शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

"भारत माता की जय" तथा "वन्देमातरम " के नारे लगे और "तिरंगा" लहराया गया .

कल के इलेक्ट्रोनिक मीडिया में इक खबर ने खूब धमाल मचाया गिलानी की सभा में हुड़दंग, "भारत माता की जय" तथा "वन्देमातरम " के नारे लगे और "तिरंगा" लहराया गया . अच्छा ही हुआ न , देश भावना का जज्बा देश द्रोहियों की बीच देखने का सुन्दर दृश्य था.

यह क्या हो रहा है इस देश में ? इस देश के हुक्मरानों को कुछ खबर है भी या नहीं ? इस देश की राजधानी में हुक्मरानों की नाक के नीचे "केवल आजादी ही है रास्ता "
कमेटी फॉर रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर(सीआरपीपी) द्वारा आयोजित की गई . कट्टरपंथी अलगाववादी कश्मीरी नेता, हुर्रियत कांफ्रेंस के सैयद अली शाह गिलानी तथा अरूंधती राय तथा नक्सली नेता इस कथित सेमिनार में थे.

सवाल तो यह उठता है की इस तरह के विषयों पर सेमिनार करने की इज़ाज़त देकर हमारी सरकार किस लोकतंत्र की हिमायती बनने का दिखावा करना चाहती है . उन्हें क्यों बढ़ावा दे रही है जो देश की अखंडता और अष्मिता से खेलने का घिनोना कुकर्त्य कर रहे है. इस देश में रह कर इस देश के विरुद्ध कार्य करना क्या देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता ?

सेमिनार में गिलानी और उनके समर्थक हो होने थे उन्होंने भारत विरोधी नारे लगाये जो उन देशभक्तों को नागवार गुजरा और उन्होंने तिरंगा लहराते हुए "भारत माता की जय " और "वन्दे मातरम " का जय घोष किया . भारत विरोधियों को यह कैसे पसंद आता बस तकरार तो होनी थी और हो गई . मगर इस देश की पुलिस का भी क्या कहना देशभक्तों को पकड बहार किया और अपने सरंक्षण में इस सेमिनार को बदस्तूर जारी रखवाया .

जनाब गिलानी के सुर में सुर मिलते हुए मैडम अरूंधती राय ने भी कह दिया कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग कभी रहा ही नहीं। उन्होंने भारत को उपनिवेशवादी भी बताया. अब कैसे और किसको सत्य इतिहास का ज्ञान करवाया जाये.

इसी मौके पर लेखिका अरुंधति राय ने भी अलगाववादियों के पक्ष में जम कर तर्क दिए। इन अलगाववादी आंदोलनों को उन्होंने जन-आंदोलन बताया। साथ ही कहा कि कश्मीर को बार-बार भारत का अभिन्न अंग बताया जाता है, जबकि यह कभी अभिन्न अंग रहा ही नहीं। उन्होंने भारत को उपनिवेशवादी ताकत तक बताया।

उन्होंने कहा कि चाहे कश्मीर के आंदोलनकारी हों या नगालैंड के या फिर नक्सली, ये जन आंदोलन हैं। इसलिए इनकी आवाज को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहिए। वैसे तो विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन भी जन आंदोलन है, लेकिन इसमें फर्क यह है कि यह 'सबके लिए न्याय' के सिद्धांत पर आधारित नहीं है, जबकि अलगाववादी बताए जाने वाले ये आंदोलन इस भावना पर आधारित हैं।


अब सामान्य ज्ञान भी अगर किसी को नहीं है तो फिर बोलने के लिए बोलना जरुरी है क्या ? अरुंधती रॉय जी आप चाहती क्या है , यह आम भारतीय शायद अब जान ही गए होंगे.

इस देश के हुक्मरानों से इक करबद्ध निवेदन की देश की सोचे, देश के लिए सोचे , देश की लिए जिए और जीने दे . कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा इसमें कोई शक नहीं है .

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित