बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

शासन करें राजनीति नहीं


जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के विवादास्पद बयान को यदि अलगाववादी नेता संसद अली शाह गिलानी ‘अपना’ बताते, तब भी उनकी बातें काफी आपत्तिजनक थीं। पर जिस तरह से उसे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सही कहा, वह गलत है। दिग्विजय सिंह ने उमर के इस कथन को सही बताया है कि मैं केंद्र की कठपुतली नहीं हूं। अब कोई मुख्यमंत्री खुद को कठपुतली कैसे कहेगा? पर इससे उमर की उस मुख्य बात का भी समर्थन हो जाता है, जिसमें उन्होंने कश्मीर के भारत विलय पर सवाल उठाया था। दिग्विजय ने यह गोलमोल रवैया क्यों अपनाया, वह जानते होंगे, पर उमर ने जिस जगह आकर ऐसा बयान दिया है, यह उनकी अपनी कमजोरी, बचकानापन और सत्ता के प्रमुख के रूप में दिनोंदिन अशुभ साबित होने का प्रमाण है, जो कश्मीर मसले को उलझाएगा।

जिस कश्मीर का विलय उस रियासत के एकमात्र रक्षक व्यक्ति हरी सिंह की दस्तखत से हुआ हो, जिसे संविधान सभा में शेख अब्दुल्ला ने स्वीकार किया और जिस पर इंदिरा-शेख समझौते की भी मुहर लग चुकी हो, उस पर नए सिरे से सवाल उठाने का उमर को न नैतिक हक है, न वैधानिक। बल्कि विलय के साथ तब कश्मीर ही नहीं, पूरे मुल्क में यही भावना प्रबल थी कि विभाजन के समय पाक कबायलियों और फौजी हमले में कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया है, उसे कैसे भी वापस ले आया जाए। उमर को इस बार गद्दी देने के पीछे आम कश्मीरियों की यह राय थी कि बेदाग छवि वाला यह नौजवान प्रदेश में स्थिति को बेहतर बनाने में सक्षम होगा और इसकी निष्ठा पर कोई संदेह नहीं है। पर जैसे-जैसे उनका शासन विफल होता गया, वैसे-वैसे उमर कमियां दूर करने की जगह बहाने बनाने लगे हैं और अलगाववादी नेता गिलानी के साथ-मिलाकर मध्यमार्गी दलों की राजनीति को समाप्त करने का खेल खेलने लगे हैं। पर कश्मीर के विलय पर सवाल उठाना सिर्फ गिलानी की संगति का प्रभाव नहीं है। शेख अब्दुल्ला हों या फारूक, सबने मौका मिलने पर कांग्रेस से हाथ मिलाने, उसके साथ ‘खेल’ करने, फिर बागी तेवर अपना लेने का ही रिकॉर्ड बनाया है। बार-बार हुई नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस की दोस्ती के दौरान चुनावों में भी बड़े पैमाने पर धांधली हुई और इसने भी अलगाव की राजनीति करने वालों को उभारा। अब उमर अपने बयान के बारे में आगे क्या कहते हैं, यह तो वह जानें। पर इतना जरूर है कि केंद्र सरकार और कांग्रेस को सख्त रुख अपनाना चाहिए। पहले फारूक की राजनीति में फंसकर कांग्रेस (और पूरी घाटी भी) काफी मिट चुकी है। अब उमर की राजनीति में कांग्रेस और प्रदेश की दुर्गति न हो, इसका खयाल रखा जाना चाहिए

source : http://www.amarujala.com/Vichaar/VichaarEditDetail.aspx?nid=46

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विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित