सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

सरस्वती बता रही है मेवाड़ का रिश्ता


उदयपुर. यदि हरियाणा के सैमाण व फरमाणा में वैदिक सरस्वती की प्रधान सहायक नदी दृषद्वती के प्रवाह क्षेत्र में हुई खुदाई में मिले अवशेषों की जुबानी जाने तो यह स्वीकारना होगा कि वैदिक काल में मेवाड़ का सरस्वती सिंधु निवासियों के साथ अच्छे ताल्लुकात थे।
यह सभ्यता का वह सांस्कृतिक दौर था जब हड़प्पावासियों की नगर नियोजन विधि और मेवाड़ की ग्राम्य निवेश विधि को देशवासी न केवल जान रहे थे बल्कि उसका अनुसरण भी करने लगे थे। डेकन कॉलेज, पुणो के पुरातत्वविद् प्रो. वसंत शिंदे ने यह खुलासा दृषद्वती नदी के किनारे पर बड़े क्षेत्र में उत्खनन के बाद किया।
हरियाणा के रोहतक के निकट बसे फरमाना के आसपास बड़े क्षेत्र में उत्खनन शुरू किया गया है। यह उत्खखन इन दिनों जारी है। जो अवशेष मिले हैं, वे बताते हैं कि यह उस काल में कस्बे की तरह आबाद था।
वहां करीब 3500 ईसा पूर्व कृषि के साथ ही व्यापारिक गतिविधियां अस्तित्व में थीं और इन गतिविधियों में मेवाड़ भी अपना योगदान दे रहा था। मेवाड़ की घग्घर नदी इसी सरस्वती, दृषद्वती का पुनरूप मानी जाती है।
क्या मिली समानताएं : डॉ. शिंदे के अनुसार उदयपुर संभाग में बनास बेसिन में गिलूंड (राजसमंद), बालाथल (उदयपुर) से जो बर्तन मिले हैं, वैसे ही बर्तन फरमाना में मिले हैं। ऐसे बर्तनों को रिजर्वस्लिप पोट्री के रूप में जाना गया है।
ये बर्तन मेवाड़ से ही वहां पहुंचे होंगे, इस बात की प्रबल संभावना है क्योंकि इसी क्षेत्र से ग्रेनाइट भी वहां पहुंचा था और वहां उसका उपयोग मोती बनाने के किया गया। वहां मोती निर्माण की कार्यशाला का भी पता चला है। इसके लिए कच्चे माल रूप में गार्नेट मेवाड़ के आसपास से ही वहां पहुंचा था।
उस समय दृषद्वती के आसपास के क्षेत्र में अनाज की भरपूर पैदावार थी और संभवत: वहां से अनाज मेवाड़ आता था। गिलूंड में अनाज के बड़े बड़े गोदाम होने की पुष्टि हो चुकी है। मेवाड़ और मेवाड़ के अन्य हिस्सों से तांबा भी वहां पहुंचता था। गुजरात से शंख और सिंध क्षेत्र से नीला पत्थर वहां पहुंचता था। बहुत संभव है कि यह व्यापार पशुओं पर माल का परिवहन करने वालों के मार्फत ही होता था।
क्या सीखा परस्पर : शिंदे का मानना है कि हड़प्पा के साथ मेवाड़ के रिश्तों पर पुनर्विचार की संभावना गिलूंड की खुदाई के साथ ही बनी। मेवाड़ में लगभग उसी काल में ग्राम निवेश का जोर था जबकि हड़प्पावासी नगर निवेश कर रहे थे। बाद में उन्होंने जहां भी बस्तियां बसाई, ग्राम निवेश किया और इसकी प्रेरणा मेवाड़ रहा।
दोनों ही क्षेत्रों में स्थानीय लोग ही थे किंतु वे एक दूसरे की सभ्यता व संस्कृति से सीख रहे थे। ईसा पूर्व 1500 के आसपास जबकि अकाल या अन्य कारणों से सरस्वती प्रवाह क्षेत्र से लोगों का पलायन हुआ तो मेवाड़ सहित पुष्कर-मेरवाड़ा, लूणी-मारवाड़, सौराष्ट्र, उत्तरी गुजरात में लोगों ने आश्रय लिया। बहुत संभव है ये सारस्वत कहे जाने लगे।
कहां है जिक्र : सप्तसैंधव प्रदेश व सरस्वती नदी का जिक्र ऋग्वेद (7, 95, 2; 2, 14, 6; 7, 95, 1; 6, 21, 2 से 9) और महाभारत (95, 24) में आया है। ब्रrावैवर्तपुराण को सूत ने दृषदृती के तट पर ही ऋषियों को सुनाया था।
इसी नदी के किनारे विद्या व वाक् की परंपरा रही और अन्य क्षेत्रों से सांस्कृतिक संबंधों, व्यापारिक गतिविधियों के चलते मेवाड़, सौराष्ट्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और वर्तमान पाकिस्तान में राजनीति के केंद्रों के विकास के साथ ही प्रशासन, जनतंत्र (जनपद), वाणिज्य, कृषि पद्धतियों का विकास हुआ ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विश्व संवाद केन्द्र जोधपुर द्वारा प्रकाशित