शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

सरस्वती नदी पर फिर होगा मंथन

जोधपुर. वैदिक काल में बहने वाली सरस्वती नदी और उसके मार्ग को लेकर वैज्ञानिकों में चाहे कितने मतभेद है, लेकिन जैसलमेर व बाड़मेर के अलावा कच्छ, कुरुक्षेत्र, कैथल व जिंद में सरस्वती नदी पर अध्ययन का काम फिर नए सिरे से शुरू होने वाला है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान रिसर्च सेंटर (इसरो) के सेटेलाइट से लिए गए चित्रों व डाटाबेस अध्ययन के आधार पर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब व गुजरात में खोजे गए सरस्वती नदी के मार्ग और उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर फिर मंथन होगा। इसरो व ओएनजीसी सहित आठ एजेसियां और दो विश्वविद्यालय वेब एनेबल सरस्वती इंफोर्मेशन तैयार करेंगे। इसके लिए अगले महीने सभी एजेंसियों में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर होंगे।
इसरो के वैज्ञानिकों ने वैदिक काल सभ्यता के प्रमाण देते हुए सरस्वती नदी के लुप्त होने का खुलासा कुछ साल पूर्व किया था। सेटेलाइट चित्रों के आधार पर वैज्ञानिकों ने दस से बारह हजार साल पूर्व वैदिक काल में सरस्वती नदी के बहने के प्रमाण दिए थे। साथ ही हरियाणा के कुरुक्षेत्र से गंगानगर होते हुए जैसलमेर व बाड़मेर से कच्छ तक सरस्वती नदी का मार्ग भी खोजा था व गर्भ में नदी की धारा बहने के संकेत दिए थे। इसरो के डाटाबेस अध्ययन के आधार पर भूजल विभाग ने जैसलमेर व बाड़मेर में 24 कुएं खोदे थे।
कुओं से मिले पानी की उम्र जानने के लिए मुंबई के भाभा एटोमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट से टेस्ट कराने पर डेटिंग में पानी की उम्र दस से बारह हजार साल बताई गई थी। उससे वैदिक काल में सरस्वती नदी के बहने और किसी भूगर्भीय परिवर्तन की वजह से नदी के लुप्त होने के वैज्ञानिक के दावों को बल मिला था। हालांकि जयनारायण विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो. बीएस. पालीवाल ने उनके इस दावे को नकारते हुए कहा था कि सरस्वती नदी सिन्धु नदी की एक सहयोगी नदी थी, जो बाद में सूख गई। इसरो के डाटाबेस अध्ययन के आधार पर तीन साल पूर्व ओएनजीसी ने सरस्वती प्रोजेक्ट के नाम से जैसलमेर के डाबला गांव में सरस्वती नदी के मार्ग पर एक कुआं खोदा था।
वहां मीठा पानी मिलने पर वैज्ञानिक उत्साहित थे। अब ओएनजीसी, इसरो, सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद, स्टेट ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, पीएचईडी, हरियाणा एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट व वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड के अलावा गांधीनगर एसएम विश्वविद्यालय बड़ौदा व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर अगले महीने सरस्वती नदी पर फिर से खोज शुरू करेगी।
इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बीके भद्र ने बताया कि इसरो जोधपुर ने पन्द्रह साल पहले सरस्वती नदी को लेकर रिसर्च किया है। सेटेलाइट चित्रों व डाटा बेस अध्ययन के आधार पर नए सिरे से सभी एजेंसियां सरस्वती नदी की प्रामाणिकता, मार्ग, उसके लुप्त होने के कारण और उसके चैनल के बारे में जानकारियां एकत्रित करेंगी। इस आधार पर ओएनजीसी जैसलमेर व बाड़मेर में पानी के कुएं खोदेगी। वहीं सेंट्रल वाटर बोर्ड, जयपुर, चंडीगढ़ व गांधीनगर में सरस्वती मार्ग पर जियोफिजिकल सर्वे करेगा।

1 टिप्पणी:

  1. धन्यवाद!आपने लोगों तक इतनी महत्त्वपूर्ण जानकारी पहुंचाकर एक बहुत बड़ा धर्म किया है क्योंकि राष्ट्र-धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं॥

    जवाब देंहटाएं

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित