगे। यह तिथि किसी उत्सव की नहीं, मरते राष्ट्र की वेदनाजनक दुर्दशा की द्योतक है। अपने ही देश में नागरिकों को शरणार्थी बनना पड़ा है, इससे बढ़कर धिक्कारयोग्य तथ्य और क्या हो सकता है? बीस साल पहले घाटी में अचानक 19 जनवरी के दिन ये ऐलान होने शुरू हुए थे। इनमें कहा गया था कि ऐ पंडितों, तुम अपनी स्त्रियों को छोड़कर कश्मीर से भाग जाओ। इससे पहले लगातार कश्मीरी हिंदुओं की हत्याओं का दर्दनाक सिलसिला शुरू हो चला था। भाजपा नेता टीकालाल थप्लू, प्रसिद्ध कवि सर्वानंद और उनके बेटे की आंखें निकालकर हत्या की गई। एचएमटी के जनरल मैनेजर खेड़ा, कश्मीर विश्वविद्यालय के वाइस चासलर मुशीरुल हक और उनके सचिव की हत्याओं का दौर चल पड़ा था। जो भी भारत के साथ है, भारत के प्रति देशभक्ति दिखाता है, उसे बर्बरतापूर्वक मार डालने के पागलपन का दौर शुरू हो गया था। कश्मीरी हिंदू महिलाओं से दुष्कर्म के बाद उनकी हत्याओं का सिलसिला जब रुका नहीं तो 19 जनवरी के दहशतभरे ऐलान के बाद हिंदुओं का सामूहिक पलायन शुरू हुआ। यह वह वक्त था जब जगमोहन ने राज्य के गवर्नर पद की कमान संभाली ही थी कि उनके विरोध में फारुक ने इस्तीफा दे दिया, फलत: राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा। राजनीतिक कारणों से ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया गया मानो दिल्ली का विदेशी शासन कश्मीर पर थोपा जा रहा है और कश्मीरी हिंदू दिल्ली के हिंदू राज के एजेंट हैं। जेकेएलएफ, हिजबुल मुजाहिदीन और तमाम मुस्लिम समूह एकजुट होकर हिंदू पंडितों के खिलाफ विषवमन करने लगे। ऐसी स्थिति में घाटी से हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा।

घाटी के हिंदुओं पर यह कहर पहली बार नहीं टूटा था। 14वीं सदी में सिकंदर के समय, फिर औरंगजेब के राज में और उसके बाद 18वीं सदी में अफगानों के बर्बर राज में हिंदुओं को घाटी से निकलना पड़ा था। उनकी रक्षा में गुरु तेग बहादुर साहेब और तदुपरात महाराजा रणजीत सिंह खड़े हुए थे, तब जाकर हिंदू वापस लौट पाए थे। इस बार उनकी रक्षा के लिए कोई खड़ा नहीं होता दिखा, सिवाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उनसे जुड़े संगठनों के। जिन मुस्लिम जिहादियों ने उनको कश्मीर छोड़ कर पलायन के लिए मजबूर किया वे बाहरी नस्ल के नहीं, बल्कि वे लोग थे जिनके पूर्वज, भाषा, रंग-रूप, खान-पान और पहनावा सब कश्मीरी हिंदुओं जैसा ही था। केवल मजहब बदलने के कारण वे अपने ही रक्तबंधुओं के शत्रु क्यों हो गए, इस प्रश्न का उत्तर खोजना चाहिए। आखिर एक नस्ल, एक खून, एक बिरादरी होने के बावजूद केवल ईश्वर की उपासना के तरीके में फर्क ने यह दुश्मनी क्यों पैदा की? इसके अलावा एक और तथ्य यह है कि कश्मीर भारत का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य है और वहा ही अल्पसंख्यक हिंदुओं को भारी अत्याचार तथा अपमानजनक निष्कासन का शिकार होना पड़ा। क्या मुस्लिम बहुल राज्य का अर्थ यह है कि वहा अल्पसंख्यकों के लिए कोई अधिकार नहीं? भारत के अन्य हिंदू बहुल राज्यों में कई बार मुस्लिम मुख्यमंत्री हुए हैं, परंतु क्या कोई कल्पना कर सकता है कि एक दिन कश्मीर में भी कोई हिंदू मुख्यमंत्री बन सकेगा? बल्कि हुआ उल्टा ही है। मुस्लिम बहुल कश्मीर अपने अन्य हिस्सों लद्दाख तथा जम्मू के साथ योजनाओं और विकास के कार्यक्रमों में भारी सांप्रदायिक भेदभाव करता है। पिछले दिनों श्री अमरनाथ यात्रा के लिए श्रीनगर के सुल्तानों ने एक इंच जमीन देने से भी मना कर दिया था, फलस्वरूप राज्य के इतिहास का सबसे जोरदार आंदोलन हुआ और सरकार को अपने शब्द वापस लेने पडे़। जम्मू का क्षेत्रफल 26293 वर्ग किलोमीटर है, जबकि घाटी का मात्र 15948 वर्ग किलोमीटर। जम्मू राज्य का 75 प्रतिशत राजस्व उगाहता है, कश्मीर घाटी सिर्फ 20 प्रतिशत। जम्मू में मतदाताओं की संख्या है 3059986 और घाटी में 2883950, फिर भी विधानसभा में जम्मू की 37 सीटें हैं, जबकि घाटी की 46। इस प्रकार श्रीनगर भारत में ही अभारत जैसा दृश्य उपस्थित करता है। उस पर कश्मीर को और अधिक स्वायत्तता दिए जाने की सिफारिश करने वाली सगीर अहमद रिपोर्ट ने राज्य के भारतभक्तों के घाव पर नमक ही छिड़का है। यदि 1947 में भारत द्विराष्ट्र सिद्धात का शिकार होकर मातृभूमि के दो टुकड़े करवा बैठा था तो सगीर अहमद रिपोर्ट तीन राष्ट्रों के सिद्धात का प्रतिपादन करती है। यह रिपोर्ट डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे देशभक्तों के बलिदान को निष्प्रभावी करने का षड्यंत्र है। इस रिपोर्ट का जम्मू और लद्दाख में भारी विरोध हो रहा है, क्योंकि न केवल इस रिपोर्ट के क्रियान्वयन के बाद जम्मू-कश्मीर का शेष भारत के साथ बचा-खुचा संबंध भी समाप्त हो जाएगा, बल्कि हिंदुओं और बौद्ध नागरिकों के साथ भयंकर भेदभाव के द्वार और खुल जाएंगे। फिर हिंदू कश्मीरियों के वापस घर जाने की सभी संभावनाएं सदा के लिए समाप्त हो जाएंगी।

इस रिपोर्ट में केवल मुस्लिमों को केंद्र में रखकर समाधान के उपाए सुझाए गए हैं, जिसका अर्थ होगा पकिस्तान के कब्जे वाले गुलाम कश्मीर की वर्तमान स्थिति स्वीकार कर लेना और संसद के उस प्रस्ताव को दफन कर देना, जिसमें पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने की कसम खाई गई थी। वीर सैनिकों का बलिदान, कश्मीरी देशभक्तों द्वारा सही गई भीषण यातनाएं, हजारों करोड़ों के राजस्व के व्यय के बाद समाधान यह निकाला गया तो उसके परिणामस्वरूप भारत का नक्शा ही बदल जाएगा। छोटे मन के लोग विराट जिम्मेदारियों का बोझ नहीं उठा सकते। क्या अपने ही देश में शरणार्थी बने भारतीयों की पुन: ससम्मान घर वापसी के लिए मीडिया और समस्त पार्टियों के नेता एकजुट होकर अभियान नहीं चला सकते? क्या यह सामान्य देशभक्ति का तकाजा नहीं होना चाहिए?

[तरुण विजय: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

Hindus remember 19th January - Kashmiri Hindu Exile day !
... Since then the world has remained silent !
On 19th January 1990, Kashmiri Hindus were forced to leave their homeland in their own country, by their so-called
brothers. Lakhs of Hindus were killed, their homes were looted, young Hindu girls and Hindu women faced inhuman torture. The Congress Government in India gave them place in some camps, which lacked even basic amenities. Even after 20 years, they have not been rehabilitated ! Such is the impor tance of Hindus in India.

This is black day in history of Hindustan. 19 January 1990.

सोमवार, 18 जनवरी 2010

१०८ दिवसीय विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा का नागपुर में समापन, ग्रामोदय से राष्ट्रोदय का प्रतीक है गोमाताः बाबा रामदेव


नागपुर, १७ जनवरी। गोरक्षा के लिए १०८ दिन तक सम्पूर्ण देश को झकझोरने के बाद विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा आज यहां सम्पन्न हो गयी। रेशिम बाग मैदान में आयोजित विशाल समापन सभा को संबोधित करते हुए सुप्रसिद्व योग गुरू बाबा रामदेव ने कहा कि गोमाता आत्मउपचार और आत्मसाक्षात्कार का आधार है और यह ग्रामोदय से राष्ट्रोदय का प्रतीक भी है। उन्होंने कहा कि गाय कोई सांप्रदायिक प्राणी नहीं है, यह बिना किसी भेदभाव के सभी का पालन करती है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि आज गाय नहीं बची तो पूरी दुनिया का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
बाबा रामदेव ने उपस्थित जनसमूह का आहवान करते हुए कहा कि सभी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से गोसेवा करें। उन्होंने कहा कि प्रातःकाल गोमूत्र का सेवन अनेक बीमारियों का शमन करता है और कब्जी होने की संभावना समाप्त हो जाती है। उन्होंने कहा कि गाय अगर दूध न भी दे तो भी सिर्फ गोमूत्र और गोबर से पर्याप्त आय हो सकती है। उन्होंने सात रूपये प्रति लीटर के भाव से गोमूत्र खरीदने का भरोसा भी दिलाया।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने कहा कि एक समय था जब गाय और गांव की बात को पिछड ी बात माना जाता था। लेकिन आज आधुनिक युग में यही मुखय चिंतन की बात मानी जा रहा है।
उन्होंने कहा कि शहर जितना बड ा बनेगा, उतना ही बेखबर भी बनेगा। गांव में मनुष्य मनुष्य को पहचानता है, अतः वह स्वतंत्रता, समरसता और सुख का अनुभव करता है, और नियंत्रणविहीन व्यवस्था होते हुए भी अनुद्गाासित समाज होता है। उन्होंने गोग्राम आधारित जीवन को विकेंद्रित और प्रकृति के समीप का युगानुकुल तरीका बताया। उन्होंने कहा कि यह यात्रा का उद्यापन है। केवल नारों से काम चलने वाला नहीं है। उन्होंने देशवासियों को आहवान किया कि वे गाय को जीवन में लाने के लिए दो चार कदम आगे बढ ाएं।
विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा के समापन समारोह के अवसर पर रेशिम बाग मैदान में मानों पूरा शहर उमड़ पड ा। पूरा मैदान खचाखच भरा हुआ था। योग गुरू बाबा रामदेव के अलावा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के अलावा करवीर पीठ के शंकराचार्य श्री नृसिंह भारती सरस्वती, आचार्य महासभा के अध्यक्ष स्वामी दयानंद सरस्वती, गोकर्ण पीठाधीश्वर शंकराचार्य श्री राघवेश्वर भारती स्वामीजी, जैन मुनि श्री पवित्र सागर महाराज, बौद्व संत भंते ज्ञान जगत महाराज, नवबौद्व संत भदंत राहुल बौधि, मौलाना बशीर कादरी आदि ने गोरक्षा के प्रति अपना संकल्प व्यक्त किया।
समापन कार्यक्रम से पूर्व यात्रा समिति के राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा एच आर नागेन्द्र,, राष्ट्रीय सचिव श्री शंकरलाल एवं अन्य पदाधिकारियों ने दीक्षा भूमि जाकर भारत रत्न डा भीमराव अम्बेडकर को श्रद्वांजलि अर्पित की।यात्रा के राष्ट्रीय सचिव श्री शंकरलाल ने बताया कि १०८ दिन चली विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा ने देश का अनवरत भ्रमण किया और दस हजार उपयात्राओं ने पूरे देश को मथ डाला। गांव-गांव, गली-गली, नगर-नगर, डगर-डगर यात्राओं का अभूतपूर्व स्वागत हुआ। हिन्दू ही नहीं ईसाई और मुस्लिम समाज के लोगों ने भी इसमें बढ -चढ कर भाग लिया। देशभर में हजारों सामाजिक संगठन इसमें सहभागी हुए।
उन्होंने बताया कि विश्व के आधुनिक इतिहास में सबसे बडे़ जनमत संग्रह के रूप में यात्रा का हस्ताक्षर अभियान स्थापित हुआ है। करोड ों लोगों ने अपने हस्ताक्षर द्वारा इस अभियान के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है। यह वह संखया है जो आज से पहले किसी भी अभियान के समर्थन में नहीं जुटी।
शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, रामानंदाचार्य, महामंडलेश्वर, अखाडे, जैन मुनि, बौद्व भिक्षु, नामधरी संत, वाल्मिकी संत, रामसनेही सम्प्रदाय, गायत्री परिवार, बह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, पातंजली योगपीठ, आर्ट ऑफ लिविंग, चिन्मय मिशन जैसे प्रतिनिधि संगठनों की सक्रिय भागीदारी भी यात्रा को यशस्वी बनाने में महत्वपूर्ण रही।
उन्होंने कहा कि यात्रा ने न केवल भारत की आस्था को झकझोरा है बल्कि देशभर में स्वावलंबन के बीज भी बोये हैं। निराश हृदयों में आशा का संचार किया है तो युवा शक्ति को आत्मविश्वास का अग्निमंत्र भी दिया है। उन्होंने कहा कि विश्व मंगल गो ग्राम यात्रा स्वतंत्र भारत का सबसे बड ा और प्रभावी आंदोलन है और यह एक मौनक्रांति का सूत्रपात है।

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने किया सेवाधाम छात्रावास का अवलोकन

भोजनालय का अवलोकन करते हुए परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत
छात्रों को उधबोधन देते हुए

दीप प्रजव्लन करते हुए परम पूजनीय सरसंघचालक माननीय मोहन जी भागवत


जोधपुर १४ जनवरी २०१०। राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ के सरसंघचालक माननीय मोहन जी भागवत ने सेवा भारती समिति जोधपुर द्वारा संचालित सेवाधाम छात्रावास का अवलोकन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत माँ भारती, माँ सरस्वती तथा ॐ के चित्रों पर परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने माल्यार्पण किया।
छात्रों ने दीप मंत्र, वेदा मंत्र, गायत्री मंत्र तथा संघटन मंत्र का पाठ किया। इसके पश्चात काव्य गीत का पठन भाई सुराराम के साथ सभी बालको ने किया।
सेवाधाम के इस कार्यक्रम में परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत ने छात्रों को उधोबोधित करते हुए कहा किशिक्ष के साथ साथ संस्कार, विवेक एवं राष्ट्र निष्ठा कि आज महती आवश्यकता है। कई प्रेरक कहानियों के माध्यम से उन्होंने छात्रों को समाज, राष्ट्र के लिए कार्य करने कि प्रेरणा दी। माननीय भागवत जी ने छात्रों के मंगल भविष्य की कामना की.
सेवाधाम में पधारने पर सेवा भारती के क्षेत्रीय अध्यक्ष श्रीकिशन गहलोत, समिति के प्रान्त मंत्री गोविन्द खेतावत, प्रान्त कोषाध्यक्ष एवं महानगर मंत्री अशोक अग्रवाल, महानगर अध्यक्ष नागराज मेहता एवं अन्य पदाधिकरिगन उपस्थित थे।
प्रान्त मंत्री गोविन्द खेतावत ने सेवा भारती के कार्यो की जानकारी एवम महानगर मंत्री ने सेवाधाम की विस्तृत जानकारी सरसंघचालक जी को दी।
परम पूजनीय सरसंघचालक माननीय मोहन जी भागवत ने छात्रावास को पूर्ण रूप से देखा यहाँ तक की छात्रावास के भोजनालय में भोजन व्यवस्था को भी बारीकी से देखा। परम पूजनीय सरसंघचालक जी ने छात्रावास में ही छात्रों के साथ अल्पाहार भी लिया।
माननीय मोहन जी भागवत सेवाधाम के इस छात्रावास तथा इसकी व्यवस्थाओ को देख केर गदगद हुए।
कल्याण मंत्र के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत के सामाजिक सदभाव बैठक - समाचारपत्रों की नज़र में

विविधताएं अनेक, फिर भी देश एक : मोहन भागवत
जोधपुर. 13 janvari 2010 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि हमारा देश विविधताओं वाला है। अलग भाषा अलग वेश फिर भी अपना एक देश,यही हमारे देश एवं संस्कृति की पहचान है।
मंगलवार को खेतानाडी स्थित माहेश्वरी भवन में आयोजित जोधपुर प्रांत की सामाजिक सद्भावना बैठक में संरसंघचालक ने कहा कि मिलजुल कर रहने में विविधता कहीं भी आड़े नहीं आती। हमारे देश के लोगों में आत्मीयता, परोपकार एवं संस्कार हैं। दूसरे देशों के लोगों की तरह वे केवल स्वयं के लिए जीने एवं स्वयं के बारे में सोचने में विश्वास नहीं करते।
भारत दूसरों के लिए जीने वाले लोगों का देश है। यहां की माताएं भी इतनी त्यागमयी हैं कि अगर बच्चे ने भरपेट भोजन कर लिया है तो वे मान लेती हैं कि उनका पेट भर गया है। भागवत ने कहा कि सभी समाजों की अच्छी बातों को लेकर सद्भावना बढ़ाई जा सकती है। सभी समाजों में सत्य,अहिंसा, परोपकार, आत्मीयता आदि मूल्य परक बातों का समावेश है। यही नहीं सभी समाजों के संतो के उपदेश भी एक समान हैं। जात—पात एवं आडम्बर को इन सबमें बुरा माना गया है।
विदेशी तोडना चाहते हैं समरसता

जोधपुर।१३ जनवरी २०१०। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहनराव भागवत ने भारत की समरता को तोडने वाली विदेशी ताकतों की साजिश से सचेत रहने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि कुछ विदेशी ताकतें हमारी परिवार व्यवस्था व सामाजिक समरसता में भेद पैदा कर इन्हें समाप्त करना चाहती हैं। इसलिए ही हमारी सामाजिक समरसता पर लगातार सांस्कृतिक आक्रमण किया जा रहा है।
भागवत बुधवार को यहां माहेश्वरी भवन में आरएसएस जोधपुर प्रान्त की सामाजिक सद्भावना बैठक को सम्बोधित कर रहे थे। संघ प्रमुख ने कहा कि भारत विविधताओं वाला देश है। 'अलग भाषा अलग देश, फिर भी अपना एक देश' हमारे राष्ट्र व संस्कृति की पहचान है। यहां के लोगों में आत्मीयता, परोपकार व संस्कार हैं। हम दूसरे देशों की तरह खुद के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीते हैं।
देश पर विदेशी सांस्कृतिक आक्रमण को परिवार व्यवस्था व सामाजिक समरसता के लिए घातक बताते हुए उन्होंने कहा कि परिवार एक है, तब तक ही हम सुरक्षित हैं। इसलिए जरूरी है कि वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर सामाजिक सद्भाव की गति बढाई जाए। उन्होंने भाषा, प्रान्त, रंग व भेद जैसी अनिष्टकारी शक्तियों का कठोरता से मुकाबला कर सामाजिक सद्भाव बढाने का आह्वान किया।
संघ प्रेरक है
आरएसएस को प्रेरक बताते हुए भागवत ने कहा कि संघ सामाजिक संस्कृति की विरासत को साथ लेकर चल रहा है। सभी को मिलकर सम्पूर्ण समाज में सद्भाव का वातावरण बनाने के प्रयास करने चाहिए। सामाजिक सद्भावना हमेशा राष्ट्रीयता से ओतप्रोत होनी चाहिए। सभी समाजों को सद्भावना के लिए प्रेम और आदर को अपनाना होगा।
दस जिलों की भागीदारी
संघ के प्रान्त संघचालक भंवरलाल कोठारी के अनुसार बैठक में जैसलमेर, बाडमेर, पाली, जालोर, सिरोही, नागौर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ व जोधपुर महानगर के सभी समाजों के प्रबुद्धजनों ने हिस्सा लिया। विभिन्न समाजों के प्रबुद्धजनों ने भी सामाजिक सद्भाव को लेकर महत्वपूर्ण सुझाव दिए।

संघ सामाजिक संस्कृति की विरासत को साथ लेकर चलता है - पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत





















बुधवार, 13 जनवरी 2010

परम पूजनीय सरसंघचालक मोहन जी bhagwat के कार्यक्रम - समाचार पत्रों से

स्त्रोत : दैनिक bhaskar

भारतीय जीवन पद्धति में है उन्नति का मूल: भागवत


जोधपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि दुनिया की सभी समस्याओं का हल भारतीय जीवन-पद्धति में है। इसे अपनाकर ही देश को उन्नत एवं समृद्ध राष्ट्रों की श्रेणी में लाया जा सकता है। कमला नेहरू नगर स्थित आदर्श विद्या मंदिर में मंगलवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एकत्रीकरण कार्यक्रम में संघ-प्रमुख ने स्वार्थपरक जीवन को समस्याओं की जड़ बताया और कहा कि भारतीय दर्शन त्याग एवं एकत्व का पक्षधर है। इसमें प्रकृति को जीवन से पृथक नहीं माना जाता। इसलिए प्रकृति का दोहन किया जाता है, शोषण नहीं, लेकिन दुनिया की अन्य संस्कृतियों का दर्शन ऎसा नहीं है। भागवत ने पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से पार पाने के लिए भी भारतीय जीवन शैली अपनाने की आवश्यकता जताई। इस दौरान उन्होंने उग्रवाद, नक्सलवाद, माओवाद एवं अर्थव्यवस्था की समस्याओं के लिए भी स्वार्थपूर्ण जीवन शैली को ही उत्तरदायी ठहराया। इस मौके संघ के प्रांत व महानगर इकाइयों के पदाधिकारी एवं स्वयंसेवक शरीक हुए। स्वयंसेवकों ने शारीरिक व दण्ड योग सहित घोषवादन की प्रस्तुति दी।


पाकिस्तान को सबक सिखाएं


पड़ोसी राष्ट्रों से दोस्ती की निभाने की केन्द्रीय नीति की समीक्षा की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि देश की सीमाएं असुरक्षित हैं। पाकिस्तान, चीन एवं बांग्लादेश शत्रुता निभा रहे हैं। भारत दोस्ती का हाथ बढ़ाता है और वे गोली चलाते हैं। ऎसे राष्ट्रों को कड़ा सबक सिखाना चाहिए। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बने बैठे बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर भी चिंता जाहिर की।


मित्र नहीं है अमरीका


भागवत ने कहा कि कश्मीर का मसला अमरीका के भरोसे नहीं सुलट सकता। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन अमरीका चाहता है कि भारत तथा पाकिस्तान इस मुद्दे पर झगड़ते रहे और उसे फायदा मिले। उन्होंने भारत-पाक विवाद में अमरीका की स्थिति दो बिल्लियों के झगड़े में मक्खन लूट ले जाने वाले बंदर जैसी बताई। आसान नहीं संघ को समझनासंघ-प्रमुख ने कहा कि आरएसएस के विचार एवं कार्यो को समझना आसान नहीं है। संघ विरोधात्मक या प्रतिक्रियात्मक कार्य नहीं करता। निस्वार्थ भाव से चलने वाला संघ-कार्य अनोखा है। इसे जानने के लिए इसके अंदर आकर संघ के सिद्धांतों को समझना जरूरी है। उदारवादी है हिन्दूउन्होंने कहा कि विश्व के सभी सम्प्रदायों में कट्टरता भरी हुई है। इनमें साम-दाम-दण्ड या भेद से धर्मपालन के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन हिन्दू धर्म में समदृष्टि का सिद्धांत है। इसमें मिलजुल कर रहने और एकता रखने का भाव है।


राजनीति पर प्रहार


भागवत ने राजनीतिक स्वार्थपरायणता पर प्रहार करते हुए कहा कि राजनीतिक दल वोट की राजनीति के कारण अलगाव फैला रहे हैं, लेकिन इससे देश का नुकसान हो रहा है। उन्होंने राजनीतिज्ञों के मंसूबों को नाकामयाब करने का आग्रह किया।


स्त्रोत:http://www.patrika.com/news.aspx?id=307658


सोमवार, 11 जनवरी 2010

परम पूज्यनीय सरसंघचालक मोहन जी भागवत के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण वेब साईट पर

जोधपुर ११ जनवरी २०१० । जोधपुर में १२ जनवरी को परम पूज्यनीय सरसंघचालक माननीय मोहन राव भागवत आदर्श विद्या मंदिर , केशव नगर, जोधपुर में आयोजित हिन्दू शक्ति संगम कार्यक्रम में उधबोधन देंगे। जोधपुर में १४ वर्ष पश्चात सरसंघचालक प्रणाम का स्वर्णिम अवसर आया है। इस सार्वजानिक कार्यक्रम में घोष प्रदर्शन तथा शारीरिक प्रदर्शन भी होगा।
विश्व संवाद केंद्र , जोधपुर द्वारा इस कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण (Live Webcast) किया जायेगा । यह कार्यक्रम दोपहर ३.३० से ५.१५ तक www.ustream.tv/channel/eshakha पर देखा जा सकता है.

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित